19-11-2013, 10:43 PM | #161 | ||
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Re: इधर-उधर से
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बेहतरीन..............
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19-11-2013, 10:50 PM | #162 |
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Re: इधर-उधर से
True Love
(Sonnet by William Shakespeare) Let me not to the marriage of true minds Admit impediments. Love is not love Which alters when it alteration finds. Or bends with the remover to remove:- O no! it is an ever-fixed mark That looks on tempests, and is never shaken; It is the star to every wandering bark, Whose worth’s unknown, although his height be taken. Love’s not time’s fool, though rosy lips and cheeks Within his bending sickle compass come; Love alters not with his brief hours and weeks, But bears it out ev’n to the edge of doom:- If this be error, and upon me proved, I never writ, nor no man never loved. |
19-11-2013, 10:54 PM | #163 |
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Re: इधर-उधर से
उपरोक्त सॅानेट का स्वतंत्र अनुवाद मैंने निम्नलिखित प्रकार से किया है:
प्यार दिलों का सच्चा हो तो कभी न घटता बढ़ता है वो प्यार भला क्या प्यार, मुड़े जो अवरोधों के डर से या जब भी देखे मोड़ कोई उसी ओर चल पड़ता है अथवा किसी भयंकर क्षण में चिर जाये वह अन्दर से. नहीं नहीं! किसी शैल-शिखर जैसा ही यह अविचलित है झंझाओं के सम्मुख भी जो नहीं कांपता रत्ती भर; प्यार चिरन्तन जलपोतों में ध्रुव तारे सा परिचित है, कथा अपरिचित जिसकी पर हैं परिचित अक्ष-दिशांतर. यह प्यार है और प्यार हुआ कब वक़्त के आधीन है, हाँ, गुलाबी गाल और ये रसीले होंठ पपड़ा जायेंगे; न काल-खण्डों में कभी टूटे, प्यार वह शालीन है, और प्रेमी प्रलय का आघात सहते, मंजिलें पा जायेंगे. यह गलत हो तो मुझे इसका नहीं अधिकार था, औ’ समझ लें न तो मुझमें न किसी में प्यार था. Last edited by rajnish manga; 20-11-2013 at 09:59 AM. |
20-11-2013, 10:19 AM | #164 |
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Re: इधर-उधर से
The Lord’s Prayer |
26-11-2013, 07:25 PM | #165 |
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Re: इधर-उधर से
ग़ज़ल
नाकाम दिल में ख्वाब जगाने लगी हवा Last edited by rajnish manga; 02-12-2013 at 11:25 AM. |
02-12-2013, 11:28 AM | #166 |
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Re: इधर-उधर से
अन्ना कैरेनिना : एक असाधारण किताब
ओशो का नजरिया [अपने अनेक विरोधाभासों के बीच विभिन्न विषयों पर ओशो की मूल्यवान टिप्पणियाँ उनके विचारक रूप की छवि प्रस्तुत करती है. टॉलस्टॉय के विश्व-प्रसिद्ध उपन्यास “अन्ना कैरेनिना” को लेकर की गयी उनकी टिप्पणी को नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है] लियो टॉलस्टॉय की अन्ना कैरेनिना बहुत खुबसूरत उपन्यास है। तुम हैरान होओगे कि मनपसंद किताबों में मैं उपन्यास को क्यों सम्मिलित कर रहा हूं। क्योंकि मैं दीवाना हूं। मुझे अजीबोगरीब चीजें अच्छी लगती है। अन्ना कैरेनिना मेरी प्रिय किताबों में एक है। मुझे याद है मैंने उसे कितनी बार पढ़ा है। यदि मैं सागर में डूब रहा होऊंगा और विश्व के लाखों उपन्यासों में से मुझे एक चुनना होगा तो मैं अन्ना कैरेनिना चुनूंगा। इस खूबसूरत किताब के साथ रहना सुंदर होगा। उसे बार-बार पढ़ना होगा, तो ही आप उसे महसूस कर सकते है। सूंघ सकते है। और स्वाद ले सकते है। असाधारण किताब है यह। लियो टॉलस्टॉय एक असफल संत रहा, जैसे महात्मा गांधी असफल संत रहे। लेकिन टॉलस्टॉय महान उपन्यासकार था। महात्मा गांधी ईमानदारी का शिखर बनने में सफल रहे और आखिर तक बने रहे। इस सदी में मैं किसी और आदमी को नहीं जानता जो इतना ईमानदार हो। जब वे लोगों को पत्र लिखते थे: योर्स सिंसयरली, तब वे सचमुच ईमानदार थे। जब तुम लिखते हो, ‘’सिंसयरली योर्स’’ तब तुम जानते हो, और हर कोई जानता है कि सब बकवास है। बहुत कठिन है। लगभग असंभव—वस्तुतः ईमानदार होना। लियो टॉलस्टॉय ईमानदार होना चाहता था। लेकिन हो न सका। उसने भरसक कोशिश की। मुझे उसकी कोशिशों से पूरी सहानुभूति है। लेकिन यह धार्मिक आदमी नहीं था। उसे कुछ और जन्म रूकना होगा। एक तरह से अच्छा है कि वह मुक्तानंद जैसा धार्मिक आदमी नहीं था। नहीं तो हम ‘’रिसरेक्शन, वॉर एंड पीस, अन्ना कैरेनिना, जैसी अत्यंत सुंदर एक दर्जन रचनाओं से वंचित रह जाते। Last edited by rajnish manga; 02-12-2013 at 11:36 AM. |
02-12-2013, 05:48 PM | #167 |
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Re: इधर-उधर से
अन्ना कैरेनिना : एक असाधारण किताब
(जीवन के शाश्वत , अबूझ रहस्यों और विरोधाभासों को सुलझाने का एक ललित प्रयास) अन्ना कैरेनिना रशियन समाज की एक संभ्रांत महिला की कहानी है। जो अनैतिक प्रेम संबंध जोड़कर अपने आपको बरबाद कर लेती है। इस उपन्यास में टॉलस्टॉय कदम-कदम पर यह दिखाता है कि समाज कैसे स्त्री और पुरूष के विषय में दोहरे मापदंड रखता है। अन्ना के सगे भाई ओब्लान्सकी के अनैतिक प्रेम संबंध होते है, और न केवल वह अपितु उसके स्तर के कितने ही पुरूष खुद तो पत्नि से धोखा करते है, लेकिन अपनी पत्नियों से वफादारी की मांग करते है। समाज चाहता है कि पत्नि अपने पति की बेवफाई को भूल जाये और उसे माफ कर दे। अन्ना कैरेनिना एक आकर्षक, करुणापूर्ण और गरिमामंडित महिला है। उसके संपर्क में आने वाले सभी लोग उसका समादर करते है। उससे अभिभूत है। अन्ना का करिश्मा सभी पुरूषों पर असर करता है। सिवाय उसके पति के। उनका विवाह प्रेम-विहीन है। उनका पति संगदिल पुरूष है जिसे सामाजिक दिखावे और अपनी पद-प्रतिष्ठा की फिक्र अधिक है। और अन्ना की भावनाओं और सुख दुःख की कम। अन्ना एक दहकती हुई आग है। उसमे साहस है, और वांछित सुख को पा लेने की हिम्मत भी। वह उच्च वर्ग की स्त्रियों की रीति और रिवाज को ताक पर रखकर एक सेना अधिकारी ब्रान्सकी के साथ प्रेम करने लगती है। दोनों एक बॉल डांस में मिलते है, और एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते है। इस अवैध प्रेम की राह पर निडरता से आगे बढ़कर अन्ना अपने प्रेम को अपने पति के आगे कबूल करती है। जब वह पति को छोड़कर ब्रान्सकी के साथ विदेश जाती है तब अपने बेटे से बिछुड़ जाती है। पति बेटे से कहता है कि उसकी मां मर गई। बेटे के जन्म दिन पर वह किसी तरह चोरी छुपे पहुँचती है लेकिन उसकी खुशी कुछ पल जी पाती है क्योंकि उसका पति फौरन उसे पकड़ लेता है और वहां से निकाल बाहर कर देता है। बड़े चाव से लाये हुए खिलौने भी वह अपने बच्चे को नहीं दे पाती है। पति अपने बेटे से कहता है, ‘’इस औरत ने इतना कुकर्म किया है कि वह उसे दुबारा नहीं देख पायेगा। वह बहुत बुरी औरत है।‘’ Last edited by rajnish manga; 02-12-2013 at 06:05 PM. |
02-12-2013, 05:51 PM | #168 |
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Re: इधर-उधर से
अन्ना पति से तलाक लेने के लिए तरसती है। जब उसे प्यार का इतना बड़ा सरोवर मिला है तो वह निर्दयी पति के साथ रूखी-सूखी जिंदगी क्यों बिताये? लेकिन उसका पति उसे तलाक देने से इन्कार कर देता है। अन्ना अपने प्रेमी ब्रान्सकी के साथ विवाह कर प्रतिष्ठित जीवन नहीं जी सकती। उसके पूर्व परिचित मित्र प्रियजन और समाज का प्रतिष्ठित वर्ग उसे व्यभिचारिणी कह उससे बचना चाहता है। यहां तक कि वह थियटर भी नहीं जा सकती। अन्ना को चारदीवारी में बंद रहकर, घुट-घुट कर अपना समय काटना पड़ता है। जब कि ब्रान्सकी मजे से समाज में घूमता फिरता है।
अन्ना अपने प्यार पर सब कुछ क़ुर्बान कर देती है—घर, बेटा, प्रतिष्ठा। इन हालातों का असर उसके दिमाग पर होता है और वह मानसिक रोग की शिकार हो जाती है। वह सदा भयभीत रहती है, चिड़चिड़ी और तनाव-ग्रस्त हो जाती है। रिश्ता तनावपूर्ण हो जाता है, और ब्रान्सकी के प्यार का झरना सूख जाता है। सब तरफ से असफल, हताश अन्ना स्वयं को बदनसीब समझने लगती है। और निराशा के गहन क्षण में अपने आपको ट्राम के नीचे झोंक देती है। मृत्यु के उपरांत भी समाज उसकी भर्त्सना ही करता है। ब्रान्सकी की मां उसके बारे में कहती है : ‘’वह बदज़ात औरत थी। इतनी विवश वासना। सिर्फ कुछ असाधारण करने के चक्कर में उसने अपना और दो शानदार पुरूषों का विनाश कर दिया।‘’ उसकी नन्हीं, ब्रान्सकी से पैदा हुई बेटी भी बाद में उसके पति के पास ही चली जाती है। अन्ना का अपराध इतना था कि उसने एक ऐसे पुरूष से प्रगाढ़ प्रेम किया जो उसका पति नहीं था। लेकिन रशिया के सुसंस्कृत, प्रतिष्टिथ समाज ने उसे ऐसा नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर दिया कि उससे उसे मृत्यु अधिक सार्थक मालूम हुई। टॉलस्टॉय ने यह उपन्यास उस समय लिखा जब वह रशियन समाज से वितृष्ण हो चुका था। उच्चवर्गीय समाज के नकली मूल्य, उनका पाखंड, उनका छिछोलापन, संस्कृति की गिरावट, उनका सबका सशक्त पारदर्शी चित्रण करने के साथ-साथ वह समाजिक समस्याओं का भी वर्णन करता है। जैसे किसान और जमींदार, स्त्री और पुरूष का भेदभाव, अन्ना कैरेनिना की मृत्यु की घटना के सहारे वह जीवन और मृत्यु की मूलभूत पहेली की दार्शनिकता भी दिखाना चाहता था। अन्ना कैरेनिना रशियन साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय नायिकाओं में से एक है। उसका अभिभूत कर देनेवाला सौंदर्य इस गहरे और समृद्ध उपन्यास के वातास को धेरे रहता है। टॉलस्टॉय के अनुसार यह जीवन के शाश्वत, अबूझ और विरोधाभासों को सुलझाने का एक ललित प्रयास है। उपन्यास का प्रारंभ जिस वक्तव्य से होता है। वह वक्तव्य ही टॉलस्टॉय की गहरी अनंतदृष्टि का प्रतीक है। ‘’सारे सुखी परिवार एक जैसे होते है; लेकिन हर दुःखी परिवार अपने ही ढंग से दुखी होता है।‘’ यह उपन्यास जिस काल में लिखा गया —1875—77, उसमे समय की गति बहुत धीमी थी। लोगों के पास बहुत वक़्त था। इसलिए 804 पृष्ठों की प्रदीर्घ किताब पढ़ना उनके लिए बड़ा मुश्किल मामला नहीं था। आज की आपाधापी में जो इतना लंबा कागजी सफर करने को तैयार हो, वही इस उपन्यास के संपन्न ताने बाने का आनंद ले सकता है। < > Last edited by rajnish manga; 02-12-2013 at 07:04 PM. |
06-12-2013, 09:10 PM | #169 |
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Re: इधर-उधर से
ग़ज़ल
दोष पे अपने बार उठाये फिरते हैं हम कितने आज़ार उठाये फिरते हैं प्रेम नगर के वासी काँटों के बन में फूलों का अम्बार उठाये फिरते हैं तन के उजले मन के काले हैं जो लोग नफरत की दीवार उठाये फिरते हैं दीन धरम के नाम पे कौमों के दुश्मन दोधारी तलवार उठाये फिरते हैं ‘नूर’ मिले आँगन में वो तो रात गये पायल की झंकार उठाये फिरते हैं (नूर मुनीरी) |
11-12-2013, 06:56 PM | #170 |
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Re: इधर-उधर से
ग़ज़ल
जा इजाज़त है दूरियां रख जा अपने होठों पे सिसकियाँ रख जा चुभ गयी तो न अश्क ठहरेंगे टूटे ख्वाबों की किरचियाँ रख जा तू अगर साथ रह नहीं सकता मेरे हिस्से की हिचकियाँ रख जा ज़िन्दगी तो मुझे भी जीनी है कुछ तो अपनी निशानियाँ रख जा चांद निकले तो मुंह छुपाने को अपनी जुल्फों की बदलियाँ रख जा. ज़र्द फूलों का है बदन उन पर अपने होठों की सुर्खिया रख जा (अतीक़ इलाहाबादी) |
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