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Old 24-09-2011, 09:43 AM   #1
Gaurav Soni
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Arrow हिंदी का पहला उपन्यास

आज हम कितने ही हिन्दी उपन्यास पढ़ते हैं ..पर क्या आप जानते हैं कि पहला हिन्दी का उपन्यास कौन सा है .. हिन्दी का प्रथम उपन्यास है देवरानी जेठानी की कहानी" यह लिखा हुआ पंडित गौरी दत्त जी के द्बारा | इस उपन्यास को न केवल अपने अपने प्रकाशक वर्ष १८७० वरन अपनी लिखे जाने के लिहाज से भी पंडित गौरीदत्त की कृति देवरानी जेठानी की कहानी को हिन्दी का पहला उपन्यास होने का श्रेय जाता है | इस में लिखा इतना बढ़िया है कि उस समय का पूरा समाज ही ध्वनित होता है .जैसे बालविवाह ,विवाह में फिजूल खर्ची .स्त्रियों का गहनों से लगाव .बंटवारा .वृद्धों और बहुओं को समस्या .शिक्षा ,स्त्री शिक्षा ..अपनी अनगढ़ ईमानदारी में यह उपन्यास कहीं चूकता नहीं |
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जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है।
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जिनके घर शीशो के होते हे वो दूसरों के घर पर पत्थर फेकने से पहले क्यू नहीं सोचते की उनके घर पर भी कोई फेक सकता हे
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Old 24-09-2011, 09:43 AM   #2
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डेढ़ सौ साल पहले की संस्कृति

इसको भाषा इतनी जीवंत है कि आज के साहित्याकारों को भी दिशा दिखा देती है ..और अपने लेखन से नए समय के आने की आहट देती है | यदि डेढ़ सौ साल पहले की संस्कृति को जानना हो तो इस उपन्यास से बेहतर कोई साधन नही हैं ..| पंडित गौरी दत्त के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हिन्दी के प्रचार प्रसार में अपनी सारी जायदाद तक लगा दी थी |इस के लिए उनकी समानता मालवीय जी .महावीर प्रसाद दिवेद्धी.बाल कुमुन्द गुप्त तक से की जाती है |
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Old 24-09-2011, 09:43 AM   #3
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५०० प्रतियाँ प्रकाशित हुई और मूल्य केवल १२ आने

प्रथम हिन्दी उपन्यास देवरानी जेठानी की कहानी १८७० में मेरठ के एक लीथो प्रेस छापाखाना ऐ जियाई में प्रकाशित हुआ था |तब इसकी ५०० प्रतियाँ प्रकाशित हुई और मूल्य केवल १२ आने था | कुछ समय तक इस उपन्यास को नारी शिक्षा विषयक कह कर उसके समुचित गौरव से इसको वंचित रखा गया किंतु अपनी गहरी सामाजिक दृष्टि और मानवीय सरोकारों की दृष्टि से यह एक ऐसा उपन्यास बन गया जिसकी तुलना किसी से नही की जा सकती है | छोटे आकार की सिर्फ़ पैंतीस पृष्ठों की यह कृति उस वक्त के सामाजिक समस्याओं को इतने अच्छे तरीके से बताती है कि प्रथम उपन्यास में ही यह कमाल देख कर हैरानी होती है | उस वक्त के इन समस्याओं के साथ साथ जीवन के चटख रंगों में पूरे प्रमाण के साथ लिखा गया है | इसकी भाषा उस वक्त की जन भाषा से जुड़ी हुई है | किस्सागोई का अनूठा प्रयोग है और लोक भाषा के अर्थ गर्भित शब्दों के सचेत प्रयोग किए गए हैं .जैसे ..
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Old 24-09-2011, 09:43 AM   #4
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Default Re: क्या आप जानते हैँ

""जब वह सायंकाल को सारे दिन का थका हारा घर आता ,नून तेल का झींकना ले बैठती | कभी कहती मुझे गहना बना दे ,रोती झींकती ,लड़ती भिड़ती |उसे रोती न करने देती |कहती कि फलाने की बहू को देख ,गहने से लद रही है |उसका मालिक नित नई चीज लावे है |मेरे तो इस घर में आ के भाग फूट गए | वह कहता ,अरी भगवान् ,जाने भगवान रोटियों की क्यों कर गुजारा कर रहे हैं ,तुझे गहने -पाते की सूझ रही है?"
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Old 24-09-2011, 09:43 AM   #5
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नारी शिक्षा ,बाल विवाह ,विधवा विवाह
नारी शिक्षा किस प्रकार सामजिक परिवर्तन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निबाह कर सकती है इस पर उस वक्त भी उपन्यास कार सोचता है ..उस वक्त बाल विवाह खूब हो रहे थे .किंतु छोटी बहू और उसका पति छोटेलाल अपने पुत्र मोहन को खूब पद्वाना चाहते हैं ."नन्हे की सगाई कई जगह से आई पर छोटेलाल और उसको बहू ने फेर दी | और यह कहा की पन्द्रह -सोलह वर्ष का होगा तब विवाह सगाई करेंगे |" उस समय के समाज में यह बहुत बड़ी बात थी बहुत बड़ा निर्णय | छोटे छोटे बच्चो ५ या ६ साल के इस से भी पहेल विवाह हो जाया करते थे |विधवा विवाह की तो हिन्दी उपन्यास में बहुत बाद में चर्चा की गई शायद सेवा सदन में प्रेमचंद के उपन्यास में किंतु प्रथम उपन्यास में इस और भी ध्यान दिया गया | छोटे लाल की बहू की मामा की बेटी का नौ वर्ष की आयु में विवाह हुआ था ,और उसका पति पतंग उडाते हुए छत से नीचे गिर गया और प्राण त्याग दिए | इस तरह वह मात्र दस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गई | वह सात फेरों की गुनाहगार अपने जीवन के सब रास रंग खो देती है | जिसके अभी खेलने खाने के दिन थे वह दिन उसको कठिन वैधव्य में बीतने पड़े | पुनर्विवाह उस वक्त सबसे बड़ा पाप समझा जाता था ,पर १८७० में लिखे इस उपन्यास में यह क्रांतिकारी कदम भी दिखाया गया है |
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Old 24-09-2011, 09:44 AM   #6
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लुप्त होते शब्द

बहुत से इस उपन्यास में इस तरह के शब्द भी आये हैं जो शायद कुछ समय बाद बिल्कुल विलुप्त हो जायेंगे या हो चुके हैं | जैसे मंझोली ..यह शब्द बैलगाडी और बैल टाँगे के मध्य की चीज के लिए उस वक्त इस्तेमाल किया जाता था | मांदी शब्द का इस्तेमाल लम्बी बीमारी के लिए हुआ है किंतु अब मेरठ क्षेत्र से यह शब्द पुरानी पीढी के साथ गायब होता जा रहा है | नौमी को आज भी कौरवी जन भाषा में नौमी ही कहा जाता है नवमी नहीं | उस वक्त के जन्म मरण .विवाह गौना ,आदि के समस्त लोकाचार का बहुत ही रसपूर्ण वर्णन है इस उपन्यास में |
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Old 24-09-2011, 09:44 AM   #7
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Default Re: क्या आप जानते हैँ

इस तरह यह उपन्यास हमारी हिन्दी भाषा के लिए एक अनमोल धरोहर है | जिसको पढ़ कर उस वक्त के समय को समझा जा सकता है | अपने कथ्य और अभिव्यक्ति दोनों दृष्टियों से देवरानी जेठानी की कहानी हिन्दी का प्रथम गौरव पूर्ण कृति ही नहीं है वरन यह हिन्दी उपन्यास के इतिहास में अपना दुबारा मूल्यांकन भी मांगती है |
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Old 24-09-2011, 10:47 AM   #8
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Default Re: हिंदी का पहला उपन्यास

इसमे कई तरह की ओर कई लोगों का अपना अपना मत हे जो मे यहा पर पेश करुगा
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Old 24-09-2011, 10:47 AM   #9
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Default Re: हिंदी का पहला उपन्यास

हिंदी का पहला उपन्यास होने का गौरव लाला श्रीनिवास दास (1850-1907) द्वारा लिखा गया और 25 नवंबर 1885 को प्रकाशित परीक्षा गुरु नामक उपन्यास को प्राप्त है। लाला श्रीनिवास दास भारतेंदु युग के प्रसिद्ध नाटकार थे। नाटक लेखन में वे भारतेंदु के समकक्ष माने जाते हैं। वे मथुरा के निवासी थे और हिंदी, उर्दू, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता थे। उनके नाटकों में शामिल हैं, प्रह्लाद चरित्र, तप्ता संवरण, रणधीर और प्रेम मोहिनी, और संयोगिता स्वयंवर।
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Old 24-09-2011, 10:47 AM   #10
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Default Re: हिंदी का पहला उपन्यास

लाला श्रीनिवास कुशल महाजन और व्यापारी थे। अपने उपन्यास में उन्होंने मदनमोहन नामक एक रईस के पतन और फिर सुधार की कहानी सुनाई है। मदनमोहन एक समृद्ध वैश्व परिवार में पैदा होता है, पर बचपन में अच्छी शिक्षा और उचित मार्गदर्शन न मिलने के कारण और युवावस्था में गलत संगति में पड़कर अपनी सारी दौलत खो बैठता है। न ही उसे आदमी की ही परख है। वह अपने सच्चे हितैषी ब्रजकिशोर को अपने से दूर करके चुन्नीलाल, शंभूदयाल, बैजनाथ और पुरुषोत्तम दास जैसे कपटी, लालची, मौका परस्त, खुशामदी "दोस्तों" से अपने आपको घिरा रखता है। बहुत जल्द इनकी गलत सलाहों के चक्कर में मदनमोहन भारी कर्ज में भी डूब जाता है और कर्ज समय पर अदा न कर पाने से उसे अल्प समय के लिए कारावास भी हो जाता है।
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