23-01-2013, 07:14 PM | #21 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
तल्ख़ बयान अब तूं देदे 'रौनक'....इशारों इशारों मे दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:14 PM | #22 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
Sunday - Funday
शमा की तरह वो जलने लगे दीदी जो उनको पुकारा था मॉडर्न युवती को देखो रे दीदी सुनना ना गवारा था दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:15 PM | #23 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
ग़ज़ल
चल पड़ा वो जानवर शिकार पर बागबां परेशान हदे दीवार पर चौकन्ना रहना रस्ते अनजान सब नज़रें वहशी है आमादा वार पर कामयाबी खोज हसरते कब थमी दौड़ पहुंची अब अन्तिम कगार पर आबला पा खूब मकबूल अब तो जूते पड़ें जब रास्ते के परस्तार पर क़दरदा लाखों है 'रौनक' के अब तो लग गये अब चार चाँद दस्तार पर दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:17 PM | #24 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
ग़ज़ल-
चलन का नमूना दिखाओ तो जानूं जरा आँख हमसे मिलाओ तो जानूं अदावत से नाता हमेशा निभाया नज़र मोहब्बत से मिलाओ तो जानूं लम्हे बदलता वो इशारों के दम पर नतीजा-ए-व*क्त को छुपाओ तो जानूं मुझे यूं तन्हा छोड़ कर जाने वालों मेरा साथ अंत तक निभाओ तो जानूं सफर रोक कर तुझ से रूबरू हूँ वक्त साथ हमदम बिताओ तो जानूं खुदा का बंदा खास जब तक है 'रौनक' अहम वालों उसको सताओ तो जानूं दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:17 PM | #25 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
आबे अनार का सुरूर याद है अब तक
घूंट ब घूंट जो लबों से पिलाई तूने दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:18 PM | #26 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
उड़ाते थे जो मखौल रास्तों का कभी
मखौल मंजिलों ने उनका उड़ाया बहुत दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:21 PM | #27 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
अपने लहू से सजाया था हर अल्फाज़ मैंने
ढूँढते रहे वो रात भर वज़न मेरी ग़ज़ल मे दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:21 PM | #28 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
उसने माँगा जो सबूते वज़न मेरी शायरी का
चीरकर दिल अपना तस्वीर तेरी उसे दिखा दी दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:23 PM | #29 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
नज़र से नजारों से डरने लगा है
इशारों इशारों मे बहलने लगा है सितारों से कह दो न यूँ चमचमाए लहू आसमानों मे बिखरने लगा है सदियों से दरबदर था जो रहगुज़र मंजिलों से मुखातिब होने लगा है असरदार होती गई अदा-ए-इश्क वफा का सबब अब बदलने लगा है कत्ल होने की आरज़ू जब से हुई धडकनों में ठहराव बढने लगा है दे आवाज़ 'रौनक' खुदा को हरकदम बदहवास कदम अब बहकने लगा है दीपक खत्री 'रौनक' |
23-01-2013, 07:23 PM | #30 |
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Re: मेरी रचनाएँ -7 - दीपक खत्री 'रौनक'
ये अश्क, ये उदासी और ये जालिम तन्हाई
आये है रहने यहाँ तेरे चले जाने के बाद दीपक खत्री 'रौनक' |
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