05-01-2013, 09:01 AM | #21 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥ अर्थात अरिहंतों को नमस्कार, सिद्धों को नमस्कार, आचार्यों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सर्व साधुओं को नमस्कार। ये पाँच परमेष्ठी हैं।
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
05-01-2013, 09:02 AM | #22 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
जैन धर्म : विविध विचार (Jain Religion : Different Thoughts)
जैन धर्म में मन-शुद्धि और विचार-शुद्धि पर सर्वाधिक जोर दिया गया है| जैन धर्म मनुष्य को विकृति से प्रकृति और प्रकृति से संस्कृति की ओर ले जाता है| हम दूसरों की रोटी छीनकर खाए यह विकृति है| भूख लगने पर अपनी रोटी खाय यह प्रकृति है| किन्तु स्वयं भूखे रह कर दूसरों को अपनी रोटी दे देना, यह संस्कृति है| जहा तरलता थी – मै डूबता चला गया| जहा सरलता थी – मै झुकता चला गया| संबंधो ने मुझे जहा से छुआ – मै वही से पिघलता चला गया| सोचने को कोई काहे जो सोचे – पर यहाँ तो एक एहसास था – जो कभी हुआ, कभी न हुआ |
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05-01-2013, 08:36 PM | #23 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज
तपस्या जिनकी जीवन पद्धति और विश्व मंगल पुनीत कामना है - निर्मलकुमार पाटोदी संत कमल के पुष्प के समान लोकजीवन की वारिधि में रहता है, संवरण करता है, डुबकियाँ लगाता है, किंतु डूबता नहीं। यही भारत भूमि के प्रखर तपस्वी, चिंतक, कठोर साधक, लेखक, राष्ट्र संत आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के जीवन का मंत्र घोष है। विद्यासागरजी का जन्म कर्नाटक के बेलगाँव जिले के गाँव चिक्कोड़ी में आश्विन शुक्ल 15 संवत्* 2003 को हुआ था। श्री मल्लपाजी अष्टगे तथा श्रीमती अष्टगे के आँगन में जन्मे विद्याधर (घर का नाम पीलू) को आचार्य श्रेष्ठ ज्ञानसागरजी महाराज का शिष्यत्व पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी अजमेर में आषाढ़ सुदी पंचमी विक्रम संवत्* 2025 को लगभग 22 वर्ष की आयु में संयम धर्म के परिपालन हेतु उन्होंने पिच्छी कमंडल धारण करके मुनि दीक्षा धारण की थी। नसीराबाद (अजमेर) में गुरुवर ज्ञानसागरजी ने शिष्य विद्यासागर को अपने कर कमलों से मृगसर कृष्णा द्वितीय संवत्* 2029 को संस्कारित करके अपने आचार्य पद से विभूषित कर दिया और फिर आचार्य विद्यासागरजी के निर्देशन में समाधिमरण सल्लेखना ग्रहण कर ली। विद्यासागरजी में अपने शिष्यों का संवर्धन करने का अभूतपूर्व सामर्थ्य है। उनका बाह्य व्यक्तित्व सरल, सहज, मनोरम है किंतु अंतरंग तपस्या में वे वज्र से कठोर साधक हैं। कन्नड़ भाषी होते हुए भी विद्यासागरजी ने हिन्दी, संस्कृत, मराठी और अँग्रेजी में लेखन किया है। उन्होंने 'निरंजन शतकं', 'भावना शतकं', 'परीष हजय शतकं', 'सुनीति शतकं' व 'श्रमण शतकं' नाम से पाँच शतकों की रचना संस्कृत में की है तथा स्वयं ही इनका पद्यानुवाद किया है। उनके द्वारा रचित संसार में सर्वाधिक चर्चित, काव्य प्रतिभा की चरम प्रस्तुति है- 'मूकमाटी' महाकाव्य। यह रूपक कथा काव्य, अध्यात्म, दर्शन व युग चेतना का संगम है। संस्कृति, जन और भूमि की महत्ता को स्थापित करते हुए आचार्यश्री ने इस महाकाव्य के माध्यम से राष्ट्रीय अस्मिता को पुनर्जीवित किया है। उनकी रचनाएँ मात्र कृतियाँ ही नहीं हैं, वे तो अकृत्रिम चैत्यालय हैं। उनके उपदेश, प्रवचन, प्रेरणा और आशीर्वाद से चैत्यालय, जिनालय, स्वाध्याय शाला, औषधालय, यात्री निवास, त्रिकाल चौवीसी आदि की स्थापना कई स्थानों पर हुई है और अनेक जगहों पर निर्माण जारी है। कितने ही विकलांग शिविरों में कृत्रिम अंग, श्रवण यंत्र, बैसाखियाँ, तीन पहिए की साइकलें वितरित की गई हैं। शिविरों के माध्यम से आँख के ऑपरेशन, दवाइयों, चश्मों का निःशुल्क वितरण हुआ है। 'सर्वोदय तीर्थ' अमरकंटक में विकलांग निःशुल्क सहायता केंद्र चल रहा है। जीव व पशु दया की भावना से देश के विभिन्न राज्यों में दयोदय गौशालाएँ स्थापित हुई हैं, जहाँ कत्लखाने जा रहे हजारों पशुओं को लाकर संरक्षण दिया जा रहा है। आचार्यजी की भावना है कि पशु मांस निर्यात निरोध का जनजागरण अभियान किसी दल, मजहब या समाज तक सीमित न रहे अपितु इसमें सभी राजनीतिक दल, समाज, धर्माचार्य और व्यक्तियों की सामूहिक भागीदारी रहे। 'जिन' उपासना की ओर उन्मुख विद्यासागरजी महाराज तो सांसारिक आडंबरों से विरक्त हैं। जहाँ वे विराजते हैं, वहाँ तथा जहाँ उनके शिष्य होते हैं, वहाँ भी उनका जन्म दिवस नहीं मनाया जाता। तपस्या उनकी जीवन पद्धति, अध्यात्म उनका साध्य, विश्व मंगल उनकी पुनीत कामना तथा सम्यक दृष्टि एवं संयम उनका संदेश है।
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05-01-2013, 08:49 PM | #24 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥................... |
08-01-2013, 08:03 AM | #25 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
अहिंसा
१.अहिंसा सब धर्मों में सबसे अच्छा हैं। हिंसा के पीछे सब प्रकार के पाप लगे रहते हैं। २.सन्मार्ग कौन सा है ? यह वही मार्ग है,जिसमें छोटे से छोटे जीव की रक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जावे। ३.भले ही तुम्हारे प्राण संकट में पड़ जावें,तब भी किसी की प्यारी जान मत लो। ४.जिन लोगों का जीवन हत्या पर निर्भर है,समझदार लोगों की दृष्टि में वे चांडालके समान है। ५.जो लोग कहते है कि बलि देने से बहुत सारे वरदान मिलते है :परन्तु पवित्र हृदयवालों की दृष्टि में वे वरदान,जो हिंसा करने से मिलते हैं,जघन्य और घृणास्पद हैं। ६.वह आदमी जिसका सडा हुआ शरीर पीवदार घावों से भरा हुआ है,वह पिछले भवों में रक्तपात बहाने वाला रहा होगा ;-ऐसा बुद्धिमान लोग कहते हैं।
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08-01-2013, 08:07 AM | #26 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
Vishok Sagar Ji Maharaj
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08-01-2013, 08:08 AM | #27 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
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08-01-2013, 08:10 AM | #28 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
ईश्वर स्तुति
1.जो मनुष्य प्रभु के गुणों का उत्साहपूर्वक गान करते हैं,उन्हें अपने भले -बुरे कर्मों का दुखद फल नहीं भोगना पड़ता। 2.धन्य है वह मनुष्य,जो आदिपुरुष के पादारविन्द में रत रहता है। जो न किसी से राग करता है और न नफरत,उसे कभी कोई दुःख नहीं होता। 3.जन्म -मरण के समुद्र को वे ही पार कर सकते हैं,जो प्रभु के चरणों की शरण में आ जाते हैं। दूसरे लोग उसे पार नहीं कर सकते। 4.धन -वैभव और इन्द्रिय -सुख के तूफानी समुद्र को वे ही पार कर सकते हैं ,जो उस धर्म सिन्धु मुनीश्वर के चरणों में लीन रहते हैं।
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08-01-2013, 08:11 AM | #29 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
क्रो़ध त्याग
1.जिसमें चोट पहुँचाने की शक्ति है,उसी में सहनशीलता का होना समझा जा सकता है। जिसमें शक्ति ही नहीं,वह क्षमा करे या न करे उससे किसी का क्या बनता -बिगड़ता है? 2.यदि तुम में प्रहार करने की शक्ति न भी हो,तब भी क्रोध करना बुरा है और यदि तुम्हें शक्ति हो,तब भी क्रोध से बढकर बुरा काम और कोई नहीं हैं। 3.तुम्हारा अपराधी कोई भी हो,पर उसके उपर कोप न करो,क्योंकि क्रोध से सैकड़ों अनर्थ पैदा होते है। 4.जो क्रोध के माने आपे से बाहर है,वह मरे हुए के समानहै,तथा जिसने कोप करना त्याग दिया है ,वह संतों के समान है। 5. यदि तुम भला चाहते हो , तो क्रोध से दूर रहो ;क्योंकि दूर न रहोगे ,तो वह तुम्हें आ दबोचेगा और तुम्हारा सर्वनाश कर डालेगा। 6. अग्नि उसी को जलाती है जो उसके पास जाता है ;परन्तु क्रोधाग्नि सारे कुटुम्ब को जला डालती है।
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08-01-2013, 08:11 AM | #30 |
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Re: जानिए जैन धर्म को
क्षमा
1.धरती उन लोगों को भी आश्रय देती है,जो उसे खोदते हैं। इसी तरह तुम भी उन लोगों की बातें सहन करो,जो तुम्हें सताते हैं क्योंकि बड़प्पन इसी मैं है। 2.दूसरे लोग तुम्हें हानि पहुंचाएं,उसके लिए तुम क्षमा कर दो और यदि तुम उसे भुला सको तो और भी अच्छा हैं। 3.जो पीड़ा देने वालों को बदले में पीड़ा देते हैं,बुद्धिमान लोग उनको सम्मान नहीं देते,किंतु जो अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते हैं,वे स्वर्ण के समान बहुमूल्य समझे जाते हैं। 4.संसार -त्यागी पुरुषों से भी बढकर संत वह है,जो अपनी निंदा करने वालों की कटु वाणी को सहन कर लेता है।
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