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Old 19-09-2013, 12:42 PM   #1
Dr.Shree Vijay
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मजेदार ज्ञानवर्धक मुहावरे.............................



__________________


*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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Old 19-09-2013, 05:57 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

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Originally Posted by Dr.Shree Vijay View Post

मजेदार ज्ञानवर्धक मुहावरे.............................




बहुत बहुत आभार, डॉक्टर साहब.
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Old 19-09-2013, 06:01 PM   #3
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

मुहावरों की कहानी: नमक हराम
काशी नरेश ब्रह्मदत्त का पुत्र बचपन से ही दुष्ट स्वभाव का था। वह बिना कारण ही मुसाफिरों को सिपाहियों से पकड़वा कर सताता और राज्य के विद्वानों, पंडितों तथा बुजुर्गों को अपमानित करता। वह ऐसा करके बहुत प्रसन्नता का अनुभव करता। प्रजा के मन में इसलिए युवराज के प्रति आदर के स्थान पर घृणा और रोष का भाव था।

युवराज लगभग बीस वर्ष का हो चुका था। एक दिन कुछ मित्रों के साथ वह नदी में नहाने के लिए गया। वह बहुत अच्छी तरह तैरना नहीं जानता था, इसलिए अपने साथ कुछ कुशल तैराक सेवकों को भी ले गया। युवराज और उसके मित्र नदी में नहा रहे थे। तभी आसमान में काले-काले बादल छा गये। बादलों की गरज और बिजली की चमक के साथ मूसलधार वर्षा भी शुरू हो गई।


युवराज बड़े आनन्द और उल्लास से तालियाँ बजाता हुआ नौकरों से बोला, ‘‘अहा! क्या मौसम है! मुझे नदी की मंझधार में ले चलो। ऐसे मौसम में वहाँ नहाने में बड़ा मजा आयेगा!
''

नौकरों की सहायता से युवराज नदी की बीच धारा में जाकर नहाने लगा। वहाँ पर युवराज के गले तक पानी आ रहा था और डूबने का खतरा नहीं था। लेकिन वर्षा के कारण धीरे-धीरे पानी बढ़ने लगा और धारा का बहाव तेज होने लगा। काले बादलों से आसमान ढक जाने के कारण अन्धेरा छा गया और पास दिखना कठिन हो गया।


युवराज की दुष्टता के कारण इनके सेवक भी उससे घृणा करते थे। इसलिए उसे बीच धारा में छोड़ कर सभी सेवक वापस किनारे पर आ गये। युवराज के मित्रों ने जब युवराज के बारे में सेवकों से पूछा तो उन्होंने कहा कि वे जबरदस्ती हमलोगों का हाथ छुड़ा कर अकेले ही तैरते हुए आ गये। शायद राजमहल वापस चले गये हों।


मित्रों ने महल में युवराज का पता लगवाया। लेकिन युवराज वहाँ पहुँचा नहीं था। बात राजा तक पहुँच गयी। उन्होंने तुरंत सिपाहियों को नदी की धारा या किनारे-कहीं से भी युवराज का पता लगाने का आदेश दिया। सिपाहियों ने नदी के प्रवाह में तथा किनारे दूर-दूर तक पता लगाया लेकिन युवराज का कहीं पता न चला। आखिरकार निराश होकर वे वापस लौट आये।


इधर अचानक नदी में बाढ़ आ जाने और धारा के तेज होने के कारण युवराज पानी के साथ बह गया। जब वह डूब रहा था तभी उसे एक लकड़ी दिखाई पड़ी। युवराज ने उस लकड़ी को पकड़ लिया और उसी के सहारे बहता रहा। आत्म रक्षा के लिए तीन अन्य प्राणियों ने भी उस लकड़ी की शरण ले रखी थी- एक साँप, एक चूहा और एक तोता। युवराज ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहा था, बचाओ! बचाओ! लेकिन तूफान की गरज में उसकी पुकार नक्कारे में तूती की आवाज़ की तरह खोकर रह गई। बाढ़ के साथ युवराज बहता जा रहा था। थोड़ी देर में तूफान थोड़ा कम हुआ और बारिश थम गई। आकाश साफ होने लगा और पश्चिम में डूबता हुआ सूरज चमक उठा। उस समय नदी एक जंगल से होकर गुजर रही थी। नदी के किनारे, उस जंगल में ऋषि के रूप में बोधिसत्व तपस्या कर रहे थे।


(आगे है ...)
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Old 19-09-2013, 06:03 PM   #4
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

युवराज की करुण पुकार कानों में पड़ते ही बोधिसत्व का ध्यान टूट गया। वे झट नदी में कूद पड़े और उस लकड़ी को किनारे खींच लाये जिसने युवराज और तीन अन्य प्राणियों की जान बचायी थी। उन्होंने अग्नि जला कर सबको गरमी प्रदान की, फिर सबके लिए भोजन का प्रबन्ध किया। सबसे पहले उन्होंने छोटे प्राणियों को भोजन दिया, तत्पश्चात युवराज को भी भोजन खिलाकर उसके आराम का भी प्रबन्ध कर दिया।

इस प्रकार वे सब बोधिसत्व के यहाँ दो दिनों तक विश्राम करके पूर्ण स्वस्थ होने के बाद कृतज्ञता प्रकट करते हुए अपने-अपने घर चले गये। तोते ने जाते समय बोधिसत्व से कहा, ‘‘महानुभाव! आप मेरे प्राणदाता हैं। नदी के किनारे एक पेड़ का खोखला मेरा निवास था, लेकिन अब वह बाढ़ में बह गया है। हिमालय में मेरे कई मित्र हैं।

यदि कभी मेरी आवश्यकता पड़े तो नदी के उस पार पर्वत की तलहटी में खड़े होकर पुकारिये। मैं मित्रों की सहायता से आप की सेवा में अन्न और फल का भण्डार लेकर उपस्थित हो जाऊँगा।''

‘‘
मैं तुम्हारा वचन याद रखूँगा।'' बोधिसत्व ने आश्वासन दिया।


साँप ने जाते समय बोधिसत्व से कहा, ‘‘मैं पिछले जन्म में एक व्यापारी था। मैंने कई करोड़ रुपये की स्वर्ण मोहरें नदी के तट पर छिपा कर रख दी थीं। धन के इस लोभ के कारण इस जन्म में सर्प योनि में पैदा हुआ हूँ। मेरा जीवन उस खज़ाने की रक्षा में ही नष्ट हुआ जा रहा है। उसे मैं आप को अर्पित कर दूँगा। कभी मेरे यहॉं पधार कर इसका बदला चुकाने का मौका अवश्य दीजिए।
''

इसी प्रकार चूहे ने भी वक्त पड़ने पर अपनी सहायता देने का वचन देते हुए कहा, ‘‘नदी के पास ही एक पहाड़ी के नीचे हमारा महल है जो तरह-तरह के अनाजों से भरा हुआ है। हमारे वंश के हजारों चूहे इस महल में निवास करते हैं। जब भी आप को अन्न की कठिनाई हो, कृपया हमारे निवास पर अवश्य पधारिए और सेवा का अवसर दीजिए। मैं फिर भी आप के उपकार का बदला कभी न चुका पाऊँगा।
''

सबसे अन्त में युवराज ने कहा, ‘‘मैं कभी-न-कभी अपने पिता के बाद राजा बनूँगा। तब आप मेरी राजधानी में आइए। मैं आप का अपूर्व स्वागत करूँगा।
''

कुछ दिनों के बाद ब्रह्मदत्त की मृत्यु हो गई और युवराज काशी का राजा बन गया। राजा बनते ही प्रजा पर अत्याचार करने लगा। सच्चाई और न्याय का कहीं नाम न था। झूठ और अपराध बढ़ने लगे। प्रजा दुखी रहने लगी।


यह बात बोधिसत्व से छिपी न रही। उसे राजा का निमंत्रण याद हो आया। उसने सबसे पहले राजा के यहाँ जाने का निश्चय किया। वे एक दिन राजा से मिलने के लिए काशी पहुँचे।


बोधिसत्व नगर में प्रवेश कर राजपथ पर पैदल चल रहे थे। तभी हाथी पर सवार होकर राजा सैर के लिए जा रहा था। उसने बोधिसत्व को पहचान लिया और तुरत अपने अंगरक्षकों को आदेश दिया, ‘‘इस साधु को पकड़कर खंभे से बाँध दो और सौ कोड़े लगाओ और इसके बाद इसको फाँसी पर लटका दो। यह इतना घमण्डी है कि इसने जान बूझ कर मेरा अपमान किया था।

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