06-07-2011, 06:56 PM | #141 | |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
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08-07-2011, 05:20 PM | #142 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
दूसरों पर हंसने वाला
एक कुंजडे़ और कुम्हार ने साझे में ऊंट किराए पर लिया। उन दोनों को अपना-अपना सामान मंडी ले जाना था। उन्होंने ऊंट पर एक तरफ मिट्टी के बरतन रखे और दूसरी तरफ साग-सब्जियां रखीं। जब दोनों ऊंट को लेकर मंडी की ओर चले, तो उन्होंने देखा कि रास्ते में चलता हुआ वह बार-बार साग-सब्जियों की ओर गर्दन मोड़ कर थोड़ा-थोड़ा खा लेता था। ऊंट जब भी ऐसा करता, कुम्हार जोरों से खिल-खिलाकर हंसता और कुंजड़ा बेचारा मन मसोस कर रह जाता। फिर कुम्हार की हंसी के जवाब में कहता, 'चलो, देखें ऊंट किस करवट बैठता है। मंडी पहुंचने पर ऊंट जब बैठने लगा तो उसे सब्जी वाला हिस्सा हल्का लगा, क्योंकि उसका कुछ हिस्सा तो वह रास्ते में ही खा चुका था। मिट्टी के बर्तनों घड़ों वाला हिस्सा भारी होने से ऊंट उसी ओर बैठा और सारे घड़े चूर-चूर हो गए। इस बार कुंजड़ा हंसा और कुम्हार से बोला, देखा! दूसरों पर हंसने वाला कभी-कभी स्वयं भी हंसी का पात्र बन जाता है। |
08-07-2011, 10:31 PM | #143 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
सच में आप ने जो कुछ भी लिखा हा सच में बहुत ही अच्छा लिखा हा अगर कोय इसको पढ़ ले तो जरू कुछ न कुछ सिख लेगा.
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09-07-2011, 10:23 AM | #144 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
बर्फ का टुकड़ा
जर्मनी के सम्राट फ्रेडरिक ने एक बार एक विशाल भोज का आयोजन किया। बातचीत के दौरान उसने मेहमानों से पूछा, 'समझ नहीं आता कि प्रजा पर इतने कर लगाने के बावजूद राज्य की आमदनी कैसे कम होती जा रही है?' यह सुनकर सभी मेहमान एक दूसरे का मुंह ताकने लगे। तभी कोने में बैठे एक सज्जन ने कहा, 'यदि आज्ञा हो तो मैं इसे स्पष्ट करूं।' उस सज्जन ने बर्फ का एक टुकड़ा लिया और अपने बगल में बैठे व्यक्ति के हाथ में देते हुए कहा कि वे इसे अपने बगल वाले सज्जन के हाथ में दे दें और उनसे कहें कि वे उसे अपने साथ बैठे आदमी को दें, ताकि एक दूसरे के हाथ से होता हुए यह सम्राट के पास पहुंच जाए। जब वह टुकड़ा सम्राट के पास पहुंचा तो उसका आकार चने के बराबर रह गया था। इस पर सज्जन ने कहा, 'शाही खजाने तक पहुंचते-पहुंचते कर का भी यही हाल होता है।' फ्रेडरिक समझ गया कि उसके अधिकारी भ्रष्ट और बेईमान हैं। उसने उन सज्जन को सम्मानित किया। वे सज्जन थे जर्मनी के प्रसिद्ध बुद्धिजीवी फ्रेगरिल ल्यूक। |
11-07-2011, 11:17 AM | #145 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
उत्साह भरा जीवन
एक चौराहे पर तीन यात्री मिले। तीनों के कंधों पर दो-दो झोले आगे-पीछे लटके हुए थे। अपनी लंबी यात्रा से तीनों थके हुए थे। लेकिन एक यात्री के चेहरे पर प्रसन्नता और उत्साह का भाव था। दूसरा यात्री श्रम से थका हुआ तो था, लेकिन निराश या क्लांत नहीं था। पर तीसरा बेहद मुर्झाया हुआ और दुखी दिख रहा था। तीनों एक पेड़ की छाया में बैठ कर सुस्ताने लगे। बातचीत होने लगी, कौन कहाँ से आ रहा है, कहाँ जा रहा है, किसकी झोली में क्या रखा है। एक यात्री ने बताया कि उसने अपनी पीछे की झोली में कुटुम्बियों और उपकारी मित्रों की भलाइयां भर रखी थीं और सामने की झोली में उन लोगों की बुराइयां रखी थीं। दूसरे ने आगे के झोले में अपने मित्रों और हितैषियों की अच्छाइयां लटका रखी थीं और उनकी बुराइयों की थैली पीछे लटका रखी थी, जिन्हें देख-देखकर अपनी सराहना करता और खुश होता। फिर तीसरे यात्री से उन दोनों ने पूछा, तुम्हारे झोलों में क्या भरा है? आगे का झोला तो काफी भारी लगता है, पीछे का झोला हल्का है। उसने बताया कि उसने भी अच्छाइयों की थैली आगे और बुराइयों की थैली पीछे लटका रखी है। लेकिन पीछे की थैली में एक छेद है, इसलिए बुराइयाँ टिकती नहीं, एक-एक कर गिर जाती हैं और पीछे का वजन हल्का हो जाता है। जिस यात्री ने आगे के झोले में अच्छाइयाँ और पीछे के झोले में बुराइयाँ भर रखी थीं, वह प्रसन्न था क्योंकि चलते समय उसकी नजर हमेशा अच्छाइयों पर ही पड़ती थी और बुराइयों को वह भूला रहता था। जिसके थैले में छेद था वह उत्साह से भी भरा रहता था, क्योंकि चलते समय वह आगे लटकी अच्छाइयों को तो देखता ही था, उस पर बुराइयों का वजन भी कम रहता था। वे रास्ते में धीरे-धीरे गिर जाती थीं। लेकिन जिसने बुराइयों की थैली आगे और अच्छाइयों की थैली पीछे लटका रखी थी, वह हमेशा थका हुआ और निराश रहता था। यही जीवन यात्रा का सार तत्व है। |
29-07-2011, 11:35 AM | #146 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
अमृत की खेती
एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के यहाँ पहुँचे। तथागत को भिक्षा के लिए खड़ा देख कर किसान उपेक्षा से बोला, 'श्रमण! मैं हल जोतता हूँ, बीज बोता हूँ और तब खाता हूँ। तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और तब खाना चाहिए।' बुद्ध ने कहा, 'महाराज! मैं भी खेती ही करता हूँ।' इस पर उस किसान ने जिज्ञासा की, गौतम! मैं न कहीं आपका जुआ देखता हूँ, न हल, न बैल और न ही पैनी देखता हूँ। तब आप कैसे कहते हैं कि आप भी खेती ही करते हैं। आप अपनी कृषि के संबंध में समझाएं। बुद्ध ने कहा, 'हे मित्र! मेरे पास श्रद्धा का बीज, तपस्या रूपी वर्षा, प्रज्ञा रूपी जोत और हल हैं। पापभीरुता का दंड है, विचार रूपी रस्सी है। स्मृति, चित्त की जागरूकता रूपी हल की फाल और पैनी है। मैं वचन और कर्म में संयत रहता हूँ। मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं और आनन्द की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं। अप्रमाद मेरा बैल है, जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोड़ता है। वह मुझे सीधा शान्ति धाम तक ले जाता है। इस प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं।' |
30-07-2011, 05:14 AM | #148 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
एक बार नानक जी अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे...वे सभी एक गाँव में पहुँचे और वहाँ के निवासियों से एक रात रहने का आसरा माँगा, तो उन्होंने उन्हें खरी खोटी सुनाई और रहने की जगह भी नहीं दी....वेलोग वहाँ से चल दिए और गाँव की सीमा पर पहुँचकर, गाँव की ओर देखकर बोला तुम सभी लोग इक्ट्ठे रहना...
फिर वे लोग वहाँ से आगे बढ़े और दूसरे गाँव में पहुँचे/ जब गुरु नानकदेव ने गाँववालो से एक रात रहने का आसरा माँगा तो उनलोगों ने श्रद्धापूर्वक उनलोगों का आदर सत्कार किया/गुरु नानकदेव उनलोगो आदर भाव से बहुत खुश हुए/अगली सुबह वे अपनी काफिले के साथ आगे बढ़ गए.जब वे गाँव की सीमा पर पहुँचे तो गाँव की ओर देखकर बोला "बिखर जाना." एक शिष्य को यह बात समझ में नहीं आई.उसने गुरुनानक देव पूछा - गुरु जी जिन लोगों ने आपका अपन्मन किया और आप को भला बार कहा उसे आपने इक्ट्ठे रहने का आशीर्वाद दिया और जिन्होंने आपका आदर सत्कार किया और अच्छे से रहने की व्यवस्था की आपके उसे बिगर जाने का आशीर्वाद दिया! ऐसा क्यों? गुरु नानक जी मुस्कुरा कर बोले - दुनियाँ में अच्छाई की बहुत कमी है..इस दिन्याँ में बुराई की नहीं अच्छाई की बहुत जरूररत,इसीलिए दुनिया बुराई ना फैले इसीलिए मैंने उन्हें इकट्ठे रहने का आशीर्वाद दिया और अच्छे लोगों को बिखर जाने का आशीर्वाद दिया ताकि दुनिया में बुराई खत्म हो और अच्छाई फ़ैल जाए...
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31-07-2011, 03:19 PM | #149 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
बहुत अच्छी कहानिया हैं दोस्तों.
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03-08-2011, 10:24 AM | #150 |
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Re: बच्चो को सीख देने वाली कहानी
रेत और पत्थर
दो दोस्त एक बार रेगिस्तान से गुजर रहे थे। रास्ते में उनके बीच बहस छिड़ गई और पहले दोस्त ने दूसरे को थप्पड़ मार दिया। दूसरे दोस्त ने बिना कुछ कहे रेत पर लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा। यह लिखने के बाद दोनों फिर चल दिए। रास्ते में एक नदी आई। दूसरा दोस्त उसमें नहाने के लिए उतरा और डूबने लगा। पहले दोस्त ने तुरंत नदी में कूद कर उसकी जान बचा ली। इस बार दूसरे दोस्त ने पत्थर पर लिखा, आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी जान बचाई। यह देख पहले दोस्त ने उससे रेत और पत्थर पर लिखने का कारण पूछा। उसने उत्तर दिया, जब कोई कष्ट पहुंचाए तो उसे रेत पर लिखना चाहिए, ताकि क्षमा की हवा उसे मिटा सके। लेकिन अगर कोई सहायता करे तो उसे पत्थर पर लिखना चाहिए, जिससे आप हमेशा उस उपकार को याद रख सकें। |
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