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Old 04-01-2013, 08:11 PM   #11
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Old 04-01-2013, 08:12 PM   #12
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Old 04-01-2013, 08:18 PM   #13
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जैन धर्म में अहिंसा को परमधर्म माना गया है।

सब जीव जीना चाहते हैं,मरना कोई नहीं चाहता, अतएव इस धर्म में प्राणिवध के त्याग का सर्वप्रथम उपदेशहै।

केवल प्राणों काही वधनहीं, बल्कि दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले असत्य भाषण को भी हिंसा काएक अंग बताया है।

महावीर ने अपने भिक्षुओं कोउपदेश देते हुए कहा है कि उन्हें बोलते-चालते, उठते-बैठते, सोते औरखाते-पीते सदा यत्नशील रहना चाहिए। अयत्नाचार पूर्वक कामभोगों में आसक्तिही हिंसा है, इसलिये विकारों पर विजय पाना, इंद्रियों का दमन करना और अपनी समस्त वृत्तियों को संकुचित करने को जैनधर्म में सच्ची अहिंसा बताया है।

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु औरवनस्पति में भी जीवन है,अतएव पृथ्वी आदिएकेंद्रिय जीवों की हिंसाका भी इस धर्म में निषेध है।
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Old 04-01-2013, 08:21 PM   #14
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Default Re: जानिए जैन धर्म को

जैनधर्म का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है कर्म।

महावीर ने बार बार कहा है कि जो जैसा अच्छा, बुरा कर्म करता है उसका फलअवश्य ही भोगना पड़ता है

तथा मनुष्य चाहे जो प्राप्त कर सकता है, चाहे जो बन सकता है, इसलिये अपने भाग्य का विधाता वह स्वयं है।

जैनधर्म में ईश्वर को जगत्* का कर्ता नहीं माना गया, तप आदि सत्कर्मों द्वारा आत्मविकास की सर्वोच्च अवस्था को ही ईश्वर बताया है।

यहाँ नित्य, एक अथवा मुक्त ईश्वर को अथवा अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया गया।

ज्ञानावरण,दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, अंतराय, आयु, नाम और गोत्र इन आठ कर्मों का नाश होने से जीव जब कर्म के बंधन से मुक्त हो जाता है तो वह ईश्वर बन जाता है तथा राग-द्वेष से मुक्त हो जाने के कारण वह सृष्टि के प्रपंच में नहीं पड़ता।
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Old 05-01-2013, 04:40 AM   #15
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जैन धर्म की प्राचीनता

सृष्टि अनादि-निधन है। सभी प्रकार के ज्ञान, विचारधाराएँ भी अनादि निधन है। समय-समय पर उन्हें प्रकट करने वाले अक्षर, पद, भाषा और पुरुष भिन्न हो सकते हैं।

इस युग में सदियों पहले श्री ऋषभदेव द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ। जैन धर्म की प्राचीनता प्रामाणिक करने वाले अनेक उल्लेख अजैन साहित्य और खासकर वैदिक साहित्य में प्रचुर मात्रा में हैं। अर्हंतं, जिन, ऋषभदेव, अरिष्टनेमि आदि तीर्थंकरों का उल्लेख ऋग्वेदादि में बहुलता से मिलता है, जिससे यह स्वतः सिद्ध होता है कि वेदों की रचना के पहले जैन-धर्म का अस्तित्व भारत में था। श्रीमद्* भागवत में श्री ऋषभदेव को विष्णु का आठवाँ अवतार और परमहंस दिगंबर धर्म का प्रतिपादक कहा है। विष्णु पुराण में श्री ऋषभदेव, मनुस्मृति में प्रथम जिन (यानी ऋषभदेव) स्कंदपुराण, लिंगपुराण आदि में बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि का उल्लेख आया है। दीक्षा मूर्ति-सहस्रनाम, वैशम्पायन सहस्रनाम महिम्न स्तोत्र में भगवान जिनेश्वर व अरहंत कह के स्तुति की गई है। योग वाशिष्ठ में श्रीराम ‘जिन’ भगवान की तरह शांति की कामना करते हैं। इसी तरह रुद्रयामलतंत्र में भवानी को जिनेश्वरी, जिनमाता, जिनेन्द्रा कहकर संबोधन किया है। नगर पुराण में कलयुग में एक जैन मुनि को भोजन कराने का फल कृतयुग में दस ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर कहा गया है। इस तरह के कुछ उद्धरण इसी पुस्तक के अन्य पाठों में दिए गए हैं। प्रस्तुत पाठ में कुछ विद्वानों, इतिहासज्ञों, पुरातत्वज्ञों की मान्यताओं का उल्लेख किया गया है।

‘जैन परम्परा ऋषभदेव से जैन धर्म की उत्पत्ति होना बताती है जो सदियों पहले हो चुके हैं। इस बात के प्रमाण हैं कि ईस्वी सन्* से एक शताब्दी पूर्व में ऐसे लोग थे जो कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पूजा करते थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैन धर्म महावीर और पार्श्वनाथ से भी पूर्व प्रचलित था। यजुर्वेद में तीन तीर्थंकर ऋषभ, अजितनाथ, अरिष्टनेमि के नामों का उल्लेख है। भागवत पुराण भी इस बात का समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे।’

Indian Philosophy P.287 डॉ. राधाकृष्णन्*
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Old 05-01-2013, 04:42 AM   #16
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जैन धर्म की प्राचीनता

“If this is not history and Historical Confirmation I do not know what else would be covered by these terms”
Barrister
Champatrai

“It should be borne in mind, however, while prehistory is a period of the history of mankind for which there are no written sources, archaeology is a method of remained leftby the people of past.”

(Introduction, History of humanity, Vol. 1 Pre-History and begnnings of Civilization Ed. S.J. Laser, Unesco, 1994)
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Old 05-01-2013, 04:44 AM   #17
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जैन धर्म की प्राचीनता

‘जैन-विचार निःसंशय प्राचीनकाल से हैं। क्योंकि ‘अर्हन इदं दय से विश्वमभ्वम्*’ इत्यादि वेद वचनों में वह पाया जाता है।’ - संत विनोबा भावे

‘मुझे प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में चार बुद्धया मेधावी महापुरुष हुए हैं। इनमें पहले आदिनाथ या ऋषभदेव थे। दूसरे नेमिनाथ थे। ये नेमिनाथ ही स्केंडिनेविया निवासियों के प्रथम ओडिन तथा चीनियों के प्रथम फो नामक देवता थे।’- राजस्थान – कर्नल टाड

‘दिगम्बर सम्प्रदाय प्राचीन समय से आज तक पाया जाता है। हम एक ही निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ग्रीक लोग पश्चिमी भारत में जहाँ आज भी दिगम्बर सम्प्रदाय प्रचलित है, जिन ‘जिमनोसोफिस्ट’ के संपर्क में आए थे, वे जैन थे ब्राह्मण या बौद्ध नहीं थे। और सिकन्दर भी तक्षशिला के पास इसी दिगम्बर संप्रदाय के संपर्क में आया था और कलानस (कल्यान) साधु परसिया तक उसके साथ गया था। इस युग में इस धर्म का उपदेश चौबीस तीर्थंकरों ने दिया है जिसमें भगवान महावीर अंतिम थे।’- रेवेरेण्ड जे. स्टेवेनसन्* चेयरमैन रायल एशियार्टिक सोसायटी

‘इन खोजों (मथुरा के स्तूप आदि से) से लिखित जैन परम्परा का बहुत सीमा तक समर्थन हुआ है और वे जैन धर्म की प्राचीनता के और प्राचीनकाल में भी बहुत ज्यादा वर्तमान स्वरूप में ही होने के स्पष्ट व अकाट्य प्रमाण हैं। ईस्वी सन्* के प्रारंभ में भी चौबीस तीर्थंकर अपने भिन्न-भिन्न चिह्नों सहित निश्चित तौर पर माने जाते थे।’
- इतिहास विसेन्ट स्मिथ
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Old 05-01-2013, 04:45 AM   #18
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जैन धर्म की प्राचीनता

‘जैन परम्परा इस बात में एक मत है कि ऋषभदेव, प्रथम तीर्थंकर जैन धर्म के संस्थापक थे। इस मान्यता में कुछ ऐतिहासिक सत्यता संभव है।’ (Indian Antiquary Vol. 19 p. 163) Dr. jacobi

‘हम दृढ़ता से कह सकते हैं कि अहिंसा-धर्म (जैन धर्म) वैदिक धर्म से अधिक प्राचीन नहीं तो वैदिक धर्म के समान तो प्राचीन है।’Cultural Heritage of india page 185-8

‘यह भी निर्विवाद सिद्ध हो चुका है कि बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के पहले भी जैनियों के 23 तीर्थंकर हो चुके हैं।’ – इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया, पृष्ठ-51

‘बौद्धों के निर्ग्रन्थों (जैनों) का नवीन सम्प्रदाय के रूप में उल्लेख नहीं किया है और न उसके विख्यात संस्थापक नातपुत्र (भगवान महावीर स्वामी) का संस्थापक के रूप में ही किया है। इससे जैकोबी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जैन धर्म के संस्थापक महावीर की अपेक्षा प्राचीन है। यह सम्प्रदाय बौद्ध सम्प्रदाय के पूर्ववर्ती है।’- Religion of India By Prof. E.W. Hopkins S.P.P. 283.

‘दान-पत्र पर उक्त पश्चिमी एशिया सम्राट की मूर्ति अंकित है जिसका करीब 3200 वर्ष पूर्व का अनुमान किया जाता है।’ (19 मार्च, 1895 साप्ताहिक टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ताम्र-पत्र के आधार पर) डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार

‘ईस्वी सन्* से लगभग 1500 से 800 वर्ष पूर्व और वास्तव में अनिश्चितकाल से… संपूर्ण उत्तर भारत में एक प्राचीन, व्यवस्थित, दार्शनिक, सदाचार युक्त एवं तप-प्रधान धर्म अर्थात जैन-धर्म प्रचलित था जिससे ही बाद में ब्राह्मण व बौद्ध-धर्म के प्रारंभ में संन्यास मार्ग विकसित हुए। आर्यों के गंगा, सरस्वती तट पर पहुँचने के पहले ही जो कि ईस्वी सन्* से 8वीं या 9वीं शताब्दी पूर्व के ऐतिहासिक तेईसवें पार्श्व के पूर्व बाईस तीर्थंकर जैनों को उपदेश दे चुके थे।’
Short studies in the Science of Comparative Religion p. 243-244 by Major General Fulong F.R.A.S.

‘पाँच हजार वर्ष पूर्व के सभ्यता-सम्पन्न नगर मोहन जोदड़ो व हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त सील, नं. 449 में जिनेश्वर शब्द मिलता है।’
- डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार
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Old 05-01-2013, 04:47 AM   #19
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जैन धर्म की प्राचीनता

‘जैन धर्म संसार का मूल अध्यात्म धर्म है, इस देश में वैदिक धर्म के आने से बहुत पहले से ही यहाँ जैन धर्म प्रचलित था।’ – उड़ीसा में जैन धर्म’ – श्री नीलकंठ शास्त्री

‘मथुरा के कंकाली टीला में महत्वपूर्ण जैन पुरातत्व के 110 शिलालेख मिले हैं, उनमें सबसे प्राचीन देव निर्मित स्तूप विशेष उल्लेखनीय हैं, पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ईसा पूर्व 800 के आसपास उसका पुनर्निर्माण हुआ। कुछ विद्वान इस स्तूप को तीन हजार वर्ष प्राचीन मानते हैं।’
-मथुरा के जैन साक्ष्य ऋषभ सौरभ- 3, डॉ. रमेशचंद शर्मा

‘वाचस्पति गैरोला का भारतीय दर्शन प्र. 93 पर कथन है कि ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति और साहित्य ने इस तथ्य को पुष्ट किया है कि सिन्धु घाटी की सभ्यता जैन सभ्यता थी।’- भारतीय दर्शन पृ. – 93 – डॉ. गेरोला

‘जैन धर्म हड़प्पा सभ्यता जितना पुराना है और प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव कम से कम ईसा से लगभग 2700 वर्ष पूर्व सिन्धु-घाटी सभ्यता में समृद्धि या प्रसिद्धि को प्राप्त हुए हैं। ऋग्वेद के अनुसार जिसने परम सत्य को उद्घोषित किया और पशुबलि और पशुओं के प्रति अत्याचार का विरोध किया।

(हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त कुछ मूर्तियों के संदर्भ में) बहुत प्राचीन काल से भारतीय शिल्पकला की दृष्टि से ऐसी नग्न मूर्तियाँ जैन तीर्थंकरों की तपस्या और ध्यान-मुद्रा की हैं। इन मूर्तियों की तपस्या और ध्यान करती हुई शांत मुद्रा श्रवणबेलगोला, कारकल, यनूर की प्राचीन जैन मूर्तियों से मिलती हैं। (अँग्रेजी से अनुवाद)’ – हड़प्पा और जैन-धर्म, टी.एन. रामचंद्रन

‘सिन्धु घाटी की अनेक सीलों में उत्कीर्ण देवमूर्तियाँ न केवल बैठी हुई योगमुद्रा में हैं और सुदूर अतीत में सिन्धु घाटी में योग के प्रचलन की साक्षी है अपितु खड़ी हुई देवमूर्तियाँ भी हैं जो कायोत्सर्ग मुद्रा को प्रदर्शित करती है…।

कायोत्सर्ग मुद्रा विशेषतया जैनमुद्रा है? यह बैठी हुई नहीं खड़ी हुई है। आदिपुराण के अठारहवें अध्याय में जिनों में प्रथम जिन ऋषभ या वृषभ की तपश्चर्या के सिलसिले में कायोत्सर्ग मुद्रा का वर्णन हुआ है।’

कर्जन म्यूजियम ऑफ आर्कियोलॉजी मथुरा में सुरक्षित एक प्रस्तर-पट्ट पर उत्कीर्णित चार मूर्तियों में से एक वृषभ जिन की खड़ी हुई मूर्ति कायोत्सर्ग मुद्रा में है। यह ईसा की द्वितीय शताब्दी की है। मिश्र के आरंभिक राजवंशों के समय की शिल्प-कृतियों में भी दोनों ओर हाथ लटकाए खड़ी कुछ मूर्तियाँ प्राप्त हैं। यद्यपि इन प्राचीन मिश्री मूर्तियाँ और यूनान की कुराई मूर्तियों की मुद्राएँ भी वैसी ही हैं, तथापि वह देहोत्सर्गजनित निःसंगता जो सिन्धु घाटी की सीलों पर अंकित मूर्तियाँ तथा कायोत्सर्ग ध्यानमुद्रा में लीन जिन-बिम्बों में पाई जाती हैं, इनमें अनुपस्थित है। वृषभ का अर्थ है बैल और बैल वृषभ या ऋषभ जिन की मूर्ति का पहचान चिह्न है।’

‘ – (अंग्रेजी से अनुवाद) सिंध फाइव थाऊजेंड इअर्स अगो, पेज-158-159 (मॉडर्न रिव्यू कलकत्ता – अगस्त, 1932 – पुरातत्वज्ञ रामप्रसाद चंदा)
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धर्म और विज्ञान
-महावीर सांगलीकर



कई लोग ऐसा सोचते है कि जैन धर्म मोस्ट सायंटिफिक धर्म है. उससे भी आगे जाकर वे कहते है की, विज्ञान को जो बातें पता नहीं वह जैन शास्त्रों में लिखी हुई हैं. आगे चलकर विज्ञान को जैन धर्म के आगे बौना साबीत कराने के लिए कहते है कि जैन धर्म अंतिम सत्य जानता है, लेकिन विज्ञान अधूरा है और वह बार बार अपने निष्कर्ष बदलता है.

ये लोग ऐसा सोचते है क्यों की उन्होंने मुनियों के मुख से यह बात बार बार सुनी है. मुनि के मुंह से निकला हुआ हर एक शब्द उनके लिए अंतिम सत्य होता है. चाहे वह मुनि अनपढ़ क्यों न हो. इस प्रकार के लोग खुद कभी किसी बात पर विचार नहीं करते, चिंतन नहीं करते.

मजे की बात यह है की दुसरे धर्म वाले भी अपने अपने धर्म को मोस्ट सायंटिफिक धर्म मानते है. वैदिक धर्म के लोग तो ऐस मानते है कि आज दुनिया मे जितने भी आविष्कार किये गये है, वे सब वेदों में पहले ही लिखे हुये थे. युरोपिअन लोगो ने वेदों को पढकर विमान, रेडियो, टी.वी. कंप्युटर, बिजली जैसी चीजे बनायी. ये मत पुछिये की यह वेद आपके पास पिछले हजारों सालों से थे, फिर आपने खुद यह चीजे क्यों नही बनवायी?

खैर, ये लोग विज्ञान या सायन्स क्या है इस बात को बिलकुल नहीं जानते. सायन्स और टेक्नोलोजी में फर्क है इस बात को भी नहीं जानते और टेक्नोलोजी को ही सायन्स मानते है. वास्तव में सायन्स या विज्ञान जिनिअस लोगो का विषय है, जबकि टेक्नोलोजी अप्लायड सायन्स है.

यह सच है कि जैन धर्म में विश्व और उसकी उत्पत्ती, फिजिक्स, काल, प्रगत गणित, मनोविज्ञान, आरोग्यविज्ञान, जीवविज्ञान जैसी बातों पर गहराई से चिंतन किया है. प्राचीन काल के जैन आचार्यो ने प्रगत गणित को बड़ा योगदान दिया है. लेकिन प्रगत गणित आज कल के जैन मुनियो को मालुम ही कहां है? ऐसी बातें आज कल के जैन मुनियों की समझ से परे है इसलिये वे केवल पानी छानकर पीने में ही विज्ञान देखते है. जैन धर्म ने इश्वर की सत्ता को नकारा है, लेकिन इस बारे में ये सायंटिफिक धर्म की बाते करनेवाले कुछ नही बोलते, उलटे समाज में इश्वरवाद, दैववाद फैलाते रहते हैं. महान, ज्ञानी समझे जानेवाले कई जैन मुनियों के मुंह से मैंने 'इश्वर की इच्छा के बिना दुनिया का पत्ता भी नहीं हिलता' ’ इश्वर उनकी आत्मा को शांती दे’ जैसे वाक्य सुने है.

बहरहाल, जैन धर्म में जो विज्ञान है वह प्राथमिक अवस्था का है और परिपूर्ण नहीं है. कई बातें गलत भी लिखी गयी है. आधुनिक विज्ञान उनको झूठा साबीत करता है. जैसे कि जैन धर्म ने धरती चपटी होने की बात की हैं जब कि विज्ञान ने पूरी तरह साबीत कर दिखाया है की वह गोल है. लेकिन शास्त्रों के अंध विश्वासी लोग आज भी यह कहते है की धरती चपटी है. ये मुर्ख लोग धरती की चक्कर लगाकर दुनिया भर में घूमेंगे, अपनी आखों से देखेंगे की धरती गोल है, फिर भी शास्त्रों की बात ही मानेंगे.

सायन्स के सभी लाभ लेकर ये धर्मवादी लोग सायन्स के खिलाफ बोलते हैं. यह तो कृतघ्नता हो गयी. उनका एक आरोप रहता है कि सायन्स दुनिया को तबाह कर देगा. उनको यह मालुम होना चाहिये की दुनिया के इतिहास में सब से ज्यादा तबाही, सबसे ज्यादा खून खराबा धर्मों के कारण हुआ है. धर्मवादी लोग कहते है कि सायन्स को अंतिम सत्य मालूम नही है, लेकिन धर्म को वह मालूम है. बात यह है कि सायन्स यानी कोई धर्म नहीं है कि जिसे अंतिम सत्य मालूम होने का झूठा दावा करने की जरुरत पड़े. सायन्स कभी दावा नहीं करता की उसे अंतिम सत्य मालूम हो गया है, लेकिन वह हमेशा सत्य के नजदीक ही होता है.

धर्मवादियों को यह भी याद रखना चाहिए विज्ञान अंधश्रद्धाए दूर करने का काम करता है, जब कि धर्म का मुख्य काम अंधश्रद्धाओ को बढ़ावा देना यही है. अब तो यह धर्मवादी लोग विज्ञान ने इजाद किये हुए टी. वी., इंटरनेट आदी का उपयोग अंधश्रद्धाए फैलाने के लिए कर रहे है.

दुनिया के लगभग सभी धर्म किसी विशेष जाती, वंश, देश, प्रदेश, भाषीय समूह आदि की बपौती बन गए है, सायन्स के साथ ऐसा कभी नहीं होगा. सायन्स सबके लिए खुला है, खुला रहेगा.

सायन्स बहोत आगे निकल चुका है. यह रेस जीतना धर्म के बस की बात नहीं है. धर्मवादियो की भलाई इसी में है की वे विज्ञान की महत्ता को बिना झिजक स्वीकार करे.
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