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Old 27-03-2015, 10:41 PM   #1
soni pushpa
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Default ......रामनवमी.......

रामनवमी की पूर्व संध्या पर भगवान् राम के लीला काल के बारे में कुछ खास खास बातें याद आती ही है जेइसे की अहल्या को चट्टान से नारी के रूप में बदलना , भरत से उनकाभ्राता प्रेम ,शबरी के झूटे बेर खाना केवट की नाव में बैठना . रावन दहन , जिसमे से शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान देना एक बहुत रोचक हैं चलिए हम आज शबरी जी और राम भगवान् के मिलन की कुछ बातें जाने . ===
नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं। सावधान सुनु धरु मन माहीं॥
1. प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
2. दुसरि रति मम कथा प्रसंगा॥
3. गुरु पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।
4. चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान॥
5. मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥
6. छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥
7. सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥
8. आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुं नहिं देखइ परदोषा॥
9. नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हिय हरष न दीना॥
नव महुं एकउ जिन्ह कें होई। नारि पुरूष सचराचर कोई॥
सोइ अतिसय प्रिय भामिनी मोरें। सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरें॥
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Old 27-03-2015, 10:44 PM   #2
soni pushpa
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Default Re: ......रामनवमी.......

शिवरीनारायण स्थित आश्रम जहां राम ने खाए थे शबरी के जूठे बेर
आपको रामायण का वो किस्सा तो याद ही होगा जब देवी सीता को ढूंढते हुए भगवान राम और लक्ष्मण दंडकारण्य में घूमते हुए शबरी माता के आश्रम में पहुंच जाते हैं। वहां शबरी उन्हें अपने जूठे बेर खिलाती हैं जिसे राम बड़े प्रेम से खा लेते हैं। माता शबरी का वह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित यह आश्रम प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरा हुआ है। इस आश्रम का उल्लेख महाकाव्य रामायण में मिलता है।

रायपुर से दूरी
इस स्थान को पहले शबरीनारायण कहा जाता था जो बाद में शिवरीनारायण के रूप में प्रचलित हुआ। शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में आता है। यह बिलासपुर से 64 और रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों ही शहरों से यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
राम ने यहां बिताया था वनवास
प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ के कई हिस्से दंडकारण्य क्षेत्र में आते थे। रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम ने अपने 14 वर्ष के वनवास के लगभग दस साल दंडकारण्य में गुजारे थे। इस दौरान कई ऋषि-मुनियों से उन्होंने भेंट की थी। रामायण में कई वनबालाओं से देवी सीता के संवाद का भी उल्लेख मिलता है।
है 'गुप्तधाम'
देश के प्रचलित चार धाम हैं- उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारिका धाम। लेकिन मध्य में स्थित शिवरी नारायण को 'गुप्तधाम' होने का गौरव प्राप्त है। इस बात का वर्णन रामावतार चरित्र और याज्ञवलक्य संहिता में मिलता है।

स्कन्द पुराण में है उल्लेख
शिवरी नारायण का उल्लेख स्कन्द पुराण में किया गया है, जिसमें इस क्षेत्र को श्रीनारायण और श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र भी कहा गया है। यहां पर महाभारत कालीन अवशेष भी मिले हैं
शिवरी नारायण स्थित मंदिरशिवरी नारायण स्थित मंदिर
शबरी का असली नाम श्रमणा था। वह भील समुदाय की शबर जाति से सम्बन्ध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। बताया जाता है कि उनका विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था। विवाह से पहले सैकड़ों बकरे-भैंसे बलि के लिए लाये गए, जिन्हें देख शबरी को बहुत बुरा लगा कि यह कैसा विवाह जिसके लिए इतने पशुओं की हत्या की जाएगी। शबरी विवाह के एक दिन पहले घर से भाग गईं। घर से भाग वे दंडकारण्य पहुंच गईं।

दंडकारण्य में ऋषि तपस्या किया करते थे। शबरी उनकी सेवा तो करना चाहती थी पर हीन जाति से संबंध होने के कारण उन्हें पता था कि उनकी सेवा कोई भी ऋषि स्वीकार नहीं करेंगे। इसके लिए उन्होंने एक रास्ता निकाला। वे सुबह-सुबह ऋषियों के उठने से पहले उनके आश्रम से नदी तक का रास्ता साफ़ कर देती थीं, कांटे बीन कर रास्ते में रेत बिछा देती थी। यह सब वे ऐसे करती थीं कि किसी को इसका पता नहीं चलता था।
क दिन ऋषि मतंग की नज़र शबरी पर पड़ी। उनके सेवाभाव से प्रसन्न होकर उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी। इस पर ऋषि का सामाजिक विरोध भी हुआ पर उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में ही रखा। जब मतंग ऋषि की मृत्यु का समय आया तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही भगवान राम की प्रतीक्षा करें, वे उनसे मिलने जरूर आएंगे।

मतंग ऋषि की मौत के बाद शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा। वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो, इसका ध्यान रखने के लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थीं। ऐसा करते-करते कई साल बीत गये

एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुकुमार युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं। वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं। तब तक वे बूढ़ी हो चुकी थीं, लाठी टेक के चलती थीं। लेकिन राम के आने की खबर सुनते ही उन्हें अपनी कोई सुध नहीं रही। वे भागती हुई उनके पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई। उनके पाँव धोकर बैठाया। अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए। राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा।
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Old 28-03-2015, 07:58 AM   #3
rajnish manga
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Default Re: ......रामनवमी.......

रामनवमी पर्व के अवसर पर आपने बहुत बढ़िया जानकारी हम सब के लाभार्थ प्रस्तुत की है, सोनी जी. विशेष रूप से राम व शबरी के प्रसंग पर भी सुंदर प्रकाश डाला गया है. इस पृष्ठभूमि की कथा व अन्य जानकारी भी रोचक है. बहुत बहुत धन्यवाद.



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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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Old 28-03-2015, 03:46 PM   #4
soni pushpa
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Default Re: ......रामनवमी.......

[QUOTE=rajnish manga;549929][SIZE=3]रामनवमी पर्व के अवसर पर आपने बहुत बढ़िया जानकारी हम सब के लाभार्थ प्रस्तुत की है, सोनी जी. विशेष रूप से राम व शबरी के प्रसंग पर भी सुंदर प्रकाश डाला गया है. इस पृष्ठभूमि की कथा व अन्य जानकारी भी रोचक है. बहुत बहुत धन्यवाद.



बहुत बहुत धन्यवाद रजनीश जी ..
अपने देश के हर त्यौहार की याद में बस कुछ लिख देती हं और इससे मुझे बेहद ख़ुशी मिलती है लगता है मानो कुछ पल के लिए अपने भारत देश में हूँ ..

Last edited by soni pushpa; 28-03-2015 at 11:58 PM.
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रामनवमी, ramnavmi

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