20-01-2013, 10:30 PM | #1 |
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मैं पदमिनी बणयो (रचनाकार: सुरेन्द्र शर्मा )
मैं पदमिनी बणयो (रचनाकार: सुरेन्द्र शर्मा ) एक दिन एक नाटक कम्पनी वालो मेरे से आ कर बोल्यो, “शर्मा जी, म्हें पदमिनी का नाटक कर रिहा हाँ पण पदमिनी के रोल खातर कोई छोरी मिली ही कोनी सो महे चाहवां थारी मूछ मुड़ा के थाणे पदमिनी बणावां. मैं उन दिनां कड़की में थो सो बोल्यो, “पांच सौ रुपया दिलवा दो पदमिनी के पदमिनी का बाप बणा दो” वै बोल्यो, “रुपयाँ की कोई ख़ास बात कोनी थे तो म्हारी लाज बचा दो.” मैं कही “मैं तो पूरी कोसिस करूंगो पण हो सके लुट भी जावे.” Last edited by rajnish manga; 24-01-2013 at 03:16 PM. |
20-01-2013, 10:31 PM | #2 |
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Re: मैं पदमिनी बणयो (रचनाकार: सुरेन्द्र शर्मा
सो जे दिन मन्ने पदमिनी बणनों थो
बो ऊ दिन मैं मूछ मुड़ा के साड़ी पहन के सुबहान से ही पड़ोसियां पे गजब ढावै थो और अपना मूंडो सीसा में देखर कै खुद ही सरमावे थो. जल्दी ही नाटक में बा सीन आणो थो जद म्हाने अपनो मूंडो खिलजी ने सीसा में दिखानो थो मैं दासी के साथ मंच पर जा रिहो थो तो दरबान चिल्ला रिहो थो “सावधान, महारानी पदमिनी आ रही हैं” जनता में से एक जणो खड़ो हो के बोल्यो “ईं से आछी तो ईं की दासी लाग रही है.” इब ताणी मेरा पति बण रिहा महाराणा रतनसेन नै कि मैं पदमिनी बण रहो हूँ मालूम कोनी थी. पर्दा के पीछे से डाईरेक्टर महाराणा से बोल्यो, “इब थे पदमिनी ने खिलजी ने सीसा में दिखाओ” |
20-01-2013, 10:33 PM | #3 |
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Re: मैं पदमिनी बणयो (रचनाकार: सुरेन्द्र शर्मा
खिलजी बोल्यो
“जे ईसी ही पदमिनी होवे है तो सीसा में दिखाने की के जरूरत है चौड़े-धाड़े दिखा रिहो हूँ.” डाइरेक्टर बोल्यो, “रे चुप हो जा नहीं तो परदा गिरवा रिहो हूँ.” पण बीं दिन तो किस्मत और भी फूट गई थी परदा गिराने हाली रस्सी तो पहले ही टूट गई थी. महाराणा खिलजी से बोल्यो, “भाई जी! क्यों झगड़ा कर रिहो हो ईसी पदमिनी के लिए साम्प्रदायिक दंगा कर रिहो हो थे इने राजी खुसी ही ले जाओ.” मेरो तो इतना अपमान कवि सम्मेलन में भी कोनी हुओ थो. सो मैं मंच के पीछे आयो डाईरेक्टर मेरे से बोल्यो, “या सब थारी वजह से हो रिहो है.” मैं बोल्यो,”इन्सल्ट तो मेरी हो रही है तू क्यों रो रिहो है.” |
20-01-2013, 10:34 PM | #4 |
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Re: मैं पदमिनी बणयो (रचनाकार: सुरेन्द्र शर्मा
पण मंच पे महाराणा और खिलजी
आपस में झगड़ रिहा था. महाराणा खिलजी से कह रिहो थो, “जे थे पदमिनी ने नहीं ले जाओगा तो थारी लास ही वापस जावेगी.” डाइरेक्टर बोल्यो, “रे चुप हो जाओ या जनता मेरी लास बिछावेगी.” मैं डाइरेक्टर से कही, “रे इब भी नाटक ने बचा दे जे जगहा पदमिनी ने आग में कूदानो है उठै मन्ने पहुंचा दे कम से कम मेरा जौहर ही करवा दे.” मैं ऊँ जगहाँ पहुँच्यो जाते जोहर होनो थो पण बीं दिन तो नाटक और ही होनो थो जद जौहर हाली जगहाँ को परदों ठायो तो दखतो ही माथा पे सन्नाटा छायो अरे खिलजी तो आग में कूद चुको थो और महाराणा ऊमे कूदबा की तैय्यारी कर रिहो थो. |
20-01-2013, 10:35 PM | #5 |
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Re: मैं पदमिनी बणयो (रचनाकार: सुरेन्द्र शर्मा
इतना देखता ही डाइरेक्टर माइक पे आयो
और जनता से बोल्यो, “आज की तो म्हें माफ़ी मांगा हाँ पण काल थारी कसर जरूर पूरी हो जावेगी काल सीता हरण की लीला दिखाई जावेगी.” तो एक जणा दर्शक में से मेरी ओर देख के बोल्यो, “जे काल भी यो ही सीता बणेगो तो रावण अपहरण की जगहां आत्म ह्त्या करेगो. (म्हारे देस की यो ही सब से बड़ी विडम्बना से कि हर सही जगहां पर गलत आदमी बेठ्या है) |
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