31-07-2015, 07:52 AM | #1 |
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देश मे सुधार
आप अभी तक सोच रहे होंगे कैसे? पहेले हम दहेज प्रथा पर आते हैं, आज भी इस देश में बेटी की पढाई से ज्यादा बेटी की शादी मे खर्च किया जाता है और आज भी हमारे समाज मे बेटियों को बोझ समझा जाता है ऐसा क्यों? दहेज हमेशा लड्के वाले डिमान्ड करते है वो भी हाई-फाई। क्या आप पुरुष होने के नाते ये सोच सकते हैं कि जिनके घर मे दो वक्त का खाना ढंग से नहीं बन पाता वो कहा से इतना कुछ करेंगे, मगर वो भी अपनी बेटी के खातिर खून पसीना एक करते हैं, कर्जा लेते हैं और डिमान्ड पूर्ण करते है। किन्तु क्या आपने सोचा उस बेटी के बारे मे, क्या वो मन ही मन दुखी न होगी, उसकी शादी के कारण घर वालो को हो रही तकलीफों को देख कर, और आप दिल से सोचिये क्या वो निश्चित तौर पर स्विकार न कर लेती होगी जो उसे समाज बचपन से सुनाता आ रहा है कि बेटियाँ इस धरती पर बोझ होती हैं,,,,जो कि कहीं न कहीं इन महिलाओ का कन्या भ्रूण हत्या से ताल्लुक रखता है और ये महिलाएँ खुद बच्चियों को बोझ समझने लगती है, पर मैं आपसे जानना चाहूँगा कि आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? हम हमेशा ये मानते आये हे कि भ्रूण हत्या मे अधिक योगदान माँ का होता है, परन्तु क्या हमने कभी सोचा कि पुरुषों की भीख माँगने की आदत क्या-क्या विनाश कर सकती है? मित्रों ये सिर्फ मेरे विचार मात्र हैं, पर सारी समस्याओं के लिये हमे एकजुट होना पडेगा। हमारे देश मे कई बेटियाँ ऐसी भी है जिन पर हम सबको गर्व है और हमें महिलाओं का सशक्तिकरण हर हाल में करना है। महिलाएँ भी जागरुक हो रही हैं और अपने खिलाफ हो रहे आत्याचरों का विरोध कर रही हैं इसका अन्दाजा हम बढ्ते हुए तलाकों से लगा सकते है। हममें से काफी लोग सोचते हैं कि हमारे समाज में बिना दहेज के शादी नहीं होती तो माफ करियेगा किन्तु वो आप ही का समाज है जहाँ बहु-बेटियों को दहेज क नाम पर जला कर मार दिया जाता है॥"THINK OVER IT"। यदि आप अभी छोटे हैं और आप कुछ नहीं कर सकते हैं अपने बडो के सामने तो कम से कम अपने लिये तो दहेज कि डिमान्ड न करियेगा। क्योंकि हमारे एक कदम से देश की दो परेशानियों का हल निकलेग। इस देश के युवाओ को एक पहल करने की जरुरत जिससे इस देश का भला हो। "सोच बदलो देश बदलेगा"। Take an oath you will never demand a dowry @ Be a REAL MAN. ।" जय हिन्द"। Last edited by Pavitra; 31-07-2015 at 03:23 PM. |
31-07-2015, 03:51 PM | #2 |
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Re: देश मे सुधार
मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि महिलाओं की मौजूदा स्थिति के पीछे काफी हद तक हमारा पुरुष प्रधान समाज ही जिम्मेदार है । दहेज की प्रथा ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया है महिलाओं की स्थिति को इस देश में । पर जिन देशों में दहेज की प्रथा नहीं है वहाँ पर भी महिलाओं की स्थिति में कोई खास अन्तर नहीं देखने को मिलता । बढ रहे बलात्कार, घरेलू हिंसा , छेड-छाड के किस्से हर देश में हैं और लगातार बढ ही रहे हैं, और इसके लिये भी कुछ हद तक पुरुष जिम्मेदार हैं । पुरुषों की मानसिकता में बदलाव से ही इन स्थितियों में बदलाव लाया जा सकता है । लेकिन आज कल महिला सशक्तिकरण के नाम पर पुरुषों का जो शोषण हो रहा है मैं उसका भी पुरजोर विरोध करती हूँ । महिलाओं को सशक्त करने की जरुरत है परन्तु पुरुषों को शोषित नहीं करना चाहिये । हाँ ,समाज में तलाक बढ रहे हैं , पर उनमें से बहुत से केस फर्जी भी होते हैं जिनमें महिलाएँ झूठा मुकदमा करती हैं और ना सिर्फ पैसों की माँग करती हैं बल्कि बहुत से केस में पूरे परिवार को सजा तक दिलवाती हैं । महिलाओं को सुरक्षा देने के लिहाज से उनके लिये जो कानून बनाए गए उन कानूनों का ही दुरुपयोग किया जा रहा है। समाज महिलाओं और पुरुषों से मिलकर बनता है । ठीक है कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है इसलिये पुरुषों की बातों को ही ज्यादा तवज्जो दी जाती है , पर क्या कभी सोचा है कि घरेलू हिंसा में क्या सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार होते हैं? ज्यादतर मामलों में सिर्फ पुरुष ही गुनहगार नहीं होते , महिलाएँ भी हिंसा में उनका साथ देती हैं । बहुओं को प्रताडित करने में एक स्त्री के पति का योगदान होता है तो बहुत बार सास , ननद , झेठानी या देवरानी का भी हाथ होता है । यहाँ एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन बन जाती है । वास्तविकता यह है कि हर महिला का शोषण नहीं होता और ना ही हर पुरुष हैवान होता है । सच्चाई ये है कि हमारे समाज में हर कमजोर व्यक्ति का शोषण होता है चाहे वो महिला हो या पुरुष । हर ताकतवर व्यक्ति अपने से कमजोर व्यक्ति का शोषण करता है । जरुरत हमें हमारी मानसिकता बदलने की है । अपनी जिम्मेदारी समझने की है कि कमजोर व्यक्ति को हमें शोषित नहीं करना बल्कि उसे सक्षम बनाने के लिये प्रयास करना है ।
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31-07-2015, 05:19 PM | #3 |
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Re: देश मे सुधार
विजय और पवित्रा आप दोनों ने ही बहुत सही और अच्छी बातें लिखी हैं। विजय जी मुझे ख़ुशी इस बात से हुई की आप खुद एक पुरुष होक ऐसे विचार रखते हैं,ये बहुत अच्छी बात है। दहेज़ वाकई में एक बहुत बड़ी कुप्रथा है ,और इसके लिए अकेला लड़का नहीं पूरा परिवार,रिश्तेदार और समाज दोषी है। जब किसी लड़के की शादी होती है तो रिश्तेदार और पहचान वाले पूछते हैं दहेज़ में क्या आया ,और अगर अच्छा दहेज़ आता है तो लोग तारीफें करते हैं ,और कम आया तो बातें बनाते हैं। हमारे अंदर ऐसे लोगों को जवाब देने की हिम्मत होनी चाहिए ,ये कहने की हिम्मत होनी चाहिए की हमारे लिए कुछ बेजान चीजों और पैसे से ज़्यादा एक अच्छी बहु की अहमियत है और हमें वही मिली है। वैसे आजकल कुछ लड़की वाले भी कम दोषी नहीं होते ,अपनी बेटी के लिए अच्छा वर ढूंढने के लिए कई बार माँ-बाप खुद ऑफर देते हैं गाडी या अच्छा पैसा देने की बात करते हैं, और जिनके पास पैसा है वो दहेज़ देने में अपना बड़प्पन समझते हैं। तो सोच हमें हर स्तर पर बदलनी होगी। लड़कों को भी इस कुप्रथा के विरोध में खड़ा होना पड़ेगा की हम कोई सामान नहीं हैं की हमारे बदले गाडी या पैसे की मांग की जाए और लड़कियों को भी अपने माँ-बाप को समझाना होगा ,और सबसे बड़ा बदलाव हम सामाजिक लोगों को लाना होगा की किसको क्या मिला किसने क्या दिया ये बातें छोड़ कर समाज की भलाई पर ध्यान दें।
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31-07-2015, 05:19 PM | #4 | |
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Re: देश मे सुधार
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31-07-2015, 10:03 PM | #5 |
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Re: देश मे सुधार
बहस के लिए प्रस्तुत मुद्दे पर विजय जी, पवित्रा जी और कुकी जी जी ने अपने अपने हिसाब से बड़े संतुलित विचार फोरम पर रखे. हालांकि इस प्रकार की समस्याओं के लिए समाज के किसी एक तबके को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. सभी ने मुख्यतया पुरूष वर्ग की मानसिकता को दहेज प्रथा, लड़कियों की अशिक्षा अथवा अन्य समस्याओं जैसे बालिका भ्रूण हत्या या घरेलू हिंसा आदि के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है. हाँ, कुछ हद तक स्त्रियों पर होने वाली ज्यादतियों के लिए महिलायें खुद ज़िम्मेदार होती हैं जैसा कि पवित्रा जी ने बताया या कुकी जी ने इशारा किया. आप सभी भाई बहनों का बहुत बहुत धन्यवाद.
रजत जी ने भी चर्चा में भाग लेते हुए पवित्रा जी द्वारा व्यक्त किये गए विचारों से मतैक्य प्रगट किया. साथ ही उन्होंने एक भजन की पंक्तियाँ भी शेयर की हैं. उनका भी धन्यवाद.
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03-08-2015, 08:12 PM | #6 |
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Re: देश मे सुधार
मतैक्य होने का कारण ही यही है कि हमारे बीच मतभिन्नता होती ही नहीं। जो इनके विचार होते हैं, वही मेरे विचार होते हैं। जो मैं कहना चाहता हूँ, वह यह यदि मुझसे पहले कह देतीं हैं तो एक ही विचार को दूसरे शब्दों में दोहराने का कोई न्यायसंगत औचित्य नहीं रह जाता। अतः मतैक्य प्रकट करना ही उचित एवं न्यायसंगत है।
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25-08-2015, 10:06 AM | #7 |
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Re: देश मे सुधार
आपका पोस्ट सराहनीय है, जो आपने लिखा है उस पर सदियों से लोग विचार करते आ रहे है परन्तु ये कुप्रथा इतनी तेजी से जड़ पकड़ चुकी है की अब शायद ही इसका निराकरण मनुष्य के हाथ में हो, शायद अ समय या भगवन ही इसका उपाय कर सकते है, मई आपकी बात का पुर जोर समर्थन करता हु और महिलाओ के प्रति बढ़ते अपराध और अत्याचार का प्रबल विरोधी हु. हमारे समाज ने महिलाओ को कमजोर और पुरुषो को मजबूत बनाने की गलती कर दी है वास्तविकता में दोनों बार बार है. न जाने हमारा समाज ये कब महसूस करेगा. हर किसी को बराबर सम्मान दिए बिना सुख शांति संभव ही नहीं .
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