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08-01-2011, 05:09 PM | #1 |
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##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####
प्यारे दोस्तों,
इस थ्रेड में मैं विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ और उनके जीवन के बारे में पोस्ट करूंगी. थैंक्स. |
08-01-2011, 05:14 PM | #2 |
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Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####
अर्नेस्तो "चे" ग्वेरा अर्नेस्तो "चे" ग्वेरा (Ernesto Che Guevara; १४ जून १९२८ – ९ अक्तूबर १९६७), अर्जेन्टीना के मार्क्सवादी क्रांतिकारी थे जिन्होंने क्यूबा की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई। इन्हें एल चे या सिर्फ चे भी बुलाया जाता है। ये डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। इनकी मृत्यु के बाद से इनका चेहरा सारे संसार में सांस्कृतिक विरोध एवं वामपंथी गतिविधियों का प्रतीक बन गया है।
चिकित्सीय शिक्षा के दौरान चे पूरे लातिनी अमरीका में काफी घूमे। इस दौरान पूरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने इन्हें हिला कर रख दिया। इन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण थे एकाधिप्तय पूंजीवाद, नवउपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था - विश्व क्रांति। इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए इन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब १९५४ में गुज़मान को अमरीका की मदद से हटा दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल और फिदेल कास्त्रो मिले, और ये क्यूबा की २६ जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। चे शीघ्र ही क्रांतिकारियों की कमान में दूसरे स्थान तक पहुँच गए और बातिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई। क्यूबा की क्रांति के पश्चात चे ने नई सरकार में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए, और साथ ही सारे विश्व में घूमकर क्यूबा के समाजवाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाया। इनके द्वारा प्रशिक्षित सैनिकों ने पिग्स की खाड़ी आक्रमण को सफलतापूर्वक पछाड़ा। ये सोवियत संघ से नाभिकीय प्रक्षेपास्त्र ले कर आए, जिनसे १९६२ के क्यूबन प्रक्षेपास्त्र संकट की शुरुआत हुई, और सारा विश्व नाभिकीय युद्ध के कगार पर पहुँच गया। साथ ही चे ने बहुत कुछ लिखा भी है, इनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ हैं - गुरिल्ला युद्ध की नियम-पुस्तक और दक्षिणी अमरीका में इनकी यात्राओं पर आधारित मोटरसाइकल डायरियाँ। १९६५ में चे क्यूबा से निकलकर कांगो पहुंचे जहाँ इन्होंने क्रांति लाने का विफल प्रयास किया। इसके बाद ये बोलिविया पहुँचे और क्रांति उकसाने की कोशिश की, लेकिन पकड़े गए और इन्हें गोली मार दी गई। मृत्यु के बाद भी चे को आदर और धिक्कार दोनों ही भरपूर मिले हैं। टाइम पत्रिका ने इन्हें २०वीं शताब्दी के १०० सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सूची में शामिल किया। चे की तस्वीर गेरिलेरो एरोइको को विश्व की सबसे प्रसिद्ध तस्वीर माना गया है। |
08-01-2011, 05:20 PM | #3 |
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Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####
एडोल्फ हिटलर अडोल्फ हिटलर (20 अप्रैल, 1889 - 30 अप्रैल, 1945) एक प्रसिद्ध जर्मन राजनेता एवं तानाशाह थे। वे "राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन कामगार पार्टी" (NSDAP) के नेता थे। इस पार्टी को प्राय: "नाजी पार्टी" के नाम से जाना जाता है। सन् १९३३ से सन् १९४५ तक वह जर्मनी का शासक रहे। हिटलर को द्वितीय विश्वयुद्ध के लिये सर्वाधिक जिम्मेदार माना जाता है। अडोल्फ हिटलर का जन्म आस्ट्रिया में 20 अप्रैल, 1889 को हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा लिंज नामक स्थान पर हुई। पिता की मृत्यु के पश्चात् 17 वर्ष की अवस्था में वे वियना गए। कला विद्यालय में प्रविष्ट होने में असफल होकर वे पोस्टकार्डों पर चित्र बनाकर अपना निर्वाह करने लगे। इसी समय से वे साम्यवादियों और यहूदियों से घृणा करने लगे। जब प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ तो वे सेना में भर्ती हो गए और फ्रांस में कई लड़ाइयों में उन्होंने भाग लिया। 1918 ई. में युद्ध में घायल होने के कारण वे अस्पताल में रहे। जर्मनी की पराजय का उनको बहुत दु:ख हुआ। 1918 ई. में उन्होंने नाजी दल की स्थापना की। इसका उद्देश्य साम्यवादियों और यहूदियों से सब अधिकार छीनना था। इसके सदस्यों में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। इस दल ने यहूदियों को प्रथम विश्वयुद्ध की हार के लिए दोषी ठहराया। आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण जब नाजी दल के नेता हिटलर ने अपने ओजस्वी भाषणों में उसे ठीक करने का आश्वासन दिया तो अनेक जर्मन इस दल के सदस्य हो गए। हिटलर ने भूमिसुधार करने, वर्साई संधि को समाप्त करने, और एक विशाल जर्मन साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य जनता के सामने रखा जिससे जर्मन लोग सुख से रह सकें। इस प्रकार 1922 ई. में हिटलर एक प्रभावशाली व्यक्ति हो गए। उन्होंने स्वस्तिक को अपने दल का चिह्र बनाया जो कि हिन्दुओ का शुभ च्हिन्ह है समाचारपत्रों के द्वारा हिटलर ने अपने दल के सिद्धांतों का प्रचार जनता में किया। भूरे रंग की पोशाक पहने सैनिकों की टुकड़ी तैयार की गई। 1923 ई. में हिटलर ने जर्मन सरकार को उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। इसमें वे असफल रहे और जेलखाने में डाल दिए गए। वहीं उन्होंने "मेरा संघर्ष" नामक अपनी आत्मकथा लिखी। इसमें नाजी दल के सिद्धांतों का विवेचन किया। उन्होंने लिखा कि आर्य जाति सभी जातियों से श्रेष्ठ है और जर्मन आर्य हैं। उन्हें विश्व का नेतृत्व करना चाहिए। यहूदी सदा से संस्कृति में रोड़ा अटकाते आए हैं। जर्मन लोगों को साम्राज्यविस्तार का पूर्ण अधिकार है। फ्रांस और रूस से लड़कर उन्हें जीवित रहने के लिए भूमि प्राप्ति करनी चाहिए। 1930-32 में जर्मनी में बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई। संसद् में नाजी दल के सदस्यों की संख्या 230 हो गई। 1932 के चुनाव में हिटलर को राष्ट्रपति के चुनाव में सफलता नहीं मिली। जर्मनी की आर्थिक दशा बिगड़ती गई और विजयी देशों ने उसे सैनिक शक्ति बढ़ाने की अनुमति की। 1933 में चांसलर बनते ही हिटलर ने जर्मन संसद् को भंग कर दिया, साम्यवादी दल को गैरकानूनी घोषित कर दिया और राष्ट्र को स्वावलंबी बनने के लिए ललकारा। हिटलर ने डॉ. जोज़ेफ गोयबल्स को अपना प्रचारमंत्री नियुक्त किया। नाज़ी दल के विरोधी व्यक्तियों को जेलखानों में डाल दिया गया। कार्यकारिणी और कानून बनाने की सारी शक्तियाँ हिटलर ने अपने हाथों में ले ली। 1934 में उन्होंने अपने को सर्वोच्च न्यायाधीश घोषित कर दिया। उसी वर्ष हिंडनबर्ग की मृत्यु के पश्चात् वे राष्ट्रपति भी बन बैठे। नाजी दल का आतंक जनजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में छा गया। 1933 से 1938 तक लाखों यहूदियों की हत्या कर दी गई। नवयुवकों में राष्ट्रपति के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करने की भावना भर दी गई और जर्मन जाति का भाग्य सुधारने के लिए सारी शक्ति हिटलर ने अपने हाथ में ले ली। हिटलर ने 1933 में राष्ट्रसंघ को छोड़ दिया और भावी युद्ध को ध्यान में रखकर जर्मनी की सैन्य शक्ति बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। प्राय: सारी जर्मन जाति को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया। 1934 में जर्मनी और पोलैंड के बीच एक-दूसरे पर आक्रमण न करने की संधि हुई। उसी वर्ष आस्ट्रिया के नाजी दल ने वहाँ के चांसलर डॉलफ़स का वध कर दिया। जर्मनीं की इस आक्रामक नीति से डरकर रूस, फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, इटली आदि देशों ने अपनी सुरक्षा के लिए पारस्परिक संधियाँ कीं। उधर हिटलर ने ब्रिटेन के साथ संधि करके अपनी जलसेना ब्रिटेन की जलसेना का 35 प्रतिशत रखने का वचन दिया। इसका उद्देश्य भावी युद्ध में ब्रिटेन को तटस्थ रखना था किंतु 1935 में ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर की शस्त्रीकरण नीति की निंदा की। अगले वर्ष हिटलर ने बर्साई की संधि को भंग करके अपनी सेनाएँ फ्रांस के पूर्व में राइन नदी के प्रदेश पर अधिकार करने के लिए भेज दीं। 1937 में जर्मनी ने इटली से संधि की और उसी वर्ष आस्ट्रिया पर अधिकार कर लिया। हिटलर ने फिर चेकोस्लोवाकिया के उन प्रदेशों को लेने की इच्छा की जिनके अधिकतर निवासी जर्मन थे। ब्रिटेन, फ्रांस और इटली ने हिटलर को संतुष्ट करने के लिए म्यूनिक के समझौते से चेकोस्लोवाकिया को इन प्रदेशों को हिटलर को देने के लिए विवश किया। 1939 में हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया के शेष भाग पर भी अधिकार कर लिया। फिर हिटलर ने रूस से संधि करके पोलैड का पूर्वी भाग उसे दे दिया और पोलैंड के पश्चिमी भाग पर उसकी सेनाओं ने अधिकार कर लिया। ब्रिटेन ने पोलैंड की रक्षा के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध प्ररंभ हुआ। फ्रांस की पराजय के पश्चात् हिटलर ने मुसोलिनी से संधि करके रूम सागर पर अपना आधिपत्य स्थापित करने का विचार किया। इसके पश्चात् जर्मनी ने रूस पर आक्रमण किया। जब अमरीका द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो गया तो हिटलर की सामरिक स्थिति बिगड़ने लगी। हिटलर के सैनिक अधिकारी उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगे। जब रूसियों ने बर्लिन पर आक्रमण किया तो हिटलर ने 30 अप्रैल, 1945, को आत्महत्या कर ली। |
08-01-2011, 05:27 PM | #4 |
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अरस्तु (Aristotle) अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ थे. अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की.प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे. उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था. भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा. अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया. जीवविज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई. उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं. उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं. उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाए जाते हैं. अरस्तु ने बहुतेरे रचानाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई. |
08-01-2011, 05:32 PM | #5 |
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बेहतरीन जानकारी तेजी जी ! हार्दिक धन्यवाद !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
08-01-2011, 05:33 PM | #6 |
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08-01-2011, 05:32 PM | #7 |
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एडम स्मिथ एडम स्मिथ (५ जून १७२३ से १७ जुलाई १७९०) एक स्कॉटिश नीतिवेत्ता, दार्शनिक और राजनैतिक अर्थशास्त्री थे। उन्हें अर्थशास्त्र का पितामह भी कहा जाता है। आडम स्मिथ मुख्यतः अपनी दो रचनाओं के लिये जाने जाते हैं-
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09-01-2011, 07:24 AM | #8 |
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09-01-2011, 09:59 AM | #9 |
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"It is the image of a very dashing young man who was part of a revolution. This was a revolution of the people for the people in a time when there was a great unrest in many parts of the world, particularly in Latin America, Europe and the US. The Vietnam War was raging; students and workers were protesting and striking; it was the age of free love and flower power; it was the pop age; it was the age of religious revolution. The time was ripe for a figure, an image that could represent this great diversity in thinking and behavior the world over. Che's role in the Cuban Revolution made him a revered symbol of world class struggle, equality and freedom from domination and his premature death in 1967 elevated him to almost martyrdom." Source :: Che Guevara, Paulo Freire, and the Pedagogy of Revolution To know more about this world's most famous image. visit. http://en.wikipedia.org/wiki/Guerrillero_Heroico |
06-02-2011, 08:23 PM | #10 |
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सद्दाम हुसैन सद्दाम हुसैन दो दशक तक (16 जुलाई, 1979 से 9 अप्रैल, 2003 तक) इराक़ के राष्ट्रपति रह चुके है। उन्हें 30 दिसंबर 2006 को उत्तरी बगदाद में स्थानीय समय के अनुसार सुबह ६ बजे फाँसी दी गई. ३१ वर्ष की आयु में सद्दाम हुसैन ने जनरल अहमद अल बक्र के साथ मिल कर इराक की सत्ता हासिल की। 1979 में वह खुद इराक के राष्ट्रपति बन गए। सन् 1982 में इराक में हए दुजैल जनसंहार मामले में फाँसी की सजा मिली। सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल, 1937 को बग़दाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल-ओजा गांव में हुआ था। उनके मजदूर पिता उनके जन्म के पहले ही दिवंगत हो चुके थे। उनकी मां ने अपने देवर से शादी कर ली थी लेकिन बच्चे की परवरिश की खातिर उसे जल्द ही तीसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ी। उस दौर का तिकरित अपनी वीभत्सताओं के लिए कुख्यात था। इन परिस्थितियों ने सद्दाम को बचपन में ही भयानक रूप से शक्की और निर्दयी बना दिया। बच्चों के हाथों पिटने के भय से बाल सद्दाम हमेशा अपने पास एक लोहे की छड़ रखता था। और जब-तब इससे जानवरों की पिटाई किया करता था। किशोरावस्था में कदम रखते-रखते वह विद्रोही हो गया और ब्रिटिश नियंत्रित राजतंत्र को उखाड़ फेंकने के लिए चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलन में कूद पड़ा। हालांकि पश्चिम के अखबार इस आंदोलन को गुंडे-बदमाशों की टोली ही कहते हैं। 1956 में वह बाथ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। बाथ पार्टी अरब जगत में साम्यवादी विचारों की वाहक फौज थी। सद्दाम उसमें वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण नहीं, अपनी दीर्घकालिक रणनीति के तहत शामिल हुए। वर्ष 1958 में इराक में ब्रिटिश समर्थित सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़का और ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने राजशाही को हटाकर सत्ता अपने कब्जे में कर ली। सद्दाम तब बगदाद में पढ़ाई करता था। तभी उसने 1959 में अपने गैंग की मदद से कासिम की हत्या करने की असफल कोशिश की। वह देश से भाग कर मिस्त्र पहुंच गए। चार साल बाद यानी 1963 में कासिम के खिलाफ बाथ पार्टी में फिर बगावत हुई। बाथ पार्टी के कर्नल अब्दल सलाम मोहम्मद आरिफ गद्दी पर बैठे और सद्दाम घर लौट आए। इसी बीच सद्दाम ने साजिदा से शादी की जिससे उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं। सद्दाम ज्यादा दिन चैन से नहीं रह पाए। एक बार फिर बाथ पार्टी में बगावत हुई और सद्दाम को नई हुकूमत ने जेल में डाल दिया। वह तब तक जेल की हवा खाते रहे जब तक कि 1968 में बाथ पार्टी के मेजर जनरल अहमद हसन अल बकर ने तख्ता पलट कर सत्ता नहीं हथिया ली। अल बकर उनके चचेरे भाई भी लगते थे। वह अल बकर की रिवॉल्यूशनरी कमांड काउंसिल के प्रमुख सदस्य बन गए। सच बात तो यह भी है कि वही बकर की सत्ता के असली कर्त्ता-धर्त्ता थे। शुरुआत में वह बड़े उदार थे लेकिन धीरे-धीरे अपने असली रूप में आ गए। बकर बीमार थे और सत्ता की चाबुक का वही इस्तेमाल करते थे। उन्होंने सुन्नी जगत में अपनी अलग छवि बनाई और परदे के पीछे अपना एक अलग समूह तैयार करते रहे। 16 जुलाई 1979 को अल बकर को सत्ता से हटा कर वह स्वयं इराकी गद्दी पर बैठ गए। वह चाहते तो इस सत्ता परिवर्तन को स्वाभाविक हिंसारहित तख्तापलट का रूप दे सकते थे लेकिन उन्हें तो यह संदेश देना था कि अब सत्ता में सद्दाम आ गया है, इसलिए बगावती तेवर वाले सावधान हो जाएं। उन्होंने एक के बाद एक 66 देशद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया। अपने शासन के आरंभिक वर्षों में सद्दाम हुसैन अमेरिका के लाड़ले थे। उन्होंने ईरान से युद्ध मोल लिया और अमेरिका से मदद ली। रोनाल्ड रेगन ने उनकी मदद की। कैसा विद्रूप है कि हाल में जब रेगन की मृत्यु हुई तो वह उसी अमेरिकी सत्ता की जेल में मौत का इंतजार कर रहे थे। सद्दाम हुसैन पर शियाओं के साथ भेदभाव करने का आरोप है। 1982 में एक बार दुजैल गांव में उनके ऊपर हमला हुआ था। जिसके जवाब में उन्होंने वहां 148 शियाओं की हत्या करवा दी। वही फैसला आज उनकी फांसी का कारण बना। इसी तरह कुर्दों के ऊपर भी उनके जुल्मों की कथाएं कम दर्दनाक नहीं हैं। हालांकि दस वर्ष तक वह लगातार ईरान से लड़ते रहे, जिससे उनकी छवि एक जुझारू लड़ाके की बनी लेकिन उनकी उलटी गिनती तब शुरू हुई जब उन्होंने 1990 में कुवैत पर कब्जा कर लिया। इससे वह अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों की नजरों में आ गए और जल्दी ही खाड़ी युद्ध शुरू हो गया। 42 दिन के युद्ध के बाद इराक अमेरिकी गठबंधन सेनाओं से पराजित तो हुआ पर सद्दाम हुसैन नहीं झुके। इसी वजह से बार-बार अमेरिका को लगता रहा कि वह फिर चुनौती बन सकते हैं। लिहाजा उनके खिलाफ 2003 में फिर युद्ध हुआ और उसके बाद की कहानी हमारे सामने है। वह एक तानाशाह तो थे लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुद को अंतरराष्ट्रीय फलक पर पेश किया और अमेरिका के आगे नहीं झुके, उसने उहें वाकई अरब जगत का नायक बना दिया। देखना यह है कि उन्हें इतिहास किस तरह याद रखता है |
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