28-12-2010, 01:25 PM | #111 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
सोमवार की कथा बहुत समय पहले एक नगर में एक धनाढ्य व्यापारी रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान करते थे। इतना सब कुछ होने पर भी वह व्यापारी अंतर्मन से बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था। दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु के बाद उसके इतने बडे़ व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा!
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28-12-2010, 01:25 PM | #112 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-उपासना किया करता था। सायंकाल को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वतीजी ने भगवान शिव से कहा- 'हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। कितने दिनों से यह नियमित सोमवार का व्रत और पूजा कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।
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28-12-2010, 01:25 PM | #113 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
भगवान शिव ने मुस्कराते हुए कहा- 'हे पार्वती! इस संसार में सबको उसके कर्म के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। प्राणी जैसा कर्म करते हैं, उन्हें वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसके बावजूद पार्वतीजी नहीं मानीं। उन्होंने आग्रह करते हुए कहा- 'नहीं प्राणनाथ! आपको इस व्यापारी की इच्छा पूरी करनी ही पडे़गी। यह आपका अनन्य भक्त है। प्रति सोमवार आपका विधिवत व्रत रखता है और पूजा-अर्चना के बाद आपको भोग लगाकर एक समय भोजन ग्रहण करता है। आपको इसकी पुत्र-प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करनी ही होगी।
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28-12-2010, 01:25 PM | #114 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
पार्वती का इतना आग्रह देखकर भगवान शिव ने कहा- 'तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूँ, लेकिन इसका पुत्र 16 वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा। उसी रात भगवान शिव ने स्वप्न में उस व्यापारी को दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और उसके पुत्र के 16 वर्ष तक जीवित रहने की बात भी बताई।
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28-12-2010, 01:25 PM | #115 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
भगवान के वरदान से व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता ने उस खुशी को नष्ट कर दिया। व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ महीने पश्चात उसके घर अति सुंदर पुत्र-रत्न ने जन्म लिया। पुत्र जन्म से व्यापारी के घर में खुशियाँ भर गईं। बहुत धूमधाम से पुत्र-जन्म का समारोह मनाया गया। लेकिन व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था। यह रहस्य घर में किसी को नहीं मालूम था। विद्वान ब्राह्मणों ने उसके पुत्र का नाम अमर रखा।
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28-12-2010, 01:26 PM | #116 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
जब अमर 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे वाराणसी भेजने का निश्चय हुआ। व्यापारी ने अमर के मामा को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ। अमर अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्त करने के लिए चल दिया। रास्ते में जहाँ भी अमर और उसके मामा रात्रि विश्राम के लिए ठहरते, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे।
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28-12-2010, 01:26 PM | #117 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
लंबी यात्रा के बाद अमर और उसके मामा एक नगर में पहुँचे। उस नगर के राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक ऑंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे इस बात का भय सता रहा था कि राजा को इस बात का पता चलने पर कहीं वह विवाह से इनकार न कर दे। इससे उसकी बदनामी होगी।
वर के पिता ने अमर को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लडके को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूँगा और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊँगा।
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28-12-2010, 01:26 PM | #118 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
वर के पिता ने इसी संबंध में अमर और उसके मामा से बात की। मामा ने धन मिलने के लालच में वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। आमर को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से उसका विवाह कर दिया गया। राजा ने बहुत-सा धन देकर राजकुमारी को विदा किया।
अमर जब लौट रहा था तो सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी की ओढनी पर लिख दिया- 'राजकुमारी, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूँ। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पडे़गा, वह काना है।
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28-12-2010, 01:26 PM | #119 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
जब राजकुमारी ने अपनी ओढनी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। राजा ने सब बातें जानकर राजकुमारी को महल में रख लिया। उधर अमर अपने मामा के साथ वाराणसी पहुँच गया। अमर ने गुरुकुल में पढ़ना शुरू कर दिया।
जब अमर की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को अमर अपने शयनकक्ष में सो गया। शिव के वरदान के अनुसार शयनावस्था में ही अमर के प्राण-पखेरू उड़ गए। सूर्योदय पर मामा अमर को मृत देखकर रोने-पीटने लगा। आस-पास के लोग भी एकत्र होकर दु:ख प्रकट करने लगे।
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28-12-2010, 01:27 PM | #120 |
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Re: हमारे व्रत त्यौहार
मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- 'प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट अवश्य दूर करें। भगवान शिव ने पार्वतीजी के साथ अदृश्य रूप में समीप जाकर अमर को देखा तो पार्वतीजी से बोले- 'पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।
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