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31-08-2013, 01:52 PM | #1 |
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एक डोर है जो टूटती नही
आज भी हम दोनों के दरमियां
एक डोर है जो टूटती नही उस पेड़ का आखिरी पत्ता भी अब टूट चूका है । जिसकी नर्म छांव में बैठकर वह मेरे लिए कुछ सपने बुन लिया करती थी । वह मक्खी भी अब नही आती जो मेरे गालों पर बार -बार बैठ जाया करती थी और वह हौले से हर बार उसे उड़ा दिया करती थी वह चांदनी भी अब कहीं नही मिलती जिसे हर सुबह मुझ पर लुटाने को वह रात को अपने आँचल में भर लिया करती थी वो हवा का झोंका अब जाने किधर जाता है अक्सर रूठ कर जाने के बाद, मेरे हाल लेने जिसे वह मेरे पास भेज दिया करती थी वो वक्त छूट गया ,चांदनी चली गयी पत्ता टूट गया ,हवा चली गयी और उन्ही के संग संग वह भी मुझे कहीं नही मिलती अब वह फिर भी हम दोनों के दरमियां एक डोर है जो टूटती नही
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