01-07-2016, 05:05 PM | #1 |
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Nirmal mann
. लोगों से पूछा हमें एक रात्रि यहाँ रहना है किसी पवित्र परिवार का घर दिखाओ . लोगों ने बताया कि वहा एक चाचा का घर है। साधु-महात्माओं का आदर सत्कार करते हैं। . अखिल ब्रह्माण्डमां एक तुं श्रीहरि' का पाठ उनका पक्का हो गया है। वहाँ आपको ठीक रहेगा। . उन्होंने उन सज्जन चाचा का पता बताया। दोनों संन्यासी वहाँ गये। . चाचा ने प्रेम से सत्कार किया, भोजन कराया और रात्रि-विश्राम के लिए बिछौना दिया। . रात्रि को कथा-वार्ता के दौरान एक संन्यासी ने प्रश्न कियाः की आपने कितने तीर्थों में स्नान किया है ? . कितनी तीर्थयात्राएँ की हैं। ? . हमने तो चारों धाम की तीन-तीन बार यात्रा की है। . चाचा ने कहा.. मैंने एक भी तीर्थ का दर्शन या स्नान नहीं किया है। . यहीं रहकर भगवान का भजन करता हूँ और आप जैसे भगवत्स्वरूप अतिथि पधारते हैं तो सेवा करने का मौका पा लेता हूँ। . अभी तक कहीं भी नहीं गया हूँ। . दोनों संन्यासी आपस में विचार करने लगेः ऐसे व्यक्ति का अन्न खाया ! . अब यहाँ से चले जायें तो रात्रि कहाँ बितायेंगे ? यकायक चले जायें तो उसको दुःख भी होगा। चलो, कैसे भी करके इस विचित्र वृद्ध के यहाँ रात्रि बिता दें। . जिसने एक भी तीर्थ नहीं किया उसका अन्न खा लिया, हाय ! आदि-आदि। . इस प्रकार विचारते हुए वे सोने लगे लेकिन नींद कैसे आवे ! . करवटें बदलते-बदलते मध्यरात्रि हुई। . इतने में द्वार से बाहर देखा तो गौ के गोबर से लीपे हुए बरामदे में एक काली गाय आयी.... फिर दूसरी आयी.... तीसरी, चौथी.... पाँचवीं... ऐसा करते-करते कई गायें आयीं। . हरेक गाय वहाँ आती, बरामदे में लोटपोट होती और सफेद हो जाती तब अदृश्य हो जाती। . ऐसी कितनी ही काली गायें आयीं और सफेद होकर विदा हो गयीं। . दोनों संन्यासी फटी आँखों से देखते ही रह गये। वे दंग रह गये कि यह क्या कौतुक हो रहा है ! . आखिरी गाय जाने की तैयारी में थी तो उन्होंने उसे प्रणाम करके पूछाः . हे गौ माता ! आप कौन हो और यहाँ कैसे आना हुआ ? . यहाँ आकर आप श्वेतवर्ण हो जाती हो इसमें क्या रहस्य है ? कृपा करके आपका परिचय दें। . गाय बोलने लगीः हम गायों के रूप में सब तीर्थ हैं। लोग हममें गंगे हर... यमुने हर.... नर्मदे हर... आदि बोलकर गोता लगाते हैं। . हममें अपने पाप धोकर पुण्यात्मा होकर जाते हैं और हम उनके पापों की कालिमा मिटाने के लिए द्वन्द्व-मोह से विनिर्मुक्त आत्मज्ञानी, आत्मा-परमात्मा में विश्रान्ति पाये हुए सत्पुरूषों के आँगन में आकर पवित्र हो जाते हैं। . हमारा काला बदन पुनः श्वेत हो जाता है। . तुम लोग जिनको अशिक्षित, गँवार, बूढ़ा समझते हो वे बुजुर्ग के जहाँ से तमाम विद्याएँ निकलती हैं.... उस आत्मदेव में विश्रान्ति पाये हुए आत्मवेत्ता संत हैं। . तीर्थी कुर्वन्ति जगतीं.... . ऐसे आत्मारामी ब्रह्मवेत्ता महापुरुष जगत को तीर्थरूप बना देते हैं। . अपनी दृष्टि से, संकल्प से, संग से जन-साधारण को उन्नत कर देते हैं। . ऐसे पुरुष जहाँ ठहरते हैं, उस जगह को भी तीर्थ बना देते हैं। Internet ke madhyam se |
02-07-2016, 09:26 AM | #2 | |
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Re: Nirmal mann
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05-07-2016, 12:19 AM | #3 |
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Re: Nirmal mann
बहुत बहुत धन्यवाद भाई उत्साह वर्धक टिपण्णी के लिए .
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