01-12-2010, 01:47 PM | #21 | |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
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04-12-2010, 09:40 AM | #22 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
मैंने देखा था कल शाम तुझे फिर से रोते हुए...
अपने गहरे ज़ख्मों को फिर नमक के पानी से धोते हुए...! क्या लगता है के मैं कुछ नहीं जनता... तेरे मासूम चेहरे पर बनी इन लकीरों को नहीं पहचानता...! तेरी छाती से उतरे दूध को पिया है मैंने... हर पल जब तू मरी वो हर पल तेरे साथ जिया है मैंने...! यहाँ खड़ा हूँ इस चलते तूफ़ान के बीच... तुने ही तो कहा था की इन पौधों को लहू से सींच...! फिर भी पता नहीं के क्या मैं कर पाउँगा... बस येही मालूम है की बेटा हूँ तेरा और यहीं मर जाऊंगा...! मेरी भी तो माँ ने ही भेजा है मुझको तिलक लगा कर... जाते हुए को बोली थी वापिस मत आना यहाँ पीठ दिखाकर...! हाँ मैं देख रहा हूँ की वो बढे आ रहे हैं... उनकी रफ़्तार ही ऐसी है की मेरे नाते सब बिछड़ते जा रहे हैं...! अच्छा माँ देख मुझे अब फ़र्ज़ बुला रहा है... खून का यह कैसा दौरा है उबलता ही जा रहा है...! तेरी आँखों के आंसू तो शायद मैं न पोंछ सकूँगा... लेकिन आज अगर मैं नहीं कट्टा तो अपने घर भी तो नहीं जा सकूँगा...! माँ बस मेरी माँ से कहना की तेरा बेटा लौटा नहीं... अब भी सरहद पे ही पड़ा है बुलाती हूँ तो बोलता ही नहीं...! कहना की वो बिलकुल नहीं डरा और मुझे छोड़ कर नहीं भागा... लड़ लड़ के मरा है हमारा बेटा फौजी था न के अभागा...! हाँ लोगो तुम भी मुझे शहीद ही बुलाना... इस माँ की खातिर मंज़ूर है पड़े जो हर इक माँ को रुलाना...! |
04-12-2010, 10:59 AM | #23 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
वाह तेजी, बहुत खूब …
आपने शब्दों में पिरो दिया मेरे मन की बात को… सच भी है केवल जनम और पालन पोषण देनेवाली ही माँ नहीं होती। हमारे भारतवर्ष में देवियों को भी माँ शब्द से और जन्मभूमि को भी माँ पुकारा जाता है। और हम इस बात पर आपका हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं कि आपने इस बात को समझा और बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण किया। हार्दिक धन्यवाद दोस्त। |
04-12-2010, 11:22 AM | #24 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
यूही कभी जब, कश्ती मेरी तूफ़ान में आती है,
प्यारी माँ, दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है॥ |
04-12-2010, 11:30 AM | #25 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
साथी संगी सखी सहेली माँ हीँ होती हैँ
हमदर्द व हमराज अकेली माँ हीँ होती हैँ दुध पिलाऐ लहु पिलाऐ और पिलाऐ आँसु दुःख सुःख के हर रंग को झेली माँ हीँ होती हैँ हँस हँस कर बाहोँ मेँ झुलाऐँ रो रो बिठाऐँ डोली धुप और छाओँ मेँ सँग सँग खेली माँ हीँ होती हैँ जिस की छाओँ मेँ हर मौसम हर पहर हो इतमीनान ऐसी एक महफुज हवेली माँ हीँ होती हैँ आते जाते मौसम के बदलाओ से आगाह बुझ ले जो हर पहेली माँ हीँ होती हैँ जिस के लम्स से जलती आँख को हो शबनम का ऐसशाश ठंडी ठंडी चाँद हथेली माँ हीँ होती हैँ चेहरे फिके पर जाए उड जाऐँ रंग जब भी देखो नई नवेली माँ हीँ होती हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
04-12-2010, 08:19 PM | #26 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
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05-12-2010, 09:49 AM | #27 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
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07-12-2010, 12:46 PM | #28 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
सख्त रास्तोँ मे भी आसान सफर लगता है
ये मुझे "माँ" की दुवाओ का असर लगता है एक मुद्दत से मेरी माँ नही सोई जब मैने एक बार कहा था "माँ" मुझे डर लगता है ।
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Last edited by Sikandar_Khan; 21-12-2010 at 08:59 PM. Reason: हिँदी मे |
21-12-2010, 03:00 PM | #29 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
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Last edited by Sikandar_Khan; 21-12-2010 at 09:01 PM. Reason: हिँदी मे |
21-12-2010, 05:36 PM | #30 |
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Re: ღ प्यारी माँ ღ
अलोक श्रीवास्तव की रचना पेश है इसी सूत्र के क्रम में
''चिंतन, दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नज़र पर छाई अम्मा सारे घर का शोर-शराबा,सूनापन,तनहाई अम्मा सारे रिश्ते- जेठ-दुपहरी, गर्म-हवा, आतिश, अंगारे झरना, दरिया, झील, समंदर, भीनी-सी पुरवाई अम्मा उसने ख़ुद को खोकर; मुझ में एक नया आकार लिया है धरती, अंबर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा बाबूजी गुज़रे, आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं,तब- मैं घर में सबसे छोटा था,मेरे हिस्से आई अम्मा घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा'' |
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