26-02-2014, 04:55 PM | #1 |
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कुण्डलिनी (नव कुण्डलिया छन्द)
॰ ॰ ॰ कभी शाम जैसी लगे, और कभी यह भोर। कुण्डल सी है जिन्दगी, सुख-दुख के ना छोर। सुख-दुख के ना छोर, चार दिन का यह जीवन। पतझड़ का भी दौर, कभी बन जाता सावन।। कुण्डलिनी- आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 9919080399 |
26-02-2014, 05:25 PM | #2 |
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Re: कुण्डलिनी (नव कुण्डलिया छन्द)
परिभाषाओं के पश्चात् छंद का अत्यंत सुन्दर उदाहरण.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
03-03-2014, 06:31 PM | #3 |
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Re: कुण्डलिनी (नव कुण्डलिया छन्द)
परिभाषाओं के पश्चात् छंद का अत्यंत सुन्दर उदाहरण.
सादर धन्यवाद् आदरणीय रजनीश मांगा जी! |
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