19-04-2012, 07:57 AM | #21 |
VIP Member
|
Re: उर्दू की कुछ चुनिन्दा कहानियाँ
और मुखिया पंचायत में अकेला तो आया नहीं था, हाथों में लाठियाँ और बल्लम लिए हट्टे-कट्टे जवान साथ थे। मुखिया तो अपनी जगह पर बैठ गया। परन्तु ये जवान भीड़ के चारों ओर खड़े हो गये। अपनी लाठियों और बल्लमों को यों उठाये रखा कि सबको दिखाई दें। मुखिया बोल चुका, तो लोगों में काना-फूसी होने लगी। फिर लोग ऊँचे स्वर से बोलने लगे। फिर विवाद और प्रतिवाद आरम्भ हो गया। हाथापाई की नौबत आ गयी और पंचायत समाप्त हो गयी।
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
19-04-2012, 07:58 AM | #22 |
VIP Member
|
Re: उर्दू की कुछ चुनिन्दा कहानियाँ
आज मुहम्मद खान के भाई के बेटे का विवाह था। दरिया के पार शहनाई की आवांज सुनाई दे रही थी। वह आवाज बहुत सुरीली लग रही थी। मुहम्मद खान दरिया के किनारे बैठ आवांज को सुन रहा था और सोच रहा थाकाश! यह बारात उनके घर में आयी होती। परन्तु यह कैसे सम्भव था। बीच में दरिया था और बारात को तो उसी ओर जाना था। दरिया को कैसे पार किया जा सकता था।
और मुहम्मद खान सोचने लगा यहूदियों ने कहा था कि खुदा इस्राईल का खुदा है। फिर इस्राईल बारह कबीलों में बँट गये। फिर उनके बीच सरहदें खिंच गयीं फिर उनकी जबानें बदल गयीं। फिर वे एक-दूसरे के दुश्मन हो गये मगर खुदा एक ही रहा, सबका खुदा। और फिर अरब से आवांज आयी। हमारा भी खुदा वही है। पूरब का खुदा वही है, पश्चिम का खुदा वही है और आज सब कहते हैं, हम सबका खुदा वही है। फिर दरिया ने क्या बदला, खुदा हो तो बदला नहीं। शहनाई की आवांज फिर गूँजी। और मुहम्मद खान ने सोचा दरिया उस आवांज को तो रोक नहीं सका और रोक भी नहीं सकता। यह तो दरिया के पानी से टकराकर और भी अच्छी लगती है।
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
19-04-2012, 07:58 AM | #23 |
VIP Member
|
Re: उर्दू की कुछ चुनिन्दा कहानियाँ
और फिर देखते-ही-देखते कुछ और लोग मुहम्मद खान के पास आ बैठे और सोचने लगेक्या अच्छी आवांज आ रही है, दरिया के उस पार से। हमारी सरहदें अलग हैं और बीच में दरिया है, मगर यह गाने-बजाने की आवांज कितनी मधुर लग रही है। शादी हो गयी और शहनाई की आवांज भी बन्द हो गयी, परन्तु अब तो लोगों को चस्का पड़ गया था। दरिया के किनारे पर प्रतिदिन सायंकाल को मेला लगने लगा। उस पार के गीत और सितार की मधुर आवांज सुनते रहते और फिर उस पार के लोग भी अपनी तरफ के किनारे पर बैठने लगे, इस पार के गीत सुनने के लिए। दरिया के पानी से छनकर आनेवाली मधुर आवांज कितनी दर्द भरी थी, कितनी सुरीली। और फिर इन आवांजों के साथ और बहुत कुछ आया। दरिया के किनारों पर पिकनिक होने लगी। पकवान पकने लगे। वर्षा से बचने के लिए छप्पर बन गये। बैठने के लिए चबूतरे और भोजन की सुगन्ध और गाने की महक और शरीरों की झलक। अब दोनों तरफ के इलांकों में नंफरत का एहसास समाप्त हो गया था। और एक दिन इस इलाके का मुखिया आया और कहने लगा, ''तुम्हारे यहाँ गानेवालों और शायरों की क्या कमी है कि तुम उस पार के गानों की आवांज इतने शौक से सुनते हो। अरे, अपने इलांके के गाने गाओ! अपने इलाके वालों की आवाज सुनो। बस्ती में जाकर बैठो। वे तो उस पार के लोग हैं।''
परन्तु मुहम्मद खान बोला, ''मुखिया जी! अब यह तुम्हारे बस की बात नहीं है कि इनको रोको। इन्हें अब नाव की जरूरत नहीं। ये तो आसानी से उस पार चले जाते हैं आर्ट के पुल पर से...।'' और इस बार किसी ने मुहम्मद खान की बात को नहीं काटा। मुखिया अपनी आँखों पर दायें हाथ की हथेली से साया करके और उचक-उचककर दरिया पर बना हुआ पुल तलाशने लगा। समाप्त
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
Bookmarks |
Tags |
urdu, urdu khaniyan, urdu literature |
|
|