27-01-2015, 07:23 AM | #161 |
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Re: मुहावरों की कहानी
बेचारा डरा हुआ सा और कुछ खीझता हुआ बोला, “अरे भागवान, नहा तो लिया....!!” तो मित्रो अब आप समझे!! इसे कहते हैं कौआ स्नान !!
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27-02-2015, 07:49 PM | #162 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी मुहावरा / उलटे बांस बरेली को
बलजीतबासी यूपी के शहर बरेली को ही बांस बरेली कहा जाता है. यहाँ बांस बहुत होते हैं तो वहां बांस ले जाने का कोई तुक नहीं, इसीलिए निरर्थक काम के अर्थों में यह कहावत बनी. खोज से पता चला कि बांस बरेली नाम यहाँ अधिक बांस होने से नहीं, बल्कि यहाँ के किसी राजे के दो बेटों, बांसलदेव औरबरालदेव के नामों से पड़ा . अंग्रेज़ी में भी ऐसी कहावत है to carry coals to Newcastle. जर्मनमें कहावतहै taking owls to Athens समझा जाता है कि एथेन्ज़ के लोग बहुत अक्लमंद होते हैं इसलिए उनको और अकल देने का क्या लाभ. हमारे विपरीत, यूरोप में उल्लू को अक्लमंद समझा जाता है. यहाँ से मैं आपको एक और अपने मुहावरे की ओर ले जाता हूँ अपना उल्लू सीधा करना. मुझे अभी तक समझ में नहीं आया यह कैसे अक्लमंद बना होगा. कोई समझा सकता है?
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27-02-2015, 07:56 PM | #163 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी मुहावरा /अपना उल्लू सीधा करना
अभय तिवारी 'अपना उल्लू सीधा करने' की जगह फ़ैलन के मुहावरा कोष में 'अपनाउल्लूकहींनहीं गया' दिया है.. अर्थ वही है कि कोई न कोई मिल ही जाएगा उल्लू बनाने के लिए.. या सवारी करने के लिए.. यहाँ पर ये उल्लेखनीय है कि उल्लू लक्ष्मी जी की सवारी है.. उल्लू पर ही बैठकर लक्ष्मी आती हैं.. बिना उल्लू के कैसे आयेंगी.. तो किसी एक को उनकी लिए सवारी बनकर उनके आगे का मार्ग प्रशस्त करना होगा.. इसी से मिलती बात है उल्लू बनाना.. इसे ऊपर की व्याख्या के प्रकाश में देंखेगे तो मतलब यही निकलेगा.. किसी एक को वाहन बनना होगा.. सारा बोझा उसे ही ढोना होगा.. मगर उसे कुछ नहीं मिलेगा.. मार्क्स ने भी पूँजी के निर्मा की ऐसी ही व्याख्या की है. मज़दूर के मेहनताने का एक हिस्सा पूंजीपति रख लेता है और उससे कैपिटल की रचना होती है तंत्र में इसे बलि देने के समान्तर समझा जा सकता है.
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28-02-2015, 06:16 PM | #164 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी मुहावरा /आँखों की सुइयाँ निकालना
भावार्थ: किसी अधूरे पड़े काम को पूरा करना) यह एक पुरानी कहावत है. लोक मानस में प्रचलित धारणा के अनुसार यदि आटे की मूर्ति बना कर शत्रु का नाम लेते हुए उसमे सुइयाँ चुभोई जायें और उसके मरने की कामना की जाये और बाद में उस मूर्ति को मरघट में रख दिया जाये तो उस व्यक्ति के अंगों में उसी तरह से सुइयाँ चुभ जायेंगी तथा उसकी मृत्यु हो जायेगी. लेकिन यदि किसी को तरकीब आती हो तो वह मृत व्यक्ति को जीवित भी कर सकता है. जीवित करने के लिए मंत्र पढ़ते हुए उन सुइयों को निकालना जरुरी है. इसी टोटके पर आधारित एक कहानी इस प्रकार है: किसी ने उक्त विधि के अनुसार एक व्यक्ति को मार डाला. उसकी स्त्री जादू जानती थी. उसने पति को जीवित करने के लिए उसके शरीर से एक एक कर सभी सुइयाँ निकाल दीं. जब आँखों की सुइयाँ निकालने का समय आया तो बाहर से किसी ने उसे बुला लिया. वह बाहर चली गयी. इतने में उस घर में काम करने वाली नौकरानी वहाँ आ पहुंची. उसे भी वह तरकीब आती थी. उसने मंत्र पढ़ते हुए उस आदमी की आँखों से सुइयाँ निकाल दीं. इसके बाद वह आदमी जीवित हो गया. जीवित होने के बाद उसने आँखें खोली तो उसने नौकरानी को वहाँ देखा. वह सोचने लगा कि हो ना हो नौकरानी ने ही उसकी जान बचाई है. उसने अपनी पत्नी को त्याग कर उस नौकरानी से विवाह कर लिया. बाद में पता चला कि उस नौकरानी ने ही सारा षड़यंत्र रचा था.
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01-04-2015, 07:14 PM | #165 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी मुहावरा
नदी में रह कर मगर से बैर (1) शिप्रा नदी के किनारे एक बड़ा-सा जामुन का पेड़ था। उस पेड पर एक बंदर रहता था। नीचे नदी में एक मगरमच्छ अपनी बीवी के साथ रहता था। धीरे-धीरे मगरमच्छ और बंदर में दोस्ती हो गई। बंदर पेड़ से मीठे-मीठे रसीले जामुन गिराता था और मगरमच्छ उन जामुनों को खाया करता था। एक बार कुछ जामुन मगरमच्छ अपनी बीवी के लिए ले गया। मीठे और रसीले जामुन खाने के बाद मगरमच्छ की पत्नि ने सोचा कि जब जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा?
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01-04-2015, 07:44 PM | #166 |
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Re: मुहावरों की कहानी
उसने मगरमच्छ से कहा कि तुम अपने दोस्त बंदर को घर लेकर आना। मैं उसका कलेजा खाना चाहती हूँ।
अगले दिन जब नदी किनारे मगरमच्छ और बंदर मिले तो मगरमच्छ ने बंदर को अपने घर चलने के लिए कहा। बंदर ने कहा कि मैं तुम्हारे घर कैसे चल सकता हूँ? मुझे तो तैरना नहीं आता। तब मगर ने कहा कि मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठा कर ले चलूँगा। मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर नदी में घूमने और उसके घर जाने के लिए बंदर ने तुरंत हाँ कर दी। बंदर झट से मगर की पीठ पर बैठ गया। मगरमच्छ नदी में उतरा और तैरने लगा। बंदर पहली बार नदी में सैर कर रहा था। उसे बहुत मजा आ रहा था। दोनों दोस्तों ने आपस में बातचीत करना शुरू कर दी। आपस में बात करते हुए वो दोनों नदी के बीच में पहुँच गए। बातों-बातों में मगर ने बंदर को बताया कि उसकी पत्नी ने बंदर का कलेजा खाने के लिए उसे बुलाया है। मगरमच्छ के मुँह से ऐसी बात सुनकर बंदर को झटका लग गया। उसने सोचा कि नदी में रह कर मगर से मोल लेना ठीक नहीं होगा । उसने खुद को संभालते हुए कहा कि दोस्त ऐसी बात तो तुझे पहले ही बताना थी। हम बंदर अपना कलेजा पेड़ पर ही रखते हैं। अगर तुम्*हें मेरा कलेजा खाना है तो मुझे वापस ले जाना होगा। मैं पेड़ से अपना कलेजा लेकर फिर तुम्हारी पीठ पर सवार हो जाऊँगा। हम वापस तुम्हारे घर चलेंगे। तब भाभीजी मेरा कलेजा खा लेंगी। मगर ने बंदर की बात मान ली और वह पलटकर वापस नदी के किनारे की ओर चल दिया। नदी के किनारे पर आने के बाद मगर की पीठ से बंदर उतरा। उसने मगर से कहा कि वो अपना कलेजा लेकर अभी वापस आ रहा है। बंदर पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद बंदर ने मगर से कहा कि आज से तेरी मेरी दोस्ती ख़त्म। बंदर अपना कलेजा पेड़ पर रखेंगे तो जिंदा कैसे रहेंगे? इस तरह अपनी चतुराई से बंदर ने अपनी जान बचा ली और मूर्ख मगरमच्छ मुँह लटकाकर लौट गया। (पंचतंत्र की कहानी पर आधारित)
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01-04-2015, 07:51 PM | #167 |
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Re: मुहावरों की कहानी
हिंदी मुहावरा
नदी में रह कर मगर से बैर (2) किसी शहर में एक नवयुवक रहता था. उसकी शादी दूर दराज के एक गाँव में हुई. उसके ससुर बड़े धनवान थे. शादी बहुत धूम धाम से संपन्न हुई. लेकिन डोली चलने से पहले ही वहाँ डाकू आ धमके. उन्होंने आते ही लूटपाट शुरू कर दी. पहले दहेज के माल पर कब्जा किया. फिर बारातियों और लड़की के परिवारजनों के सोने चांदी के आभूषण और अन्य वस्तुएं लूटने के बाद डाकू वहां से रफ़ू चक्कर हो गये. सुबह होने पर दामाद ने अपने ससुर से कहा, “ससुर जी, यह तो बहुत बुरा हुआ. आइये अब कम से कम इस लूट की रिपोर्ट तो लिखवा दें.” ससुर ने जवाब दिया, “बेटा, तुम यहाँ के चलन को नहीं जानते हो. जो हुआ उसे जाने दो.” दामाद ने पूछा, “क्या यहाँ पर ऐसी वारदात की कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाता?” ससुर ने जवाब दिया, “क्यों नहीं लिखवाता, लिखवाते तो हैं.” दामाद ने इस पर कहा, “तब आप भी मेरा कहा मान कर रोप्त लिखवा दें.” >>>
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01-04-2015, 07:53 PM | #168 |
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Re: मुहावरों की कहानी
बारात तो चली गई लेकिन लड़का और उसका पिता वहीँ रह गए. सेठ जी अपने दामाद और समधी को ले कर थाने पहुंचे. थानेदार ने सेठ जी को देखा तो उनका स्वागत किया और घर से कुर्सियां मंगवा कर सेठ जी और उनके मेहमानों को बिठाया. दामाद को तो टीका लाया और समधी को मिलनी में चाँदी का एक रूपया भी दिया. थानेदार ने सेठ जी को आदरपूर्वक विदा किया लेकिन सेठ जी ने लूट की रिपोर्ट लिखाने का ज़िक्र भी न किया.
ऐसी खातिर होती देख कर दामाद और समधी दंग रह गए. थानेदार की विनम्रता देख कर वह आश्चर्यचकित हो गए. समधी के मन में विचार आया की थानेदार इतना मिलनसार और भला आदमी है, फिर भी सेठ जी ने रिपोर्ट नहीं लिखवाई. उधर दामाद सोच रहा था कि मेरे ससुर भी अजीब आदमी हैं जो अपना हक़ भी नहीं लेना चाहते. वापसी में समधी और दामाद सेठ से लड़ने लगे. उनका कहना भी जायज़ था. सेठ जी चलते चलते रुक गए. उन्होंने उन दोनों को बताया, “देखो, मैं मूर्ख नहीं हूँ. तुमने देखा कितना सम्मान किया दरोगा ने तुम दोनों का. जो कुर्सियाँ उसने अपने घर से मंगवाई थीं, वो हमारी थीं जिसे रात को डाकू ले गए थे. वह चाँदी का रूपया भी हमारा ही था जो थानेदार ने तुम्हें दिया था. >>>
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01-04-2015, 07:55 PM | #169 |
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Re: मुहावरों की कहानी
मैंने दरोगा को तुम्हारी शादी की दस्तूरी नहीं भिजवाई थी. इसलिए उसने सारा दहेज ही उठवा लिया.
दामाद ने पूछा, “दस्तूरी क्या?” सेठ बोला, “यह भी एक तरह का लगान है, स्थानीय टैक्स की तरह.” दामाद डर कर बोला, “थानेदार तो अभी और बदला ले सकता है?” “हाँ, इसीलिये मैंने रिपोर्ट लिखवाने की गलती नहीं की. नदी में रह कर मगर (मच्छ) से बैर ठीक नहीं.” सेठ ने कहा. सभी ने समर्थन में सर हिलाया और वहाँ से चल दिए. **
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02-04-2015, 08:51 AM | #170 |
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Re: मुहावरों की कहानी
मुहावरा / हमाम में सब नंगे
राजनीति के बारे में बात करते हुए अक्सर कहा जाता है कि हमाम में सब नंगे हैं. यह मुहावरा हमारे यहाँ आम बोलचाल में काफी प्रयोग में लाया जाता है यद्यपि राजनीति में इसका लाक्षणिक अर्थ निर्लज्ज होना या सिद्धान्तविहीन व्यवहार करने से लगाया जाता है. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि हमाम आखिर होता क्या है. हमाम असल में किसी साबुन का नाम नहीं बल्कि अरब देशों का सामूहिक स्नानगृह है. पानी बचाने के लिए अरब देशों में हमाम की परंपरा शुरू हुई. महिलाएं और पुरुष हमाम में जाकर लाइन में लगते हैं. नंबर आने पर मालिश, फिर त्वचा की सफाई होती है, उसके बाद एक बड़े से बरामदे नुमा तालाब में निर्वस्त्र होकर नहाया जाता है. कुछ साल पहले तक नौजवान लोग महिलाओं वाले हमाम में ताक झांक भी करते थे. प्रेम कहानियां बनती थीं. शादी के वक्त दूल्हे को चिढ़ाया जाता था कि तेरी पत्नी हमाम में ऐसी दिखती है. हमाम न सिर्फ स्नानगृह था बल्कि उससे कहीं ज्यादा एक संस्कृति माना जाता रहा, कई कहानियों और कविताओं को जन्म देने वाला हमाम. लेकिन अब अरब देशों में हमाम का चलन फीका पड़ता जा रहा है. घर घर में नल और बाथरूम होने की वजह से लोगों ने हमाम जाना कम कर दिया है. तुर्की की राजधानी इंस्ताबुल में कई ऐतिहासिक हमाम बंद हो चुके हैं. कई हमाम कॉफी हाउस में बदल दिए गए हैं. जो बचे हैं वह भी आधुनिकता के मेकअप से पुत गए हैं. पुराने हमामों कादौर खत्म हो गया है. महिलाएं पहले हमाम में अकेली होती थीं, लेकिन अब वहपब, सिनेमा और शॉपिंग करने जा सकती हैं. घर घर में बाथरूम हैं.लेकिनपरंपरा के रूप में उसका महत्व बढ़ रहा है. तुर्की में पर्यटन उद्योग मेंहमाम एक बड़ा आकर्षण है.
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