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Old 23-06-2011, 11:26 AM   #131
vijaysr76
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स्वाभिमानी बालक
तब महात्मा गांधी आगा खां महल में नजरबंद थे। उनके मित्र रोज उनके लिए कुछ न कुछ भेंट लाते थे। एक दिन की बात है कि एक 10-12 साल का बालक, जो कि मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए था, आगा खां महल में पहुंचा और बापू को अपने हाथ से दो-तीन फल देने की जिद करने लगा। बापू ने उससे फल ले लिए और उसके बदले बच्चे को कुछ पैसे देने चाहे। इस पर उस नन्हे बालक ने जोर से कहा- 'बापू मैं भिखारी नहीं हूं, दिन भर मजदूरी कर मैंने जो कुछ पैसे बचाएं हैं उन्हीं से ये फल खरीद कर लाया हूं।' बालक के ऐसे स्वाभिमान भरे शब्दों को सुनना था कि बापू प्रसन्नता से बोल पड़े- 'धन्य है वह मां जिसने तुम जैसे बालक को जन्म दिया। पैसे वाले मित्रों के फल तो मुझे रोज ही मिलते रहते हैं, लेकिन असली मीठे फल तो मुझे आज ही मिले हैं।' और वह बालक था स्वाभिमान का पुजारी डॉ. राम मनोहर लोहिया, जिसने बापू के आदर्शों पर चलकर अपना सब कुछ देश के लिए न्यौछावर कर दिया।
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Old 23-06-2011, 10:16 PM   #132
The ROYAL "JAAT''
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स्वाभिमानी बालक
तब महात्मा गांधी आगा खां महल में नजरबंद थे। उनके मित्र रोज उनके लिए कुछ न कुछ भेंट लाते थे। एक दिन की बात है कि एक 10-12 साल का बालक, जो कि मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए था, आगा खां महल में पहुंचा और बापू को अपने हाथ से दो-तीन फल देने की जिद करने लगा। बापू ने उससे फल ले लिए और उसके बदले बच्चे को कुछ पैसे देने चाहे। इस पर उस नन्हे बालक ने जोर से कहा- 'बापू मैं भिखारी नहीं हूं, दिन भर मजदूरी कर मैंने जो कुछ पैसे बचाएं हैं उन्हीं से ये फल खरीद कर लाया हूं।' बालक के ऐसे स्वाभिमान भरे शब्दों को सुनना था कि बापू प्रसन्नता से बोल पड़े- 'धन्य है वह मां जिसने तुम जैसे बालक को जन्म दिया। पैसे वाले मित्रों के फल तो मुझे रोज ही मिलते रहते हैं, लेकिन असली मीठे फल तो मुझे आज ही मिले हैं।' और वह बालक था स्वाभिमान का पुजारी डॉ. राम मनोहर लोहिया, जिसने बापू के आदर्शों पर चलकर अपना सब कुछ देश के लिए न्यौछावर कर दिया।

बच्चो के लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक सूत्र है भाई विजय आगे भी एसी कहानी भेजते रहे धन्यवाद
__________________
'' हम हम हैं तो क्या हम हैं '' तुम तुम हो तो क्या तुम हो '
आपका दोस्त पंकज










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Old 24-06-2011, 11:15 AM   #133
vijaysr76
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दानवीर
एक दिन अर्जुन ने कृष्ण से कहा, 'हे कृष्ण! आज तक इस संसार में मुझे बड़े भ्राता सा दानवीर कोई और नहीं दिखा।' कृष्ण मुस्करा कर रह गए। कुछ दिनों बाद जब अर्जुन वह प्रसंग भूल गए, वर्षा ऋतु में कृष्ण और अर्जुन भिक्षुक का वेष बना कर युधिष्ठिर के द्वार पर पहुंचे और सूखे चंदन की एक मन लकड़ी मांगी। युधिष्ठिर ने असमर्थता प्रकट करते हुए कहा, वर्षाकाल में चंदन की सूखी लकड़ी का मिलना असंभव है। दोनों कर्ण के द्वार पर पहुंचे और वही माँग दोहराई। कर्ण ने कहा, 'हे विप्र द्वय! आप बैठें, मैं कोई व्यवस्था करता हूँ।' जब कर्ण को चंदन की सूखी लकड़ी नहीं मिली, तो वह कुछ पल उपाय सोचता रहा, फिर अपने महल के कुछ चंदन के दरवाजे उतार कर उन्हें दे दिए। अर्जुन को अपनी बात का उत्तर मिल गया था।
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Old 25-06-2011, 01:10 PM   #134
vijaysr76
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शील की महिमा
प्रहलाद ने शील और पराक्रम के बल पर देवराज इंद्र को परास्त कर तीनों लोकों पर अपना प्रभुत्व कर लिया। निराश इंद्र ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की शरण में जाकर पुन: इंद्रासन प्राप्त करने का उपाय पूछा। शुक्राचार्य ने क्षण भर सोचा, फिर बोले, 'हे इंद्र! यदि तुम स्वर्ग का राज्य पुन: पाना चाहते हो, तो पहले प्रहलाद को अपनी सेवा से संतुष्ट करो। प्रसन्न होने पर जब वह तुम्हें वर मांगने को कहे तो तुम उसका 'शील' मांगना।

इंद्र ने वेश बदल कर कई वर्षों तक दैत्यराज प्रहलाद की दिन-रात निष्ठा से सेवा की। आखिर एक दिन प्रहलाद ने प्रसन्न होकर कहा, 'सेवक! मैं तुम्हारी सेवा से संतुष्ट और प्रसन्न हूं। तुम वर मांगो, क्या चाहते हो?' सेवक ने तुरंत विनम्रता से कहा, 'महाराज! मुझे आप अपना 'शील' दान कर दें।' प्रहलाद ने तत्काल तथास्तु कह कर अपना शील सेवक को दान कर दिया। तीनों लोकों के स्वामी प्रहलाद के शील दान करते ही तुरंत उसके शरीर से सत्य, सदाचार, धर्म, बल एवं पराक्रम भी निकल कर सेवक रूपी इंद्र के शरीर में प्रविष्ट हो गए। इन गुणों के साथ इंद्र पुन: स्वर्ग के राजा बन गए।
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Old 27-06-2011, 10:15 AM   #135
vijaysr76
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बड़ा रत्न
एक राजा किसी साधु को अपना रत्न भंडार दिखाने ले गया। वहाँ उसने साधु को अपने संग्रह किए हुए तरह-तरह के रत्न दिखाए, उनकी विशेषताओं से परिचय कराया। फिर यह बताया कि वे कितने कीमती हैं। इसके बाद राजा ने साधु को यह भी बताया कि उनकी सुरक्षा के लिए कितने सशस्त्र सैनिकों का पहरा लगाया जाता है। साधु ने अत्यंत उपेक्षापूर्वक उन्हें देखा और उदासीन भाव से बातें सुनीं। रत्न भंडार से बाहर निकलने के बाद जब राजा ने साधु से उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो उसने कहा, मैंने आपके उन सभी रत्नों से भी बड़ा रत्न देखा है। खास बात यह है कि उस पर पहरा भी नहीं लगाया जाता। और इसके साथ ही वह रत्न एक व्यक्ति के जीवन निर्वाह का साधन भी हर दिन जुटा देता है।

राजा आश्चर्य में पड़ गया, उसने साधु से वह रत्न दिखाने की प्रार्थना की। साधु उसे अपने साथ ले कर एक बुढि़या की झोपड़ी में पहुंचा और वहाँ रखी आटा पीसने की चक्की दिखा कर बोला, जैसे पत्थर के टुकड़े तुम्हारे पास हैं, उनसे कहीं बड़ा यह पत्थर है। यह अनाज पीसता है और इससे पीसने वाले का पेट भरता है। और देखो कि इसकी चौकसी की जरूरत भी नहीं पड़ती।
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Old 28-06-2011, 04:53 PM   #136
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दूसरों के लिए
उत्तर भारत के गाँवों में एक लोक कथा सुनने को मिलती है। एक राजा था। एक बार उसके राज्य में भयानक अकाल पड़ा। राजा ने आज्ञा दी कि अनाज के भंडार व गोदाम खोल दिए जाएं। उसकी आज्ञा का तुरंत पालन हुआ। सभी अनाज के भंडार व गोदाम प्रजा के लिए खोल दिए गए। कुछ दिनों में भंडार भी खाली हो गए। तब राजा ने महल की रसोई में पकने वाला भोजन गरीबों व जरूरतमंदों को बांटने का आदेश दिया। धीरे-धीरे महल का भंडार भी खाली हो गया। हालत यह हो गई कि एक दिन राज परिवार के पास भी खाने को कुछ नहीं बचा। उस दिन शाम को अचानक एक अजनबी राजा के सामने प्रकट हुआ। उसके हाथ में एक बड़ा सा कटोरा था, जिसमें दूध, गेहूँ और चीनी से बनी दलिया थी। उसने भूखे राजा को वह कटोरा दे दिया, पर राजा ने उसे चखा भी नहीं। पहले अपने सेवकों को बुलाया और कहा, तुम्हारे भूखे रहते मैं इसे नहीं खा सकता। सेवक भूखे तो थे, लेकिन राजा को भूखा देख कर उन्होंने अनमने भाव से ही दलिया खाई और उसमें से भी आधी राजा व उसके परिवार के लिए बचा दिया। राज परिवार जैसे ही वह बची दलिया खाने बैठा, दरवाजे पर एक भूखा अतिथि आ पहुँचा। राजा ने वह भोजन भी भूखे अतिथि को दे दिया। वह खा कर तृप्त होने के बाद उस व्यक्ति ने अपना वेश बदला। वह स्वयं भगवान थे, जिन्होंने राजा के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए ऐसा रूप धारण किया था। उन्होंने राजा से कहा, मैं तुम्हारे आचरण से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुम मुझ से जो भी वरदान चाहो, माँग लो। भगवान को सामने पा कर राजा उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, हे प्रभु! मैं इस लोक या परलोक का कोई ईनाम नहीं चाहता। मुझे ऐसा हृदय दें जो दूसरों की पीड़ा को महसूस करे और ऐसा मन व तन दें जो दूसरों की सेवा में लगा रहे। भगवान तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए।
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Old 30-06-2011, 11:29 AM   #137
vijaysr76
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खुशहाली का रास्ता
एक बार हकीम लुकमान से उसके बेटे ने पूछा, अगर मालिक ने फरमाया कि कोई चीज मांग, तो मैं क्या मांगूं? लुकमान ने कहा, परमार्थ का धन। बेटे ने फिर पूछा, अगर इसके अलावा दूसरी चीज मांगने को कहे तो? लुकमान ने कहा, पसीने की कमाई मांगना। उसने फिर पूछा, तीसरी चीज? जवाब मिला, उदारता। चौथी चीज क्या मांगू- शरम। पांचवीं- अच्छा स्वभाव। बेटे ने फिर पूछा, और कुछ मांगने को कहे तो? लुकमान ने उत्तर दिया, बेटा जिसको ये पांच चीजें मिल गईं उसके लिए और मांगने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। खुशहाली का यही रास्ता है और तुझे भी इसी रास्ते से जाना चाहिए।
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Old 01-07-2011, 11:11 AM   #138
vijaysr76
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भला बनो
1. पांच-छह साल का एक नन्हा बालक साथियों के साथ आम के बगीचे में चला गया। सभी बच्चे आम तोड़ने लगे। नन्हा बालक चुपचाप एक कोने में खड़ा रहा। साथियों के उकसाने पर भी उसने आम तो नहीं तोड़े, लेकिन इसी बीच गुलाब के पौधे पर खिले एक फूल पर उसकी दृष्टि पड़ी। सुंदर गुलाब को देखकर उसका मन ललचा उठा और उसने फूल तोड़ लिया। तभी बगीचे में माली आ धमका। उसे देखते ही सब लड़के भाग गए। लेकिन नन्हा वहीं खड़ा रहा। माली ने कहा, 'कहाँ है तेरा घर, चल मैं तेरे बाबू जी से तेरी करतूत बताता हूँ। नन्हे ने सहमते हुए कहा, मेरे पिता जी नहीं हैं। बालक का भोला चेहरा और सरल आँखें देखकर माली रुक गया। उसने समझाया, तब तो तुम्हें ऐसे काम बिल्कुल नहीं करने चाहिए। क्योंकि तुम्हें पिटाई से बचाने वाला भी कोई नहीं है। नन्हे को लगा जैसे माली के रूप में उसके जीवन को दिशा बताने वाला कोई गुरु खड़ा हो। उसने उसी क्षण अच्छा बच्चा बनने का संकल्प किया। यह नन्हा कोई और नहीं, लाल बहादुर शास्त्री थे जो आगे चलकर अपनी सचाई, ईमानदारी, सेवा भावना और कर्तव्यनिष्ठा के बल पर देश के प्रधानमंत्री बने।

2. अमेरिका के मशहूर लेखक इमर्सन को गाय पालने का शौक था। ये गाएं और उनके बछड़े उनके मकान के पास एक झोपड़ी में रहते थे। एक बार जोर की बारिश आने वाली थी। सभी गाएं झोंपड़ी के अंदर चली गईं, पर एक बछड़ा बाहर ही रह गया। इमर्सन और उनका बेटा, दोनों मिलकर उसे खींचने लगे कि वह कुटिया में चला आए, पर वे ज्यों-ज्यों उन्होंने खींचना शुरू किया, त्यों-त्यों वह बछड़ा भी सारी ताकत लगाकर पीछे हटने लगा। इमर्सन बड़े परेशान हुए। इतने में उनकी बूढ़ी नौकरानी उधर से निकली। जैसे ही उसने यह तमाशा देखा, वह दौड़ी आई और अपना अंगूठा बछड़े के मुंह में प्यार से डालकर उसे धीरे-धीरे ले जाने लगी। बछड़ा चुपचाप झोपड़ी के अंदर चला गया। वह नौकरानी अनपढ़ तो थी, पर व्यवहार कुशल थी और जानती थी कि जानवर भी प्रेम की भाषा समझते हैं।
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Old 05-07-2011, 12:06 PM   #139
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सूझबूझ
एक राज्य में प्रजा का शासन था। वहाँ प्रजा के बीच से ही राजा का चुनाव किया जाता था। लेकिन नियम यह था कि जनता में से जो भी राजा चुनकर गद्दी पर बिठाया जाता था, उसे दस वर्ष बाद एक ऐसे निर्जन एकाकी द्वीप में छोड़ दिया जाता था, जहां अन्न-जल कुछ भी उपलब्ध नहीं होता था। इस तरह अनेक राजा अपने प्राण गंवा चुके थे। अपने शासन के आरम्भिक समय में तो वे प्रसन्नतापूर्वक राज्य की सुख-सुविधाओं का भोग करते। दसवें वर्ष के अंतिम समय तक पहुंचते-पहुंचते, वे भविष्य की चिंता से दुखी होने लगते और अंत में काल के ग्रास बन जाते।
एक बार एक बुद्धिमान व्यक्ति उस गद्दी पर बैठा। राजकाज संभालने के कुछ समय बाद वह एक दिन उस निर्जन द्वीप का निरीक्षण करने निकला, जहाँ गद्दी छोड़ने के बाद सभी राजाओं को जाना पड़ता था। अपने भविष्य का ध्यान करते हुए उसने वहां जलाशय बनवाए, पेड़ लगवाए और खेती करने के लिए व्यक्तियों को बसाना शुरू कर दिया। दस वर्षों की अवधि में वह निर्जन एकांकी प्रदेश अत्यंत रमणीय स्थल बन गया। अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह राजा वहां खुशी से गया और शेष जीवन सुख-पूर्वक बिताने लगा।
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Old 06-07-2011, 02:24 PM   #140
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सबसे बड़ी सजा
बगदाद के खलीफा फारूख हारून रशीद बड़े न्यायप्रिय थे। एक बार उनका शहजादा क्रोधित होकर उनके पास आया। बादशाह ने उससे क्रोध का कारण पूछा। शहजादे ने बताया कि आपके अमुक अफसर ने मुझे गालियां दी हैं और मेरा अपमान किया है। खलीफा ने अपने शहजादे की बात बड़े ध्यान से सुनी और दरबार में उपस्थित सभी सदस्यों की राय ली कि उस अफसर को क्या सजा देनी चाहिए। किसी ने कहा, कठोर दंड दिया जाए। किसी ने राय दी कि कि उसकी जुबान काट दी जाए। परन्तु बादशाह को किसी की बात अच्छी नहीं लगी।
अंत में फारूख ने अपने शहजादे से कहा, बेटा! कोई सजा देने के बदले उसे माफ ही कर दो, क्योंकि जो व्यक्ति औरों के सौ अपराध माफ करता है, खुदा उसके हजार गुनाह माफ करता है। अगर तुम्हें यह बात पसन्द नहीं और बदला लेना ही है तो तुम खुद वहां जाकर उस अफसर को गालियां दे आओ। लेकिन फिर उसमें और तुम्हारे में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। और एक खतरा यह भी होगा कि उसे जवाब सुनाते हुए तुम अगर वहां कुछ ज्यादा उत्तेजित हो गए और उससे ज्यादा गालियां दे बैठे तो तुम उससे भी बड़े अपराधी साबित हो जाओगे। पिता की यह बात सुनकर शहजादे ने अपराधी को माफ करना ही मुनासिब समझा।
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