22-04-2014, 10:57 PM | #1 |
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दूसरों के रास्तों में काँटे बोएंगे तो ...bansi
अपने रास्ते में फूल पाएँगे कैसे खुले दिल से अगर ना सोचेंगे तो सोच अपनी बदल पाएँगे कैसे सही रास्ता पे कदम ना बड़ाएँगे तो दूसरों को सही रास्ता दिखाएँगे किसे मोहबत अगर हम देंगे नहीं तो मोहबत किसी से हम पाएँगे कैसे दोस्ती अगर हम निभाएँगे नहीं तो दोस्त किसी के हम कहलाएँगे कैसे संस्कारी अगर हम खुद ना होंगे तो बच्चों को संस्कारी बनाएँगे कैसे बच्चों के सामने झूठ बोलेंगे तो सच बोलना उन्हें सिखाएँगे कैसे देते रहेंगे दुख औरों को तो खुद सुखी रह पाएँगे कैसे अपनी उलझानो में उलझते रहेंगे तो ‘बंसी ‘दूसरों की उलझने सुलाएँगे कैसे .....................बंसी(मधुर) Last edited by Bansi Dhameja; 22-04-2014 at 11:00 PM. |
22-04-2014, 11:11 PM | #2 |
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Re: दूसरों के रास्तों में काँटे बोएंगे तो ...bansi
बहुत उम्दा रचना प्रस्तुत की है आपने, बंसी जी. जब तक हम अपनी सोच का दोहरापन नहीं हटायेंगे तब तक इनसे उपजी समस्याएं कैसे खत्म हो सकती हैं???
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25-04-2014, 02:51 PM | #3 |
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Re: दूसरों के रास्तों में काँटे बोएंगे तो ...bansi
दूसरों के रास्तों में काँटे बोएंगे तो
अपने रास्ते में फूल पाएँगे कैसे खुले दिल से अगर ना सोचेंगे तो सोच अपनी बदल पाएँगे कैसे आपने बहूत अच्छी रचना पेश की हे सीधा तात्पर्य की पहले खुद को सुधारो फिर दूसरो को |
26-04-2014, 08:03 AM | #4 |
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Re: दूसरों के रास्तों में काँटे बोएंगे तो ...bansi
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26-04-2014, 08:04 AM | #5 |
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Re: दूसरों के रास्तों में काँटे बोएंगे तो ...bansi
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