05-07-2013, 10:15 AM | #1 |
Diligent Member
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जल
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . जल आये जीवन है मिलता, जल जाये तो जल जातेँ हैँ जल से ये धरती है उर्वर, मीठे मीठे फल पाते हैँ जल ही तो पानी रखता है, जब पाहुन घर मेँ आते हैँ जल की महिमा है ही ऐसी, गुन जिसके पौधे गाते हैँ रचना - आकाश महेशपुरी . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश |
06-07-2013, 07:10 PM | #2 | |
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Re: जल
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यमक अलंकार का सुन्दर प्रयोग ... आभार बन्धु।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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