12-08-2013, 06:56 PM | #1 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
चिट्ठियाँ
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
12-08-2013, 06:58 PM | #2 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: चिट्ठियाँ
'सुनो, मेरे नाम जो ख़त लिखे थे, वो किसी लाल डब्बे (post box) में गिरा दो'
'क्यूँ?' 'ख़त लिख के नहीं गिराने से विद्या चली जाती है' 'कौन सी विद्या' 'चिट्ठी लिखने की' 'मुझे कौन सी चिट्ठी लिखनी आती है' 'वो मैं नहीं जानती, बस मेरे नाम की सारी चिट्ठियां किसी और को भेज दो' 'किसे भेज दूं?' 'किसी को भी भेज दो' 'और जो तुम्हारा नाम लिखा है, सब चिट्ठी के ऊपर सो? पीटेगी न कोई भी लड़की' 'मेरे नाम की एक ही लड़की को थोड़े जानते हो तुम' 'इतना प्यार मुहब्बत से लिखा हुआ चिट्ठी है, ऐरी गैरी किसी को भी कैसे भेज दें, उसको समझ में भी आएगा कुच्छो?' 'ऐसा कौन अजनास बात लिख दिए हो जो किसी को समझ नहीं आएगा, खुल्ला चिट्ठी है, और जो नहीं समझ में आये तो बैठ के समझा देना' 'इतना मेहनत जो करेंगे तो हमको क्या मिलेगा?' 'क्या चाहिए तुमको?' 'तुम' 'मेरा क्या करोगे?' 'बोतल वाला चिट्ठी में बंद करके समंदर में डाल देंगे' 'और जो हम किसी और को मिल गए तो?' 'जिसका किस्मत फूटा है उसको मिलेगा...हम पूरी दुनिया का ठेका लिए हैं' 'इतना है तो हमको इतना चिट्ठी काहे लिखे हो, और कोई काम नहीं था तुमको दुनिया में करने के लिए. इतना में कुछ लिख पढ़ जाते तो आज चार पैसा कमा लेने लायक हो जाते' 'चार पैसा कमाने लायक हो जायेंगे तो हमसे बियाह कर लोगी?' 'नहीं' 'काहे?' 'तुम खाली बोलते हो, तुमको कौनो काम धंधा में मन नहीं लगता है, टिकुली के मामाजी अपना दूकान पर जो तुमको रखवाए थे, सो काहे भाग आये वहां से?'
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
12-08-2013, 06:58 PM | #3 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: चिट्ठियाँ
लड़के की आँखों के सामने वो भयानक दिन कौंध जाते हैं. एक बार खाना मिलता था, वो भी आधा पेट...उसपर धौंस और अहसान अलग से. चिलचिलाती लू में दिन भर बोरी उठा उठा कर गोदाम में रखना होता था. सेठ के पास कितना अनाज था, जौ, चना, मक्का, धान, गेहूं...रोज कमसे कम बीस बोरे वो अकेला गिन के उतारता था लेकिन देने को जी जरा भी नहीं. खाने में एक मुट्ठी ज्यादा चावल मांग लो तो सेठानी का कलेजा फट जाता था. रात को मारे भूख के नींद नहीं आती थी...माँ की याद आती थी, गाँव की याद आती थी. स्कूल ड्रेस में तैयार हुयी तितली भी तो याद आती थी उसे. काजल लगी काली काली आँखें, कित्ती तो सुन्दर लगती थी. वहां दूर अबोहर में एक पल फुर्सत नहीं मिलता था. कभी कभार जो ट्रक आने में देर हो जाती थी तो भाग कर लंगर चला जाता था. वहां सफ़ेद चोगे में जो बाबाजी दिखते थे उनसे उसे अक्सर गाँव के मुखिया की याद आती थी. मुखिया की बेटी तितली. स्कूल में उसके साथ पढ़ती. उसके लिए टिफिन में आम की फांक वाला अचार रखती. उसकी उँगलियों से कैसी शुद्ध घी की खुशबू आती थी, तितली की माँ टिफिन में पराठे देती थी अक्सर. वो कभी कभी उसकी चोटी छू कर देखता था...उसके बाल कितने चिकने थे. स्कूल में सीडीपीओ वाली मैडम आयीं थीं...उनकी साड़ी कैसे फिसलती थी. सब बच्चों के कहा कि रेशम की साड़ी है. उसे रेशम नहीं मालूम था मगर तितली के बाल बहुत मुलायम लगते थे. तितली की माँ उसके बालों में हर रोज़ खूब सारा तेल चुपड़ कर भेजती थी. गुरुवार को जब तितली बाल धोती थी तो कैसे फर फर उड़ते थे उसके बाल. सबकी माँ कहती थी गुरुवार को बाल धोने से अच्छा पति मिलता है.
सेठ के यहाँ ऐसी नौबत आ गयी कि कुछ दिन और रुकता तो जान चली जाती...एक दिन हिम्मत करके वो वहां से भाग गया. एक ट्रेन से दूसरी ट्रेन होते हुए वो कितनी तो जगहें हो आया. देश के नक़्शे में देखते थे तो कहाँ समझ आता था कि देश कितना बड़ा है. पढ़ाई बचपन में छूट गयी थी. घर का खर्चा खाली बाबूजी के रिक्सा चलाने से पूरा नहीं पड़ता. उसे बहुत सारा काम आता था और हाथ में बड़ी सफाई थी. जब उसे मालूम भी नहीं था कि देश कितना बड़ा है वो अनगिनत पैसेंजर गाड़ियों पर बैठ कर एक छोर तक पहुँच गया था. वहां उसने नारियल के रेशे से रस्सी बटाई करनी सीखी. वो नाव भी बहुत अच्छे से खे लेता था और अक्सर गाँव के छोटे मोटे काम कर देता था. कभी कोई खाना दे देता, कभी कोई छाछ पिला जाता. बहुत दिनों तक उसे यहाँ का खाना पचता नहीं था. बेहद खट्टा और अजीब. रोटी खाए बहुत दिन हो जाते. याद में रोटी पकने की गंध उठती और वो घर की याद में छटपटा जाता. उसे कहाँ मालूम था कि देश कितना बड़ा है. उसे बस गाँव का नाम मालूम था. भटकते आया था तो वापसी का रास्ता मालूम भी नहीं था. देश का मानचित्र देख कर सोचता कि कहाँ गाँव होगा. गाँव की याद में तितली की आँखें चमकती...उसका लाल रिबन, माथे पर छोटी सी बिंदी. वो सोचता कि इतने सालों में तितली जरूर कलक्टर बन गयी होगी. उसकी लाल बत्ती वाली गाड़ी घर के आगे आती होगी तो पूरा गाँव जुट जाता होगा. दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करता, पैसे जोड़ता कि तितली के लिए एक रेशम की साड़ी खरीद सके. सोचता कि उसके बच्चों के लिए कुछ खरीद लेना चाहिए. इतने सालों में तो तीन बच्चे तो हो ही गए होंगे. तितली के जैसे ही होंगे, सांवले, तीखे नाक नक्श वाले. तितली की बेटी होगी तो कैसी होगी...इतने सारे सवाल वो चिट्ठियों में लिखता जाता. दिन भर के बाद उसे जो वक़्त मिलता उसमे सिर्फ तितली को ख़त लिखता. उसे ख़त लिखने से उम्मीद बंधती थी कि एक दिन घर लौट के जाना होगा.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
12-08-2013, 06:59 PM | #4 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: चिट्ठियाँ
एक दिन एक स्कूल में उसे वही सीडीपीओ वाली मैडम दिख गयीं...वो स्कूल के बच्चों का खाना बना रहा था कि बचपन का सारा मंज़र आँख के सामने घूम गया. मैडम से उसे अपने घर का पूरा पता मिला. कभी कभी अजनबियों के ऊपर दूसरे जनम के अहसान होते हैं. मैडम पूरे देश का मुआयना करने निकली थीं. अगले दिन वापस जा रहीं थीं. उसी गाड़ी में उसे भी जगह मिल गयी. उसके हाथ के खाने की धूम मच गयी थी.
गाँव लौटते हुए महीना लग गया. मैडम जी ने उसे गाँव के स्कूल में ड्राइवर की नौकरी दिलाने की बात कर ली थी. स्कूल अब काफी बड़ा हो गया था और दूर दूर के बच्चे वहां पढ़ने आते थे. घर पहुंचा तो माँ उसे देख कर लगभग बेहोश हो गयी . इतने बरसों में सब उसे मरा हुआ ही मान चुके थे. दिन भर लोगों का तांता लगा रहा. रात को बात करते हुए माँ पूरी गाँव की खबर सुना रही थी. मुखिया जी का रांची में इलाज चल रहा था. तितली शादी के दो साल बाद विधवा हो गयी थी. सास ने मनहूस बोल कर उसे घर से बाहर कर दिया था. दो साल में एक भी बाल बच्चा नहीं था. कितने धूम धाम से मुखिया जी ने शादी की थी उसकी...पूरे सात कोस के गाँव तक को न्योता दिया था. जाने किसकी बुरी नज़र लग गयी बच्ची को. तितली को देखा तो मन में ऐसी हूक उठी जैसे खुद के जिस्म का एक हिस्सा मर गया हो. चेहरे पर उजाड़ उदासी. तितली इतनी बेरहम भी हो सकती थी. छोटी छोटी चीज़ों के लिए बच्चों की खाल उधेड़ दिया करती. छड़ी बरसाना शुरू करती तो रूकती ही नहीं. बच्चे उससे सहमे सहमे रहते. आवाज़ ऐसी तीखी कि जैसे छाले पड़े हों. वो तितली को जानता था. ये उसका तरीका था अपने भीतर के दर्द को रोके रखने का...तितली को चोट लगती थी तो बाकी लड़कियों की तरह रोती नहीं थी...गुस्से में लाल हो जाती थी. उस बचपन में उसका गुस्सा ऐसा होता था कि जैसे तालाब सुखा डालेगी. अब मगर उदासी के साथ गुस्सा मिलता तो विद्रूप होता जाता. लड़का सोचता कि पहले वाली तितली कहाँ खो गयी...कहीं से चाबी मिले तो वो वापस से उसे ले कर आये.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
12-08-2013, 07:00 PM | #5 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: चिट्ठियाँ
वो रोज तितली से बात करता. शुरुआत के कुछ दिन तो बस ऐसे ही दिन भर के इधर उधर के किस्से, तितली भी बस बच्चों की कामचोरी की बात करती. उनके पढ़ने को लेकर चिंतित रहती. धीरे धीरे वे सांझतारे की बातें करने लगे. उम्र के इस पड़ाव पर क्या चाहिए होता है...लड़का अपने कच्चे घर में सुखी था. ड्राईवर की नौकरी से इतने पैसे हो जाते थे कि बरसात में छापर टाप सके. माँ की दवाइयां और एक वक़्त के लिए दूध खरीद सके. तितली मगर दुःख का अबडब करता कुआँ थी...जिंदगी को लेकर कोई बहुत बड़े सपने उसने भी नहीं देखे थे. कलक्टर बनने का सपना तो उसके बाबूजी का था...मगर जब उनके बचपन के दोस्त के तितली का हाथ अपने बेटे के लिए माँगा तो बाबूजी उसकी लाल चूनर में बस 'दूधो नहाओ पूतो फलो' का आशीर्वाद रख सके. लड़का कभी कभी फुर्सत में होता तो तितली को अपनी पुरानी चिट्ठियां सुनाता. तितली ने इतना नेह देखा नहीं था. उसकी दुनिया में जताने वाले लोग नहीं थे. किसी को बिना मांगे इतना गहरा मन में बसा लेना कैसा तो होता होगा. बाबूजी ने अपने ख्वाब जैसे लड़के की आँखों में रोप दिए थे, वो हर रोज़ तितली को लाल बत्ती वाली गाड़ी का वास्ता देता...पढ़ने के लिए अख़बार ला देता. देश दुनिया की कहानियां सुनाता. तितली को उसकी आदत लगती जा रही थी. उसे अब कभी कभी पहले की तरह दो चोटियाँ गूंथ कर उनमें लाल रिबन लगाने का मन करता. साड़ी में गोटा लगाने का मन करता.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
12-08-2013, 07:00 PM | #6 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: चिट्ठियाँ
ऐसे ही किसी दिन लड़के ने पूछ दिया था
'चार पैसा कमाने लायक हो जायेंगे तो हमसे बियाह कर लोगी?' कोरी आँखों में सपने बहुत बड़े थे. टिकुली का कहना था दोनों मिल कर कलक्टरी की तैयारी करें. साथ पढ़ने से तैय्यारी अच्छी होती है. लड़के को बिलकुल भी यकीन नहीं था कि वो एक्जाम पास कर सकता है, किताबें देखे उसे बहुत साल हो गए थे. तितली जिद्दी थी लेकिन. रोज स्कूल ख़त्म होने के बाद दोनों साथ बैठ कर किसी भी क्लासरूम में पढ़ते रहते. उनके पढ़ने की खबर कुछ दूर गाँवों तक पहुंची और उनके जानने के पहले उनके साथ चार लोग और भी पढ़ने लगे थे. साल बीतते कुल जमा पच्चीस लड़के और लड़कियों उनके गाँव आ कर साथ में पढने लगे. कोई कोस्चन का जुगाड़ कर देता तो फिर देर रात सब उसका हल निकलने में लग जाते. कई बार तो भोर हो जाती. पूरा गाँव आस लगाए इन पच्चीस नौजवानों को देख रहा था कि गाँव का नाम पहले कौन रोशन करेगा. उन्हें किसी चीज़ की हड़बड़ी नहीं थी...दो साल बीतते सबको यकीन था कि तैयारी अच्छे से हो गयी है. एक्जाम देने सब स्कूल की गाड़ी में बैठ कर गए. अकेला सपना अब साझा हो गया था. उनके पास हारने को कुछ था भी नहीं. रिजल्ट अख़बार छापाखाने से आउट हो गया...एरिया का रिपोर्टर रात के साढ़े बारह बजे तितली के घर का दरवाजा पीट रहा था. तितली एक्जाम टॉपर थी. साथ के सात लोगों का बेहद अच्छा रिजल्ट आया था. डिस्ट्रिक्ट में धूम मच गयी थी. लड़का मंदिर में लड्डू चढ़ाने गया तो तितली भी साथ थी...अब तितली के हिसाब से चार पैसे कमाने लायक हो गया था वो. पंडित जी ने वसंत पंचमी का मुहूर्त निकाला था. पूरा गाँव उनके नाम से रोशन हो रहा था. तितली आखिरी चिट्ठी पढ़ रही थी 'प्यार को हम अक्सर कितना छोटा कर देते हैं...सिर्फ अपना दर्द देखते हैं...प्यार तो बहुत बड़ा होता है...आसमान से ऊंचा...समंदर से विशाल...प्यार तो जोड़ता है...प्रेरणा देता है...रास्ता दिखलाता है...जब हम किसी से प्यार करते हैं तो पूरी दुनिया इसकी परिधि में आ जाती है और हम कुछ अच्छा करना चाहते हैं, कुछ नया बनना चाहते हैं.' ---
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
12-08-2013, 07:01 PM | #7 |
Exclusive Member
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99 |
Re: चिट्ठियाँ
अनगिन रंग रुलाता, कितने बसंत खिलता, सावन पूर्णिमा को रक्षा का वचन निभाता...कैसा तो होता है प्यार...मुस्कुराता...फागुन में बौराता...समझाता...और अगर सच्चा हो...मन से कोरा तो प्यार समंदर की तरह विशाल होता है...उसमें से कभी कुछ घट नहीं सकता...लहरों के पास अनगिन सीपियाँ हैं...मोती हैं...कौड़ियाँ हैं...मर्जी कि इस किनारे से हम क्या वापस ले कर आते हैं.
--- लड़के ने फिर सारी चिट्ठियां उस पते पर भेज दीं...मेरा गाँव भी पास ही है...सोच रही हूँ कब चली जाऊं डाकखाने. कि उन चिट्ठियों का जवाब लिखने का दिल कर रहा है. =======v=v=v=v=v============
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
Bookmarks |
|
|