06-07-2015, 09:44 PM | #1 |
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मुशायरे में मेरी पहली शिरकत ...bansi
पहली बार मुशायरे में कविता सुनाना याद आ गया नया नया कविता लिखना सीखा था मैं अपना लिखा साथियों को सुनता था मैं जहाँ भी शायरी हो पहुँच जाता था मैं एक दोस्त को बहुत अच्छा लागत था मैं उसने एक बड़े मुशायरे का आयोजन किया हमें पत्नी के साथ आने का नियोता भी दिया आकर कविता सुनाने का आग्रह भी किया यारो मेरी खुशी का ठिकाना ना था बड़े बड़े कवियों से मिलना जो था उनके बीच मुझे कुच्छ सुनाना जो था पत्नी के साथ पहुँच गया था मैं मंच पर पत्नी के साथ बैठ गया था मैं मुशायरा भी वो क्या मुशायरा था बड़े बड़े शायरों का शायराना था कितना ना हम को मज़ा आ रहा था खूब तालियाँ बज रहीं थीं वाह वाह भी बहुत हो रही थी कविता सुनाने का मौका हमे जब मिला सुनाना शुरू किया तो सुनता चला गया सुनाना जब मैने पूरा किया तो एक जूता आ कर मंच पर गिरा मैं घबराया कुच्छ समझ ना आया बेगम से कहा” मैं क्या करूँ बेगम तुम ही बता दो “ बोली ”एक जूते से काम चलेगा नहीं एक कविता और सुना दो “ ------बंसी(मधुर) |
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