01-12-2012, 06:24 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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लड़की
किसी पे हुस्न की दौलत , किसी पे थोड़ी कड़की है ;
जहां में सबसे उम्दा फिर भी नेमत सिर्फ़ लड़की है . न जाने कौन सी शय ले के आयी है ये दुनिया में ; सभी मर्दों के सीने में ये ख्वाहिश बन के धड़की है . जहाँ पहुँचा दे किस्मत , पर नशा सबमें ही होता है ; शराब आख़िर शराब ही है , दुकां भर छोटी - बड़की है . कुछ इसकी बेबसी वरना ये काटे कान मर्दों के ; बस अपने जिस्म के चुगलीपने से सहमी हड़की है . है गहरी झील सी आँखों में फ़िर भी जादुई पानी ; जो डूबे इसमें जितना , उसमें उतनी प्यास भड़की है . मैं छज्जे से जिसे हूँ ताकता , कुछ तो इशारा दे ; क्या उसके दिल की कुण्डी भी मेरी नज़रों से खड़की है . मुझे तो लगता , वो भी याद करती मुझको रह - रह के ; तभी तो आँख अक्सर मेरी ख़ुब जोरों से फड़की है . रचयिता~~ डॉ .राकेश श्रीवास्तव विनय खण्ड - 2 , गोमती नगर , लखनऊ . |
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