29-05-2013, 04:45 PM | #1 |
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एक नाराज औरत की डायरी
चीन के एक माता-पिता ने अपने दो दिन के बेटे ,जिसकी गर्भनाल भी नहीं कटी थी ,को अपने अपार्टमेंट के शौचालय में बहा दिया |बच्चा चौथी मंजिल के इस शौचालय के १० सेंटीमीटर के चौड़े पाईप में फंस कर रो रहा था |बचावकर्मियों ने एक घंटे के प्रयास से बच्चे को सुरक्षित निकाल लिया |फरार माता-पिता की खोज हो रही है | माँ-बाप द्वारा इस अमानवीय कृत्य के पीछे क्या कारण हो सकते हैं ?क्या चीन की 'एक शिशु-नीति '?जिसके अनुसार दूसरा बच्चा दंडनीय अपराध है |हो सकता है बच्चा दूसरे नम्बर पर हो और उन्हें दण्डित होने का डर सता रहा हो या फिर उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति बच्चे के अनुकूल ना रही हो |चीनी परिवारों में आज भी बेटे का बड़ा महत्व है ,फिर भी किसी माता-पिता ने ऐसा किया तो ,वह अकारण नहीं हो सकता |पर यह वीभत्स है |इतनी बुरी मौत देने का प्रयास !वह भी एक नवजात को! अपने ही रक्त को !यह अपराध इसलिए बड़ा नहीं है कि यह दूसे देश का है ,बल्कि इसलिए बड़ा है कि यह मानवता के खिलाफ है |हमारे देश में भी आए दिन नवजात झाडियों ,नदी-नालों या कूड़े के ढेर पर मरने के लिए छोड़ दिए जाते हैं |यहाँ 'एक शिशु नीति' नहीं है फिर क्यों ?ज्यादातर मामलों में सामाजिक कारण होते हैं |ऐसे बच्चे अवैध होते हैं ,जिसमें पिता भाग खड़ा होता है और माँ लोक-लज्जा के कारण कलेजे पर पत्थर रखकर इस कृत्य को अंजाम देती है |जब भी ऐसा कोई बच्चा जिन्दा या मृत हालत में मिलता है |औरत को डायन कहा जाता है ,पिता पर कोई टिप्पड़ी नहीं होती |उसके अपराध की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता |जाए भी क्यों उसके पास तो कोई कोख होती नहीं कि वह पकड़ा जाए | कई बार गरीब माता-पिता अपने बच्चों को बेच देते हैं या उन्हें छोड़कर भाग जाते हैं |२६-५-२०१३ को दिल्ली से चलकर आजमगढ़ पहुँची 'कैफियत एक्सप्रेस' की बोगी संख्या ६ में दो बच्चियाँ लावारिस पाई गई थीं |कोई महिला ने अपनी दो नन्हीं बच्चियों [बड़ी सात साल ,छोटी मात्र आठ दिन]को ट्रेन में बिठाकर कहीं चली गयी थी |बड़ी बच्ची ने बताया कि उसकी तीन बहने और एक भाई है,पिता की मृत्यु हो चुकी है |कल्पना की जा सकती है एक अपढ़ साधारण स्त्री के लिए यह सब कितना यातना दायी रहा होगा |पति तो बच्चों की लाइन लगाकर चला गया ,अब औरत क्या करे ?आज की महंगाई के समय इतने बच्चों का पालन-पोषण कैसे हो ?कोई स्त्री मदद को आगे आती नहीं और पुरूष देह की कीमत वसूले बिना मदद करेगा नहीं |वह भी इतने बच्चों की माँ से कितनी देर निभाएगा |बात कटु है ,पर समाज का यही भयावह चेहरा है |
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