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Old 30-07-2014, 11:19 AM   #1
rafik
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Default हम भी जी के का करें......|

हम भी जी के का करें......|

वह जो सुनसान सा मकान दिखाई दे रहा है, जिस पर कि घास फूस से बनी हुई छत है जिसकी दीवारें कच्ची मिटटी की बनी हुई है जिनमे जगह-जगह दरारें नज़र आ रही हैं| आज वह घर सुनसान है लेकिन कुछ दिनों पहले तक उस घर में खुशियां महक रहीं थीं|


वह घर रामलाल का है जो अब नहीं रहा,आज दोपहर ही उसने और उसकी पत्नी शांतिदेवी ने चाय में ज़हर मिलाकर मौत को गले लगा लिया| क्या करते बेचारों पर बेटे की मौत का ग़म बर्दास्त नहीं हो रहा था, और कहीं से कोई न्याय की उम्मीद भी नहीं थी| पुलिस सब कुछ जानते हुए भी सच का साथ नहीं दे रही थी, और फिर घर में दो समय का भोजन मुश्किल से हो पाता था फिर शहर आने जाने का खर्चा और उतने पर थानेदार साहब की दुत्कार .....बेचारे अधेड़ माँ-बाप पूरी तरह टूट चुके थे, सुबह से शाम तक उनकी भीगी आंखें जैसे इसी इंतजार में रहती थीं कि कहीं से शायद बेटा आए और आते ही पुकारे अम्मा.....बाबा...लेकिन जो इस दुनिया में है ही नहीं वह कहां से आयेगा| मजदूरी करने बाला राम लाल पांचवी कक्षा तक पढ़ा था, उसके पास से एक सुसाइड नोट मिला जिस पर टूटी-फूटी भाषा में लिखा था, बिटवा तो चलो गयो अब हम भी जी के का करें......|



बात आज से महीने भर पहले की है रामलाल का एकलौता बेटा राजू अपनी पढाई पूरी कर चुका था, बड़ा ही आज्ञाकारी और होनहार था राजू, हमेशा पढ़ाई में अब्बल आता था, और हमेशा से अपने मजदूर माँ-बाप से कहता था कि वह बहुत ही ज़ल्द शहर जाकर नौकरी ढूंढ लेगा और फिर अपने माँ-बाप के सारे सपने पूरे करेगा| एक महीने पहले वह शहर गया था| किसी प्राइवेट कंपनी में भर्ती निकली थी उसी के साक्षात्कार के लिए गया था और उसे वह नौकरी मिल भी गई उसने अपने माँ-बाप को एक पत्र लिखकर खुशखबरी दी कि उसे नौकरी मिल गई है कंपनी से एक किमी दूर कम्पनी ने क्वार्टर भी दिया है रहने के लिए| एक दो महीने बाद वह उन्हें भी शहर ले जाएगा|
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Old 30-07-2014, 11:20 AM   #2
rafik
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Default Re: हम भी जी के का करें......|

हम भी जी के का करें......|

लेकिन कहते हैं ना कि ग़रीब के घर ख़ुशी भी आती है तो पलभर के लिए, इधर माँ-बाप बेटे का पत्र पढ़कर फूले नहीं समां रहे थे उधर बेटा कंपनी से अपने क्वार्टर के लिए जा रहा था चूंकि एक तो गरीबी, दूसरा एक किमी कोई ज्यादा दूरी भी नहीं, सो वह पैदल ही जा रहा था, नौकरी पाकर वह बहुत खुश था और उसके होंठो से मुस्कान के साथ-साथ कोई गीत भी फूट रहा था ..हां... दुःख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे...,वह अपनी मस्ती में चला जा रहा था तभी पीछे से एक कार आई और उसे टक्कर मारते हुए निकल गई, वह गिरा और ऐसा गिरा कि फिर ना उठ सका| पल भर में वहां भीड़ लग गई, लोग कानाफूसी कर रहे थे लेकिन कोई उसे उठाने आगे ना बढ़ा, कौन पुलिस के सवालों के मायाजाल में फंसता| इतने में पुलिस भी आ गई उसने वारदात का मुआयना किया, राजू को एम्बुलेंस में डाला और सीधा पोस्टमार्टम के लिए ले गई|



प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कार किसी नेता की थी और उसका बेटा ही वह कार चला रहा था, शराब भी पिए हुए था| नेता का नाम सामने आते ही पुलिस ने केस से हाथ खींच लिए, कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की, यहां तक रिपोर्ट तक लिखने से इंकार कर दिया गांव वालो ने थाने के सामने धरना दिया तो बमुश्किल थानेदार साहब ने अज्ञात कार के नाम से रिपोर्ट लिख ली और राजू का शव रामलाल को सौंप दिया| बेटे की चिता की आग के साथ-साथ माँ-बाप के सारे अरमान भी जल कर राख हो गए| सोचा था कि बेटे के हत्यारों को सजा दिलाकर उसकी आत्मा को शांति देंगे लेकिन यह नहीं सोचा था कि ऐसा सोचना भर ही उन्हें अशांति भरा जीवन दे देगा| पुलिस ने थाने बुलाकर केस को रफा-दफा करने का दबाव बनाया बदले में कुछ रुपयों का लालच भी दिया लेकिन जिसका अनमोल रत्न चला गया हो उसे कागज़ के टुकड़ों से क्या लेना -देना| http://gurjarg.blogspot.in/2012/03/blog-post_26.html
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Old 30-07-2014, 11:21 AM   #3
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Default Re: हम भी जी के का करें......|

हम भी जी के का करें......|

जब रामलाल किसी तरह मानने तैयार नहीं हुआ तो नेता जी के गुंडे आये दिन आकर उसे परेशान करने लगे, उसने कई बार पुलिस से इस बात की शिकायत की लेकिन कोई फायदा नहीं उलटा उसे डपटकर भगा दिया| बेचारे दोनों पति-पत्नी बहुत त्रस्त हो चुके थे अब उन पर बर्दास्त नहीं हो रहा था इसलिए बेटे की मौत के एक महीने बाद उन दोनों ने भी मौत को गले लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली|



नोट: यह कहानी काल्पनिक है लेकिन कहीं ना कहीं आम आदमी की विवशता को दर्शा रही है, जब हम नज़र घुमाकर देखेंगे तो ऐसे कई रामलाल हमें आसपास नज़र आ जायेंगे| ज़रूरत है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जन की आवाज़ उठाना चाहिए और इसे समाज से उखाड़कर बाहर कर देना चाहिए ताकि वास्तविक ज़िन्दगी में एक आम आदमी रामलाल ना बन सके|



-गगन गुर्जर 'सारंग'
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Old 30-07-2014, 10:25 PM   #4
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हम भी जी के का करें......|

नोट: यह कहानी काल्पनिक है लेकिन कहीं ना कहीं आम आदमी की विवशता को दर्शा रही है, जब हम नज़र घुमाकर देखेंगे तो ऐसे कई रामलाल हमें आसपास नज़र आ जायेंगे| ज़रूरत है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जन की आवाज़ उठाना चाहिए और इसे समाज से उखाड़कर बाहर कर देना चाहिए ताकि वास्तविक ज़िन्दगी में एक आम आदमी रामलाल ना बन सके|
कहानी भले ही काल्पनिक हो, मगर सोचने पर मजबूर करती है. इस प्रकार की घटनाएं असल जीवन में भी घटित हो रही हैं. यह सब समाज के मुंह पर झन्नाटेदार थप्पड़ नहीं तो क्या है. कहाँ है समाज की आत्मा? अगर है तो बोलती क्यों नहीं? हालात बदल क्यों नहीं देती?
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)

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Old 18-09-2014, 07:43 PM   #5
soni pushpa
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कहानी भले ही काल्पनिक हो, मगर सोचने पर मजबूर करती है. इस प्रकार की घटनाएं असल जीवन में भी घटित हो रही हैं. यह सब समाज के मुंह पर झन्नाटेदार थप्पड़ नहीं तो क्या है. कहाँ है समाज की आत्मा? अगर है तो बोलती क्यों नहीं? हालात बदल क्यों नहीं देती?
स्वार्थ ने इन्सान को शैतान बना दिया है .. कोई किसी के झमेले में नही पड़ना चाहता. मंत्री का बेटा था तो क्या हुआ, उसे भी एइसे ही गाड़ी से कुचल देना चहिये था तब पता चलता उस मंत्री को, की बेटे की मौत का ग़म क्या होता है . लोग बड़े पद पर क्या बैठ जाते हैं खुद को भगवan समझाने लगते हैं ..कहानी भले ही काल्पनिक है किन्तु आज के समाज की सच्चाई झलक रही है रजनीश जी .
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