26-01-2013, 12:25 PM | #1 |
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कुंदन लाल सहगल की याद में
न जाने सागरे सहगल बना था कौन सी गिल से, कि अब तक इक महक सी आ रही है उसकी महफ़िल से. नसीमे सुब्ह की रफ़्तार में उसका तरन्नुम है, कि उसकी लय में लहरें गा के टकराती हैं साहिल से. अभी तक याद हैं हमको तरन्नुमखेज़ियाँ उसकी, निगाहों से , अदाओं से , जिगर से, जान से, दिल से. है उसके दिलरुबा नगमों की नैरंगी का यह आलम, कि अब रोता है खुद कातिल लिपट कर अपने बिस्मिल से. नहीं मुमकिन के मिट जाए दिलों से याद सहगल की, खयाले जलवा- ए- गुल जा नहीं सकती आना दिल से. (शायर: दीवान ‘शरर’:शरद दत्त द्वारा सहगल की जीवनी से साभार) |
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