28-09-2015, 01:49 AM | #1 |
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"फूलों से "
कहीं तू रचता दुलहन की मेहंदी में कहीं सजता तू द्दुल्हे के सेहरे में कहीं बन जाता तू शुभकामनाओं का प्रतिक तो कहीं तुझे देख खिल उठती तक़दीर कहीं कोई इजहारे मुहब्बत करता जरिये से तेरे तो कहीं कोई खुश हो जाता मजारे चादर बनाकर कहीं तेरे रंग से रंग भर जाता महफ़िलों में तो कहीं तू सुखकर बीती यादें वापस ले आता जब पड़ा होता बरसो किताबों के पन्नो में सूखने के बाद भी हर दास्ताँ ताज़ा कर जाता . तुझे देख याद आजाता किसी को अपना प्यारा सा बचपन तो कहीं तेरी कलियाँ दिखला देतीं खुशबुओं के मंजर कभी तो तू भी रोता तो होगा क्यूंकि, जब भगवन पर तू चढ़ाया जाने वाला, कभी मुर्दे पर माला बनकर सजता होगा शायद फूलों को बनाकर ईशवर ने इंसा को, दिया सन्देश ये जीवन में हर पल न देना, साथ सिर्फ खुशियों का तुम लगा लेना ग़म को भी कभी सीने से और , किसी दुखियों के काम आ जाना जैसे फुल कहीं भी जाये वो बस हर पल मुस्कुराये हर पल मुस्कुराये यहाँ तक की जब बिछड़े वो अपने पेढ से फिर भी वो ओरो की शोभा बढ़ाये सदा मुस्कुराये इंसा के मन को भाये .. |
28-09-2015, 08:16 AM | #2 |
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Re: "फूलों से "
बहुत ही सुंदर भावों का निरुपण किया गया है। धन्यवाद पुष्पाजी।
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28-09-2015, 02:35 PM | #3 |
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Re: "फूलों से "
एक सुंदर व प्रभावशाली कविता फोरम पर शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. प्रतिदिन सुबह शाम अपने विविध रंगों व रूपों में हमारे सामने आने वाले फूलों के माध्यम से आपने जीवन से जुड़े बहुत महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं. काश हम सब इन संकेतों को समझ कर इन्हें अपने व्यवहार में उतार सकते. आपने इस देश के पुराने फ़लसफ़े को एक नये अंदाज़ में समझाने का प्रयास किया है. उपरोक्त पक्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है. ये कविता के मूल भाव को प्रतिबिंबित करती हैं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
28-09-2015, 07:13 PM | #4 |
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Re: "फूलों से "
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28-09-2015, 07:21 PM | #5 |
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Re: "फूलों से "
[QUOTE=rajnish manga;555031][size=3]एक सुंदर व प्रभावशाली कविता फोरम पर शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. प्रतिदिन सुबह शाम अपने विविध रंगों व रूपों में हमारे सामने आने वाले फूलों के माध्यम से आपने जीवन से जुड़े बहुत महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं. काश हम सब इन संकेतों को समझ कर इन्हें अपने व्यवहार में उतार सकते. आपने इस देश के पुराने फ़लसफ़े को एक नये अंदाज़ में समझाने का प्रयास किया है. उपरोक्त पक्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है. ये कविता के मूल भाव को प्रतिबिंबित करती हैं.
हार्दिक आभार सहित धन्यवाद बहुत बहुत धन्यवाद भाई , जी भाई इस कविता का लिखने का मंतव्य यही था मेरा , की इन्सान चाहे कितना भी मुश्किलों में क्यूँ न हो यदि धैर्य रखकर साहस से उसका सामना करे तो वो भी देवताओं के सर चढाने वाले फुल जैसा बन जायेगा फुल के दर्द को महसूस किया है हमने पर ये भी पाया है काँटों के बिच रहकर भी वो न अपनी सुन्दरता खोते हैं न रंग खोते हैं. |
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