My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Religious Forum

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 12-08-2012, 02:13 PM   #1
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default कुरआन और विज्ञान |

जब से इस पृथ्वी ग्रह पर मानवजाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य ने हमेशा यह समझने की कोशिश की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, रचनाओं और प्राणियों के ताने-बाने में इसका अपना क्या स्थान है और यह कि आखि़र खु़द जीवन की अपनी उपयोगिता और उद्देश्य क्या है ? सच्चाई की इसी तलाश में, जो सदियों की मुद्दत और धीर - गम्भीर संस्कृतियों पर फैली हुई है संगठित धर्मो ने मानवीय जीवन शैली की संरचना की है और एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक धारे का निर्धारण भी किया है ।
कुछ धर्मो की बुनियाद लिखित पंक्तियों व आदेशों पर आधारित है जिन के बारे में उनके अनुयायियों का दावा है कि वह खुदाई या ईश्वरीय साधनों से मिलने वाली शिक्षा का सारतत्व है जब कि अन्य धर्म की निर्भरता केवल मानवीय अनुभवों पर रही है ।
क़ुरआन पाक, जो इस्लामी आस्था का केंद्रीय स्रोत है एक ऐसी किताब है जिसे इस्लाम के अनुयायी मुसलमान, पूरे तौर पर खु़दाई या आसमानी साधनों से आया हुआ मानते हैं। इसके अलावा क़ुरआन -ए पाक के बारे में मुसलमानों का यह विश्वास, कि इसमें रहती दुनिया तक मानवजाति के लिये निर्देश मौजूद है, चूंकि क़ुरआन का पैग़ाम हर ज़माने, हर दौर के लोगों के लिये है, अत: इसे हर युगीन समानता के अनुसार होना चाहिये, तो क्या क़ुरआन इस कसौटी पर पूरा उतरता है?, प्रस्तुत शोध - पत्र में मुसलमानों के इस विश्वास का वस्तुगत विश्लेषण objective analysis पेश किया जा
रहा है जो, क़ुरआन के इल्हामी साधन द्वारा अवतरित होने की प्रमाणिकता को वैज्ञानिक खोज के आलोक में स्थापित करती है । मानव इतिहास में एक युग ऐसा भी था जब ‘‘चमत्कार‘‘ या चमत्कारिक वस्तु मानवीय ज्ञान और तर्क से आगे हुआ करती थी चमत्कार की आम परिभाषा है, ऐसी ‘‘वस्तु‘‘ जो साधारणतया मानवीय जीवन के प्रतिकूल हो और जिसका बौद्धिक विश्लेषण इंसान के पास न हो। फिर किसी भी वस्तु को करिश्मे के तौर पर मानने से पहले हमें बहुत बचना
पडे़गा जैसे 1993 में ‘‘टाइम्स ऑफ इंडिया‘‘ मुम्बई में एक ख़बर प्रकाशित हुई, जिस में ‘‘बाबा पायलट‘‘ नामी एक साधू ने दावा किया था कि वह पानी से भरे एक टैंक के अंदर लगातार तीन दिन और तीन रातों तक पानी में रहा, अलबत्ता जब रिपोर्टरों ने उस टैंक की सतह का जायज़ा लेने की कोशिश की तो उन्हें इसकी इजाज़त नहीं मिली ।
बाबा ने पत्रकारों को उत्तर दिया किसी को उस मां के गर्भ (womb) का विश्लेषण करने की आज्ञा कैसे दी जा सकती है जिससे बच्चा जन्म लेता है साफ़ जा़हिर है कि ‘‘साधू जी‘‘ कुछ ना कुछ छुपाना चाह रहे थ,े और उनका यह दावा सिर्फ़ ख्याति प्राप्त करने की एक चाल थी, यक़ीनन नये दौर का कोई भी व्यक्ति जो तर्क संगत सोच (Rational thinking) की ओर थोड़ा झुकाव रखता होगा ऐसे किसी चमत्कार को नहीं मानेगा। अगर ऐसे झूठे और आधारहीन ‘‘चमत्कार‘‘ अल्लाह द्वारा घटित होने का आधार बने तो नऊज़ू-बिल्लाह हमें दुनिया के सारे जादूगरों को ख़ुदा के अस्ल प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करना पडे़गा।
एक ऐसी किताब जिसके अल्लाह द्वारा अवतरित होने का दावा किया जा रहा है उसी आधार पर एक चमत्कारी जादूगर की दावेदारी भी है तो उसकी पुष्टि verification भी होनी चाहिये। मुसलमानों का विश्वास है कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा उतारी हुई और सच्ची किताब है जो अपने आप में एक चमत्कार है, और जिसे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये उतारा गया है। आइये हम इस आस्था और विश्वास की प्रमाणिकता का बौद्धिक विश्लेषण करते हैं ।
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:16 PM   #2
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

पवित्र क़ुरआन की चुनौती
तमाम संस्कृतियों में मानवीय शक्ति वचन और रचनात्मक क्षमताओं की अभिव्यक्ति के प्रमुख साधनों में साहित्य और शायरी (काव्य रचना) सर्वोरि है। विश्व इतिहास में ऐसा भी ज़माना गु़ज़रा है जब समाज में साहित्य और काव्य को वही स्थान प्राप्त था जो आज विज्ञान और तकनीक को प्राप्त है।
गै़र-मुस्लिम भाषा-वैज्ञानिकों की सहमति है कि अरबी साहित्य का श्रेष्ठ सर्वोत्तम नमूना पवित्र क़ुरआन है यानी इस ज़मीन पर अरबी सहित्य का सर्वोत्कृष्ठ उदाहरण क़ुरआन -ए पाक ही है। मानव जाति को पवित्र क़ुरआन की चुनौति है कि इन क़ुरआनी आयतों (वाक्यों ) के समान कुछ बनाकर दिखाए उसकी चुनौती है :
‘‘और अगर तुम्हें इस मामले में संदेह हो कि यह किताब जो हम ने अपने बंदों पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं तो इसकी तरह एक ही सूरत (क़ुरआनी आयत) बना लाओ, अपने सारे साथियों को बुला लो एक अल्लाह को छोड़ कर शेष जिस - जिस की चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम कर दिखाओ, लेकिन अगर तुमने ऐसा नहीं किया और यकी़नन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन बनेंगे इंसान और पत्थर। जो तैयार की गई है मुनकरीन हक़ (सत्य को नकारने वालों)के लिये ( अल - क़ुरआन: सूर 2, आयत 23 से 24 )
पवित्र क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में सम्पूर्ण मानवजाति को चुनौती दे रहा है कि वह ऐसी ही एक सूरः बना कर तो दिखाए जैसी कि क़ुरआन में कई स्थानों पर दर्ज है । सिर्फ एक ही ऐसी सुरः बनाने की चुनौति जो अपने भाषा सौन्दर्य मृदुभषिता, अर्थ की व्यापकता औ चिंतन की गहराई में पवित्र क़ुरआन की बराबरी कर सके, आज तक पूरी नहीं की जा सकी ।
यद्यपि आधुनिक युग का तटस्थ व्यक्ति भी ऐसे किसी धार्मिक ग्रंथ को स्वीकार नहीं करेगा जो अच्छी साहित्यिक व काव्यात्मक भाषा का उपयोग करने के बावजूद यह कहता हो कि धरती चप्टी है। यह इस लिये है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां इंसान के बौद्धिक तर्क और विज्ञान को आधारभूत हैसियत हासिल है। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो अल्लाह द्वारा पवित्र क़ुरआन के अस्तित्व की प्रामाणिकता में उसकी असाधारण और सर्वोत्तम साहित्यिक भाषा को पर्याप्त प्रमाण नहीं मानेंगे । कोई भी ऐसा ग्रंथ जो आसमानी होने और अल्लाह द्वारा प्रदत्त होने का दावेदार हो, उसे अपने प्रासंगिक तर्कों की दृढ़ता के आधार पर ही स्वीकृति के योग्य होना चाहिये ।
प्रसिद्ध भौतिकवादी दर्शनशास्त्री और नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन के अनुसार ‘‘धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और धर्म के बिना विज्ञान अंधा है ‘‘इसलिये अब हम पवित्र क़ुरआन का अध्ययन करते हुए यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि आधुनिक विज्ञान और पवित्र क़ुरआन में परस्पर अनुकूलता है या प्रतिकूलता ?
यहां याद रखना ज़रूरी है कि पवित्र क़ुरआन कोई वैज्ञानिक किताब नहीं है बल्कि यह ‘‘निशानियों‘‘ (signs) की, यानि आयात की किताब है। पवित्र क़ुरआन में छह हज़ार से अधिक ‘‘निशानियां‘‘ (आयतें / वाक्य) हैं, जिनमें एक हज़ार से अधिक वाक्य विशिष्ट रूप से विज्ञान एवं वैज्ञानिक विषयों पर बहस करती हैं । हम जानते हैं कि कई अवसरों पर विज्ञान‘‘ यू टर्न ‘‘लेता है यानि विगत - विचार के प्रतिकूल बात कहने लगता है । अत: यहां केवल सर्वमान्य वैज्ञानिक वास्तविकताओं को ही चुना है जबकि ऐसे विचारों व दृष्टिकोण पर बात नहीं की है जो महज़ कल्पना हो और पुष्टि के लिये वैज्ञानिक प्रमाण न हो।
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:17 PM   #3
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

अंतरिक्ष - विज्ञान
astrology
सृष्टि की संरचना: ‘‘बिग बैंग ‘‘अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञों ने सृष्टि की व्याख्या एक ऐसे सूचक (phenomenon) के माध्यम से करते हैं और जिसे व्यापक रूप ‘‘से बिग बैंग‘‘(big bang) के रूप में स्वीकार किया जाता है। बिग बैंग के प्रमाण में पिछले कई दशकों की अवधि में शोध एवं प्रयोगों के माध्यम से अंतरिक्ष विशेषज्ञों की इकटठा की हुई जानकारियां मौजूद है ‘बिग बैंग‘ दृष्टिकोण के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्ठि प्राथमिक रसायन (primary nebula) के रूप में थी फिर एक महान विस्फ़ोट यानि बिग बैंग (secondry separation) हुआ जिस का नतीजा आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाश गंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, ग्र्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि के अस्तित्व में परिवर्तित हो गए कायनात, प्रारम्भ में इतनी पृथक और अछूती थी कि संयोग (chance) के आधार पर उसके अस्तित्व में आने की ‘‘सम्भावना: (probability) शून्य थी । पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्नलिखित आयतों में बताता है:
‘‘क्या वह लोग जिन्होंने ( नबी स.अ.व. की पुष्टि ) से इन्कार कर दिया है ध्यान नहीं करते कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर हम ने उन्हें अलग किया‘‘(अल - क़ुरआन: सुर: 21, आयत 30 )
इस क़ुरआनी वचन और ‘‘बिग बैंग‘‘ के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं! यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से 1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई अपने अन्दर ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?

stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:18 PM   #4
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन
वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (gas) की अवस्था में था, संक्षिप्त यह कि आकाशगंगा निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था. सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द ‘‘धुंआ‘‘ है।
निम्नांकित आयतें क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था को धुंआ शब्द से रेखांकित किया है।
‘‘फिर वे आसमान की ओर ध्यान आकर्षित हुए जो उस समय सिर्फ़ धुआं था उस (अल्लाह) ने आसमान और ज़मीन से कहा:अस्तित्व में आजाओ चाहे तुम चाहो या न चाहो‘‘ दोनों ने कहा: हम आ गये फ़र्मांबरदारों (आज्ञाकारी लोगों) की तरह‘‘(अल ..कु़रआन: सूर: 41 ,,आयत 11)
एक बार फिर, यह यथार्थ भी ‘‘बिग बैंग‘‘ के अनुकूल है जिसके बारे में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा़ (स.अ.व. )की पैग़मबरी से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था (बिग बैंग दृष्टिकोण बीसवीं सदी यानी पैग़मबर काल के 1300 वर्ष बाद की पैदावार है )
अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?

धरती की अवस्था: गोल या चपटी
प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयाक्रांति करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़! सर फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने 1597 ई0 में धरती के गिर्द ( समुद्र मार्ग से ) चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार ) है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है:
‘‘ क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में ‘‘
(अल-.क़ुरआन: सूर: 31 आयत 29 )
यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अल्लाह ताला ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन के रात में ढलने (परिवर्तित होने )की चर्चा की है ,यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार ) हो। अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता ।
निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है:
उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ (यथार्थ रूप से )उत्पन्न किया है ,, वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है।,,(अल.-क़ुरआन: सूर:39 आयत 5)
यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द ‘‘कव्वर‘‘ का अर्थ है किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या overlap करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर ( तार की तरह ) बांधना। दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है जब ज़मीन की बनावट गोल हो ।
ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह (geo-spherical) है यानि ध्रुव (poles) पर से थोडी सी चपटी है। निम्न आयत में ज़मीन के बनावट की व्याख्या यूं की गई हैः ‘‘और फिर ज़मीन को उसने बिछाया ‘‘(अल क़ुरआन: सूर 79 आयत 30)
यहां अरबी शब्द ‘‘दहाहा‘‘ प्रयुक्त है, जिसका आशय ‘‘शुतुरमुर्ग़‘‘ के अंडे के रूप, में धरती की वृत्ताकार बनावट की उपमा ही हो सकता है। इस प्रकार यह माणित हुआ कि पवित्र क़ुरआन में ज़मीन के बनावट की सटीक परिभाषा बता दी गई है, यद्यपि पवित्र कुरआन के अवतरण काल में आम विचार यही था कि ज़मीन चपटी है।
चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है
प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।
,,बड़ा पवित्र है वह जिसने आसमान में बुर्ज ( दुर्ग ) बनाए और उसमें एक चिराग़
और चमकता हुआ चांद आलोकित किया ।( अल. क़ुरआन ,सूर: 25 आयत 61)
पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द ‘‘शम्स‘‘ प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को ‘सिराज‘ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है मशाल (torch) जबकि अन्य अवसरों
पर उसे ‘वहाज‘ अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ
‘‘प्रदीप्त‘ तेज और महानता‘‘ है। सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन combustion का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है।
चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द क़मर प्रयुक्त किया गया है और इसे बतौर‘ मुनीर प्रकाशमान बताया गया है ऐसा शरीर जो ‘नूर‘ (ज्योति) प्रदान करता हो। अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो। एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है और हमें जलता हुआ दिखाई देता है। पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये‘, सिराज वहाज, या दीपक जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है और न ही सूरज को , नूर या मुनीर‘,, कहा गया है। इस से स्पष्ट होता है कि पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।
निम्नलिखित आयात में सूरज और चांद की रोशनी के बीच अंतर इस तरह स्पष्ट किया गया है:
वही है जिस ने सूरज को उजालेदार बनाया और चांद को चमक दी ।,,( अल-क़ुरआन: सूरः 10,, आयत 5 ,,)
क्या देखते नहीं हो कि अल्लाह ने किस प्रकार सात आसमान एक के ऊपर एक बनाए और उनमें चांद को नूर ( ज्योति ) और सूरज को चिराग़ (दीपक) बनाया ।( अल- क़ुरआन: सूर:71 आयत 15 से 16 )
इन पवित्र आयतों के अध्य्यन से प्रमाणित होता है कि महान पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान में धूप और चाँदनी की वास्तविकता के बारे में सम्पूर्ण सहमति है ।
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:20 PM   #5
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

सूरज घूमता है
एक लम्बी अवधि तक यूरोपीय दार्शिनिकों और वैज्ञानिकों का विश्वास रहा है कि धरती सृष्टि के केंद्र में चुप खड़ी है और सूरज सहित सृष्टि की प्रत्येक वस्तु उसकी परिक्रमा कर रही है। इसे धरती का केंद्रीय दृष्टिकोण‘ भूकेन्द्रीय सिद्धांत geo-centric-theory भी कहा जाता है जो बतलीमूस- काल, दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर 16 वीं सदी ई. तक सर्वमान्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है, पुन:
1512 ई0 में निकोलस कॉपरनिकस ने ‘‘अंतरिक्ष में ग्रहों की गति के सौर-..केंद्रित ग्रह- गति सिद्धांत heliocentric theory of planetary motion का प्रतिपादन किया जिसमें कहा गया था कि सूरज सौरमण्डल के केंद्र में यथावत है और अन्य तमाम ग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे है: 1609 ई0 में एक जर्मन वैज्ञानिक जोहानस कैप्लर ने astronomia nova (खगोलीय तंत्र) नामक एक किताब प्रकाशित कराई। जिसमें विद्वान लेखक ने, न केवल यह सिद्ध किया कि सौरमण्डल के ग्रह दीर्ध वृत्तीय:elliptical अण्डाकार धुरी पर सूरज की परिक्रमा करते हैं बल्कि उसमें यह प्रमाणिकता भी अविष्कृत है कि सारे ग्रह अपनी धुरियों (axis) पर अस्थाई गति से घूमते हैं। इस अविष्कृत ज्ञान के आधार पर यूरोपीय वैज्ञानिकों के लिये सौरमण्डल की अनेक व्यवस्थाओं की सटीक व्याख्या करना सम्भव हो गया। रात और दिन के परिवर्तन की निरंतरता के इन अविष्कारों के बाद यह समझा जाने लगा कि सूरज यथावत है और धरती की तरह अपनी धुरी पर परिक्रमा नहीं करता। मुझे याद है कि मेरे स्कूल के दिनों में भूगोल की कई किताबों में इसी ग़लतफ़हमी का प्रचार किया गया था। अब ज़रा पवित्र क़ुरआन की निम्न आयतों को ध्यान से देखें:
”और वह अल्लाह ही है, जिसने रात और दिन की रचना की और सूर्य और चांद को उत्पन्न किया,, सब एक. एक फ़लक (आकाश ) में तैर रहे हैं।“( अल-क़ुरआन: सूर: 21 आयत 33 )
ध्यान दीजिए कि उपरोक्त आयत में अरबी शब्द ‘‘यस्बहून‘‘ प्रयुक्त किया गया है जो सब्हा से उत्पन्न है जिसके साथ एक ऐसी हरकत की वैचारिक संकल्पना जुडी़ हुई है जो किसी शरीर की सक्रियता से उत्पन्न हुई हो। अगर आप धरती पर किसी व्यक्ति के लिये इस शब्द का उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह लुढक रहा है बल्कि इसका आशय होगा कि अमुक व्यक्ति दौड़ रहा है अथवा चल रहा है अगर यह शब्द पानी में किसी व्यक्ति के लिये उपयोग किया जाए तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह पानी पर तैर रहा है बल्कि इसका अर्थ होगा कि ,,अमुक व्यक्ति पानी में तैराकी:
swimming कर रहा है।
इस प्रकार जब इस शब्द,, ’यसबह’ का किसी आकाशीय शरीर (नक्षत्र) सूर्य के लिये उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ केवल यही नहीं होगा कि वह शरीर अंतरिक्ष में गतिशील है बल्कि इसका वास्तविक अर्थ कोई ऐसा साकार शरीर होगा जो अंतरिक्ष में गति करने के साथ साथ अपने धु्रव पर भी घूम रहा हो। आज स्कूली पाठयक्रमों में अपनी जानकारी ठीक करते हुए यह वास्तविक्ता शामिल कर ली गई है कि सूर्य की ध्रुवीकृत परिक्रमा की जांच किसी ऐसे यंत्र से की जानी चाहिये जो सूर्य की परछाई को फैला कर दिखा सके इसी प्रकार अंधेपन के ख़तरे से दो चार हुए बिना सूर्य की परछाई का शोध सम्भव नहीं। यह देखा गया है कि सूर्य के धरातल पर धब्बे हैं जो अपना एक चक्कर लगभग 25 दिन में पूरा कर लेते है । मतलब यह की सूर्य को अपने ध्रुव के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 25 दिन लग जाते है। इसके अलावा सूर्य अपनी कुल गति 240 किलो मीटर प्रति सेकेण्ड की रफ़तार से अंतिरक्ष की यात्रा कर रहा है। इस प्रकार सूरज समान गति से हमारे देशज मार्ग आकाशगंगा की परिक्रमा बीस करोड़ वर्ष में पूरी करता है।
न सूर्य के बस में है कि वह चांद को जाकर पकड़े और न ‘रात,‘‘, ‘दिन पर वर्चस्व ले जा सकती है ,, यह सब एक एक आकाश में तैर रहे हैं।,,(अल-क़ुरआन: सूर: 36 आयत 40 )
यह पवित्र आयत एक ऐसे आधारभूत यथार्थ की तरफ़ इशारा करती है जिसे आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान ने बीती सदियों में खोज निकाला है यानि चांद और सूरज की मौलिक ‘‘परिक्रमा orbits का अस्तित्व अंतिरक्ष में सक्रिय यात्रा करते रहना है।
‘वह निश्चित स्थल fixed place जिसकी ओर सूरज अपनी सम्पूर्ण मण्डलीय व्यवस्था सहित यात्रा पर है। आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान द्वारा सही-सही पहचान ली गई है।
इसे सौर ,कथा solar epics का नाम दिया गया है। पूरी सौर व्यवस्था वास्तव में अंतरिक्ष के उस स्थल की ओर गतिशील है जो हरक्यूलिस नामक ग्रह Elphalerie area में अवस्थित है और उसका वास्तविक स्थल हमें ज्ञात हो चुका है।
चांद अपनी धुरी पर उतनी ही अवधि में अपना चक्कर पूरा करता जितने समय में वह धरती की एक परिक्रमा पूरी करता है। चांद को अपनी एक ध्रुवीय परिक्रमा पूरी करने में 29.5 दिन लग जाते हैं । पवित्र क़ुरआन की आयत में वैज्ञानिक वास्तविकताओं की पुष्टि पर आश्चर्य किये बिना कोई चारा नहीं है। क्या हमारे विवेक में यह सवाल नहीं उठता कि आखिर ‘‘क़ुरआन में प्रस्तुत ज्ञान का स्रोत और ज्ञान का वास्तविक आधार क्या है?‘‘
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:25 PM   #6
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

सूरज बुझ जाएगा?
सूरज का प्रकाश एक रसायनिक क्रिया का मुहताज है जो उसके धरातल पर विगत पांच अरब वर्षों से जारी है भविष्य में किसी अवसर पर यह कृत रूक जाएगा और तब सूरज पूर्णतया बुझ जाएगा जिसके कारण धरती पर जीवन की समाप्ति हो जाए पवित्र क़ुरआन सूरज के अस्तित्व की पुष्टि इस प्रकार करता है:
‘‘और सूरज वह अपने ठिकाने की तरफ़ चला जा रहा है यह ब्रहम्ज्ञान के स्रोत महाज्ञानी का बांधा हुआ गणित है‘‘ (अल-क़ुरआन: सुर: 36 आयत 38 )
विशेष: इसी प्रकार की बातें पवित्र क़ुरआन के सूर: 13 आयत 2,,सूर: 35, आयत 13
सूर: 39 आयत 5 एवं 21 में भी बताई गई हैं
यहां अरबी शब्द‘‘ मुस्तकिर: ठिकाना का प्रयुक्त हुआ है जिस का अर्थ है पूर्व से संस्थापित ‘समय‘ या ‘स्थल‘ यानी इस आयत में अल्लाह ताला कहता है कि सूरज पूर्वतः निश्चित स्थ्ल की ओर जा रहा है ऐसा पूर्व निश्चित समय के अनुसार ही करेगा अर्थात् यह कि सूरज भी समाप्त हो जाएगा या बुझ जाएगा।
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:26 PM   #7
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

अन्तर तारकीय द्रव
पिछले ज़माने में संगठित अंतरिक्ष व्यवस्थओं से बाहर वाहृय अंतरिक्ष: वायुमण्डल को सम्पूर्ण रूप से ‘ख़ाली:vacum माना जाता था इसके बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इस अंतरिक्ष्य प्लाविक के द्रव्यात्मक पुलों (bridge) की खोज की जिसे प्लाविक plasma कहा जाता है जो सम्पूर्ण रूप से लोनाइज़्ड गैस lonized-gas पर आधारित होते हैं और जिसमें सकारात्मक प्रभाव वाले,, अकेले:loni और स्वतंन्न इलैक्ट्रनों की समान संख्या होती है। द्रव की तीन जानी पहचानी अवस्थाओं यानी ठोस ,तरल और ज्वलनशील तत्वों के अतिरिक्त प्लाविक को चौथी अवस्था भी कहा जाता है निम्नलिखित आयत में पवित्र क़ुरआन अंतरिक्ष के प्लाविक द्रव या अन्त: इस्पात द्रव्य:intra steels material की ओर संकेत करता है ।
‘‘वह जिस ने छह दिनों में ज़मीन और आसमानों और उन सारी वस्तुओं का निर्माण पूरा कर दिया जो आसमान और ज़मीन के बीच में हैं।( अल-क़ुरआन ,,सूर: 25 आयत 59 )
किसी के लिये यह विचार भी हास्यास्पद होगा कि वायुमण्डल अंतरिक्ष एवं आकाशगंगा के द्रव्यों का अस्तित्व 1400 वर्ष पहले से ही हमारे ज्ञान में था।
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:27 PM   #8
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

सृष्टि का फैलाव
1925 ई0 में अमरीका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक एडोन हबल adone hubble ने इस संदर्भ में एक प्रामाणिक खोज उपलब्ध कराया था कि सभी आकाशगंगा एक दूसरे से दूर हट रहे हैं अर्थात सृष्टि फैल रही है सृष्टि व्यापक हो रही है। यह एक वैज्ञानिक यथार्थ है इस बारे में पवित्र क़ुरआन में सृष्टि की संरचना के संदर्भ से अल्लाह फ़रमाता है:
‘‘आसमान को हम ने अपने ज़ोर से बनाया है और हम इसकी कुदरत: प्रभुत्व रखे है (या
इसे फैलाव दे रहे हैं) (अल-क़ुरआन: सूर: 51 आयत 47 )
अरबी शब्द वासिऊन का सही अनुवाद इसे फैला रहे हैं बनता है तो यह आयत सृष्टि के ऐसे निर्माण की ओर संकेत करती है जिसका फैलाव निरंतर जारी है ।
वर्तमान युग का प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिगं अपने शोधपत्र: समय का संक्षिप्त इतिहास: a brief history of time में लिखता हैः यह ‘‘खोज ! कि सृष्टि फैल रही है बीसवी सदी के महान बौद्धिक और चिंतन क्रांतियों में से एक है,, अब ध्यान दीजिये कि पवित्र क़ुरआन नें सृष्टि के फैलाव की कथा उसी समय बता दी थी जब मनुष्य ने दूरबीन तक का अविष्कार नहीं किया था। इसके बावजूद संदिग्ध विवेक रखने वाले कुछ लोग, यह कह सकते हैं कि पवित्र क़ुरआन में आंतरिक्ष यथार्थ का मौजूद होना आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि अरबवासी इस ज्ञान के प्रारम्भिक विशेषज्ञ थे।
अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के प्राधिकरण की सीमा तक तो उनका विचार ठीक है लेकिन इस बिंदु को समझने में वे नाकाम हो चुके हैं कि अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के उत्थान से भी सदियों पहले ही पवित्र क़ुरआन का अवतरण हो चुका था इसके अतिरिक्त ऊपर वर्णित बहुत से वैज्ञानिक यथार्थ जैसे बिग बैंग से सृष्टि के प्रारम्भन आदि की जानकारी से तो अरब उस समय भी अनभिज्ञ ही थे जब वह विज्ञान और तकनीक के विकास और उन्नति की सर्वोत्तम ऊंचाई पर थे अत: पवित्र क़ुरआन में वर्णित वैज्ञानिक यथार्थ को अरबवासियों की विशेषज्ञता नहीं मान जा सकता। दरअस्ल इसके प्रतिकूल सच्चाई यह है कि अरबों ने अंतरिक्ष विज्ञान में इसलिये उन्नति की क्योंकि अंतरिक्ष और सृष्टि के निर्माण विषयक जानकारियां पवित्र क़ुरआन में आसानी से उप्लब्ध हो गए थे। इस विषय को पवित्र क़ुरआन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है
stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:28 PM   #9
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

प्राकृतिक-विज्ञान
Natural Science
परमाणु भी विभाजित किये जा सकते हैं
प्राचीन काल में परमाणुवाद: atomism के दृष्टिकोण शीर्षक से एक सिद्ध दृष्टिकोण को व्यापक धरातल पर स्वीकर किया जाता था यह दृष्टिकोण आज से 2300 वर्ष पहले यूनानी दर्शनशास्न्नी विमाक्रातिस vimacratis ने पेश किया था विमाक्रातिस और उसके वैचारिक अनुयायी की संकल्पना थी कि, द्रव्य की न्यूनतम इकाई परमाणु है प्राचीन अरब वासी भी इसी संकल्पना के समर्थक थे। अरबी शब्द, ‘‘ज़र्रा: अणु का
मतलब वही था जिसे यूनानी ‘ऐटम‘ कहते थे। निकटतम इतिहास में विज्ञान ने यह खोज की है कि ‘,परमाणु‘‘ को भी विभाजित करना सम्भव है, परमाणु के विभाजन योग्य होने की कल्पना भी बीसवीं सदी की वैज्ञानिक सक्रियता में शामिल है। चौदह शताब्दि पहले अरबों के लिये भी यह कल्पना असाधारण होती। उनके समक्ष ज़र्रा अथवा ‘अणु‘ की ऐसी सीमा थी जिसके आगे और विभाजन सम्भव नहीं था लेकिन पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में अल्लाह ने परमाणु सीमा को अंतिम सीमा मानने से इन्कार कर दिया है।
मुनकरीन ( विरोधी ) कहते हैं: क्या बात है कि क़यामत हम पर नहीं आ रही हैं? कहो! क़सम है मेरे अंतर्यामी परवरदिगार (परमात्मा) की वह तुम पर आकर रहेगी उस से अणु से बराबर कोई वस्तु न तो आसमानों में छुपी हुई है न धरती पर: न अणु से बड़ी और न उस से छोटी ! यह सबकुछ एक सदृश दफ़तर में दर्ज है। (अल-कु़रआन: सूर: 34 आयत 3)
विशेष: इस प्रकार का संदेश पवित्र क़ुरआन की सूर: 10 आयत 61 में भी वर्णित है।
यह पवित्र आयत हमें अल्लाह तआला के आलिमुल गै़ब अंतर्यामी होने यानि प्रत्येक अदृश्य और सदृश्य वस्तु के संदर्भ से महाज्ञानी होने के बारे में बताती है फिर यह आगे बढ़ती है और कहती है कि अल्लाह तआला हर चीज़ का ज्ञान रखते हैं चाहे वह परमाणु से छोटी या बड़ी वस्तु ही क्यों न हो। तो प्रमाणित हुआ कि यह पवित्र आयत स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है कि, परमाणु से संक्षिप्त वस्तु भी अस्तित्व में है और यह एक ऐसा यथार्थ है जिसे अभी हाल ही में आधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है।
.........
sea , iron लोहा और rain बारिश को कुरआन से समझने के लिए देखें विडियो

stolen heart is offline   Reply With Quote
Old 12-08-2012, 02:29 PM   #10
stolen heart
Member
 
Join Date: Jun 2012
Posts: 174
Rep Power: 12
stolen heart will become famous soon enough
Default Re: कुरआन और विज्ञान |

जल विज्ञान
hydrology
जल चक्र
आज हम जिस संकल्पना को ‘जल- चक्र:water cycle नाम से जानते हैं उसकी संस्थापना:
1580 ई0 में बरनॉर्ड प्लेसी bemard placy ने की थी। उसने बताया-किस प्रकार समुद्रों से जल का वाष्पीकरण evaporation होता है, और तत्पश्चात किस प्रकार वह ठंडा होकर बादलों के रूप में परिवर्तित होता है फिर उसके बाद, शुष्क खुश्क वातावरण में आगे की ओर उड़ते हुए ऊंचाई की तरफ़ बढ़ता है उसमें जल का ‘‘संघनन:condensation होता है और वर्षा होती है। उसी वर्षा का पानी झीलों, झरनों, नदियों और नहरों में अपना आकार लेता है और अपनी गति से बहता हुआ वापिस समुद्र
में चला जाता है इसी प्रकार यह जल-चक्र जारी रहता है सातवीं सदी ईसा पूर्व में थैल्ज thelchz नामक एक यूनानी दार्शनिक को विश्वास था कि सामुद्रिक धरातल पर एक बारीक जल-बूंदों की फुहार spray उत्पन्न होती है जिसे हवा उठा लेती है और ख़ुश्की के दूर दराज़ क्षेत्रों तक ले जाकर वर्षा के रूप में छोड़ देती है, जिसे बारिश कहते हैं इसके अलावा पुराने समये में लोग यह भी नहीं जानते थे कि ज़मीन के नीचे पानी का स्रोत क्या है? उनका विचार था कि वायु शक्ति के अंतर्गत समंदर का पानी उपमहाद्वीप (सूखी धरती ) में भीतरी भागों में समा जाता है उनका विश्वास था कि पानी एक गुप्त मार्ग से अथवा गहरे-अंधेरे greet abyss से आता है। समुद्र से मिला हुआ या काल्पनिक मार्ग प्लेटो-.काल से ‘‘टॉरटॉरस, कहलाता था यहां तक कि अटठारहवीं सदी के महान चिंतक‘ डिकारते descartres भी इन्ही विचारों से सहमति व्यक्त की है।
उन्नीसवीं सदी ईसवी तक ‘अरस्तू aristotle का दृष्टिकोण ही अधिक प्रचलित रहा। उस दृष्टिकोण के अनुसार, पहाड़ों की बर्फीली गुफा़ओं में बर्फ़ के संघनन से पानी उत्पन्न होता है इस प्रक्रिया को condensation (रिस्ते हुए पानी का भंडारण) कहते हैं, जिससे वहां ज़मीन के नीचे झीलें बनती है और जो पानी का मुख्य स्रोत (चश्मः ) हैं। आज हमें यह मालूम हो चुका है कि बारिश का पानी ज़मीन पर मौजूददरारों के रास्ते बह..बह कर ज़मीन के नीचे पहुंचता है और चश्म: जलकुण्ड की उत्त्पत्ति होती है। पवित्र क़ुरआन में इस बिंदु की व्याख्या इस प्रकार है:
क्या तुम नहीं देखते कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर उसको स्रोतों चश्मों और दरियाओं के रूप में ज़मीन के अंदर जारी किया फिर उस पानी के माध्यम से वह नाना प्रकार की खेतियां (कृषि ) उत्पन्न करता है जो विभिन्न प्रजाति के है‘‘ ।(अल-क़ुरआन सूर: 39 आयत 21 )
‘‘आसमान से पानी बरसाता है फिर उसके माध्यम से धरती को उसकी ‘मृत्यु‘ ( बंजर होने ) के बाद जीवन प्रदान करता है । यक़ीनन उसमें बहुत सी निशानियां हैं उन लोगों के लिये जो विवेक से काम लेते हैं ।(अल-क़ुरआन: सूर 30 आयत 24)
‘‘और आसमान से हम ने ठीक गणित के अनुकूल एक विशेष मात्रा में पानी उतारा और उसको धरती पर ठहरा दिया हम उसे जिस प्रकार चाहें विलीन ( ग़ायब ) कर सकते हैं। (अल-क़ुरआन: सूर:23 आयत ..18 )
कोई दूसरा ग्रन्थ जो 1400 वर्ष पुराना हो पानी के जलचक्र की ऐसी सटीक व्याख्या नहीं करता । ‘वाष्पीकरण: evoporation ‘‘,कसम है‘ वर्षा‘‘ ,,बरसाने वाले आसमान की‘‘ । ( अल-क़ुरआन: सूर: 86 आयत 11 )
वायु द्वारा बादलों का गर्भाधान: Impregnate
‘‘,और हम ही हवाओं को लाभदायक बनाकर चलाते हैं फिर आसमान से पानी बरसाते और तुमको उससे तृप्त: सैराब करते हैं‘‘ ।
यहां अरबी शब्द ,लवाक़िह, का उपयोग किया गया है जो ,लाक़िह, का बहुवचन है और लाक़िहा का विशेषण है अर्थात, ‘‘बार -आवर यानी ‘भर देना‘ अथवा गर्भाधान। इसी वाक्यांश में ‘बार-आवर का तात्पर्य यह कि वायु बादलों को एक दूसरे के समीप ढकेलती हैं जिसके कारण बादल के पानी में परिवर्तित होने की क्रिया गतिशील होती है, उक्त गतिशीलता के नतीजे में बिजली चमकने और बारिश होने की घटना क्रिया होती है। कुछ इसी प्रकार के स्पष्टीकरण पवित्र क़ुरआन की अन्य आयतों में भी मिलते हैं:
‘‘क्या तुम देखते नहीं कि अल्लाह बादल को -धीरे ..धीरे चलाता है, और फिर उसके टुकड़ों को आपस में जोड़ता है। फिर उसे समेट कर एक भारी अब्र (मेघ )बना देता है,फिर तुम देखते हो कि उसके ख़ोल (ग़िलाफ़ ) में से वर्षा की बूंदें टपकती चली आती हैं और वह आसमान से: उन पहाडों की बदौलत जो उसमें ऊंचे हैं: ओले बरसाता है ,,फिर जिसे चाहता है उससे नुक़सान पहुंचाता है और जिसे चाहता है उनसे बचा लेता है उसकी बिजली की चमक निगाहों को आश्चर्य से भर देती है। (अल-क़ुरआन: सूर: 24 आयत ..43)
‘‘अल्लाह ही है जो हवाओं को भेजता है और वह बादल उठाती हैं फिर वह उन बादलों को आसमान में फैलाता है जिस तरह चाहता है और उन्हें टुकडों में विभाजित कर देता है, फिर तुम देखते हो कि बारिश की बूंदें बादल में से टपकती चली आती हैं। यह बारिश जब वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है। बरसाता है तो अकस्मात वे प्रसन्न चित्त हो जाते हैं ,, (अल-कुरआन: सूर 30,,आयत .48)
पवित्र क़ुरआन में वर्णित ऊपर चर्चित व्याख्या जल विज्ञान hydrology पर उप्लब्ध नवीन अध्ययन की भी पुष्टि करते हैं। महान ग्रंथ पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतों में जल चक्र का वर्णन किया गया है,, उदाहरणतया: सूर: 7 आयत ..57 सूर: 13 आयत 17
,, सूर: 25 आयत.. 48 से 49,, सूर 35 आयत ..9 सूर 3ः आयत. 34 सूर 45 आयत:.5..
सूरे: 50 आयत 9 से 11,, सूरः 56 आयत ..68 से 70 और सूर: 67 आयत ..30 ,।
stolen heart is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Thread Tools
Display Modes

Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 02:22 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.