13-07-2014, 12:50 PM | #1 |
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हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
मशहूर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे : हम सब फ़ोरम की तरफ से श्री हुल्लड़ मुरादाबादी जी को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करतें हें :
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13-07-2014, 01:21 PM | #2 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
बहुत बहुत धन्यवाद, डॉ. श्री विजय जी. इस सूत्र के माध्यम से हम सभी हिंदी प्रेमी हुल्लड़ मुरादाबादी (श्री सुशील कुमार चड्ढा) को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. मैं हुल्लड़ जी को उस समय से फॉलो कर रहा हूँ जब वो हास्य-व्यंग्य की अन्य अन्य कविताओं के साथ साथ फ़िल्मी गानों की पैरोडी लिख कर पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाते थे. उन दिनों की उनकी एक पैरोडी फिल्म "नई उम्र की नई फसल" के गीत "स्वप्न झरे फूल से, बाग़ के बबूल से" से प्रेरित थी और बहुत लोकप्रिय हुई थी. उसके बोल कुछ इस प्रकार से थे:-
चोर माल ले गये, लोटे थाल ले गये मूंग और मसूर की सारी दाल ले गये और हम डरे डरे, खाट पर पड़े पड़े सामने खुले हुये किवाड़ देखते रहे उसके बाद तो वो फिल्मों से भी जुड़े रहे और कवि सम्मेलनों एवं नई नई किताबों के ज़रिये साहित्य और साहित्य प्रेमियों से भी जुड़े रहे. इस महान लेकिन सादगी पसंद व्यक्तित्व की स्मृति को हमारा नमन.
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13-07-2014, 09:05 PM | #3 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
मशहूर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे : अभी तो मैं जवान हूं...। जिंदगी में मिल गया कुर्सियों का प्यार है..., अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है...। कब्र में है पांव पर फिर भी पहलवान हूं..., अभी तो मैं जवान हूं....। सैकड़ों रचनाओं की फेहरिस्त में से यह तो महज बानगी भर है। जाने कितनी रचनाओं के माध्यम से राजनीति व वर्तमान परिस्थितियों पर चोट करने वाले हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी हमेशा के लिए सो गए। मुंबई में अंतिम सांस लेने वाले इस अंतरराष्ट्रीय हास्य कवि ने साहित्य की हर विधा को खूब जिया। सुशील कुमार चड्ढा उर्फ हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे। शनिवार की शाम करीब 4 बजे मुंबई स्थित आवास में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, तथाकथित भगवानों के नाम जैसी हास्य कविताओं से भरपूर पुस्तकें लिखने वाले हुल्लड़ मुरादाबादी को कलाश्री, अट्टहास सम्मान, हास्य रत्न सम्मान जैसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हुल्लड़ मुरादाबादी के निधन की खबर से शहर के कवि साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई :.........
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13-07-2014, 09:13 PM | #4 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
मशहूर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे : हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरावाला पाकिस्तान में हुआ था। बंटवारे के दौरान परिवार के साथ मुरादाबाद आ गए थे। बुध बाजार से स्टेशन रोड पर सबरवाल बिल्डिंग के पीछे दाहिनी ओर स्थित एक आवास में किराए पर उनका परिवार रहने लगा। बाद में पंचशील कालोनी (सेंट मैरी स्कूल के निकट, सिविल लाइंस) में उन्होंने अपना आवास बना लिया था।करीब 15 वर्ष पूर्व इस मकान को उन्होंने बेच दिया था और मुंबई में जाकर बस गए थे। परिवार में पत्नी कृष्णा चड्ढा के साथ ही युवा हास्य कवियों में शुमार पुत्र नवनीत हुल्लड़, पुत्री सोनिया एवं मनीषा हैं। महानगर के केजीके कालेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए बीएससी की और हिंदी से एमए की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान ही वह कालेज में सहपाठी कवियों के साथ कविता पाठ करने लगे थे। शुरुआत में उन्होंने वीर रस की कविताएं लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही हास्य रचनाओं की ओर उनका रुझान हो गया और हुल्लड़ की हास्य रचनाओं से कवि मंच गुलजार होने लगे। सन 1962 में उन्होंने ‘सब्र’ उप नाम से हिंदी काव्य मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। बाद में वह हुल्लड़ मुरादाबादी के नाम से देश दुनिया में पहचाने गए। फिल्म संतोष एवं बंधनबाहों में भी उन्होंने अभिनय किया था। भारतीयों के फिल्मों के भारत कुमार कहे जाने वाले मनोज कुमार के साथ उनके मधुर संबंध रहे हैं :.........
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13-07-2014, 09:20 PM | #5 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
मशहूर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे : हंसते हंसते लोटपोट हो जाते थे श्रोता :हुल्लड़ मुरादाबादी ने अपनी रचनाओं में हर छोटी सी बात को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। कविताओं के अलावा उनके दोहे सुनकर श्रोता हंसते हंसते लोटपोट होने लगते। हुल्लड़ के कुछ ऐसे ही दोहों पर नजर डालिए- ‘कर्जा देता मित्र को वो मूरख कहलाय, महामूर्ख वो यार है, जो पैसे लौटाय।’ पुलिस पर व्यंग्य करते हुए लिखा है- ‘बिना जुर्म के पिटेगा, समझाया था तोय, पंगा लेकर पुलिस से, साबित बचा न कोय।’ उनका एक दोहा- पूर्ण सफलता के लिए, दो चीजें रख याद, मंत्री की चमचागिरी, पुलिस का आशीर्वाद।’ राजनीति पर उनकी कविता- ‘जिंदगी में मिल गया कुरसियों का प्यार है, अब तो पांच साल तक बहार ही बहार है, कब्र में है पांव पर, फिर भी पहलवान हूं, अभी तो मैं जवान हूं...।’ उन्होंने कविताओं और शेरो शायरी को पैरोडियों में ऐसा पिरोया कि बड़ों से लेकर बच्चे तक उनकी कविताओं में डूबकर मस्ती में झूमते रहते :.........
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13-07-2014, 09:25 PM | #6 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
मशहूर हास्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी नहीं रहे : प्रकाशित पुस्तकें :- इतनी ऊंची मत छोड़ो, क्या करेगी चांदनी, यह अंदर की बात है, त्रिवेणी, तथाकथित भगवानों के नाम (पुरस्कृत), हुल्लड़ का हुल्लड़, हज्जाम की हजामत, अच्छा है पर कभी कभी। सम्मान : - कलाश्री अवार्ड, ठिठोली अवार्ड, टीओवाईपी अवार्ड, महाकवि निराला सम्मान, अट्टहास शिखर सम्मान, काका हाथरसी अवार्ड, हास्य रत्न अवार्ड एचएमवी एवं टीसीरीज से कैसेट्स से ‘हुल्लड़ इन हांगकांग’ सहित रचनाओं का एलबम विदेश यात्राएं : - बैंकाक, नेपाल, हांगकांग, तथा अमेरिका के 18 नगरों में। विशेष : - पूर्व राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा मार्च 1994 में राष्ट्रपति भवन में अभिनंदन :.........
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13-07-2014, 09:36 PM | #7 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन- एक बार हमें करनी पड़ी रेल की यात्राभारतीय रेल पर हास्य कविता... देख सवारियों की मात्रा पसीने लगे छूटने हम घर की तरफ़ लगे फूटने इतने में एक कुली आया और हमसे फ़रमाया साहब अंदर जाना है? हमने कहा हां भाई जाना है…. उसने कहा अंदर तो पंहुचा दूंगा पर रुपये पूरे पचास लूंगा हमने कहा समान नहीं केवल हम हैं तो उसने कहा क्या आप किसी सामान से कम हैं ?…. जैसे तैसे डिब्बे के अंदर पहुचें यहां का दृश्य तो ओर भी घमासान था पूरा का पूरा डिब्बा अपने आप में एक हिंदुस्तान था कोई सीट पर बैठा था, कोई खड़ा था जिसे खड़े होने की भी जगह नही मिली वो सीट के नीचे पड़ा था…. इतने में एक बोरा उछलकर आया ओर गंजे के सर से टकराया गंजा चिल्लाया यह किसका बोरा है ? बाजू वाला बोला इसमें तो बारह साल का छोरा है….. तभी कुछ आवाज़ हुई और इतने मैं एक बोला चली चली दूसरा बोला या अली … हमने कहा काहे की अली काहे की बलि ट्रेन तो बगल वाली चली !! :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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13-07-2014, 10:07 PM | #8 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन- अभी तो मैं जवान हूँ :पुरानी शायरी नये संदर्भ... ज़िन्दगी़ में मिल गया कुरसियों का प्यार है अब तो पाँच साल तक बहार ही बहार है कब्र में है पाँव पर फिर भी पहलवान हूँ अभी तो मैं जवान हूँ। मुझसे पहली-सी मुहब्बत : सोयी है तक़दीर ही जब पीकर के भांग महँगाई की मार से टूट गई है टाँग तुझे फोन अब नहीं करूँगा पी.सी.ओ. से हांगकांग मुझसे पहले सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग। ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर : तू पहले ही है पिटा हुआ ऊपर से दिल नाशाद न कर जो गई ज़मानत जाने दे वह जेल के दिन अब याद न कर तू रात फोन पर डेढ़ बजे विस्की रम की फरियाद न कर तेरी लुटिया तो डूब चुकी ऐ इश्क मुझे बरबाद न कर जब लाद चलेगा बंजारा : इक चपरासी को साहब ने कुछ ख़ास तरह से फटकारा औकात न भूलो तुम अपनी यह कह कर चाँटा दे मारा वह बोला कस्टम वालों की जब रेड पड़ेगी तेरे घर सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा!! :.........
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13-07-2014, 10:18 PM | #9 |
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Re: हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :.........
हुल्लड़ मुरादाबादी को श्रद्धासुमन :......... क्या बताये आपसे हम हाथ मलते रह गए गीत सूखे पर लिखे थे, बाढ़ में सब बह गए भूख, महगाई, गरीबी इश्क मुझसे कर रहीं थीं एक होती तो निभाता, तीनो मुझपर मर रही थीं मच्छर, खटमल और चूहे घर मेरे मेहमान थे मैं भी भूखा और भूखे ये मेरे भगवान् थे रात को कुछ चोर आए, सोचकर चकरा गए हर तरफ़ चूहे ही चूहे, देखकर घबरा गए कुछ नहीं जब मिल सका तो भाव में बहने लगे और चूहों की तरह ही दुम दबा भगने लगे हमने तब लाईट जलाई, डायरी ले पिल पड़े चार कविता, पाँच मुक्तक, गीत दस हमने पढे चोर क्या करते बेचारे उनको भी सुनने पड़े रो रहे थे चोर सारे, भाव में बहने लगे एक सौ का नोट देकर इस तरह कहने लगे कवि है तू करुण-रस का, हम जो पहले जान जाते सच बतायें दुम दबाकर दूर से ही भाग जाते अतिथि को कविता सुनाना, ये भयंकर पाप है हम तो केवल चोर हैं, तू डाकुओं का बाप है !! :.........
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13-07-2014, 10:23 PM | #10 |
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कविताएँ, काका हाथरसी, शैल चतुर्वेदीजी, हास्य कवि, हुल्लड़ जी |
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