My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > India & World
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 08-12-2010, 09:23 AM   #1
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default पढ़िए सत्ता की सबसे बड़ी दलाली की कहानी

पढ़िए सत्ता की सबसे बड़ी दलाली की कहानी

मनमाने तरीके से बदले नियमः 1995 में जब मोबाइल टेलीफोन सेवा शुरू हुई तो काल दर 16.80 रुपए प्रति मिनट थी। आज यह 25 पैसे तक आ गई है। इस बीच केंद्र में पांच सरकारें बदल गईं। तब मोबाइल ऑपरेटर रेवेन्यू शेयरिंग के आधार पर काम कर रहे थे। सरकार 1998 में नेशनल टेलीकॉम पालिसी लाई।

इसमें आपरेटरों को लाइसेंस देने का प्रावधान किया गया। सरकार को अच्छा पैसा मिला। 2007 में सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम नीलाम करने का फैसला किया। इस नीलामी में सरकार को कुल नौ हजार करोड़ रुपए मिले जबकि सीएजी के अनुमान के अनुसार उसे एक लाख पचासी हजार करोड़ रुपए से अधिक की कमाई होनी चाहिए थी।

राजा पर आरोप है कि उन्होंने नीलामी की शर्तो में मनचाहे बदलाव किए। प्रधानमंत्री, कानून मंत्री और वित्त मंत्री की सलाह को अनदेखा किया। उन्होंने ऐसी कंपनियों को कौड़ियों के भाव स्पेक्ट्रम दिया जिनके पास न तो इस क्षेत्र में काम का कोई अनुभव था और न ही जरूरी पूंजी। उन्होंने चंद कंपनियों को फायदा पहंचाने के लिए बनाई और बदली सरकारी नीतियां। लेकिन गठबंधन की राजनीति की दुहाई देते हुए प्रधानमंत्री राजा के खिलाफ विपक्ष, अदालत और सीएजी के आरोप, शिकायतें, टिप्पणियों और रिपोर्टो के बावजूद पूरे तीन साल तक चुप्पी साधे रहे। भास्कर ने पाठकों के लिए तफसील से समझा पूरे घोटाले को..


क्या है 2 जी?

- सेकंड जनरेशन सेलुलर टेलीकॉम नेटवर्क को 1991 में पहली बार फिनलैंड में लांच किया गया था। यह मोबाइल फोन के पहले से मौजूद नेटवर्क से ज्यादा असरदार तकनीक है। इसमें एसएमएस डाटा सर्विस शुरू की गई।

- राजा ने 2 जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस आवंटन में भारतीय दूरसंचार नियमन प्राधिकरण ट्राई के नियमों की धज्जियां उड़ाईं।

क्या थे नियम

- लाइसेंस की संख्या की बंदिश नहीं

- इकरारनामे में कोई बदलाव नहीं

- प्रक्रिया के समापन तक विलयन और अधिग्रहण नहीं हो सकता

- बाजार भाव से प्रवेश शुल्क

राजा के कानून

- 575 आवेदनों में से 122 को लाइसेंस

- स्वॉन और यूनिटेक के अधिग्रहण को मंजूरी

- इकरारनामे को बदला गया

- 2001 की दरों पर


क्या तरीके अपनाए

- बिल्डर और ऐसी कंपनियों ने लाइसेंस के लिए आवेदन लगाए, जिनका टेलीकॉम क्षेत्र में काम करने का कोई अनुभव नहीं था। रियल स्टेट क्षेत्र की कंपनियों को टेलीकाम लाइसेंस दिया।

- बाहरी निवेशकों को बाहर रखने के लिए अंतिम तिथि को मनमाने ढंग से पहले तय कर दिया गया।

- पहले आओ, पहले पाओ का नियम बना दिया, 575 में से 122 को लाइसेंस दे दिए।

- घोषणा की कि ट्राई की सिफारिशों पर अमल हो रहा है, लेकिन पांच में से चार सिफारिशें बदल दी गईं।

- केबिनेट, टेलीकॉम कमिश्नर और ईजीओएम को दरकिनार किया।

सीएजी रिपोर्ट में

- नुकसान का आंकड़ा 1,76,379 करोड़ रुपए

- लाइसेंस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देशों की अनदेखी

- नीलामी से जुड़ी वित्त मंत्री की जरूरी सिफारिशों को सुना नहीं

- 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में टेलीकॉम सचिव के नोट को अनदेखा किया।

- ट्राई के उस पत्र को देखा तक नहीं, जिसमें उसकी सिफारिशों की उपेक्षा नहीं करने को कहा गया।

सात साल पुराने रेट पर स्पेक्ट्रम की बंदरबांट

राजा ने नौ टेलीकॉम कंपनियों को 122 सर्किल में सेवाएं शुरू करने का लाइसेंस दिया। लेकिन प्रक्रिया पर तभी सवाल उठे। आवेदन की अंतिम तारीख एक अक्टूबर घोषित की। बाद में कहा कि स्पेक्ट्रम सीमित होने के कारण 25 सितंबर के बाद मिले आवेदनों पर विचार नहीं होगा। हर कंपनी से 1658 करोड़ रुपए लेकर देश भर में सेवाएं शुरू करने की अनुमति दे दी गई। यह मूल्य सरकार द्वारा 2001 में तय रेट पर लिया गया जबकि 2007 तक टेलीकॉम क्षेत्र कई सौ गुना बढ़ चुका था।

1658 से 10,000 करोड़ बनाए चंद दिनों में

स्वॉन टेलीकॉम को लाइसेंस 1600 करोड़ रुपए में मिला। कुछ दिनों बाद उसने 45 प्रतिशत शेयर सऊदी अरब की इटिसलाट को 4500 करोड़ में बेच दिए। यानी लाइसेंस मिलने के बाद कंपनी का मूल्यांकन 10,000 करोड़ रुपए हो गया। इसी तरह यूनिटेक ने 60 प्रतिशत हिस्सेदारी नार्वे की टेलीनॉर को 6000 करोड़ में बेच दी। तब तक इन दोनों के पास एक भी उपभोक्ता नहीं था। न ही सेवाएं शुरू हुई थीं।
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 09:26 AM   #2
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default इनके कारण राजा को छोड़ना पड़ा सिंहासन

इनके कारण राजा को छोड़ना पड़ा सिंहासन

एक ऐसा निरंकुश और भ्रष्टाचारी मंत्री जिसके आगे प्रधानमंत्री भी लाचार थे! ऐसे में कर्तव्य के प्रति समर्पित तीन सरकारी अफसरों ने घोटाले की परतें खोलने का दुस्साहस किया। तो तीन अन्य ने जनहित याचिका के जरिए दोषियों को कटघरे में खड़ा किया। विपरीत परिस्थितियों में भी किसी ने हिम्मत नहीं हारी।

45 मिनट में 9000 करोड़ के ड्राफ्ट!

(मिलाप जैन, डीजी इन्वेस्टिगेशन, आयकर विभाग) नौ कंपनियों द्वारा 45 मिनटों में ही सोलह-सोलह सौ करोड़ रुपए का ड्राफ्ट बनवाने से इनके कान खड़े हो गए। बैंकों से धनराशि का स्रोत मालूम किया तो लगा कि और बहुत जांच की जरूरत है। इतना मालूम चला कि सारा खेल नीरा राडिया के इर्द-गिर्द चल रहा था। सीबीडीटी से आग्रह किया और गृह मंत्रालय की स्वीकृति के बाद राडिया के घर, ऑफिस और मोबाइल मिलाकर कुल नौ फोन दस महीनों तक टैप कराए।

राजा के खिलाफ जांच की तो हटा दिए गए

(विनीत अग्रवाल, सीबीआई के डीआईजी) महाराष्ट्र काडर के इस आईपीएस अफसर ने 16 नवंबर 2009 को जैन से राडिया के फोन टेप के मुख्य अंश मांगे। 20 नवंबर को यह ब्यौरा मिलते ही आगे की कार्रवाई के लिए सीवीसी सिन्हा से मिले। जांच की जुर्रत का खामियाजा भुगता। उन्हें उनके गृह राज्य महाराष्ट्र वापस भेज दिया गया। लेकिन वे इतना काम कर चुके थे कि घोटाले के ताकतवर आरोपियों का बच निकलना मुश्किल हो गया।

मारा मंत्री के कमरे पर छापा

(प्रत्यूष सिन्हा, चीफ विजिलेंस कमिश्नर) विनीत अग्रवाल से सारी जानकारी मिलते ही उन्हें 20 नवंबर को एफआईआर कराई। अगले ही दिन संचार भवन स्थित सभी संबंधित कार्यालयों पर छापा मारने को कहा। उस शनिवार को जब ए राजा अपने सचिव पीजे थामस के साथ एक सेमिनार में थे, सीबीआई उनके कमरों की तलाशी ले रही थी। 2जी स्पेक्ट्रम की फाइल खुद राजा के कमरे में रखी थी। यह पहली बार हुआ कि एक मंत्री के कार्यालय पर सीबीआई ने छापा मार कागजात जब्त किए। अगर सिन्हा ने छापे या एफआईआर से पहले अनुमति लेने की कोशिश की होती तो मामला आज भी दबा रह जाता।

हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट तक गए

(प्रशांत भूषण, सुप्रीम कोर्ट के वकील) लीक हुए राडिया टेप सुनकर व संबंधित दस्तावेज देखकर सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन के इस सचिव को भरोसा था कि यह देश का सबसे बड़ा घोटाला है। मामले की जांच कर रहे सीबीआई के डीआईजी विनीत अग्रवाल को इस केस से हटाए जाने से लगा कि सरकार जांच दबाना चाहती है। पत्रकार प्रणंजय गुहा ठाकुरता और एक एनजीओ के निदेशक अनिल कुमार के साथ मिलकर इस हाई प्रोफाइल मामले की लड़ाई हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी।

पहले डटकर लिखा, फिर जमकर लड़े

(प्रणंजय गुहा ठाकुरता, आर्थिक पत्रकार) तीन साल तक देश के सभी प्रतिष्ठित अखबारों और पत्रिकाओं में उन्होंने 2जी घोटाले पर रिपोर्ट और लेख लिखे। जब प्रशांत भूषण ने उनसे जनहित याचिका दायर करने को कहा वे तो एक बार तो हिचके। 25 मई 2010 को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। जब 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी स्पेशल लीव पिटीशन पर राजा को नोटिस जारी किया तो लगा कि अब जांच पटरी पर आ जाएगी, दोषी बख्शे नहीं जाएंगे।

तकनीक के जानकार, लड़ाई में एक साथ

(अनिल कुमार, सचिव टेलीकॉम वॉचडॉग) जापान की फुजित्सु टेलीकॉम कंपनी में 17 साल काम किया। 1999 में भारत लौटे। तब यह सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ रहा था। उन्होंने इस संस्था के जरिए टेलीकॉम सेक्टर की गड़बड़ियों पर निगाह रखी। जनता के सामने पेश करने की जिम्मेदारी ली। वोडाफोन की बिक्री, रेवेन्यू शेयरिंग से लाइसेंस राज जैसे विषयों पर कड़ा रुख अपनाया। टेलीकॉम तकनीक की गहरी जानकारी। प्रशांत भूषण ने उन्हें भी साथ ले लिया।
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 09:30 AM   #3
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default 45 मिनट में ऐसे लुटा 2जी

45 मिनट में ऐसे लुटा 2जी

नई दिल्ली. अशोक रोड। संचार भवन। पहली मंजिल। दस जनवरी 2008। वक्त दोपहर पौने तीन बजे। संचार मंत्री एंदीमुथु राजा के निजी सहायक आरके चंदोलिया का दफ्तर। राजा के हुक्म से एक प्रेस रिलीज जारी होती है। 2 जी स्पेक्ट्रम 3.30 से 4.30 के बीच जारी होगा। तुरंत हड़कंप मच गया। सिर्फ 45 मिनट तो बाकी थे..

वह एक आम दिन था। कुछ खास था तो सिर्फ ए. राजा की इस भवन के दफ्तर में मौजूदगी। राजा यहां के अंधेरे और बेरौनक गलियारों से गुजरने की बजाए इलेक्ट्रॉनिक्स भवन के चमचमाते दफ्तर में बैठना ज्यादा पसंद करते थे। पर आज यहां विराजे थे। 2जी स्पेक्ट्रम के लिए चार महीने से चक्कर लगा कंपनियों के लोग भी इन्हीं अंधेरे गलियारों में मंडराते देखे गए।

लंच तक माहौल दूसरे सरकारी दफ्तरों की तरह सुस्त सा रहा। पौने तीन बजते ही तूफान सा आ गया। गलियारों में भागमभाग मच गई। मोबाइल फोनों पर होने वाली बातचीत चीख-पुकार में तब्दील हो गई। वे चंदोलिया के दफ्तर से मिली अपडेट अपने आकाओं को दे रहे थे। साढ़े तीन बजे तक सारी खानापूर्ति पूरी की जानी थी। उसके एक घंटे में अरबों-खरबों रुपए के मुनाफे की लॉटरी लगने वाली थी।

जनवरी की सर्दी में कंपनी वालों के माथे से पसीना चू रहा था। मोबाइल पर बात करते हुए आवाज कांप रही थी। सबकी कोशिश सबसे पहले आने की ही थी। लाइसेंस के लिए कतार का कायदा फीस जमा करने के आधार पर तय होना था। फीस भी कितनी- सिर्फ 1658 करोड़ रुपए का बैंक ड्राफ्ट। साथ में बैंक गारंटी, वायरलेस सर्विस ऑपरेटर के लिए आवेदन, गृह मंत्रालय का सिक्यूरिटी क्लीरेंस, वाणिज्य मंत्रालय के फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) का अनुमति पत्र.। ऐसे करीब एक दर्जन दस्तावेज जमा करना भी जरूरी था। वक्त सिर्फ 45 मिनट...

परदे के आगे की कहानी


25 सितंबर 2007 तक स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में से जिन्हें हर प्रकार से योग्य माना गया उन कंपनियों के अफसरों को आठवीं मंजिल तक जाना था। डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एक्सेस सर्विसेज) आर के श्रीवास्तव के दफ्तर में। यहीं मिलने थे लेटर ऑफ इंटेट। फिर दूसरी मंजिल के कमेटी रूम में बैठे टेलीकॉम एकाउंट सर्विस के अफसरों के सामने हाजिरी। यहां दाखिल होने थे 1658 करोड़ रुपए के ड्राफ्ट के साथ सभी जरूरी कागजात। यहां अफसर स्टॉप वॉच लेकर बैठे थे ताकि कागजात जमा होने का समय सेकंडों में दर्ज किया जाए।

किसी के लिए भी एक-एक सेकंड इतना कीमती इससे पहले कभी नहीं था। सबकी घड़ियों में कांटे आगे सरक रहे थे। बेचैनी, बदहवासी और अफरातफरी बढ़ गई थी। चतुर और पहले से तैयार कंपनियों के तजुर्बेकार अफसरों ने इस सख्त इम्तहान में अव्वल आने के लिए तरकश से तीर निकाले। अपनी कागजी खानापूर्ति वक्त पर पूरी करने के साथ प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लोगों को अटकाना-उलझाना जरूरी था। अचानक संचार भवन में कुछ लोग नमूदार हुए। ये कुछ कंपनियों के ताकतवर सहायक थे। दिखने में दबंग।

हट्टे-कट्टे। कुछ भी कर गुजरने को तैयार। इनके आते ही माहौल गरमा गया। इन्हें अपना काम मालूम था। अपने बॉस का रास्ता साफ रखना, दूसरों को रोकना। लिफ्ट में पहले कौन दाखिल हो, इस पर झगड़े शुरू हो गए। धक्का-मुक्की होने लगी। सबको वक्त पर सही टेबल पर पहुंचने की जल्दी थी। पूर्व टेलीकॉम मंत्री सुखराम की विशेष कृपा के पात्र रहे हिमाचल फ्यूचरस्टिक कंपनी (एचएफसीएल) के मालिक महेंद्र नाहटा की तो पिटाई तक हो गई। उन्हें कतार से निकाल कर संचार भवन के बाहर धकिया दिया गया।

दबंगों के इस डायरेक्ट-एक्शन की चपेट में कई अफसर तक आ गए। किसी के साथ हाथापाई हुई, किसी के कपड़े फटते-फटते बचे। आला अफसरों ने हथियार डाल दिए। फौरन पुलिस बुलाई गई। घड़ी की सुइयां तेजी से सरक रही थीं। हालात काबू में आते-आते वक्त पूरा हो गया। जो कंपनियां साम, दाम, दंड, भेद के इस खेल में चंद मिनट या सेकंडों से पीछे रह गईं, उनके नुमांइदे अदालत जाने की घुड़कियां देते निकले।

लुटे-पिटे अंदाज में। एक कंपनी के प्रतिनिधि ने आत्महत्या कर लेने की धमकी दी। कई अन्य कंपनियों के लोग वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस को बल प्रयोग कर उन्हें हटाना पड़ा। आवेदन करने वाली 46 में से केवल नौ कंपनियां ही पौन घंटे के इस गलाकाट इम्तहान में कामयाब रहीं। इनमें यूनिटेक, स्वॉन, डाटाकॉम, एसटेल और श्ििपंग स्टॉप डॉट काम नई कंपनियां थीं जबकि आइडिया, टाटा, श्याम टेलीलिंक और स्पाइस बाजार में पहले से डटी थीं।

एचएफसीएल, पाश्र्वनाथ बिल्डर्स और चीता कारपोरेट सर्विसेज के आवेदन खारिज हो गए। बाईसेल के बाकी कागज पूरे थे सिर्फ गृहमंत्रालय से सुरक्षा जांच का प्रमाणपत्र नदारद था। सेलीन इंफ्रास्ट्रक्चर के आवेदन के साथ एफआईपीबी का क्लियरेंस नहीं था। बाईसेल के अफसर छाती पीटते रहे कि प्रतिद्वंद्वियों ने उनके खिलाफ झूठे केस बनाकर गृह मंत्रालय का प्रमाणपत्र रुकवा दिया। उस दिन संचार भवन में केवल लूटमार का नजारा था। पौन घंटे का यह एपीसोड कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा।

परदे के पीछे की कहानी

इसी दिन। सुबह नौ बजे। संचार मंत्री ए. राजा का सरकारी निवास। कुछ लोग नाश्ते के लिए बुलाए गए थे। इनमें टेलीकॉम सेक्रेट्री सिद्धार्थ बेहुरा, डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज) आर के श्रीवास्तव, मंत्री के निजी सहायक आर. के. चंदोलिया, वायरलेस सेल के चीफ अशोक चंद्रा और वायरलेस प्लानिंग एडवाइजर पी. के. गर्ग थे।

कोहरे से भरी उस सर्द सुबह गरमागरम चाय और नाश्ते का लुत्फ लेते हुए राजा ने अपने इन अफसरों को अलर्ट किया। राजा आज के दिन की अहमियत बता रहे थे। खासतौर से दोपहर 2.45 से 4.30 बजे के बीच की। राजा ने बारीकी से समझाया कि कब क्या करना है और किसके हिस्से में क्या काम है? चाय की आखिरी चुस्की के साथ राजा ने बेफिक्र होकर कहा कि मुझे आप लोगों पर पूरा भरोसा है। अफसर खुश होकर बंगले से बाहर निकले और रवाना हो गए।

दोपहर तीन बजे। संचार भवन। आठवीं मंजिल। एक्सेस सर्विसेज का दफ्तर। फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज) आर. के. श्रीवास्तव थे। यहां मौजूद अफसरों को चंदोलिया के कमरे में तलब किया गया। मंत्री के ऑफिस के ठीक सामने चंदोलिया का कक्ष है। एक्शन प्लान के मुताबिक सब यहां इकट्ठे हुए। इनका सामना स्वॉन टेलीकॉम और यूनिटेक के आला अफसरों से हुआ। चंदोलिया ने आदेश दिया कि इन साहेबान से ड्राफ्ट और बाकी कागजात लेकर शीर्ष वरीयता प्रदान करो। बिना देर किए स्वॉन को पहला नंबर मिला, यूनिटेक को दूसरा।

सबकुछ इत्मीनान से। यहां कोई धक्कामुक्की और अफरातफरी नहीं मची। बाहर दूसरी कंपनियों को साढ़े तीन बजे तक जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने में पसीना आ रहा था। अंदर स्वॉन और यूनिटेक को पंद्रह मिनट भी नहीं लगे। इन कंपनियों को पहले ही मालूम था कि करना क्या है। इसलिए इनके अफसर चंदोलिया के दफ्तर से प्रसन्नचित्त होकर विजयी भाव से मोबाइल कान से लगाए बाहर निकले। दूर कहीं किसी को गुड न्यूज देते हुए। 45 मिनट के तेज रफ्तार घटनाक्रम ने एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए के घोटाले की कहानी लिख दी थी। राजा के लिए बेहद अहम यह दिन सरकारी खजाने पर बहुत भारी पड़ा था।

एक महिला, 9 फोन लाइनें, 300 दिन, 5851 कॉल्स

फोन कॉल्स में दर्ज फरेब


2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की मुख्य किरदार नीरा राडिया के नौ टेलीफोन 300 दिन तक आयकर विभाग ने टैप किए। कुल 5,851 कॉल्स रिकार्ड की गईं। इनमें से सौ का रिकॉर्ड लीक हो चुका है।
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 09:47 AM   #4
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default 2 जी का काला सच

2 जी का काला सच


यह एक घृणित कहानी है, इसे नसों में महसूस कीजिए। लगता है, 2जी आज सबसे ज्यादा लोकप्रिय नामों में से एक है। आप इंटरनेट में गूगल पर 2जी टाइप कर क्लिक कीजिए, आपको सिर्फ 0.12 सेकण्ड में 5530 लाख नतीजे मिल जाएंगे! '2जी' आज शाहरूख खान से 29 गुना और रजनीकांत से 17 गुना ज्यादा पसन्दीदा शब्द है, लेकिन 1.76 लाख करोड़ के घोटाले के चलते यह एक बदनाम शब्द हो गया है। इसकी इतनी ख्याति या कुख्याति के चलते पूरा राष्ट्र डॉ. मनमोहन सिंह से सवाल पूछ रहा है; कि प्रधानमंत्री, आप 2 जी के बारे में क्या जानते हैं? प्रधानमंत्री की चुप्पी पर एक एसएमएस चल गया, 'प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी तोड़ दी है और कहा है, मैं केवल '2जी' को जानता हूं, 'सोनिया जी और राहुल जी'।



खैर, 24 नवम्बर 2010 को सोनिया गांधी ने सर्टिफिकेट दिया, 'डा. सिंह सौ फीसदी से ज्यादा ईमानदार हैं।' अगले दिन 25 नवम्बर को सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार के प्रति 'शून्य सहिष्णुता' बरतने का दावा किया। क्या विडंबना है? सोनिया का मनमोहन सिंह को ईमानदारी का प्रमाणपत्र! इससे ज्यादा अपमानजनक और कुछ हो सकता है? केवल पांच साल पहले मनमोहन सिंह ने क्वात्रोचि के खिलाफ जारी रेड कॉर्नर नोटिस वापस लेकर सोनिया गांधी को राहत दी थी। बोफोर्स में दलाली लेने के आरोपी को बचाने की शर्मनाक कहानी यहां संक्षेप में पेश है।



स्टेन लिंड्स्ट्रोम नेशनल इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो के मुखिया थे। यह ब्यूरो भारत की सीबीआई के समकक्ष है। स्टेन ने स्वीडन में बोफोर्स दलाली की जांच की थी। उन्होंने आउटलुक पत्रिका (6 अप्रेल 1998) से बातचीत में कहा था कि सोनिया गांधी को यह खुलासा करना चाहिए कि क्वात्रोचि के स्वामित्व वाली कम्पनियों को बोफोर्स से इतनी मोटी रकम क्यों दी गई?; क्वात्रोचि से उनके क्या सम्बंध हैं; क्वात्रोचि को बोफोर्स से किसने मिलवाया; स्टेन ने कहा कि निश्चित है, क्वात्रोचि को भुगतान हुआ। छह साल बाद 8 अप्रेल 2004 को स्टेन ने फिर लिखा कि इस घोटाले के बाबत सोनिया गांधी से पूछताछ होनी चाहिए, साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा, 'मुझे मालूम है कि मैं क्या कह रहा हूं।'



दलाली देने वाले बोफोर्स के प्रबंध निदेशक मार्टिन अर्डबो ने अपनी डायरी में किसी 'गांधी ट्रस्ट लॉयर' से बातचीत के बारे में लिखा है। अन्तिम रूप से क्वात्रोचि, जो वस्तुत: इटली से सोनिया के 'सामान' के रूप में भारत आए थे, चोर की तरह व्यवहार करने लगे, जब उनके खिलाफ सबूत सामने आने लगे। 1993 में दबाव में आए नरसिम्ह राव का धन्यवाद कि क्वात्रोचि भारत से भाग खड़े हुए। 1999 में सोनिया गांधी ने क्वात्रोचि का बचाव किया और दलील दी कि वह बेगुनाह हैं। सोनिया ने आरोप मढ़ा कि एनडीए सरकार उनका पीछा कर रही है! दस साल बाद डॉ. सिंह ने क्वात्रोचि को परेशान करने के लिए अपनी ही सरकार की भत्र्सना की! मनमोहन सिंह ने उन्हें अभियोजन से बचने दिया। जो स्वयं बोफोर्स मामले में दागदार हैं, उन्होंने बड़ी भद्रता के साथ सिंह को ईमानदारी का प्रमाणपत्र दे दिया है और यह घोषणा कर दी है कि भ्रष्टाचार उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं। क्या यह दोहरी त्रासदी नहीं है?



हाल के महीनों में घोटालों की सूनामी ने देश को पाट दिया है। सबसे बड़ा घोटाला तो ए. राजा का है, 2जी स्पेक्ट्रम की बिक्री में अरबों-खरबों की लूट हुई है। कैग की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2जी में हुई लूट 67,000 करोड़ रूपए से 1,76,000 करोड़ रूपए के बीच है। 2001 की कीमतों के आधार पर 2008 में स्पेक्ट्रम बेचने का क्या मतलब? यह किसी शहर में वर्ष 2008 में बेची गई भूमि की तरह है, जिसकी कीमत 2001 में ही तय की गई थी। (हालांकि तब से अब तक भूमि की कीमत सौ गुना तक बढ़ गई है)। विश्वास कीजिए, अकेले वर्ष 2008 में रीयल इस्टेट क्षेत्र के शेयरों की कीमतें 20 गुना बढ़ी हैं।



आपत्ति और फिर अनापत्ति

सितम्बर 2007 में राजा ने वष्ाü 2001 की कीमतों पर नए लाइसेंस/स्पेक्ट्रम बेचने की नीति की घोषणा की। 24 सितम्बर को उन्होंने नए आवेदनों की अंतिम तारीख एक अक्टूबर तय करने की घोषणा की। एक अक्टूबर तक कुल 575 आवेदन आए, लेकिन एक सप्ताह बाद राजा ने तय किया कि 25 सितम्बर के बाद मिले आवेदनों पर विचार नहीं किया जाएगा। आवेदन की अंतिम तिथि 25 सितम्बर कर दी गई। उसके बाद अचानक 10 जनवरी की दोपहर 2.30 बजे राजा ने घोषणा की कि जो आवेदक 25 सितम्बर तक आवेदन कर चुके हैं, वे 3.30 बजे तक अपने प्रतिनिघि भेजकर नतीजे जान लें। दिन के खत्म होने से पहले ही 'पहले आओ-पहले पाओ' की तर्ज पर स्पेक्ट्रम का आवंटन हुआ। लाइन में आगे खड़े होने के लिए दूरसंचार कार्यालय में आवेदकों के प्रतिनिघियों के बीच धक्का-मुक्की की स्थिति बन गई। इस प्रक्रिया में कुल 575 आवेदनों में से 454 को अयोग्य करार दिया गया। लेकिन जिनके आवेदन चयनित हुए, उन्हें यह पहले से पता था कि 10 जनवरी 2008 को क्या होने वाला है। कैग की रिपोर्ट बताती है, 13 आवेदक अघिसूचना की तिथि से पहले ही बनाए गए डिमांड ड्राफ्ट के साथ आवेदन के लिए तैयार थे, इसका साफ मतलब है कि इन आवेदकों को पहले से ही पूरी जानकारी मिल चुकी थी।



इस गड़बड़ घोटाले की बू पहले ही आने लगी थी। नवम्बर 2007 में ही प्रधानमंत्री ने राजा के तरीके पर आपत्ति की थी और उन्हें पारदर्शिता बरतने के लिए कहा था। कुछ ही घंटों के अंदर राजा ने अपनी प्रतिक्रिया दी और जोर दिया कि वे पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों के अनुरूप ही चल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने पूरा एक महीना लिया और फिर 3 जनवरी 2008 को राजा के पत्र को स्वीकार कर लिया, एक तरह से राजा को आगे बढ़ने की सहमति दे दी गई। 10 जनवरी को राजा ने अपने धोखाधड़ी अभियान को अंजाम दे दिया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। अंतत: 15 महीने बाद 24 मई 2010 को प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि राजा ने उन्हें कहा था, आवंटन में वह पूर्व निर्घारित नीति की ही पालना कर रहे हैं। यह एक तरह से धोखाधड़ी को स्वीकार करने जैसा था। यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि यह लूट कोई गुप्त बात नहीं थी। यह दिनदहाड़े डकैती थी। यह उतनी ही पारदर्शी थी, जितनी प्रधानमंत्री चाहते थे। केवल राजा से ही नहीं, प्रधानमंत्री से भी यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने पहले क्यों आपत्ति की और बाद में शांत क्यों पड़ गए, उन्होंने बचाव क्यों किया।



तीन तरह से हुआ खुलासा

पहला, जनवरी 2008 में लाइसेंस जारी होने से पहले आवेदक कंपनियों में से एक एसटेल ने राजा को ऑल इंडिया लाइसेंस के लिए 13621 करोड़ रूपए का प्रस्ताव दिया था, जिसे राजा मात्र 1658 करोड़ में बेच रहे थे। मतलब इस लाइसेंस से सरकार को नौ गुना ज्यादा राशि मिल सकती थी। जब इस कंपनी का प्रस्ताव खारिज हो गया, तो कंपनी दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गई, कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। राजा के मंत्रालय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, तब तक दबाव के कारण एसटेल के मालिक पीछे हट गए, लेकिन उन्होंने बिगुल तो बजा ही दिया था। इसी कंपनी के प्रस्ताव के आधार पर कैग ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सरकार को 67300 करोड़ रूपए के घाटे का अनुमान लगाया।



दूसरा, दो कंपनियां, जिन्हें 'पहले आओ-पहले पाओ' के आधार पर लाइसेंस मिला था, उन्होंने अपने लाइसेंस के ज्यादातर शेयर को काफी ऊंचे दामों पर बेच दिया। लाइसेंस के लिए जो राशि इन कंपनियों ने चुकाई थी, उससे कई गुना ज्यादा कमाई शेयर बेचकर इन कंपनियों ने की। उदाहरण के लिए यूनिटेक ने लाइसेंस शुल्क के रूप में सरकार को 1658 करोड़ रूपए चुकाए थे, लाइसेंस का 67 प्रतिशत हिस्सा कंपनी ने 6120 करोड़ रूपए में बेच दिया, इसका मतलब, कंपनी को प्राप्त लाइसेंस का कुल मूल्य 9100 करोड़ रूपए था। दूसरी कंपनी स्वान ने लाइसेंस के लिए 1537 करोड़ रूपए अदा किए थे और लाइसेंस का 44.7 प्रतिशत हिस्सा 3217 करोड़ रूपए में बेच दिया, इसका मतलब हुआ कि कंपनी को प्राप्त लाइसेंस का मूल्य 7192 करोड़ रूपए था। एसटेल ने 25 करोड़ रूपए का छोटा लाइसेंस खरीदा था, उसने लाइसेंस का 5.61 प्रतिशत हिस्सा बेचा, तो उसे 238.5 करोड़ रूपए प्राप्त हुए, इसका मतलब उसके लाइसेंस का वास्तविक मूल्य 4251 करोड़ रूपए था। इन आंकड़ों के आधार पर कैग ने आकलन किया कि लाइसेंस के वितरण में सरकार को 57600 करोड़ रूपए से 69300 करोड़ रूपए के बीच नुकसान हुआ।




तीसरा, 3 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से सरकार को जो भारी फायदा हुआ, उससे भी कैग ने बिना निविदा के 2 जी के आवंटन में 1,76,645 करोड़ रूपए के नुकसान का अनुमान लगाया। यह इतनी बड़ी राशि है कि घोटाले से उठ रही सड़ांध असहनीय हो गई। संसद के शीतकालीन अघिवेशन से पहले यह सब सामने आ गया, तो विपक्ष को हमले का पूरा मौका मिल गया, विपक्ष ने हमला किया और अब संसद निष्क्रिय हो गई है।



राजा, राडिया, मीडिया

इसके समानांतर ही कुछ ऎसी गतिविघियां भी चल रही थीं कि घोटाले की सड़ांध को फैलने से रोकना मुश्किल हो गया। यह कहानी मसालेदार भी है और गंभीर भी। आयकर विभाग ने वैध रूप से नीरा राडिया की फोन लाइनों को टेप किया है। राडिया जनसंपर्क की दुनिया की बड़ी हस्ती हैं। जो एक तरफ टाटा समूह के लिए काम करती हैं, तो दूसरी तरफ रिलायंस समूह के लिए भी। उनकी नौ फोन लाइनों को 180 दिनों तक टेप किया गया। सीबीआई के निवेदन पर आयकर विभाग ने रिकॉर्डिग्स का एक हिस्सा उसे दिया है। जिससे कई राजनेता, उद्योगपति और मीडिया के सितारे सरेआम हो गए हैं। राडिया की कुल 5400 फोन वार्ताएं रिकॉर्ड हुई हैं, जिनमें से केवल 102 वार्ताएं नेट पर उपलब्ध हैं, जिनमें से केवल 23 को लिखा व प्रकाशित किया गया है।



अनुमान लगाया जा सकता है कि कई बम अभी छिपे हुए हैं। आयकर विभाग द्वारा सीबीआई को दी गई जानकारी के अनुसार, नीरा राडिया राजा की करीबी थीं और तीन टेलीकॉम ऑपरेटरों यूनिटेक, स्वान और डाटाकॉम को 2 जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस दिलवाने के प्रयास में लगी थीं। जारी लाइसेंसों में राजा की भी हिस्सेदारी है। राडिया और कनिमोझी (करूणानिघि की बेटी) ने वीर संघवी और बरखा दत्त के मार्फत राजा को दूरसंचार मंत्री बनवाने के लिए बातचीत की। राडिया तब राजाथी अम्मा (करूणानिघि की दूसरी पत्नी व कनिमोझी की मां) के ऑडिटर की भी करीबी थीं। राडिया दूरसंचार कंपनियों द्वारा की जा रही लाइसेंस की बिक्री में भी सलाह दे रही थीं। यह एक शर्मनाक पहलू है, जिसकी पूरी सूचनाएं सामने नहीं आई हैं।



टेप फोन वार्ताओं से पता चलता है कि राडिया ने ही राजा को 24 मई 2009 को फोन करके सबसे पहले दूरसंचार मंत्री बनाए जाने की सूचना दी थी। टेपों से पता चलता है कि दयानिघि मारन केन्द्रीय कैबिनेट में जगह पाने के लिए किस तरह प्रयासरत थे। वे करूणानिघि के रिश्तेदारों के जरिये दबाव बना रहे थे। इतना ही नहीं, राडिया बताती हैं, मारन ने मंत्री बनने के लिए करूणानिघि की एक पत्नी (स्टालिन की मां) को 600 करोड़ रूपए दिए। क्या यह एक राजनीतिक परिवार के अंदर ही करोड़ों रूपए में मंत्री पद की खरीद-बिक्री का मामला नहीं है?

यह राजा द्वारा की गई बड़ी लूट है। फायदा उठाने वाले मुख्य लोग राजा के पीछे छिप रहे हैं। राजा केवल द्रमुक की ताकत के दम पर प्रधानमंत्री की अवहेलना नहीं कर सकते थे। प्रधानमंत्री की अनापत्ति का कारण केवल यह नहीं हो सकता कि द्रमुक सरकार से समर्थन वापस ले लेगी। इस मामले में क्या प्रधानमंत्री ने मिस्टर क्लीन की अपनी छवि को नहीं गंवाया है, लेकिन उन्हें तो केवल यूपीए अध्यक्ष से ईमानदारी का सर्टिफिकेट चाहिए!
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 10:57 AM   #5
amit_tiwari
Special Member
 
amit_tiwari's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Posts: 1,519
Rep Power: 22
amit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to beholdamit_tiwari is a splendid one to behold
Default Re: 2 जी का काला सच

ज़बरदस्त !!!

अच्छा मेटीरियल खोजा बन्धु |
amit_tiwari is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 04:12 PM   #6
laddi
Member
 
laddi's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: इटली/पंजाब
Posts: 110
Rep Power: 15
laddi is on a distinguished road
Send a message via MSN to laddi Send a message via Yahoo to laddi Send a message via Skype™ to laddi
Default Re: 2 जी का काला सच

यार क्या धांसू कहानी पेश की है इस पर तो मूवी बन सकती है
येही हमारे देश की त्रासदी है यहाँ लोगो को भूलने की बीमारी है यह बात्तें हम भी कुछ दिनों में भूल जायेंगे
laddi is offline   Reply With Quote
Old 08-12-2010, 04:29 PM   #7
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,261
Rep Power: 35
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post Re: पढ़िए सत्ता की सबसे बड़ी दलाली की कहानी

क्या बात है दलाली को लाली लगा के बीदा करो
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook, YouTube.
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 08:29 AM   #8
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default 2g घोटाला: राजा की कंपनी, राजा का ही लाइसेंस

2g घोटाला: राजा की कंपनी, राजा का ही लाइसेंस

क्या 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसी सबसे विवादास्पद कंपनी स्वॉन टेलीकॉम के असली मालिक पूर्व संचार मंत्री ए. राजा और उनकी निकट सहयोगी नीरा राडिया हैं? भले ही सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग सुप्रीम कोर्ट के सामने इस सवाल का जवाब देने में हिचकिचा रहे हांे, लेकिन राडिया के टेप हुए फोन रिकार्ड इसका जवाब दे रहे हैं-हां। आयकर विभाग द्वारा टेप की गई राजा और राडिया की फोन पर बातचीत में स्वीकार किया गया कि स्वॉन टेलीकॉम में उनके शेयर हैं और वे जल्द ही इसके निदेशक बोर्ड में अपने लोगों को नियुक्त करना चाहते हैं।

स्वॉन टेलीकॉम को एक लाख रुपए की पूंजी से 2007 में स्थापित किया गया था। जनवरी 2008 में उसे 13 सर्किल में टेलीफोन सेवाएं देने का लाइसेंस मिल गया। इसके फौरन बाद कंपनी का मूल्यांकन 10 हजार करोड़ रुपए हो गया। क्योंकि उसके 45 प्रतिशत शेयर दुबई की इटिसलाट ने 4500 करोड़ में खरीद लिए। यानी साल भर में कंपनी की कीमत एक लाख से बढ़कर दस हजार करोड़ रुपए हो गई। आयकर विभाग का मानना है कि इसमें लगा पैसा विदेशों से राउंड ट्रिपिंग के जरिए लाया गया। इसमें राजा और राडिया की हिस्सेदारी की जांच हो रही है।

स्वॉन का रोचक रहस्य

दरअसल इस कंपनी को अनिल अंबानी ने स्वॉन केपिटल के नाम से तब स्थापित किया था जब उन्हें लग रहा था कि रिलायंस कम्यूनिकेशन को जीएसएम का लाइसेंस नहीं मिलेगा। लाइसेंस के लिए आवेदन करते समय तो इसका नाम स्वॉन टेलीकॉम कर दिया। फिर रिलायंस कम्यूनिकेशन को डुअल टेक्नोलॉजी की इजाजत मिल गई। जिस दिन उसे यह लाइसेंस मिला उसी दिन स्वॉन टेलीकॉम के सारे शेयर टाइगर ट्रस्टीज नाम की कंपनी को बेच दिए गए। इस कंपनी ने अपने 9.9 % शेयर मारीशस की डेल्फी इन्वेस्टमेंट्स को बेच दिए। डेल्फी इन्वेस्टमेंट्स के मालिकाना हक की अभी जांच हो रही है। बाकी बचे हुए 90.1 प्रतिशत शेयर मुंबई की रियल इस्टेट कंपनी डायनामिक्स बलवास के पास हैं। इसके मालिक मुंबई के शाहिद बलवा और विनोद गोयनका हैं।

राजा की कंपनी में लगाया पैसा

दिसंबर 2009 में स्वॉन टेलीकॉम के 5.8 प्रतिशत शेयर एक अनजान कंपनी जेनेक्स एक्जिम वेंचर्स ने 380 करोड़ रु. में खरीद लिए। इसके बोर्ड में दुबई की ईटीए स्टार समूह के सलाहुद्दीन, मोहम्मद हसन और अहमद शकीर आदि थे। स्वॉन टेलीकॉम ने ग्रीनहाउस प्रामोटर्स नाम की कंपनी के 49 प्रतिशत शेयर 1100 करोड़ रुपए में खरीदने की इच्छा जताई। इस कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में राजा की पत्नी परमेश्वरी थीं। उनका पता भी राजा का दिल्ली स्थित सरकारी आवास था। ग्रीनहाउस और और इक्कुवस एस्टेट्स नाम की दो कंपनियां राजा के करीबी सादिक बाचा ने 2004 में बनाई थीं। दोनों में परमेश्वरी डायरेक्टर थीं। लेकिन जनवरी 2008 में पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल के बेटे द्वारा अपनी कंपनी को पिता के सरकारी आवास से चलाने को लेकर हुई भद के कारण फरवरी में राजा ने दोनों कंपनियों से पत्नी का इस्तीफा कराया।
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 08:33 AM   #9
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default फोन टेप्स में सत्ता की सबसे बड़ी दलाली की क&am

फोन टेप्स में सत्ता की सबसे बड़ी दलाली की कहानी

ए राजा : पूर्व दूरसंचार मंत्री

नीरा : हैलो

राजा : राजा हियर

नीरा : हाय! मुझे अभी बरखा दत्त से मैसेज मिला है। वह कहती है.. कि वह आज रात प्रधानमंत्री ऑफिस जाने वाली है। वास्तव में उसी ने मुझे बताया कि सोनिया गांधी वहां गईं थीं। वह कहती है कि उन्हें आपके साथ कोई समस्या नहीं है, लेकिन बालू को लेकर समस्या है।

राजा: ...लेकिन इस पर लीडर से तो विचार-विमर्श करना होगा।

नीरा : हां, हां..उन्हें लीडर के साथ चर्चा करनी होगी। उन्हें बताना होगा.. राजा : कम से कम.वन टू वन..इसे लीडर के सामने खुलासा होने दंे।

नीरा : वन टू वन, आमने-सामने? राजा : वन टू वन। कोई सीलबंद लिफाफे में मैसेज दे कि बालू को लेकर हमें गंभीर समस्या है।

नीरा : कांग्रेस से, ठीक?

राजा : हां

नीरा : ओके। मैं उसे बता दूंगी। वह अहमद पटेल से बात कर रही है, इसलिए मैं उससे बात करूंगी।

राजा : कम से कम फोन पर तो उन्हें कहा जाए। सर, यह समस्या है..हम बहुत सम्मान करते हैं, राजा से हमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन समस्या तो बालू है।

नीरा : फिर दूसरी समस्या को आप कैसे सुलझाएंगे?

राजा : दूसरी समस्या को हम धीरे-धीरे सुलझाएंगे, क्योंकि अब लीडर नीचे आ गए हैं।

नीरा : अब लीडर तीन तक नीचे उतर आए हैं?

राजा : मैं जानता हूं। कांग्रेस के दिमाग में यह किसने डाल दिया कि अझागिरी अंग्रेजी नहीं जानते?

नीरा : नहीं.नहीं.. बात सिर्फ यही नहीं है। आगे जाकर तो वे और स्टालिन ही पार्टी चलाएंगे क्योंकि ओल्ड मैन तो सठिया गए हैं और उनके पास ज्यादा वक्त नहीं है। इसलिए कांग्रेस उनके साथ बिजनेस करने में खुश ही होगी, क्योंकि आखिर नेता तो वही होंगे। वे स्टालिन को भी कंट्रोल करते हैं। और यह कि अझागिरी अपराधी है। और यह कि वह पांचवीं पास से आगे नहीं पढ़े हैं।

राजा : यह बात मैंने अझागिरी को बताई..अब अझागिरी लीडर से बात करेंगे। नीरा : नहीं, लेकिन उन्होंने भी यह बात कही.. कि दिल्ली में मैं (मारन) ही वह व्यक्ति हूं जिससे अंतत: आपको डील करना पड़ेगा, क्योंकि स्टालिन तो राज्य में ही रहेंगे।

राजा : मैं जानता हूं। मुझे पता है कि किस प्रकार का प्रचार वह कर सकते हैं।.................नीरा : मैंने आपको एक एसएमएस भेजा था। मैं कनिमोझी से बात कर रही थी तो सोचा कि... आखिर वे यही तो कह रहे हैं कि आपको वहां होना चाहिए।

राजा : हां

नीरा : लीडर भी यही कह रहे हैं कि आपको वहां होना चाहिए, आप जानते हैं.. दलित होने की बातें आप तो जानते ही हो। द्रविडियन. पार्टी.

राजा : मेरा मामला साफ है, है न?

नीरा : आपका मामला साफ है, हां। कल रात ही आपका मामला साफ हुआ।

राजा : बात सिर्फ यह है कि मारन मेरे खिलाफ कैम्पेन शुरू कर देंगे।

नीरा : आपको अलग तरह से लड़ाई लड़नी होगी।

राजा : हूं..वे प्रेस से कह सकते हैं प्रधानमंत्री फिर आ रहे हैं..ऐसा-वैसा.. स्पेक्ट्रम..

नीरा : नहीं, नहीं..हम संभाल लेंगे.. डोंट वरी। यहां तक कि कांग्रेस को भी वह बयान देना पड़ा। मैंने सुनील मित्तल से बात की थी. क्या चंदोलिया ने आपको बताया?

राजा : हम्म्म..सुनील मित्तल को बताएं कि उन्हें राजा के साथ पांच साल और काम करना होगा।

नीरा : मैंने यह बात उनसे कह दी है। पर फिर आपको भी अनिल (अंबानी) से दूरी बनानी होगी। आपको निष्पक्ष रहना होगा।

राजा : हां, यह हम कर सकते हैं।

*************************************************

तरुण दास : सीआईआई के पूर्व प्रमुख

नीरा राडिया : तरुण, यह व्यक्ति दोपहर को वहां नहीं मिला। उसे चंडीगढ़ जाना था।

तरुण दास : नहीं, कोई बात नहीं।

नीरा : तो वह कह रहा है कि शुक्रवार को काम हो जाएगा।

तरुण दास : अगर सारी चीजें हो जाती हैं, तो डील क्या होगी?

नीरा : हम्म्म्म.. जमीन?

तरुण दास : ओके।

नीरा : आपके लिए पांच एकड़ का इंतजाम

मेरी जिम्मेदारी है।

तरुण दास : ओके।
....................................

तरुण दास : मैं अभी-अभी मुंबई पहुंचा हूं।

नीरा : मुकेश (अंबानी) आपका चार बजे इंतजार कर रहे हैं?

तरुण दास: रतन (टाटा) के साथ डिनर है।

नीरा : ओह, अच्छा। क्या आप उनसे कहेंगे कि आपकी मुकेश से मुलाकात हुई?

तरुण दास : मुझे बताना पड़ेगा। मैं आपको सब-कुछ बताऊंगा।

नीरा : टेलीकॉम की लड़ाई फिर शुरू हो गई है। मैंने सुनील से पिछले हफ्ते मुलाकात की है।

तरुण दास : क्या अकेले या और भी लोग साथ थे?

नीरा : नहीं, अकेले। सुनील मित्तल। सिर्फ यह समझने के लिए कि हम कहां हैं और क्या कर सकते हैं.. रतन अभी भी उन पर यकीन नहीं करते। वे उनके साथ मिलकर कुछ भी नहीं करना चाहते। लेकिन वे नहीं समझते कि इस वक्त हमें एक-दूसरे की मदद की जरूरत है। यही बात मैंने सुनील से भी कही है। मैंने कहा कि वे राजा के साथ अक्खड़ तरीके से पेश न आएं। यही बात रतन पर भी लागू होती है। वे सुनील से हाय-हैलो भी नहीं कर सकते, यू नो। उन्हें सुनील को उनकी अब तक की उपलब्धियों का श्रेय देना ही चाहिए।

तरुण दास : आपने सुनील को कैसे खोजा? आपको इसका ख्याल कैसे आया?

नीरा : गुड, गुड, गुड। मैं अभी भी वहां..भरोसे के कारण हूं। उन्हें भरोसा कायम करना है, यू नो।

तरुण दास : मुलाकात ऑफिस, घर या कहां हुई?

नीरा : उनके घर पर। हां। ऑफिस में मिलने से मैंने मना कर दिया था। मैंने कहा मैं आपके लिए काम नहीं कर सकती, क्योंकि आप रतन के विचारों को जानते हैं।

Last edited by ChachaChoudhary; 09-12-2010 at 08:37 AM.
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Old 09-12-2010, 08:39 AM   #10
ChachaChoudhary
Member
 
ChachaChoudhary's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Posts: 44
Rep Power: 0
ChachaChoudhary will become famous soon enough
Default नीरा का एक कॉल तय करता था अरबों की डील

नीरा का एक कॉल तय करता था अरबों की डील

हिंदुस्तान की राजनीति में इनदिनों यदि सबसे अधिक कोई महिला चर्चित है तो वह है नीरा राडिया। नीरा राडिया के संबंध देश के ताकतवार राजनेताओं, मंत्रियों और मीडिया के दिग्गजों तक से हैं। वे इस संबंध का इस्तेमाल अपने क्लाइंट्स को फायदा पहुंचाने के लिए करती हैं। नीरा की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके कॉल की एक घंटी मंत्रियों को सीट से उठा देने के लिए काफी है। उसके कॉल तय करते थे कि किस घराने को कौन सा ठेका मिलेगा। कॉरपोरेट्स धराने, मीडिया और राजनेता के इस खतरनाक गठजोड़ ने पूरे देश को चौंका दिया है। आखिर नीरा है क्या बला? जब दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने इसी पड़ताल की तो उसकी जिंदगी के कई राज सामने आए।

धुंधराले बालों वाली नीरा मूलत: ब्रिटिश नागरिक हैं। लेकिन अपनी बिजनेसमेन पति जनक राडिया से तलाक के बाद उन्होंने लंदन से भारत का रुख किया। भारत में उनके तीन बेटे उनके साथ रहती हैं। 2003 में उनके बिजनेस पार्टनर धीरज सिंह को उनके 18 साल के बेटे के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है।

नीरा का नाम दुनिया के सामने पहली बार 2008-09 में आया जब आयकर विभाग ने उनके कुछ फोन कॉल को टैप किया। इस फोन कॉल से पता चला कि कैसे नीरा अपने क्लाइंट को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार में दखल करती हैं।

नीरा राडिया चार कंपनियों की मालकिन है। वे जिस-जिस कंपनी की मालिक हैं, उनके टेलीफोन टेप किए गए थे। आयकर निदेशालय के मुताबिक टेलीफोन टैप से जो बाते सामने आईं हैं उसमें अपने कॉरपोरेट क्लाइंट की व्यवसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार के कई विभाग के निर्णयों को बदला गया और कई मामलों में तो नीतिगत फैसलों को भी बदलवाकर लाभ पहुंचाया गया। नीरा ने पूर्व दूरसंचार ए.राजा से कई ऐसे फैसले बदलवा दिए जिससे उसके क्लाइंट का लाभ पहुंच सके।

टैप से साबित हुआ है कि राडिया की पहुंच सीधी ए राजा तक है। वह सीधे राजा को ही कॉल करती थी। बीच में कभी भी कोई सचिव या पीए नहीं होता था। कुछेक दस्तावेज तो यह भी बताते हैं कि नीरा के संबंध झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा से भी थे। नीरा ने अपने क्लाइंट को खान दिलाने के लिए उन्हें 180 करोड़ रूपए की रिश्वत दी थी। सीबीआई की कागजों में कहा गया है कि झारखंड में लौहअयस्क की खानों के बदले नीरा ने कोड़ा और दो सहयोगियों को भारी पैसा दिया था।

नीरा का संबंध सिर्फ राजनीतिक गलियारों में ही नहीं बल्कि मीडिया में भी रहा। नीरा ने कई प्रभावशाली मीडिया हस्तियों से संपर्क साधती थीं और अपने लिए प्रयोग करती थीं। देश के दो बड़े पत्रकार इस सिर्फ शक के घेरे में हैं। एक देश की ख्यात महिला पत्रकार हैं जो एक न्यूज चैनल में काम करती हैं तो दूसरे पत्रकार एक अंग्रेजी अखबार में हैं। हालांकि, दोनों ने नीरा से किसी भी प्रकार के ऐसे संबंध से इंकार किया है जिसका फायदा वह उनसे उठाती थीं।

नीरा को शिकंजे में लेना कोई आसान काम नहीं है। उसकी कंपनियां टाटा ग्रुप के साथ-साथ यूनिटेक, मुकेश अंबानी की रिलांयस से लेकर देश के कई ख्यात मीडिया संस्थानों के लिए भी काम करती हैं।

Last edited by ChachaChoudhary; 09-12-2010 at 08:42 AM.
ChachaChoudhary is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
2g scam, a raja, fraud, india, indian government, indian politics, manmohan singh, scam, sonia gandhi, telecom


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:49 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.