12-11-2012, 09:42 AM | #1 |
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क़ैद
मैं खुद से ही बिछड़ता जा रहा हूँ जो ओझल हो गए आँखों से उन ख्वाबों को पकड़ता जा रहा हूँ दुनिया के सामने फ़ैलने की चाह में कितना खुद में सिमटता जा रहा हूँ मुठ्ठी भर ख़ुशी पर हक क्या जता दिया दर्द से रिश्ता बनाता जा रहा हूँ एक दिन तो फूल मिलेंगे राहों में बस यूँ ही पत्थर हटाता जा रहा हूँ तुम्हारा ये कहना कि आओगे लौटकर साँसों से भी रिश्ता निभाता जा रहा हूँ |
12-11-2012, 10:34 AM | #2 |
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Re: क़ैद
भाव बहुत नाजुक चुने हैं आपने . कुल मिला के अच्छी रचना . महफ़िल में रौनक की उम्मीद जगाने हेतु आभार आपका अनिल कृति जी .
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12-11-2012, 10:42 AM | #3 |
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Re: क़ैद
बहुत सुंदर रचना अनिल जी।
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12-11-2012, 10:48 AM | #4 |
Administrator
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Re: क़ैद
बहुत अच्छे अनिल जी
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12-11-2012, 04:16 PM | #6 |
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Re: क़ैद
खूबसूरत रचना..................
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12-11-2012, 06:15 PM | #7 |
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Re: क़ैद
बहुत सुदर .......
खुद से बीछुड़ता जा रहा हूँ .....
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ये दिल तो किसी और ही देश का परिंदा है दोस्तों ...सीने में रहता है , मगर बस में नहीं ...
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13-11-2012, 10:46 PM | #8 |
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Re: क़ैद
[QUOTE=anilkriti;179747]
तुम्हारा ये कहना कि आओगे लौटकर साँसों से भी रिश्ता निभाता जा रहा हूँ अनिल कृति जी, आह से उपजी कविता अत्यन्त शक्तिशाली बन पड़ी है. उम्मीद की एक भी किरण दिल में बाकी हो तो सपने पूरे होने में विलम्ब नहीं होता. भावों का सम्प्रेषण श्रेष्ठ है. धन्यवाद. Last edited by rajnish manga; 13-11-2012 at 10:51 PM. Reason: टिप्पणी मुद्रित नहीं हुयी |
14-11-2012, 01:29 AM | #9 |
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Re: क़ैद
[QUOTE=rajnish manga;180786]रजनीश जी बहुत धन्यवाद की आपको मेरा प्रयास पसंद आया /
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