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Old 05-02-2011, 12:59 AM   #21
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Arrow बिहार का इतिहास

उत्तर मुगलकालीन ऐतिहासिक स्त्रोत गुलाम हुसैन तबाताई की सीयर उल मुताखेरीन, करीम आयी मुजफ्फरनामा, राजा कल्याण सिंह का खुलासातुत तवासिरत महत्वपूर्ण है जिसमें बंगाल और बिहार के जमींदारों की गतिविधियों की चर्चा है । बाबर द्वारा रचित तुजुके-ए-बाबरी एवं जहाँगीर द्वारा रचित तुजुके में भी बिहार के मुगल शासनकालीन गतिविधियों की जानकारी मिलती है । इन दोनों ग्रन्थों से अपने समय में मुगलों की बिहार के सैनिक अभियान की जानकारी प्राप्त होती है ।

■मिर्जा नाथन का रचित ऐतिहासिक ग्रन्थ बहारिस्ताने गैबी, ख्वाजा कामागार दूसैनी का मासिर-ए-जहाँगीरी भी १७ वीं शताब्दी के बिहार की जानकारी देती है ।

■बिहार के मध्यकालीन ऐतिहासिक स्त्रोतों में भू-राजस्व से सम्बन्धित दस्तावेज भी महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं । भू-राजस्व विभाग के संगठन, अधिकारियों के कार्य एवं अधिकार, आय एवं व्यय के आँकड़े एवं विभिन्*न स्तरों पर अधिकारियों के द्वारा जमा किये गये दस्तावेज बहुत महत्वपूर्ण हैं ।

■ऐसे दस्तावेज रूपी पुस्तक में आइने अकबरी, दस्तुरूल आयाम-ए-सलातीन-ए-हिन्द एवं कैफियत-ए-रजवा जमींदारी, राजा-ए-सूबा बिहार भू-कर व्यवस्था के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं ।

■सूफी सन्तों के पत्रों से भी तत्कालीन बिहार की धार्मिक, सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन की झाँकी मिलती है ।

■अहमद सर्फूद्दीन माहिया मनेरी, अब्दुल कूटूस गंगोई इत्यादि के पत्रों से धार्मिक स्थिति के सन्दर्भ में जानकारी मिलती है ।

■मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों में यूरोपीय यात्रियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।

■यूरोपीय यात्रियों द्वारा वर्णित यात्रा वृतान्त में बिहार के सन्दर्भ में जानकारी मिलती है ।

■राल्फ फिच, एडवर्ड टेरी, मैनरीक, जॉन मार्शल, पीटर मुंडी, मनुची, ट्रैवरनियर, मनुक्*की इत्यादि के यात्रा वृतान्त प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं ।

■यूरोपीय यात्रा वृतान्त के अलावा विभिन्*न विदेशी व्यापारिक कम्पनियों (डेनिस, फ्रेंच, इंगलिश) आदि फैक्ट्री रिकार्ड्*स आदि बहुत महत्वपूर्ण हैं जो बिहार की तत्कालीन आर्थिक गतिविधियों की जानकारी देता है ।

■बिहार के मध्यकालीन ऐतिहासिक स्त्रोत पटना परिषद, कलकत्ता परिषद एवं फोर्ट विलियम के बीच पत्राचार से प्राप्त होते हैं ।

■बिहार के जमींदारों एवं दिल्ली सम्बन्ध से तत्कालीन गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती है ।

■डुमरॉव, दरभंगा, हथूआ एवं बेतिया के जमींदार घरानों के रिकार्डों से बाहर की गतिविधियों की जानकारी मिलती है ।

■मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत में पुरालेखों का भी महत्व है । ये पुरालेख अरबी या फारसी में विशेषकर मस्जिद, कब्र या इमामबाड़ा आदि की दीवारों पर उत्कीर्ण हैं ।

■बिहार शरीफ एवं पटना में भी पुरालेख की जानकारी मिलती है । विभिन्*न शासकों द्वारा जारी अभिलेख, खड़गपुर के राजा के अभिलेख, शेरशाह का ममूआ अभिलेख, मुहम्मद-बिन-तुगलक का बेदीवन अभिलेख महत्वपूर्ण हैं ।

■मध्यकालीन बिहार के अध्ययन के लिये गैर-फारसी साहित्य एवं अन्य स्त्रोतों में मिथिला के क्षेत्र में लिखे साहित्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।

■संस्कृत के लेखकों में वर्तमान में शंकर मिश्र, चन्द्रशेखर, विद्यापति के प्रमुख ऐतिहासिक स्त्रोत हैं ।

■गैर-फारसी अभिलेख बिहार में सर्वाधिक उपलब्ध हैं । बल्लाल सेन का सनोखर अभिलेख पूर्वी बिहार में लेखों के प्रसार का साक्षी है । खरवार के अभिलेख से पता चलता है उसका पलामू क्षेत्र तक प्रभाव था ।

■वुइ सेन का बोधगया अभिलेख, बिहार शरीफ का पत्थर अभिलेख, फिरोज तुगलक का राजगृह अभिलेख, जैन अभिलेख इत्यादि में प्रचुर पुरातात्विक सामग्री उपलब्ध होती हैं ।
इस प्रकार मध्यकालीन बिहार के ऐतिहासिक स्रोत बिहार की जानकारी के अत्यन्त महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं ।

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Arrow बिहार का इतिहास

आधुनिक बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत

बिहार का आधुनिक इतिहास १७ वीं शताब्दी से प्रारंभ माना जाता है । इस समय बिहार का शासक नवाब अली वर्दी खान था । आधुनिक बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों को प्राप्त करने के लिये विभिन्*न शासकों की शासन व्यवस्था, विद्रोह, धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलन आदि पर दृष्टिपात करना पड़ता है ।

■आधुनिक बिहार की जानकारी, बिहार के अंग्रेजी शासन की गतिविधियों, द्वैध शासन प्रणाली का प्रभाव, विभिन्*न धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलन, पत्र-पत्रिकाओं आदि में मिलती हैं ।

■विभिन्*न टीकाकारों, लेखकों, कवियों की रचनाओं से आधुनिक बिहार की जानकारी मिलती है ।

■आधुनिक काल में बिहार में राजनीतिक जागरूकता बढ़ गई थी ।
आन्दोलनकारियों की जीवनी से विभिन्*न आन्दोलन और बिहार की स्थिति की जानकारी मिलती है । चम्पारण में गाँधी जी की यात्रा एक भारतीय राजनीतिक घटना थी ।

वीर कुँअर सिंह द्वारा १८५७ का विद्रोह, खुदीराम बोस को फाँसी, चुनचुन पाण्डेय द्वारा अनुशीलन समिति का गठन प्रमुख घटनाएँ हैं । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, वीर अली, मौलाना मजरूल हक, हसन इमाम, सत्येन्द्र सिंह, मोहम्मद यूनुस, डॉ. कृष्ण सिंह आदि महान पुरुषों की राजनीतिक गतिविधियाँ आधुनिक बिहार के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्त्रोत हैं ।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’, रामवृक्ष बेनीपुरी, फणीश्*वर नाथ ‘रेणु’ आदि की रचनाओं से आधुनिक बिहार की सामाजिक एवं आंचलिक गतिविधियों की जानकारी मिलती है ।

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Arrow बिहार का इतिहास

बिहार का इतिहास, प्राचीन बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोतों से प्राप्त महत्वपूर्ण तथ्यों से स्पष्ट होता है कि यह राज्य पवित्र गंगा घाटी में स्थित भारत का उत्तरोत्तर क्षेत्र था जिसका प्राचीन इतिहास अत्यन्त गौरवमयी और वैभवशाली था ।

जहाँ ज्ञान, धर्म, अध्यात्म व सभ्यता-संस्कृति की ऐसी किरण प्रस्फुटित हुई जिससे न केवल भारत बल्कि समस्त संसार आलोकित हुआ ।

काल खण्ड के अनुसार बिहार के इतिहास को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(।) पूर्व ऐतिहासिक काल,
(॥) ऐतिहासिक काल ।

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Arrow बिहार का इतिहास

।) पूर्व ऐतिहासिक काल

यह ऐतिहासिक काल अत्यन्त प्राचीनतम है जो ऐतिहासिक युग से करीब एक लाख वर्ष पूर्व का काल है ।

पूर्व ऐतिहासिक काल में बिहार के विभिन्*न भागों में आदि मानव रहा करते थे । आदि मानव से जुड़े विभिन्*न प्रकार के तात्कालिक साक्ष्य एवं सामग्री प्राप्त हुए हैं । जिन स्थलों से साक्ष्य मिले हैं वे मुंगेर, पटना एवं गया हैं । इनमें सोनपुर, चेचर (वैशाली), मनेर (पटना) उल्लेखनीय हैं ।

प्लीस्तोसीन काल के पत्थर के बने सामान और औजार बिहार में विभिन्*न स्थानों से प्राप्त हुए हैं । चिरॉद एवं सोनपुर (गया) से काले एवं लाल मृदभांड युगीन (हड़प्पा युगीन) अवशेष मिले हैं । हड़प्पा युगीन साक्ष्य ओरियम (भागलपुर), राजगीर एवं वैशाली में भी मिले हैं ।

पूर्व ऐतिहासिक बिहार को निम्न युगों द्वारा अध्ययन किया जा सकता है-

पूर्व प्रस्तर युग (१०००० ई. पू. से पूर्व)- आरम्भिक प्रस्तर युग के अवशेष हरत, कुल्हाड़ी, चाकू, खुर्पी, रजरप्पा (हजारीबाग पहले बिहार) एवं संजय घाटी (सिंहभूम) में मिले हैं । ये साक्ष्य जेठियन (गया), मुंगेर और नालन्दा जिले में उत्खनन के क्रम में प्राप्त हुए हैं ।

मध्यवर्ती प्रस्तर युग (१०००० ई. पू. से ४००० ई. पू.)- इसके अवशेष बिहार में मुख्यतः मुंगेर जिले से प्राप्त हुए हैं । इसमें साक्ष्य के रूप में पत्थर के छोटे टुकड़ों से बनी वस्तुएँ तथा तेज धार और नोंक वाले औजार प्राप्त हुए हैं ।

नव प्रस्तर युग (४००० ई. पू. से २५०० ई. पू.)- इस काल के ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में पत्थर के बने सूक्ष्म औजार प्राप्त हुए हैं । हड्डियों के बने सामान भी प्राप्त हुए हैं । इस काल के अवशेष उत्तर बिहार में चिरॉद (सारण जिला) और चेचर (वैशाली) से प्राप्त हुए हैं ।

ताम्र प्रस्तर युग (२५०० ई. पू. से १००० ई. पू.)- चिरॉद और सोनपुर (गया) से काले एवं लाल मृदभांड को सामान्य तौर पर हड़प्पा की सभ्यता की विशेषता मानी जाती है ।

बिहार में इस युग के अवशेष चिरॉद (सारण), चेचर (वैशाली), सोनपुर (गया), मनेर (पटना) से प्राप्त हुए हैं ।

उत्खनन से प्राप्त मृदभांड और मिट्*टी के बर्तन के टुकड़े से तत्कालीन भौतिक संस्कृति की झलक मिलती है । इस युग में बिहार सांस्कृतिक रूप से विकसित था । मानव ने गुफाओं से बाहर आकर कृषि कार्य की शुरुआत की तथा पशुओं को पालक बनाया । मृदभांड बनाना और उसका खाने पकाने एवं संचय के उद्देश्य से प्रयोग करना भी सीख गया था । ये सभी साक्ष्य को हम प्री ऐरे ऐज बिहार का इतिहास भी कह सकते हैं ।

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Arrow बिहार का इतिहास

॥) ऐतिहासिक काल (१००० ई. पू. से ६०० ई. पू.)

यह काल उत्तर वैदिक काल माना जाता है । बिहार में आर्यीकरण इसी काल से प्रारम्भ हुआ ।

बिहार का प्राचीनतम वर्णन अथर्ववेद (१०वीं-८वीं शताब्दी ई. पू.) एवं पंचविश ब्राह्मण (आठवीं-छठवीं शताब्दी ई. पू.) में मिलता है । इन ग्रन्थों में बिहार के लिए ब्रात्य शब्द का उल्लेख है । ऐसा अनुमान किया जाता है कि अथर्ववेद की रचना के समय में ही आर्यों ने बिहार के क्षेत्र में प्रवेश किया ।

८०० ई. पू. रचित शतपथ ब्राह्मण में गांगेय घाटी के क्षेत्र में आर्यों द्वारा जंगलों को जलाकर और काटकर साफ करने की जानकारी मिलती है ।

ऋग्वेद में बिहार को कीकट कहा गया है । ऋग्वेद में कीकट क्षेत्र के अमित्र शासक प्रेमगन्द की चर्चा आती है, जबकि आर्यों के सांस्कृतिक वर्चस्व का प्रारंभ ब्राह्मण ग्रन्थ की रचना के समय हुआ ।

शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता, महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन बिहार की जानकारी मिलती है । बिहार के सन्दर्भ में बेहतर जानकारी पुराण, रामायण तथा महाभारत से ही मिल जाती है ।

ग्रन्थों के उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार आर्यों ने मगध क्षेत्र में बसने के बाद अंग क्षेत्र में भी आर्यों की संस्कृति का विस्तार किया । वाराह पुराण के अनुसार कीकट को एक अपवित्र प्रदेश कहा गया है, जबकि वायु पुराण, पद्म पुराण में गया, राजगीर, पनपन आदि को पवित्र स्थानों की श्रेणी में रखा गया है । वायु पुराण में गया क्षेत्र को “असुरों का राज" कहा गया है ।

आर्यों के विदेह क्षेत्र में बसने की चर्चा शतपथ ब्राह्मण में की गई है । इसमें विदेह माधव द्वारा अपने पुरोहित गौतम राहूगण के साथ अग्नि का पीछा करते हुए सदानीरा नदी (आधुनिक गंडक) तक पहुँचने का वर्णन है । इस क्रम में अग्नि ने सरस्वती नदी से सदा मीरा नदी तक जंगल को काट डाला जिससे बने खाली क्षेत्र में आर्यों को बसने में सहायता मिली । वाल्मीकि रामायण में मलद और करूणा शब्द का उल्लेख बक्सर के लिए किया गया है जहाँ ताड़िकाक्षसी का वध हुआ था ।

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मगध महाजनपद

मगध का सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है । अभियान चिन्तामणि के अनुसार मगध को कीकट कहा गया है ।

मगध बुद्धकालीन समय में एक शक्*तिशाली राजतन्त्रों में एक था । यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्*तिशाली महाजनपद बन गया । यह गौरवमयी इतिहास और राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्*व केन्द्र बन गया ।

मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्*चिम में सोन नदी तक विस्तृत थीं ।

मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी । यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई । मगध राज्य में तत्कालीन शक्*तिशाली राज्य कौशल, वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया ।

इस प्रकार मगध का विस्तार अखण्ड भारत के रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास बना ।
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प्राचीन गणराज्य- प्राचीन बिहार में (बुद्धकालीन समय में) गंगा घाटी में लगभग १० गणराज्यों का उदय हुआ । ये गणराज्य हैं-
(१) कपिलवस्तु के शाक्य,
(२) सुमसुमार पर्वत के भाग,
(३) केसपुत्र के कालाम,
(४) रामग्राम के कोलिय,
(५) कुशीमारा के मल्ल,
(६) पावा के मल्ल,
(७) पिप्पलिवन के मारिय,
(८) आयकल्प के बुलि,
(९) वैशाली के लिच्छवि,
(१०) मिथिला के विदेह ।

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Old 05-02-2011, 01:12 AM   #28
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विदेह- प्राचीन काल में आर्यजन अपने गणराज्य का नामकरण राजन्य वर्ग के किसी विशिष्ट व्यक्*ति के नाम पर किया करते थे जिसे विदेह कहा गया । ये जन का नाम था । कालान्तर में विदेध ही विदेह हो गया ।

विदेह राजवंश की शुरुआत इश्*वाकु के पुत्र निमि विदेह के मानी जाती है । यह सूर्यवंशी थे । इसी वंश का दूसरा राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिलांचल की स्थापना की । इस वंश के २५वें राजा सिरध्वज जनक थे जो कौशल के राजा दशरथ के समकालीन थे ।

जनक द्वारा गोद ली गई पुत्री सीता का विवाह दशरथ पुत्र राम से हुआ ।
विदेह की राजधानी मिथिला थी । इस वंश के करल जनक अन्तिम राजा थे ।
मिथिला के विदेह भागलपुर तथा दरभंगा जिलों के भू-भाग में स्थित हैं ।
मगध के राजा महापद्मनन्द ने विदेह राजवंश के अन्तिम राजा करलजनक को पराजित कर मगध में मिला लिया ।
उल्लेखनीय है कि विदेह राजतन्त्र से बदलकर (छठीं शती में) गणतन्त्र हो गया था । यही बाद में लिच्छवी संघ के नाम से विख्यात हुआ ।

गणराज्य की शासन व्यवस्था- सारी शक्*ति केन्द्रीय समिति या संस्थागार में निहित थी ।

संस्थागार के कार्यभार- आधुनिक प्रजातन्त्र संसद के ही समान थी ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि प्राचीन बिहार के मुख्य जनपद मगध, अंग, वैशाली और मिथिला भारतीय ंस्कृति और सभ्यता की विशिष्ट आधारशिला हैं ।

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मगध साम्राज्य का उदय

मगध राज्य का विस्तार उत्तर में गंगा, पश्*चिम में सोन तथा दक्षिण में जगंलाच्छादित पठारी प्रदेश तक था।
पटना और गया जिला का क्षेत्र प्राचीनकाल में मगध के नाम से जाना जाता था ।

मगध प्राचीनकाल से ही राजनीतिक उत्थान, पतन एवं सामाजिक-धार्मिक जागृति का केन्द्र बिन्दु रहा है । मगध बुद्ध के समकालीन एक शक्*तिकाली व संगठित राजतन्*त्र था । कालान्तर में मगध का उत्तरोत्तर विकास होता गया और मगध का इतिहास (भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विकास के प्रमुख स्तम्भ के रूप में) सम्पूर्ण भारतवर्ष का इतिहास बन गया ।

मगध साम्राज्य का उत्कर्ष करने में निम्न वंश का महत्वपूर्ण स्थान रहा है-

ब्रहद्रथ वंश-यह सबसे प्राचीनतम राजवंश था । महाभारत तथा पुराणों के अनुसार जरासंध के पिता तथा चेदिराज वसु के पुत्र ब्रहद्रथ ने ब्रहद्रथ वंश की स्थापना की । इस वंश में दस राजा हुए जिसमें ब्रहद्रथ पुत्र जरासंध एवं प्रतापी सम्राट था । जरासंध ने काशी, कौशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, कश्मीर और गांधार राजाओं को पराजित किया । मथुरा शासक कंस ने अपनी बहन की शादी जरासंध से की तथा ब्रहद्रथ वंश की राजधानी वशुमति या गिरिव्रज या राजगृह को बनाई । भगवान श्रीकृष्ण की सहायता से पाण्डव पुत्र भीम ने जरासंध को द्वन्द युद्ध में मार दिया । उसके बाद उसके पुत्र सहदेव को शासक बनाया गया । इस वंश का अन्तिम राजा रिपुन्जय था । रिपुन्जय को उसके दरबारी मंत्री पूलिक ने मारकर अपने पुत्र को राजा बना दिया । इसके बाद एक अन्य दरबारी ‘महीय’ ने पूलिक और उसके पुत्र की हत्या कर अपने पुत्र बिम्बिसार को गद्दी पर बैठाया । ईसा पूर्व ६०० में ब्रहद्रथ वंश को समाप्त कर एक नये राजवंश की स्थापना हुई । पुराणों के अनुसार मनु के पुत्र सुद्युम्न के पुत्र का ही नाम “गया" था ।

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Arrow बिहार का इतिहास

वैशाली के लिच्छवि- बिहार में स्थित प्राचीन गणराज्यों में बुद्धकालीन समय में सबसे बड़ा तथा शक्*तिशाली राज्य था । इस गणराज्य की स्थापना सूर्यवंशीय राजा इश्*वाकु के पुत्र विशाल ने की थी, जो कालान्तर में ‘वैशाली’ के नाम से विख्यात हुई ।

महावग्ग जातक के अनुसार लिच्छवि वज्जिसंघ का एक धनी समृद्धशाली नगर था । यहाँ अनेक सुन्दर भवन, चैत्य तथा विहार थे ।
लिच्छवियों ने महात्मा बुद्ध के निवारण हेतु महावन में प्रसिद्ध कतागारशाला का निर्माण करवाया था ।
राजा चेतक की पुत्री चेलना का विवाह मगध नरेश बिम्बिसार से हुआ था ।
ईसा पूर्व ७वीं शती में वैशाली के लिच्छवि राजतन्त्र से गणतन्त्र में परिवर्तित हो गया ।
विशाल ने वैशाली शहर की स्थापना की । वैशालिका राजवंश का प्रथम शासक नमनेदिष्ट था, जबकि अन्तिम राजा सुति या प्रमाति था । इस राजवंश में २४ राजा हुए हैं ।
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