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26-08-2013, 11:25 PM | #1 |
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मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?
मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?
एक सिद्ध पुरुष थे. उनके भक्त उन्हें ईश्वर का अवतार मानते. वे हवा में हाथ उठाते और उनके हाथ में बहुत आश्चर्यजनक रूप से वस्तुएं प्रगट हो जातीं जैसे फूल, फल, हीरे, विदेशी घड़ियाँ और करेंसी नोट इत्यादि. कुछ लोग ख़ुफ़िया तौर पर सिद्धपुरुष के जीवन की छानबीन सूक्ष्मता से कर रहे थे. उन लोगों को सिद्धपुरुष के बहुत से क्रिया-कलाप रहस्यमय प्रतीत हए. अन्ततः, ख़ुफ़िया रिपोर्टों के प्रकाश में सिद्धपुरुष के आश्रम पर रेड पड़ गयी. वहां बहुत से तस्कर भाई और उनका तस्करी का कुछ माल बरामद हुआ. भक्तों के साथ सिद्धपुरुष को भी हिरासत में ले लिया गया. अखबारों में उनके कारनामों के बारे में पढ़ पढ़ कर उनके अधिकतर भक्त और उन्हें अवतार मानने वाले सज्जन बहुत लज्जा का अनुभव करते. सोचते – क्या समझा था, क्या निकला. पुलिस ने एक सप्ताह का रिमांड ले लिया. सिद्धपुरुष किसी से कुछ नहीं बोले. रात में उन्हें पुलिस लॉक-अप में ही रखा गया. अगली सुबह तहलका मच गया. सिद्धपुरुष अपने सैल में नहीं थे. गेट पर ज्यों का त्यों ताला लटका हुआ था. कहीं पर सींखचे काटे जाने का भी चिन्ह नहीं था. फिर क्या हुआ? धरती निगल गई या आसमान खा गया? क्या वे वास्तव में सिद्ध पुरुष थे? उनके भक्त पुनः स्वयं को लज्जित अनुभव कर रहे थे – क्या समझा था, क्या निकला? ** |
26-08-2013, 11:42 PM | #2 |
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Re: मेरी कहानियाँ / क्या समझा था क्या निकला?
श्रेष्ठ लघुकथा है, मित्र। यह अनेक सन्देश देती है, लेकिन मैं इससे जो सन्देश ग्रहण कर रहा हूं, वह यह है कि आंखों-देखी, कानों सुनी बात सदैव सच नहीं होती। किसी भी बात अथवा घटना को परखने के बाद ही, उस पर यकीन करें। इस श्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए धन्यवाद।
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27-08-2013, 10:31 PM | #3 |
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मेरी कहानियाँ / गलती की सजा
मेरी कहानियाँ / गलती की सजा
विजिलेंस वालों ने रिश्वत लेते आखिर उसे रंगे हाथों पकड़ ही लिया. फ़ौरन चार्जशीट और सस्पेंशन ऑर्डर आ गये. पकडे गये कर्मचारी की सारे विभाग में निंदा हो रही थी. हैड साहब कह रहे थे – “मुझे सत्रह साल हो गये. मैं भी खाता हूँ, कौन नहीं खाता? लेकिन मजाल है किसी ने आज तक मुझ पर उंगली उठाई हो. एक ये हैं कि ... “ कैशियर ने समर्थन किया, “अरे हैड साहब, वाजिब खायेगा तो पचेगा, गैर-वाजिब खायेगा तो कैसे चलेगा? ऐसे ही लोग डिपार्टमेंट की बदनामी करवाते है.” किसी ने रोक कर कहा, “यार उस बेचारे की तो नौकरी खतरे में है और तुम उसी को कोस रहे हो.” इस पर एक मोटे से क्लर्क ने जैसे निंदा प्रस्ताव का उपसंहार करते हए कहा, “जो जैसा करेगा वो वैसा ही भरेगा भाई.” |
30-07-2014, 10:32 AM | #4 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
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30-07-2014, 10:36 AM | #5 |
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31-07-2014, 11:23 PM | #6 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
पंचतंत्र की अन्य कहानियों की तरह इस कहानी से भी शिक्षा व प्रेरणा ली जा सकती है. कहानी पढ़वाने के लिये धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
23-08-2014, 12:10 AM | #7 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
पूर्वाभास
कथाकार: रजनीश मंगा उसका सारा शरीर दर्द कर रहा था. ओह – ओह – के अस्फुट स्वरों के साथ उसने अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर बिजली का स्विच ऑन कर कमरा रौशन कर दिया. अपने मन में व्याप्त भय को उसने काबू में करने का प्रयत्न किया और अपने हाथ को अपने गले के चारों ओर इस प्रकार फेरने लगी जैसे अपना पसीना पोंछ रही हो. थोडा सा उठ कर बैठी और तकिये को दीवार के सहारे खड़ा करके उसके सहारे अपनी पीठ टेक दी. तनिक निश्चिंतता से और अपनी सिहरन को काबू में करते हुये उसने सामने के दरवाजे को देखा. फिर वही दृष्टि घुमा कर खिड़की का मुआयना करने लगी. देखा लोहे की ग्रिल पूर्ववत लगी हुई थी. श्वांस की गति सामान्य हो चली थी. इसी प्रकार बैठे हुये वह सीलिंग फैन को टकटकी लगा कर देखने लगी. कितना अजीब स्वप्न है यह. पिछले कई दिनों से सोते हुये यह स्वप्न दिखाई दे जाता है. उफ़्फ़ ... कितना भयानक दृश्य है. बादल गरजने शुरू होते हैं .. हल्के .. हल्के और फिर कुछ ही क्षण के बाद उस पर बिजली टूट कर गिरती है ... और ... घबराहट के मारे उसकी नींद उचट जाती है. वह जाग जाती है. >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
23-08-2014, 12:11 AM | #8 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
उसने सुन रखा था कि कोई कोई स्वप्न भविष्य के बारे में संदेश देता है और व्यक्ति को सचेत करता है. बहुत से स्वप्न आने वाली घटनाओं का विवरण भी दे जाते हैं. लेकिन वह इस स्वप्न के बारे में कुछ अनुमान न लगा पा रही थी. बस स्वप्न के बाद जब उसकी नींद खुलती तो वह अपने आप को पसीने में तर-ब-तर पाती और सामान्य होने पर सोचने लगती कि क्या यह स्वप्न भविष्य के किसी संभावित खतरे के प्रति संकेत तो नहीं?
न जाने क्या सोच कर वह मुस्कुरा पड़ी. एक घुटी हुई और विवश मुस्कान जिसके कारण उसके होंठ भी एक विशेष प्रकार से मुड़ गये थे. सोचने लगी ... अब उसे पूर्वानुमानों से और भविष्यवाणियों से क्या सरोकार हो सकता है. कोई खतरा शेष नहीं. जो होना था वह तो हो चुका है. बिजली गिरनी थी सो गिर गयी. उसका तमाम अस्तित्व जैसे इस आग में भस्म हो गया था. इस आग ने अपना काम कर दिया. अब कौन सा वज्रपात होना बाकी रह गया है. हुंह ... वह भी क्या ले बैठी है? जो तस्वीर फट चुकी है उसमे से अब वह अपनी आँखे क्यों ढूंढ रही है. बार बार सोचने के बावजूद वह मानती थी कि इस सारे घटनाक्रम में उसका कहीं कोई दोष नहीं था. कभी उसे ख़याल आता कि मरुभूमि में भी तो कुछ फूल खिला करते हैं बशर्ते ... तभी वह इन ख्यालों को झटक कर परे कर देती. नहीं वह कोई शर्त नहीं रखेगी ज़िन्दगी जीने के लिये. जीवन जीने के लिये होता है न कि ढोने के लिये. सोचती ... ‘मैंने यह चुनौती स्वीकार की है तो निभाउंगी भी ... मुझे जीना है और अपने आत्म-सम्मान को अक्षुण्ण रखते हुये जीना है... कम व्हाट मे... >>>
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23-08-2014, 12:12 AM | #9 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
वह अपने होने वाले बच्चे के लिये जियेगी. वह उसे ऐसे संस्कार देगी जिससे वह एक अच्छा व सच्चा इंसान बन सके, भरपूर जीवन जी सके, उसका अर्थ समझ सके व देश और समाज के लिये कुछ कर सके.
वह असंतुष्ट नहीं है. तीन वर्ष तक वह अपने पति सिद्धांत के साथ रही, सुखी रही. पति सरकारी नौकरी में थे और ऊँचे पद पर काम कर रहे थे. स्वभाव मधुर और परिवार से जुड़े हुये. वह स्वयं भी किसी बात में कम नहीं थी. बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में काम कर रही थी. दोनों तन मन से एक दूसरे को चाहते थे और एक दूसरे पर जान छिड़कते थे. एक पल की जुदाई भी उन्हें बर्दाश्त न होती थी. घर में किसी प्रकार की कोई कमीं न थी. उन दोनों के मध्य किसी मन-मुटाव या किसी प्रकार की ग़लतफ़हमी के लिये कोई स्थान नहीं था. इस बीच वह और उसके पति अपने एक परिचित परिवार में जाया करते थे. पति मिश्रा जी को अंकल कहा करते थे. उनके अलावा उनके घर में उनकी पत्नी तथा दो पुत्रियाँ, एक 19 वर्ष की नेहा तथा दूसरी थी पल्लवी जिसकी उम्र 15 वर्ष के लगभग थी. उसे महसूस हुआ कि उसके पति मिश्रा जी की बड़ी लड़की की ओर आकर्षित हो रहे थे. वह लड़की भी उनकी बातों मे रूचि लेती थी. देखते ही देखते उन दोनों का परस्पर व्यवहार सामान्य से कहीं आगे बढ़ चला था. >>>
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 23-08-2014 at 10:37 PM. |
23-08-2014, 10:38 PM | #10 |
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Re: मेरी कहानियाँ!!!
सिद्धांत का उस परिवार में आना जाना बढ़ गया था. वह उस परिवार को पिकनिक पर या घुमाने के लिये ले जाने लगा. शुरू में तो वह शशि को भी साथ ले जाया करता लेकिन बाद में उसे अवॉयड करने लगा. अब वह अकेले ही उन्हें गाड़ी पर ले जाने लगा. ऐसा प्रतीत होता मानो उस परिवार को भी सिद्धांत की निकटता से कोई परेशानी नहीं थी. सिद्धांत और नेहा की नजदीकियाँ बढ़ती रहीं और उनके आपसी सम्बन्ध फलने-फूलने लगे थे. हाँ, बाहरी तौर पर शशि के प्रति सिद्धांत के व्यवहार में कोई खास अंतर नहीं आया था लेकिन शशि का अंतर्मन इस परिवर्तन को महसूस करने लगा था.
शशि लाख सोचती कि इस तरफ अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए लेकिन उसके मन में कडवाहट भरती चली गयी. वह सब देखती रही, सहती रही. अन्दर ही अन्दर घुटने लगी थी. अंत में, जो कुछ दिन पूर्व संभावित लगा था, वह हो गया. जल्द ही उनकी बातें, बहसें, कहा-सुनी मर्यादा की सीमा से बाहर निकल गये. पडौसियों तक को यह लगने लगा कि सिद्धांत और शशि के बीच सब कुछ ठीक होने के अतिरिक्त सब कुछ है. उनके आपसी सम्बन्ध कटुता से भर गये हैं. बात इतनी बिगड़ गई कि शशि ने अपने पति का घर छोड़ दिया और कुछ दिन के लिये अपने माता-पिता के यहाँ चली आयी. >>>
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