13-01-2013, 01:35 PM | #1 |
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आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
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13-01-2013, 01:37 PM | #2 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
कुम्भ मेला पृथ्वी पर सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव है । यह प्रत्येक १२वें वर्ष पवित्र गंगा, यमुना एवं सरस्वती के संगम तट पर आयोजित किया जाता है । मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन, और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है । इलाहाबाद में संगम के तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है । इस मेले में लाखो की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है । ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है । संगम कुम्भ और अर्धकुम्भ के दौरान नदी के किनारे विशाल शिविर लगाये जाते हैं ।
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13-01-2013, 01:39 PM | #3 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
कुंभ पर्व के आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुंभ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है। इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हे सारा वृतान्त सुनाया। तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी।
भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर संपूर्ण देवता दैत्यों के साथ संधि करके अमृत निकालने के यत्न में लग गए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा। तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया। अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था। देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं। अतएव कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है। जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है।
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13-01-2013, 01:39 PM | #4 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
स्नान के लिए कुम्भ में जो दिन विशेषकर हैं वो इस प्रकार हैं
मकर संक्रांति - 14th जनवरी 2013 पौष पूर्णिमा - 27th जनवरी 2013 एकादशी स्नान - 6th फरवरी 2013 मौनी अमावस्या - 10th फरवरी 2013 बसंत पंचमी - 15th फरवरी 2013 रथ सप्तमी - 17th फरवरी 2013 माघी पूर्णिमा - 25th फरवरी 2013 भीष्म एकादशी - 18th फरवरी 2013 महा शिवरात्रि - 10th मार्च 2013
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13-01-2013, 01:40 PM | #5 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
इलाहाबाद का परिचय
इलाहाबाद अपने प्राचीन नाम प्रयाग से भी विख्यात है। यह भारत का दूसरा सबसे पुराना नगर है जो उत्तर प्रदेश में स्थित है। भारत के पवित्र ग्रंथों में इस नगर का उल्लेख है। यह नगर गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम के लिए भी जाना जाता है जिसके लिए कई पर्यटक यहाँ आते हैं। कुम्भ मेले की मेजबानी के अलावा यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है जो भारत की समृद्वि को भी परिभाषित करता है। कुम्भ के दौरान या किसी और समय इलाहाबाद किले, पातालपुरी मंदिर, अशोक स्तम्भ, अक्षय वट, हनुमान मंदिर, शंकर विमान मंडप, मनकामेश्वर मंदिर, मिन्टो पार्क, स्वराज भवन, आनंद भवन, जवाहर तारामंडल, इलाहाबाद संग्रहालय, कंपनी बाग़, खुसरो बाग़ और मेमोरियल हाल आदि आकर्षण का केन्द्र हैं। इन सभी स्थानों का आसन मार्ग आप इलाहाबाद नक्शे की मदद से ढूँढ सकते हैं। इसके माध्यम से बैंक, एटीएम, अस्पताल आदि सार्वजनिक सुविधाओं का पता भी लगाया जा सकता है। प्रयाग इलाहाबाद में आर्यों द्वारा बनाया गया एक बहुत प्राचीन स्थल है जो पवित्र गंगा और यमुना के मिलन स्थल के पास स्थित है । यह नगर पूरे विश्व में सबसे बड़े धार्मिक स्थल के रूप में विख्यात है। हर 12 वर्ष पर संगम हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है । यह ऐतिहासिक नगर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का केंद्र और नेहरु परिवार का घर रहा है । आज इलाहाबाद तेजी से वाणिज्यिक और प्रशासनिक नगर के रूप में आगे बढ़ रहा है ।
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13-01-2013, 01:41 PM | #6 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
कुम्भ मेला 2001 44 दिनों के लिए आयोजित था, जबकि कुम्भ 2013 कुल 55 दिनो के लिए होगा।
वर्ष 2001 में देश की कुल जनसंख्या 102.87 करोड थी, जबकि वर्ष 2011 में देशो की जनसंख्या 121.02 करोड होने का अनुमान है। राज्य की जनसंख्या वर्ष 2001 में 16.61 करोड़ थी, जो वर्ष 2011 में 19.96 करोड़ होने का अनुमान है। नगर निगम, इलाहाबाद की जनसंख्या वर्ष 2001 में 9.75 लाख थी, जो वर्ष 2011 में 12.47 लाख होने का अनुमान है।
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13-01-2013, 01:43 PM | #7 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
प्रयाग के मंदिर
ऋग वेद के समय से ही प्रयाग को सबसे पवित्र तीर्थस्थान माना जाता है ।इसका मुख्य कारण यहाँ पर गंगा यमुना के संगम का होना है ।ऐसा माना जाता है कि संगम के किनारे मृत्यु होने से मानव जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है ।महाभारत, अग्निपुराण,पदमपुराण और सूर्यपराण में भी प्रयाग को पवित्र तीर्थस्थान माना गया है ।विनय पत्रिका में ऐसा उल्लेख किया गया है कि गौतम बुद्ध ने पराया की यात्रा ४५० ईसा पूर्व में की थी । भारद्वाज आश्रम भारद्वाज आश्रम कोलोनगंज इलाके में स्थित है ।यहाँ ऋषि भारद्वाज ने भार्द्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित किया था, और इसके अलावा यहाँ सैकड़ों मूर्तियांहैं उनमें से महत्वपूर्ण हैं: राम लक्ष्मण, महिषासुर मर्दिनी , सूर्य, शेषनाग, नर वराह । महर्षि भारद्वाज आयुर्वेद के पहले संरक्षक थे । भगवान राम ऋषि भारद्वाज के आश्रम में उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आये थे । आश्रम कहाँ था यह अनुसंधान का एक मामला है, लेकिन वर्तमान में यह आनंद भवन के पास है ।यहाँ भी भारद्वाज, याज्ञवल्क्य और अन्य संतों, देवी - देवताओं की प्रतिमा और शिव मंदिर है । भारद्वाज वाल्मीकि के एक शिष्य थे ।यहाँ पहले एक विशाल मंदिर भी था और पहाड़ के ऊपर एक भरतकुंड था ।
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13-01-2013, 01:43 PM | #8 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
नाग वासुकी मंदिर
यह मंदिर संगम के उत्तर में गंगा तट पर दारागंज के उत्तरी कोने में स्थित है । यहाँ नाग राज, गणेश, पार्वती और भीष्म पितामाह की एक मूर्ति हैं ।परिसर में एक शिव मंदिर है।नाग- पंचमी के दिन एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। मनकामेश्वर मंदिर यह मिंटो पार्क के पास यमुना नदी के किनारे किले के पश्चिम में स्थित है । यहाँ एक काले पत्थर की शिवलिंग और गणेश और नंदी की प्रतिमाएं हैं । हनुमान की भव्य प्रतिमा और मंदिर के पास एक प्राचीन पीपल का पेड़ है । यह प्राचीन शिव मंदिर इलाहाबाद के बर्रा तहसील से 40 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है । शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच एक ८० फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है । कहा जाता है कि शिवलिंग ३.५ फुट भूमिगत है और यह भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया था । यहाँ कई विशाल बरगद के पेड़ और मूर्तियाँ हैं ।
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13-01-2013, 01:44 PM | #9 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
पड़ला महादेव
यह फाफामऊ सोरों तहसील के उत्तर पूर्व में स्थित है ।यह पूरी तरह से पत्थर से निर्मित है और यहाँ कई मूर्तियाँ हैं । यहाँ शिवरात्रि और फाल्गुन के महीने में एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है । श्रृंगवेरपुर यह सोरांव तहसील में इलाहाबाद - लखनऊ राजमार्ग पर इलाहाबाद से ३३ किमी की दूरी पर स्थित है। इसका आधिकारिक नाम सीगरौर है । यह श्रृंगी ऋषि का आश्रम था ।यहाँ श्रृंगी ऋषि और शांता देवी का एक मंदिर है । निषाद राजा गुह के किले के अवशेष भी यहां हैं। राम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या से निर्वासन के समय कुछ देर के लिए यहाँ ठहरे थे और केवट से नाव से गंगा नदी पार करने के लिए पूछा था । कई धार्मिक ग्रंथों और दस्तावेजों में श्रृंगवेरपुर का वर्णन मिलता है । यह संभवत: सूरज की पूजा का एक केंद्र था । ललिता देवी मंदिर यह मीरपुर इलाके में स्थित है और १०८ फुट ऊँचा है । मंदिर परिसर में एक प्राचीन पीपल का पेड़ और कई मूर्तियां हैं ।इसे सिद्ध ५१ शक्तिपीठ के बीच में गिना जाता है ।
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13-01-2013, 01:45 PM | #10 |
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Re: आइये जाने कुम्भ मेला के बारे में।
लाक्ष्य गृह
यह कहा जाता है कि कौरव राजा दुर्योधन ने पांडवों को जाल में फसाने और उन्हें समाप्त करने के लिए इसे बनाया था हालांकि, विदुर, जो कि एक गुप्त द्वार से भाग निकले थे उन्होंने पांडवों को सतर्क कर दिया था। यह गंगा नदी के तट पर हंडिया के ६ किमी दक्षिण में स्थित है । अलोपी देवी मंदिर यह प्राचीन मंदिर अलोपीबाग दारागंज इलाके के पश्चिम में स्थित है ।मंदिर के गर्भगृह में एक मंच है वहाँ एक रंग का कपड़ा है ।भक्त यहाँ श्रद्धा का भुगतान करते हैं । यह शक्तिपीठों में से एक कहाँ जाता है और एक बड़े मेले का आयोजन नवरात्रि के दौरान किया जाता है । वहाँ भगवान शिव और शिवलिंग की एक मूर्ति है । तक्षकेश्वर नाथ तक्षकेश्वर इलाहाबाद शहर के दक्षिण में यमुना के तट पर दरियाबाद इलाके में स्थित भगवान शंकर का मंदिर है । यमुना नदी से थोड़ी दूर तक्षक कुंड है । ऐसी कथा प्रचलित है कि तक्षक नागिन भगवान कृष्ण द्वारा पीछा करने पर यहाँ आश्रय लिया था। यहाँ कई लिंग और बहुत सी मूर्तियाँ हैं । इसके अलावा हनुमान जी की भी मूर्ति है ।
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