11-04-2013, 05:30 PM
|
#18
|
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
|
Re: मोती और माणिक्य
मेरे दीप-फूल लेकर वे, अम्बा को अर्पित करके
दिया पुजारी ने प्रसाद जब, आगे को अंजलि भरके
भूल गया उसका लेना झट, परम लाभ-सा पाकर मैं।
सोचा - बेटी को माँ के ये, पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।
सिंह पौर तक भी आंगन से, नहीं पहुँचने मैं पाया
सहसा यह सुन पड़ा कि-"कैसे यह अछूत भीतर आया?
पकड़ो देखो भाग न जावे, बना धूर्त यह है कैसा
साफ-स्वच्छ परिधान किए है, भले मानुषों जैसा!
पापी ने मन्दिर में घुसकर, किया अनर्थ बड़ा भारी
कुलषित कर दी है मन्दिर की, चिरकालिक शुचिता सारी।"
ए क्या मेरा कलुष बड़ा है, देवी की गरिमा से भी
किसी बात में हूँ मैं आगे, माता की महिमा से भी?
माँ के भक्त हुए तुम कैसे, करके यह विचार खोटा
माँ से सम्मुख ही माँ का तुम, गौरव करते हो छोटा!
कुछ न सुना भक्तों ने झट से, मुझे घेर कर पकड़ लिया
मार-मार कर मुक्के-घूँसे, धम-से नीचे गिरा दिया!
|
|
|