06-11-2011, 12:12 AM | #1 |
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उपनिषदों का काव्यानुवाद
वैदिक साहित्य में चार वेदों के पश्चात उपनिषदों का स्थान है ! इनकी संख्या मुख्य रूप से 9 है, लेकिन इन्हें 108 तक माना गया है और ये सभी वेदों की तरह काव्य शैली में रचे गए हैं ! इस सूत्र में मैं सभी 9 उपनिषदों का मृदुलकीर्ति द्वारा किया गया हिन्दी भावानुवाद क्रमशः प्रस्तुत करूंगा ! सर्वप्रथम प्रस्तुत है 'ईशावास्य उपनिषद' का हिन्दी भावानुवाद !
ईशावास्य उपनिषद ॐ समर्पण परब्रह्म को उस आदि शक्ति को, जिसका संबल अविराम, मेरी शिराओ में प्रवाहित है। उसे अपनी अकिंचनता, अनन्यता एवं समर्पण से बड़ी और क्या पूजा दूँ ? शान्ति मंत्र पूर्ण मदः पूर्ण मिदं पूर्णात पूर्ण मुदचत्ये, पूर्णस्य पूर्ण मादाये पूर्ण मेवावशिश्यते परिपूर्ण पूर्ण है पूर्ण प्रभु, यह जगत भी प्रभु पूर्ण है, परिपूर्ण प्रभु की पूर्णता से पूर्ण जग सम्पूर्ण है, उस पूर्णता से पूर्ण घट कर पूर्णता ही शेष है, परिपूर्ण प्रभु परमेश की यह पूर्णता ही विशेष है। |
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