28-08-2013, 11:46 AM | #1 |
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'हाहाकार' के लिए चिदंबरम ने प्रणव को जिम्मे
मार्केट के धराशायी होने और रुपए के गर्त में जाने के लिए अब तक चिदंबरम ग्लोबल इन्वाइरनमेंट को जिम्मेदार ठहराते थे, लेकिन अब उन्होंने यह कहना शुरू कर दिया है कि इसके लिए डोमेस्टिक प्रॉब्लम्स भी जिम्मेदार हैं। राज्यसभा में फ़ाइनैंस मिनिस्टर ने कहा कि ये प्रॉब्लम्स और कम से इनका एक हिस्सा उनके पूर्ववर्ती के वक्त से शुरू होता है। प्रश्नकाल के दौरान राज्यसभा में चिदंबरम ने कहा, 'केवल एक्सटर्नल फैक्टर्स ही नहीं हैं, इसके लिए डोमेस्टिक फैक्टर्स भी जिम्मेदार हैं। एक डोमेस्टिक फैक्टर यह है कि हमने फिस्कल डेफिसिट के टारगेट को टूटने दिया और हमने करेंट अकाउंट डेफिसिट को बढ़ने दिया, इसकी वजह 2009 से 2011 के दौरान किए गए कुछ खास फैसले थे।' जिस वक्त चिदंबरम सदन में बयान दे रहे थे उस वक्त रुपया 18 साल में अपनी सबसे बड़ी गिरावट की ओर आगे बढ़ रहा था। मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 3 फीसदी गिरकर 66.24 के लेवल पर बंद हुआ। पिछले साल अगस्त में चिदंबरम को होम मिनिस्टर से हटाकर फ़ाइनैंस मिनिस्टर बनाया गया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि उस वक्त के फ़ाइनैंस मिनिस्टर प्रणव मुखर्जी देश के प्रेजिडेंट के पद के लिए चुन लिए गए थे। चिदंबरम अपने पूर्ववर्ती के 2009 से 2012 के कार्यकाल की आलोचना करते दिखाई दे रहे थे। इस दौरान भारत मुश्किल से अपनी इन्वेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग को बचा पाया था। उन्होंने कहा, 'फिस्कल स्टिमुलस से हमें ग्रोथ मिली है, इससे इकॉनमी स्टेबलाइज हुई है। हमने अमेरिकी इकॉनमी पर 2008 में आए संकट के बुरे असर को झेला है। लेकिन इससे हमारे फिस्कल डेफिसिट और करेंट अकाउंट डेफिसिट पर बुरा असर पड़ा है।' ग्लोबल फ़ाइनैंस क्राइसिस से निपटने के लिए सरकार ने 2008 के अंत में टैक्स कटौती और खर्च में इजाफा किया था। एचडीएफसी बैंक के चीफ इकनॉमिस्ट अभीक बरुआ के मुताबिक, 'फिस्कल ओवरस्ट्रेच और ऊंचा करेंट अकाउंट डेफिसिट पिछली व्यवस्था की देन है। हमें हालिया पॉलिसी की खामियों की सजा नहीं मिल रही है, बल्कि हम गुजरे वक्त में की गई खामियों को भुगत रहे हैं। चीजें रातों-रात नहीं बदली जा सकती हैं। मुझे लगता है कि ग्लोबल असर भी काफी अहम है।' ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब चिदंबरम ने अपने पूर्ववर्ती फ़ाइनैंस मिनिस्टर की आलोचना की हो। इससे पहले 22 अगस्त को रिपोर्टरों से बात करते वक्त उन्होंने कहा था, 'हमने एफआरबीएम टारगेट्स को टूटने की इजाजत दी। हमने डब्ल्यूपीआई और रीटेल इनफ्लेशन को 10 फीसदी से ऊपर जाने दिया और अब इसके असर दिखाई दे रहे हैं।' 2011-12 के दौरान फिस्कल डेफिसिट जीडीपी के 5.9 फीसदी पर पहुंच गया था, जबकि इसके लिए बजट में 4.6 फीसदी का टारगेट था। सरकार खर्च और सब्सिडी पर लगाम लगाने में नाकाम रही। इसका असर यह हुआ कि रेटिंग एजेंसियों ने इंडिया की सॉवरेन रेटिंग को वॉच पर रख दिया।
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