21-06-2016, 06:06 PM | #1 |
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Dhokha
दिल चीर कर रख दिया *तकदीर *के *धोखे ने* *अफसाने वजूद *हुआ करते थे *उसके आने से* जुगनुओ *सी चमक *थी जिसकी आँखों में* समय की धारा *बहे जाती थी *उसकी मुस्कुराहटों को देख कर* न ऐसी खबर थी न एइसा ऐतबार *था *की कभी , *जीवन *में कभी एइसा *दर्द भी मिल सकता है *तकदीर से धोखा खाने पर ** दर्द के रंग बदलते *देखे हमने *बहुत इस ज़माने में* पर अब *दर्द ही सहारा है तकदीर से धोखा खाने *पर* फिर भी यादों में बसी है वो मेरी नन्ही सी कलि* *अपनी *मुस्कान लिए बाहें पसारे * मानो * *साथ ही है वो मेरे* दिल *आज भी न * माने क्या करू * न *समझे है* *. कितना भी समझाने से, एइसे बड़े *धोखे तकदीर के *खाने से* |
23-06-2016, 09:57 AM | #2 |
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Re: Dhokha
जीवन से मिले सुख और दुःख, मिलना बिछुड़ना, विष और अमृत हमारे अनुभव को विस्तार देते हैं. यह हमें बहुत कुछ सिखाते हैं और हमें क़दम क़दम पर मिलने वाली निराशा से आशा की ओर ले जाने का काम भी करते हैं. यह ज़रूरी है कि हम अपने अवसाद पर विजय पायें और जीवन को सुंदर बनाने का यत्न करें. एक अच्छी कविता फ़ोरम पर शेयर करने के लिये आपका आभार, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
25-06-2016, 12:40 AM | #3 | |
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Re: Dhokha
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