05-11-2011, 08:10 PM | #1 |
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अलविदा स्टीव जॉब्स
फलसफे में जिंदा रहेंगे जॉब्स नाम स्टीव जॉब्स. उम्र 56 साल. दुनिया की सबसे बड़ी आइटी कंपनी एप्पल के सह-संस्थापक, सीइओ. दुनिया भर में लाखों लोगों के घरों और हाथों की शोभा ब़ढा रहे एप्पल मैकिनटोश लैपटॉप, आइफोन और आइपैड जैसे गैजेटों के दूर-दृष्टा निर्माता. लेकिन आखिर क्या वजह है कि इतना बड़ा परिचय भी स्टीव जॉब्स की शख्सियत के सामने छोटा दिख रहा है? क्या वजह हैकि दुनिया को अलविदा कह चुके जॉब्स की शख्सियत का आभामंडल आनेवाले दशकों तक यूं ही दमकते रहने की भविष्यवाणी की जा रही है? इसका जवाब और कहीं नहीं स्टीव जॉब्स के जीवन और उनके जीवन के फलसफे में खोजा जा सकता है. जॉब्स ने बहुत कम उम्र में एप्पल, मैकिनटोश और आइ-मैक जैसे कंप्यूटरों के निर्माण का Ÿोय अपनी झोली में कर लिया था. तकनीकी दुनिया के लिहाज से ये ऐसे उत्पाद थे, जो किसी भी शख्सियत को इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज करने की षामता रखते थे. लेकिन जॉब्स ने इतिहास की कभी परवाह नहीं की. उनकी निगाहें भविष्य पर टिकी रहीं. भविष्य के उन उत्पादों पर, जिसकी कल्पना भी कोई और नहीं कर पाया था. जॉब्स ने अगर पिछले दस वर्षो में एक से ब़ढ कर एक उत्पादों के जरिये दुनिया को बदल कर रख डाला, तो इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि वे अपनी सारी उपलब्धियों को भुला कर हर बार बिल्कुल नये सिरे से कोरे कागज पर कल्पनाओं को शक्ल दे सकते थे. उनकी कल्पनाएं कभी आइपॉड के रूप में प्रकट हुईं, तो कभी आइ-फोन और आइपैड के रूप में. जॉब्स की खासियत यह थी कि उन्होंने तकनीक की कल्पना कला के बगैर कभी नहीं की. यह तकनीक के प्रति उनका गजब का सौंदर्यबोध ही था कि उन्होंने लोगों की हथेलियों में महज एक चमत्कारिक गैजेट का ख्वाब नहीं देखा, बल्कि एक ऐसी कलाकृति का ख्वाब देखा, जिससे लोग इश्क कर बैठें. यह इसी इश्क का नतीजा था कि 90 के दशक में मृतप्राय हो चुकी एप्पल 2010 तक माइक्रोसॉफ्ट को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे बड़ी आइटी कंपनी बन गयी. मौत को बिल्कुल नजदीक से देख रहे स्टीव जॉब्स ने मौत की सच्चाई को ही अपना अपना दोस्त, पथ- प्रदर्शक मान लिया. जीवन के हर दिन को आखिरी दिन की तरह जीनेवाले जॉब्स ने हमेशा अपने दिल की आवाज सुनी. हर काम को आखिरी इच्छा की शिद्दत के साथ अंजाम देने की जिद्दी धुन ने स्टीव जॉब्स को उनके ख्वाबों के कारखाने से निकलने वाले उत्पादों से कहीं बड़ा आइकॉन बना दिया है. ऐसा आइकॉन जो मौत के बाद भी अपने फलसफे में हमेशा जीवित रहेगा. |
05-11-2011, 08:15 PM | #2 |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जिंदगी जीने का उनका अनूठा नजरिया दशकों तक लोगों को प्रेरित करता रहेगा. प्रस्तुत है उनके एक प्रसिद्ध भाषण का अंश.
अपने हर दिन को जीएं ऐसे.. तब मैं 17 साल का था. मैंने एक कथन प़ढा था, जो कुछ इस प्रकार था- ’यदि आप हर दिन को इस तरह जियें, मानो वह आपका आखिरी दिन हो, तो एक दिन आप जरूर सच साबित होंगे.’ इस वाक्य का मेरे मन पर गहरा असर पड़ा. और तब से, यानी पिछले 33 साल से, मैं हर सुबह आईने के सामने खड़ा होता हूं और खुद से सवाल करता हूं कि ‘यदि आज का दिन मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होता, तब भी क्या मैं वही करता जो मैं आज करने जा रहा हूं?‘ और जब कभी भी लगातार कई दिनों तक उत्तर नहीं में होता है, तब मुझे पता चल जाता है कि मैं जो कर रहा हूं, उसमें कुछ बदलाव की जरूरत है. यह याद रखना कि मैं जल्द मरने वाला हूं, जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले लेने में मेरे लिए सबसे ह्लयादा मददगार साबित हुआ. क्योंकि लगभग सभी चीजें, जैसे- सभी बाहरी आशाएं, अभिमान, शर्मिदगी या असफलता के डर आदि मृत्यु के सामने कोई मायने नहीं रखते, जो बच जाता हैवही वास्तव में महत्वपूर्ण है. इस तरह मैं मानता हूं कि कुछ खोने के डर से बचने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप हमेशा याद रखें कि आप मरने वाले हैं. इसलिए कोई कारण नहीं है कि आप अपने दिल की न सुनें. करीब एक साल पहले मुझे कैंसर होने का पता चला. सुबह सा़ढे सात बजे मेरा स्कैन किया गया और इसमें साफ पता चला कि मेरे अग्न्याशय में ट्यूमर है. इससे पहले मैं यह भी नहीं जानता था कि अग्न्याशय क्या होता है. डॉक्टरों ने मुझे बताया कि यह निश्चित रूप से कैंसर का एक ऐसा रूप है, जो लाइलाज है और मुझे तीन से छह माह से ह्लयादा की जिंदगी की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. मेरे डॉक्टर ने मुझे घर जाकर बचे हुए सारे काम इस अवधि में निपटाने की सलाह दी, जिसे डॉक्टर की भाषा में मरने की तैयारी कह सकते हैं. इसका मतलब यह था कि आप अपने बच्चों को वह सबकुछचंद महीनों में समझाने का प्रयास करें, जिसे आपने अगले दस वर्षो में करने की सोच रखी है. इसका मतलब यह भी था कि आप हर चीज को इतना व्यवस्थित कर दें कि आपके परिवार के लिए आगे की राह हर संभव आसान हो सके. इसका मतलब यह भी था कि अब आप सबको गुड बाय कह दें. मैं डॉक्टर की इसी सलाह के साथ पूरा दिन जिया. उसी दिन देर शाम बायोप्सी की गयी, जिसमें डॉक्टर ने मेरे गले में एक इंडोस्कोप डाला और इसे पेट और आंत के रास्ते मेरे अग्न्याशय तक पहुंचाया. अग्न्याशय में सुई घोंप कर उससे ट्यूमर की कुछ कोशिकाएं (सेल्स) प्राप्त कीं. उस समय मैं दवा के असर से शांत पड़ा हुआ था, लेकिन बाद में मेरी पत्नी ने, जो उस वक्त वहीं थी, बताया कि डॉक्टर ने जब कोशिकाओं को माइक्रोस्कोप के जरिये देखा तो वे चीखने लगे, क्योंकि मेरा कैंसर ऑपरेशन के जरिये ठीक होने योग्य था, जो कि अग्न्याशय के कैंसर में काफी कम देखा जाता है. डॉक्टर ने ऑपरेशन किया और अब मैं ठीक हूं. इस तरह मौत को मैंने सबसे करीब से देखा और उम्मीद करता हूं कि अगले कुछ दशक तक मैं इस अनुभव को महसूस करता रहूंगा. अपने इस अनुभव के आधार पर मैं आपको निश्चित रूप से बता सकता हूं कि कुछबौद्धिक सिद्धांतों के आधार पर आप मौत को भी जीवन के लिए उपयोगी बना सकते हैं. कोई भी मरना नहीं चाहता है. यहां तक कि जो लोग स्वर्ग जाने की इच्छा रखते हैं, वे भी इसके लिए मरना नहीं चाहते. जबकि मौत ही वह आखिरी मुकाम है, जिसे हम सबको पाना है. कोई भी इससे बच नहीं पाया है. यह होना भी चाहिए, क्योंकि मौत ही जीवन की सबसे बड़ी युक्ति है. यह जीवन को बदलने का कारक है. यह पुरानों को हटा कर नये के लिए मार्ग प्रशस्त करती है. इस समय नया आप हैं. लेकिन एक दिन, जो अब से बहुत दूर नहीं है, आप भी धीरे-धीरे बू़ढे हो जायेंगे और किनारे कर दिये जायेंगे. ऐसा कहने के लिए मुझे षामा करें, लेकिन सच्चाई यही है. आपके पास समय सीमित है. इसलिए किसी और की जिंदगी जीने में वक्त बर्बाद न करें. किसी और के विचारों के नतीजे के आधार पर जीने के मोह में न फंसें. किसी और के विचारों को अपनी अंतरात्मा की आवाज न बनने दें. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आपके पास अपने दिल और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने का साहस होना चाहिए. आपका दिल ही जानता है कि आप वास्तव में क्या बनना चाहते हैं. बाकी सभी चीजों का महत्व इसके बाद शुरू होता है. जब मैं युवा था, एक अद्भुत रचना आयी थी ’द होल अर्थ कैटलॉग’, जो कि मेरी पी़ढी के लोगों के लिए बाइबिल की तरह थी. यह रचना थी स्टेवार्ट ब्रांड की, जिसे उन्होंने एक कवि की तरह जीवंत किया था. यह साठके दशक के उत्तरार्ध का समय था, जब पर्सनल और डेस्कटॉप कंप्यूटर सामने नहीं आया था. इसलिए इसे टाइपराइटर, कैंची और कैमरे की मदद से तैयार किया गया था. ’गूगल’ के आगमन से 35 साल पहले यह कुछ-कुछ गूगल की तरह ही था, सजिल्द पुस्तक के रूप में. लेकिन यह आदर्शवादी था, जिसमें महान विचारों को उपकरण की तरह उपयोग किया गया था. स्टेवार्ट और उनकी टीम ने इस कैटलॉग के कई अंक निकाले और जब उनकी योजना समाप्ति के कगार पर आयी तब इसका आखिरी अंक निकाला गया. यह 1970 का मध्य था. आखिरी अंक के पिछले कवर पर एक तसवीर छपी थी. एक राष्ट*ीय सड़क पर अहले सुबह की तसवीर. एक ऐसी सड़क, जो रोमांच के शौकीनों को जोखिम लेने के लिए आकर्षित करती है. नीचे लिखा था- ’अपनी भूख को शांत न होने दें और मूर्ख बने रहें.’ यह उनका अलविदा संदेश था. और यही वह वाक्य था, जिसकी कामना मैंने हमेशा अपने लिए की है. और अब, जबकि आप अपनी प़ढाई पूरी कर एक नयी शुरुआत करने जा रहे हैं, मैं आपके लिए भी यही कामना करता हूं - ’अपनी भूख को शांत न होने दें और मूर्ख बने रहें.’ Last edited by anoop; 05-11-2011 at 08:17 PM. |
05-11-2011, 08:25 PM | #3 |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
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05-11-2011, 08:51 PM | #4 |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
स्टीव जोब्स एक महान व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी लगन और मेहनत से सम्पूर्ण विश्व के लिए काफी अच्छे अच्छे काम किये और हम सब की ज़िन्दगी और ही आनंददायक बना दी.
इस महान पुरुष को मेरा सलाम. अनूप जी आपका भी इतना अच्छा सूत्र बनाने के लिए धन्यवाद.
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06-11-2011, 07:39 PM | #5 |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
आज १० बजे रात में National Geographic चैनल पर एक विशेष प्रोग्राम आने वाला है "स्टीव जौब्स" पर
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06-11-2011, 07:51 PM | #6 | |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
Quote:
तब तो यह देखने लायक कार्यक्रम होगा.
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07-11-2011, 05:19 AM | #7 |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
डॉ. कलाम कहते हैं सपने देखो ... सपने देखना आगे बढ़ने के लिए बेहद जरूरी हैं ... और स्टीव जॉब्स इस कथन के साकार रूप हैं ! उन्हें मेरा प्रणाम !
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16-12-2011, 07:44 PM | #8 |
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Re: अलविदा स्टीव जॉब्स
thanks for your such nice and useful information sharing with us and really you describe everything very well and i am very happy on it, keep it up and keep sharing
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