02-08-2012, 03:17 PM | #1 |
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समाचार - जरा हट के।
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02-08-2012, 03:21 PM | #2 |
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Re: समाचार - जरा हट के।
एक गांव ऐसा जहां राखी नहीं बंधवाते भाई रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का अनोखा त्योहार है। यूं तो यह हिंदुओं का त्योहार है, लेकिन इतिहास साक्षी है कि इस त्योहार को अन्य धर्म के लोग भी मनाते आ रहे हैं। कारण यह है कि यह त्योहार बनावटीपन से दूर है और रिश्तों की महत्ता को बताता है। लेकिन हमारे देश के उत्तर प्रदेश के संभल जिले में यह अनोखा त्योहार नहीं मनाया जाता है। यहां कोई भाई अपनी किसी बहन से सिर्फ इसलिए राखी नहीं बंधवाता है कि कहीं उसकी बहन उससे कहीं ऐसा उपहार न मांग ले, जिससे उसको अपना घर बार त्यागना पड़ जाए। संभल के बेनीपुर चक गांव में रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाया जाता है। यहां कोई बहन अपने भाई को राखी नहीं बांधती है। ऐसा क्यों है, इसका प्रमाणिक जवाब तो किसी के पास नहीं, लेकिन बुजुर्गों की जुबानी एक कहानी प्रचलित है। बुजुर्ग ऋषिराम यादव बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले उनके बुजुर्ग अलीगढ़ की अतरौली तहसील के गांव सेमरई के निवासी थे। यह यादव और ठाकुर बाहुल्य गांव था। जमींदारी यादव परिवार की ही थी। जमींदार यादव और एक ठाकुर परिवार में बड़ी घनिष्ठता थी। ठाकुर के कोई बेटा नहीं था, इसलिए ठाकुर परिवार की एक युवती यादव परिवार के लड़कों को अपना भाई मानते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती थी। परंपरा के अनुसार यादव भाई अपनी बहन को उपहार भी देते थे। एक दिन बताते हैं कि एक बार ठाकुर की बेटी ने यादव के पुत्रों को राखी बांधी। जमींदार ने पूछा बेटी तुम्हें क्या चाहिए, जो मांगोगी, वही दिया जाएगा। ठाकुर की बेटी ने जमींदार यादव से उनके गांव की जमींदारी मांग ली। बात के धनी जमींदार अपनी मुंहबोली बहन को रक्षाबंधन के दिन ही गांव और उसकी जमींदारी देकर खुद गांव से निकल गए। हालांकि बाद में ठाकुर बहन ने बहुत कहा कि यह तो मजाक था, लेकिन यादव परिवार ने कहा कि हमारे यहां बहनों से मजाक की परंपरा नहीं है, जो दे दिया, सो दे दिया। वह जमींदार यादव परिवार संभल के बेनीपुर गांव पहुंचकर बस गए. यह यादव परिवार मेहर और बकिया गोत्र के हैं। उस दिन के बाद इन परिवारों ने बहनों से राखियां बंधवाना इस लिए छोड़ दिया, कि कहीं दोबारा कोई बहन उन्हें अपना घर बार छोड़ने पर मजबूर न कर दें। मेहर गोत्र की बाहुल्यता वाले बेनीपुर चक में रक्षाबंधन नहीं बनाया जाता. ग्रामीण भगवंत सिंह, श्योराज सिंह, सुरेंद्र सिंह, गनेशी सिंह ने बताया कि मेहर गोत्र के लोग आसपास के कटौनी, चुहरपुर, महौरा लखुपुरा, बड़वाली मड़ैया में भी रहते हैं, वह परिवार भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते। |
03-08-2012, 08:57 PM | #3 |
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Re: समाचार - जरा हट के।
क्या हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल नही है। सूचना के अधिकार कानून के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में खेल मंत्रालय ने हैरान करने वाला जवाब दिया है। मंत्रालय ने कहा है कि सरकार ने किसी भी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं दिया है।
लखनऊ की 10 वर्षीय ऐश्वर्य पाराशर ने प्रधानमंत्री कार्यालय को आरटीआई के तहत राष्ट्रगान, राष्ट्रीयगीत, राष्ट्रीयखेल, राष्ट्रीयपक्षी, राष्ट्रीयपशु, राष्ट्रीयफूल और प्रतीक की घोषणा के आदेशों की प्रति मांगी थी। पीएमओ से यह सवाल गृह मंत्रालय को भेजे गए, जिसने राष्ट्रीय खेल का मसला खेल मंत्रालय को भेजा। खेल मंत्रालय के अवर सचिव शिवप्रताप सिंह तोमर ने ऐश्वर्य को जवाब में लिखा कि सरकार ने किसी खेल को राष्ट्रीय खेल का दर्जा नहीं दिया है। जबकि भारत सरकार की अधिकारिक वेबसाइट पर हॉकी को राष्ट्रीय खेल बताया गया और उसकी उपलब्धियों का ब्यौरा भी दिया गया है।
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