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Old 08-11-2012, 09:55 PM   #11
omkumar
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

मथुरामोहन नौटंकी कंपनी में लैला बननेवाली हीराबाई का नाम किसने नहीं सुना होगा भला! लेकिन हिरामन की बात निराली है! उसने सात साल तक लगातार मेलों की लदनी लादी है, कभी नौटंकी-थियेटर या बायस्कोप सिनेमा नहीं देखा। लैला या हीराबाई का नाम भी उसने नहीं सुना कभी। देखने की क्या बात! सो मेला टूटने के पंद्रह दिन पहले आधी रात की बेला में काली ओढ़नी में लिपटी औरत को देखकर उसके मन में खटका अवश्य लगा था। बक्सा ढोनेवाले नौकर से गाड़ी-भाड़ा में मोल-मोलाई करने की कोशिश की तो ओढ़नीवाली ने सिर हिलाकर मना कर दिया। हिरामन ने गाड़ी जोतते हुए नौकर से पूछा, ''क्यों भैया, कोई चोरी चमारी का माल-वाल तो नहीं?'' हिरामन को फिर अचरज हुआ। बक्सा ढ़ोनेवाले आदमी ने हाथ के इशारे से गाड़ी हाँकने को कहा और अँधेरे में गायब हो गया। हिरामन को मेले में तंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी की काली साड़ी की याद आई थी।

ऐसे में कोई क्या गाड़ी हाँके!
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Old 08-11-2012, 09:55 PM   #12
omkumar
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

एक तो पीठ में गुदगुदी लग रही है। दूसरे रह-रहकर चंपा का फूल खिल जाता है उसकी गाड़ी में। बैलों को डाँटो तो 'इस-बिस' करने लगती है उसकी सवारी। उसकी सवारी! औरत अकेली, तंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी नहीं! आवाज सुनने के बाद वह बार-बार मुड़कर टप्पर में एक नज़र डाल देता है; अँगोछे से पीठ झाड़ता है। भगवान जाने क्या लिखा है इस बार उसकी किस्मत में! गाड़ी जब पूरब की ओर मुड़ी, एक टुकड़ा चाँदनी उसकी गाड़ी में समा गई। सवारी की नाक पर एक जुगनू जगमगा उठा। हिरामन को सबकुछ रहस्यमय, अजगुत-अजगुत- लग रहा है। सामने चंपानगर से सिंधिया गाँव तक फैला हुआ मैदान! कहीं डाकिन-पिशाचिन तो नहीं?

हिरामन की सवारी ने करवट ली। चाँदनी पूरे मुखड़े पर पड़ी तो हिरामन चीखते-चीखते रूक गया, अरे बाप! ई तो परी है!
परी की आँखें खुल गइंर्। हिरामन ने सामने सड़क की ओर मुँह कर लिया और बैलों को टिटकारी दी। वह जीभ को तालू से सटाकर टि-टि-टि-टि आवाज निकालता है। हिरामन की जीभ न जाने कब से सूखकर लकड़ी-जैसी हो गई थी!

''भैया, तुम्हारा नाम क्या है?''
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Old 08-11-2012, 09:55 PM   #13
omkumar
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हू-ब-हू फेनूगिलास! हिरामन के रोम-रोम बज उठे। मुँह से बोली नहीं निकली। उसके दोनों बैल भी कान खड़े करके इस बोली को परखते हैं।
''मेरा नाम! नाम मेरा है हिरामन!''
उसकी सवारी मुस्कराती है। मुस्कराहट में खुशबू है।
''तब तो मीता कहूँगी, भैया नहीं।, मेरा नाम भी हीरा है।''
''इस्स!'' हिरामन को परतीत नहीं, ''मर्द और औरत के नाम में फर्क होता है।''
''हाँ जी, मेरा नाम भी हीराबाई है।''
कहाँ हीरामन और कहाँ हीराबाई, बहुत फर्क है!
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Old 08-11-2012, 09:56 PM   #14
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हिरामन ने अपने बैलों को झिड़की दी, ''कान चुनियाकर गप सुनने से ही तीस कोस मंज़िल कटेगी क्या? इस बाएँ नाटे के पेट में शैतानी भरी है।'' हिरामन ने बाएँ बैल को दुआली की हल्की झड़प दी।
''मारो मत; धीरे धीरे चलने दो। जल्दी क्या है!''
हिरामन के सामने सवाल उपस्थित हुआ, वह क्या कहकर 'गप' करे हीराबाई से? तोहे' कहे या' अहाँ? उसकी भाषा में बड़ों को 'अहाँ' अर्थात 'आप' कहकर संबोधित किया जाता है, कचराही बोली में दो-चार सवाल-जवाब चल सकता है, दिल-खोल गप तो गाँव की बोली में ही की जा सकती है किसी से।

आसिन-कातिक के भोर में छा जानेवाले कुहासे से हिरामन को पुरानी चिढ़ है। बहुत बार वह सड़क भूलकर भटक चुका है। किंतु आज के भोर के इस घने कुहासे में भी वह मगन है। नदी के किनारे धन-खेतों से फूले हुए धान के पौधों की पवनिया गंध आती है। पर्व-पावन के दिन गाँव में ऐसी ही सुगंध फैली रहती है। उसकी गाड़ी में फिर चंपा का फूल खिला। उस फूल में एक परी बैठी है। जै भगवती।
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Old 08-11-2012, 09:56 PM   #15
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हिरामन ने आँख की कनखियों से देखा, उसकी सवारी मीता हीराबाई की आँखें गुजुर-गुजुर उसको हेर रही हैं। हिरामन के मन में कोई अजानी रागिनी बज उठी। सारी देह सिरसिरा रही है। बोला, ''बैल को मारते हैं तो आपको बहुत बुरा लगता है?''

हीराबाई ने परख लिया, हिरामन सचमुच हीरा है।
चालीस साल का हट्टा-कट्टा, काला-कलूटा, देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता। घर में बड़ा भाई है, खेती करता है। बाल-बच्चेवाला आदमी है। हिरामन भाई से बढ़कर भाभी की इज्जत करता है। भाभी से डरता भी है। हिरामन की भी शादी हुई थी, बचपन में ही गौने के पहले ही दुलहिन मर गई। हिरामन को अपनी दुलहिन का चेहरा याद नहीं। दूसरी शादी? दूसरी शादी न करने के अनेक कारण हैं। भाभी की जिद, कुमारी लड़की से ही हिरामन की शादी करवाएगी। कुमारी का मतलब हुआ पाँच-सात साल की लड़की। कौन मानता है सरधा-कानून? कोई लड़कीवाला दोब्याहू को अपनी लड़की गरज में पड़ने पर ही दे सकता है। भाभी उसकी तीन-सत्त करके बैठी है, सो बैठी है। भाभी के आगे भैया की भी नहीं चलती! अब हिरामन ने तय कर लिया है, शादी नहीं करेगा। कौन बलाय मोल लेने जाए! ब्याह करके फिर गाड़ीवानी क्या करेगा कोई! और सबकुछ छूट जाए, गाड़ीवानी नहीं छोड़ सकता हिरामन।
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Old 08-11-2012, 09:56 PM   #16
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Default Re: फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गए गुलफ़ाम

हीराबाई ने हिरामन के जैसा निश्छल आदमी बहुत कम देखा है। पूछा, ''आपका घर कौन जिल्ला में पड़ता है?'' कानपुर नाम सुनते ही जो उसकी हँसी छूटी, तो बैल भड़क उठे। हिरामन हँसते समय सिर नीचा कर लेता है। हँसी बंद होनेपर उसने कहा, ''वाह रे कानपुर! तब तो नाकपुर भी होगा?'' और जब हीराबाई ने कहा कि नाकपुर भी है, तो वह हँसते-हँसते दुहरा हो गया।

''वाह रे दुनिया! क्या-क्या नाम होता है! कानपुर, नाकपुर!'' हिरामन ने हीराबाई के कान के फूल को गौर से देखो। नक की नकछवि के नग देखकर सिहर उठा, लहू की बूँद!

हिरामन ने हीराबई का नाम नहीं सुना कभी। नौटंकी कंपनी की औरत को वह बाईजी नहीं समझता है। कंपनी में काम करनेवाली औरतों को वह देख चुका है। सरकस कंपनी की मालकिन, अपनी दोनों जवान बेटियों के साथ बाघगाड़ी के पास आती थी, बाघ को चारा-पानी देती थी, प्यार भी करती थी खूब। हिरामन के बैलों को भी डबलरोटी-बिस्कुट खिलाया था बड़ी बेटी ने।
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Old 08-11-2012, 09:56 PM   #17
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हिरामन होशियार है। कुहासा छँटते ही अपनी चादर से टप्पर में परदा कर दिया, ''बस दो घंटा! उसके बाद रास्ता चलना मुश्किल है। कातिक की सुबह की धूल आप बर्दास्त न कर सकिएगा। कजरी नदी के किनारे तेगछिया के पास गाड़ी लगा देंगे। दुपहरिया काटकर।''

सामने से आती हुई गाड़ी को दूर से ही देखकर वह सतर्क हो गया। लीक और बैलों पर ध्यान लगाकर बैठ गया। राह काटते हुए गाड़ीवान ने पूछा, ''मेला टूट रहा है क्या भाई?''

हिरामन ने जवाब दिया, वह मेले की बात नहीं जानता। उसकी गाड़ी पर 'बिदागी' (नैहर या ससुराल जाती हुई लड़की) है। न जाने किस गाँव का नाम बता दिया हिरामन ने।
''छतापुर-पचीरा कहाँ है?''
''कहीं हो, यह लेकर आप क्या करिएगा?'' हिरामन अपनी चतुराई पर हँसा। परदा डाल देने पर भी पीठ में गुदगुदी लगती है।
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Old 08-11-2012, 09:57 PM   #18
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हिरामन परदे के छेद से देखता है। हीराबाई एक दियासलाई की डिब्बी के बराबर आईने में अपने दाँत देख रही है। मदनपुर मेले में एक बार बैलों को नन्हीं-चित्ती कौड़ियों की माला खरीद दी थी। हिरामन ने, छोटी-छोटी, नन्हीं-नन्हीं कौड़ियों की पाँत।

तेगछिया के तीनों पेड़ दूर से ही दिखलाई पड़ते हैं। हिरामन ने परदे को जरा सरकाते हुए कहा, ''देखिए, यही है तेगछिया। दो पेड़ जटामासी बड़ है और एक उस फूल का क्या नाम है, आपके कुरते पर जैसा फूल छपा हुआ है, वैसा ही; खूब महकता है; दो कोस दूर तक गंध जाती है; उस फूल को खमीरा तंबाकू में डालकर पीते भी हैं लोग।''

''और उस अमराई की आड़ से कई मकान दिखाई पड़ते हैं, वहाँ कोई गाँव है या मंदिर?

हिरामन मे बीड़ी सुलगाने के पहले पूछा, ''बीड़ी पीएँ? आपको गंध तो नहीं लगेगी? वही है नामलगर ड्योढ़ी। जिस राजा के मेले से हम लोग आ रहे हैं, उसी का दियाद-गोतिया है। जा रे जमाना!''
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Old 08-11-2012, 09:57 PM   #19
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हिरामन ने 'जा रे जमाना' कहकर बात को चाशनी में डाल दिया। हीराबाई टप्पर के परदे को तिरछें खोंस दिया। हीराबाई की दंतपंक्ति।
''कौन जमाना?'' ठुड्डी पर हाथ रखकर साग्रह बोली।
''नामलगर ड्योढ़ी का जमाना! क्या था और क्या-से-क्या हो गया!''
हिरामन गप रसाने का भेद जानता है। हीराबाई बोली, ''तुमने देखा था वह जमाना?''''देखा नहीं, सुना है। राज कैसे गया, बड़ी हैफवाली कहानी है। सुनते हैं, घर में देवता ने जन्म ले लिया। कहिए भला, देवता आखिर देवता है। है या नहीं? इंदरासन छोड़कर मिरतूभुवन में जन्म ले ले तो उसका तेज कैसे सम्हाल सकता है कोई! सूरजमुखी फूल की तरह माथे के पास तेज खिला रहता।लेकिन नजर का फेर किसी ने नहीं पहचाना। एक बार उपलैन में लाट साहब मय लाटनी के, हवागाड़ी से आए थे। लाट ने भी नहीं, पहचाना आखिर लटनी ने। सुरजमुखी तेज देखते ही बोल उठी, ए मैन राजा साहब, सुनो, यह आदमी का बच्चा नहीं हैं, देवता हैं।''
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Old 08-11-2012, 09:57 PM   #20
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हिरामन ने लाटनी की बोली की नकल उतारते समय खूब डैम-फैट-लैट किया। हीराबाई दिल खोलकर हँसी। हँसते समय उसकी सारी देह दुलकती है।
हीराबाई ने अपनी ओढ़नी ठीक कर ली। तब हिरामन को लगा कि लगा कि...
''तब? उसके बाद क्या हुआ मीता?''
''इस्स! कथ्था सुनने का बड़ा सौक है आपको? लेकिन, काला आदमी, राजा क्या महाराजा भी हो जाए, रहेगा काला आदमी ही। साहेब के जैसे अक्किल कहाँ से पाएगा! हँसकर बात उड़ा दी सभी ने। तब रानी को बार-बार सपना देने लगा देवता! सेवा नहीं कर सकते तो जाने दो, नहीं, रहेंगे तुम्हारे यहाँ। इसके बाद देवता का खेल शुरू हुआ। सबसे पहले दोनों दंतार हाथी मरे, फिर घोड़ा, फिर पटपटांग।''
''पटपटांग क्या है?''
हिरामन का मन पल-पल में बदल रहा है। मन में सतरंगा छाता धीरे-धीरे खिल रहा है, उसको लगता है। उसकी गाड़ी पर देवकुल की औरत सवार है। देवता आखिर देवता है!
''पटपटांग! धन-दौलत, माल-मवेसी सब साफ! देवता इंदरासन चला गया।''
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