05-07-2011, 06:47 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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प्यार की तासीर
खुमार इश्क का चढ़ता है क्यों , आहिस्ता - आहिस्ता . सफर में ज़िन्दगी के,लोग तो बहुत मिलते ; दिल में बस जाता कोई शख्स क्यों, अहिस्ता - आहिस्ता . हर घड़ी सजने संवरने का जी क्यों करता है ; हसीन लगने लगी ज़िन्दगी क्यों , आहिस्ता - आहिस्ता . पाँव क्यों इन दिनों , ज़मीन पर नहीं टिकते ; पंख क्यों उगने लगे मेरे , आहिस्ता - आहिस्ता . किसी का इंतज़ार , हर घड़ी क्यों रहने लगा ; जवाब देने लगा सब्र क्यों , आहिस्ता - आहिस्ता . दिन गुज़र जाता , नए हवा महल गढ़ने में ; रात में नींद क्यों उड़ने लगी, आहिस्ता - आहिस्ता . क्यों बार - बार खुद को देखता , आईने में ; किसी का अक्स उसमें उभरता क्यों, आहिस्ता - आहिस्ता . अभी कमसिन हैं , उनको प्यार की रस्में नहीं आतीं ; कली बन जाएगी , खिल के गुलाब ,आहिस्ता - आहिस्ता . आज नेमत मिली जो इश्क की ,जी भर , जी लूँ ; सुना है , हुस्न बदलता है रंग , आहिस्ता - आहिस्ता . किसी को रंग के , अपने इश्क से , गर कोई फिरा ; कोई जायेगा , अपनी जान से , आहिस्ता - आहिस्ता . रचनाकार ~~ डॉ. राकेश कुमार श्रीवास्तव लखनऊ , इंडिया . |
28-04-2014, 04:51 PM | #2 |
Special Member
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Re: प्यार की तासीर
आपकी गजल हमारे दिल में बस गयी , आहिस्ता - आहिस्ता .
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