15-07-2011, 07:40 AM | #1 |
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मेरा गांव
ये गाँव है यहा कुछ मिलेगा कहाँ |
लौट जाओ मुसाफिर शहर के यहाँ | पर एक बात सच है सुनो मेहरबान , दिलो में मुहब्बत यहाँ बेंतहा | वो शहरी तितलियों का अकाल सा है | घुघंट ही यहाँ का मिसाल सा है | पनघट पर जुटती यहाँ सारी सखियाँ | करती पिया की बहुत सारी बतियाँ | एक दूजे से हँसकर करती ठिठोली| जाएगी कब तू सजधजकर के डोली| पायल की घुनघुन सुनाते है गीत | कंगन की खनक दिल लेती है जीत| बहती पवन जब यहाँ मन्द मन्द| आमों के बौर बिखेरे सुगन्ध| पड़ोसी के घर की बाजरे की रोटी| शाम को दाने के संग चाय होती| शिकारे के आलू कड़ाहे का रस| रहे याद सबको बरसों बरस | |
03-08-2011, 06:36 PM | #2 |
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Re: मेरा गांव
बहुत अच्छी प्रस्तुति.
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क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है. |
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