04-04-2011, 04:16 PM | #1 |
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Satsang (सत्संग)
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04-04-2011, 04:17 PM | #2 |
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Re: Satsang (सत्संग)
व्यायाम, रात्रि-जागरण, पैदल चलना, मैथुन, हँसना और बोलना – इन्हें अधिक मात्रामें करनेपर मनुष्य नष्ट हो जाता है।
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04-04-2011, 04:18 PM | #3 |
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Re: Satsang (सत्संग)
Just as fire burns on touching it even though one does not want to be burnt, in the same way Ganga washes away the sins of mankind even when it is not so intended.”
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04-04-2011, 04:19 PM | #4 |
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Re: Satsang (सत्संग)
व्रत के समय बार-बार जल पीने, दिनमें सोने, ताम्बूल चबाने और स्त्री-सहवास करनेसे व्रत बिगड जाता है।
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04-04-2011, 04:19 PM | #5 |
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Re: Satsang (सत्संग)
विष्णुके मन्दिरकी चार बार, शंकरके मन्दिरकी आधी बार, देवीके मन्दिरकी एक बार, सूर्यके मन्दिरकी सात बार और श्रीगणेशके मन्दिरकी तीन बार परिक्रमा करनी चाहिये ।
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04-04-2011, 04:22 PM | #9 |
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Re: Satsang (सत्संग)
जो केवल अपने लिये ही भोजन बनाता है, जो केवल काम-सुखके लिये ही मैथुन करता है और जो केवल आजीविका प्राप्त करनेके लिये ही पढाई करता है, उसका जीवन निष्फल है।
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04-04-2011, 04:22 PM | #10 |
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Re: Satsang (सत्संग)
पतिके कार्योंके लिये तो रजस्वला स्त्री चौथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है, पर देवकार्य और पितृकार्यके लिये वह पाँचवें दिन शुद्ध होती है।
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