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07-07-2016, 02:19 PM | #1 |
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
07-07-2016, 02:26 PM | #2 |
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Re: इधर-उधर से
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 07-07-2016 at 02:28 PM. |
03-08-2016, 11:32 AM | #3 |
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Re: इधर-उधर से
पेपीनो (PEPINO)
यह लगभग 45 वर्ष पहले की बात है. उन दिनों मैं ‘गोल्ड स्पॉट’ (ऑरेंज फ़्लेवर) कोल्ड ड्रिंक बनाने वाली कंपनी में काम करता था. इस कंपनी के और भी कुछ प्रोडक्ट थे जो मार्किट में अच्छे चलते थे. उनमे से ‘लिम्का’ तो आजतक अपना लेमन ड्रिंक्स में अपना अग्रणी स्थान बनाए हुये है. इसके अलावा ‘रिमझिम’ (मसालेदार फ़्लेवर) और ‘किस्मत’ (पाइनएप्पल फ़्लेवर) भी इनके लोकप्रिय ब्रैंड थे. उन्हीं दिनों इस कंपनी ने एक नया कोला ड्रिंक निकाला था जिसका नाम रखा गया ‘पेपीनो’यह ड्रिंक प्रतिद्वंद्वी कंपनी के लोकप्रिय कोला ड्रिंक ‘कोकाकोला’ की टक्कर में बाजार में उतारा गया था. ‘पेपीनो’ ड्रिंक की खूब publicity की गई और पूरी दिल्ली में फ्री सैंपल भी जनता में वितरित किये गए. साउथ दिल्ली में घर घर टीमों को इसके बारे में बताने के लिये भेजा गया. लेकिन इस सारी कवायद के बावजूद ‘पेपीनो’लोगों के दिल और दिमाग़ में अपनी जगह बनाने में कामयाब नहीं हुआ. बाद में इस कंपनी ने नया कोला फ़्लेवर ‘थम्स अप’ नाम से लॉन्च किया और ज़बरदस्त पब्लिसिटी के सहारे इसे काफी हद तक आम जनता में सफलता मिली और खासकर युवाओं में यह ख़ासा मकबूल हुआ. चलते चलते हम आपको यह बता दें कि बाद में उपरोक्त कोल्ड ड्रिंक प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी को (और उसके प्रोडक्टों को) कालांतर में कोका कोला कंपनी ने अपने स्वामित्व में ले लिया था.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
30-08-2016, 11:13 PM | #4 |
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Re: इधर-उधर से
क्षमायाचना का पर्व क्षमावाणी
सन 1974 से 1980 के बीच मैं राजस्थान के चूरू (churu) नगर में रहा करता था. अपने 6 वर्ष के प्रवास के दौरान मैं चार मकानों में बतौर किरायेदार रहा. इत्तफ़ाक ऐसा रहा कि ये सारे के सारे मकान मालिक जैन परिवार थे. इनमे से दो परिवार मूलतः चूरू के थे लेकिन काफी समय पूर्व व्यापार के सिलसिले में कलकत्ता चले गए थे और वहीँ रहते थे. वहाँ से केवल विशेष मौकों पर ही चूरू आया करते थे. हाँ उनकी चिट्ठियाँ बराबर आती रहती थीं, मैं भी उन्हें लिखता रहता था. उन दिनों टेलीफोन का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं होता था. ये दोनों महानुभाव मुझसे बहुत प्यार रखते थे. निरंतर पत्राचार के बीच साल में एक बार पर्युषण पर्व के दौरान क्षमा पर्व पर उनका पत्र (आम तौर पर पोस्टकार्ड) अवश्य आता था. इस पत्र में वे लिखते थे कि यदि उनसे जाने या अनजाने मेरे प्रति कोई गलती हो गई हो तो मैं उन्हें क्षमा कर दूँ. तो यह था उन बुज़ुर्ग लोगों का प्यार तथा अपने अहंकार को हटाने का एक तरीका. यह उन लोगों का बहुत बड़प्पन था. मैं तो उनसे बहुत छोटा था उमर में भी और अनुभव में भी. मुझे आज भी उनकी बहुत याद आती है. >>>
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30-08-2016, 11:16 PM | #5 |
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Re: इधर-उधर से
पर्युषण पर्व के अंतर्गत ही क्षमावाणी पर्व के महत्व के बारे में आदरणीय मुनि विद्यासागर जी इस प्रकार हमें बताते हैं:
दस दिनों तक चलने वाला यह पर्युषण पर्व जैन समुदायी बहुत ह*ी सद्*भाव और संयम से मनाते है। इसमें क्षमावणी पर्व का अपना एक अलग ही महत्व होता है। क्षमा पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूँढकर, क्रोध से होने वाले अनर्थों के बारे में सोचना और अपने क्रोध को क्षमारूपी अमृत पिलाकर अपने आपको और दूसरों को भी क्षमा की नजरों से देखना। अपने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना और दूसरे के प्रति भी इसी भाव को रखना इस पर्व का महत्व है। अपने अंदर क्षमा के गुणों का निरंतर चिंतन करते रहना। क्षमा पर्व मनाते समय अपने मन में छोटे-बड़े का भेदभाव न रखते हुए सभी से क्षमा माँगना इस पर्व का उद्देश्य है। हम सब यह क्यों भूल जाते हैं कि हम इंसान हैं और इंसानों से गलतियाँ हो जाना स्वाभाविक है। ये गलतियाँ या तो हमसे हमारी परिस्थितियाँ करवाती हैं या अज्ञानतावश हो जाती हैं। तो ऐसी गलतियों पर न हमें दूसरों को सजा देने का हक है, न स्वयं को। यदि आपको संतुष्टि के लिए कुछ देना है तो दीजिए ‘क्षमा’। **
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19-09-2016, 01:14 PM | #6 |
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Re: इधर-उधर से
हमारे समाचार चैनेल कितने ज़िम्मेदार हैं?
हमारे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और खास तौर पर हिंदी समाचार चैनेल कितने संवेदनशील व ज़िम्मेदार है, यह मैंने उस समय महसूस किया जब आई बी एन 7 चैनेल पर उरी (जे एंड के) में सेना मुख्यालय पर हुये आतंकी हमले के विषय में एक Debate चल रही थी और सम्मानित आमंत्रित अतिथियों द्वारा गंभीर विचार विनिमय हो रहा था. इसके बाद (विज्ञापनों के समय को जोड़ कर) अगले 40 मिनट तक इस चैनेल पर सिसोदिया का स्याही काण्ड चलता रहा यानी 1.40 बजे तक. भारत की सुरक्षा से जुड़ी उस गंभीर बहस का अब कोई नामो निशान तक नहीं था. दरअस्ल, उस डिबेट को बीच में ही अधूरा खत्म कर दिया गया और कोई सूचना तक नहीं दी गई या माफ़ी तक नहीं मांगी गई. क्या हमारा मीडिया इतना विवेकहीन हो गया है कि उसे किसी बात की प्राथमिकता का भी ध्यान नहीं रहता? यह बहुत दुखद है.
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20-09-2016, 03:25 PM | #7 | |
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Re: इधर-उधर से
Quote:
सच बेहद दुःख हुआ है जब यह खबर सुनी की हमारे १७ सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए . शत शत वंदन सह नतमस्तक हैं हम हमारे शहीदों के लिए हम . |
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