29-01-2016, 03:38 PM | #1 |
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श्रीगणेश से सीखिए बिजनेस मैनेजमेंट के सूत
श्रीगणेश से सीखिए बिजनेस मैनेजमेंट के सूत्र
गणेशजी का बड़ा सिर गणेशजी का बड़ा सिर हमें बताता है कि बिजनेस में हमेशा बड़ी सोच रखकर ही आगे बढ़ना चाहिए। अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए हमारे पास एक ठोस प्लान होना चाहिए। हमारा टारगेट भी हमेशा बड़ा ही होना चाहिए। जब हमारे पास बड़ा टारगेट और एक पुख्ता प्लान होगा तो निश्चित रूप में हम अपने बिजनेस को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सफल होंगे। बड़े कान गणेशजी के बड़े कानों में बिजनेस मैनेजमेंट से जुड़ा एक खास सूत्र छिपा है। बड़े कान हमें बताते हैं कि बिजनेस करते समय हमे हमेशा सजग रहना चाहिए। बिजनेस के क्षेत्र में हो रही हर छोटी-बड़ी घटनाओं के बारे में हमें जानकारी होना चाहिए। हमारा सूचना तंत्र इतना मजबूत होना चाहिए कि हमारे बिजनेस को प्रभावित करने वाली बात हमें तुरंत पता होनी चाहिए ताकि हम समय पर अपनी रणनीति बना सकें। छोटी आंखें गणेशजी की छोटी आंखें हमें बताती हैं कि बिजनेस में हमें सदैव अपना लक्ष्य निर्धारित रख कर आगे बढ़ना चाहिए। अगर हम कोई नया बिजनेस करने जा रहे हैं तो हमारा ध्यान पूरी तरह हमारे लक्ष्य पर ही केंद्रित होना चाहिए। छोटी आंख वाले सभी जीवों की नजर बहुत तेज होती है और उनका ध्यान पूरी तरह अपने लक्ष्य पर ही होता है। एकदंत भगवान श्रीगणेश को एकदंत भी कहते हैं, क्योंकि एक दांत पूर्ण तथा दूसरा टूटा हुआ है। श्रीगणेश का एक दांत हमें बताता है कि जब भी हम कोई नया बिजनेस शुरू करें तो उसके बारे में हमें पूरी जानकारी होना चाहिए। तब ही बिजनेस में सफलता संभव है। टूटा हुआ दांत संसाधन का प्रतीक है। यानी संसाधन कम भी हो तो कोई बात नहीं, क्योंकि संसाधन बाद में जुटाए जा सकते हैं, लेकिन बिजनेस का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है। सूंड से सीखें ये बातें भगवान श्रीगणेश की सूंड में भी बिजनेस मैनेजमेंट का एक खास सूत्र छिपा है। जैसे हाथी की सूंड बड़ी होती है, उसी तरह हमारे बिजनेस संपर्क भी दूर-दूर तक होना चाहिए ताकि उनका लाभ भी हमें समय-समय पर मिलता रहे। सूंड की पकड़ भी मजबूत होती है इसका अभिप्राय यह है कि कर्मचारियों पर भी हमारी पकड़ मजबूत रहे। ताकि किसी भी हाल में हम अपने स्पर्धियों से पिछड़े न। बड़ा पेट बिजनेस में लाभ-हानि होती रहती है। कभी-कभी हानि का अनुपात ज्यादा हो जाता है। ऐसी स्थिति में गणेशजी का बड़ा पेट हमें सीखाता है कि हमारे अंदर हानि पचाने की भी पूर्ण क्षमता होनी चाहिए। हानि के कारण यदि हम विचलित हो जाएंगे तो आगे जाकर उसे लाभ में परिवर्तित नहीं कर पाएंगे। |
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