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Old 25-10-2018, 08:30 PM   #1
rajnish manga
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Default कीचक वध

कीचक वध / Keechak Vadh

अज्ञातवास के दौरान पाण्डवों को मत्स्य नरेश विराट की राजधानी में निवास करते हुए दस माह व्यतीत हो गये। सहसा एक दिन राजा विराट का साला कीचक अपनी बहन सुदेष्णा से भेंट करने आया। जब उसकी दृष्टि सैरन्ध्री (द्रौपदी) पर पड़ी तो वह काम-पीड़ित हो उठा तथा सैरन्ध्री से एकान्त में मिलने के अवसर की ताक में रहने लगा।

द्रौपदी भी कीचक की कामुक दृष्टि को भाँप गई। उसने महाराज विराट एवं महारानी सुदेष्णा से कहा भी कि कीचक मुझ पर कुदृष्टि रखता है। मेरे पाँच गन्धर्व पति हैं। एक न एक दिन वे कीचक का वध अवश्य कर देंगे, किन्तु उन दोनों ने द्रौपदी की बात की कोई परवाह न की।

लाचार होकर एक दिन द्रौपदी ने भीमसेन को कीचक की कुदृष्टि तथा कुविचार के विषय में बता दिया। द्रौपदी के वचन सुनकर भीमसेन बोले- "हे द्रौपदी! तुम उस दुष्ट कीचक को अर्द्धरात्रि में नृत्यशाला में मिलने का संदेश दे दो। नृत्यशाला में तुम्हारे स्थान पर मैं जाकर उसका वध कर दूँगा।”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Last edited by rajnish manga; 25-10-2018 at 10:10 PM.
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Old 25-10-2018, 10:11 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: कीचक वध

कीचक वध / Keechak Vadh

सैरन्ध्री ने बल्लव (भीमसेन) की योजना के अनुसार कीचक को रात्रि में नृत्यशाला में मिलने का संकेत दे दिया। द्रौपदी के इस संकेत से प्रसन्न कीचक जब रात्रि को नृत्यशाला में पहुँचा तो वहाँ पर भीमसेन द्रौपदी की एक साड़ी से अपना शरीर और मुँह ढँक कर वहाँ लेटे हुए थे।

उन्हें सैरन्ध्री समझकर कमोत्तेजित कीचक बोला- “हे प्रियतमे! मेरा सर्वस्व तुम पर न्यौछावर है। अब तुम उठो और मेरे साथ रमण करो।” कीचक के वचन सुनते ही भीमसेन उछल कर उठ खड़े हुए और बोले- “रे पापी! तू सैरन्ध्री नहीं अपनी मृत्यु के समक्ष खड़ा है। ले अब परस्त्री पर कु सैरन्ध्री ने बल्लव (भीमसेन) की योजना के अनुसार कीचक को रात्रि में नृत्यशाला में मिलने का संकेत दे दिया। द्रौपदी के इस संकेत से प्रसन्न कीचक जब रात्रि को नृत्यशाला में पहुँचा तो वहाँ पर भीमसेन द्रौपदी की एक साड़ी से अपना शरीर और मुँह ढँक कर वहाँ लेटे हुए थे।

"दृष्टि डालने का फल चख।” इतना कहकर भीमसेन ने कीचक को लात और घूँसों से मारना आरम्भ कर दिया। जिस प्रकार प्रचण्ड आँधी वृक्षों को झकझोर डालती है, उसी प्रकार भीमसेन कीचक को धक्के मार-मार कर सारी नृत्यशाला में घुमाने लगे। अनेक बार उसे घुमा-घुमा कर पृथ्वी पर पटकने के बाद अपनी भुजाओं से उसकी गरदन को मरोड़कर उसे पशु की मौत मार डाला।
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Old 25-10-2018, 10:15 PM   #3
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Default Re: कीचक वध

कीचक वध / Keechak Vadh

इस प्रकार कीचक का वध कर देने के बाद भीमसेन ने उसके सभी अंगों को तोड़-मरोड़ कर उसे माँस का एक लोंदा बना दिया और द्रौपदी से बोले- “पांचाली! आकर देखो, मैंने इस काम के कीड़े की क्या दुर्गति कर दी है।” उसकी उस दुर्गति को देखकर द्रौपदी को अत्यन्त सन्तोष प्राप्त हुआ।

फिर बल्लव और सैरन्ध्री चुपचाप अपने-अपने स्थानों में जाकर सो गये। प्रातःकाल जब कीचक के वध का समाचार सबको मिला तो महारानी सुदेष्णा, राजा विराट तथा कीचक के अन्य भाई आदि विलाप करने लगे। जब कीचक के शव को अन्त्येष्टि के लिए ले जाया जाने लगा तो द्रौपदी ने राजा विराट से कहा- “इसे मुझ पर कुद*ृष्टि रखने का फल मिल गया, अवश्य ही मेरे गन्धर्व पतियों ने इसकी यह दुर्दशा की है।” द्रौपदी के वचन सुनकर कीचक के भाइयों ने क्रोधित होकर कहा- “हमारे अत्यन्त बलवान भाई की मृत्यु इसी सैरन्ध्री के कारण हुई है। अतः इसे भी कीचक की चिता के साथ जला देना चाहिए।” इतना कहकर उन्होंने द्रौपदी को जबरदस्ती कीचक की अर्थी के साथ बाँध लिया और श्मशान की ओर ले जाने लगे।
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Default Re: कीचक वध

कीचक वध / Keechak Vadh

कंक, बल्लव, वृहन्नला, तन्तिपाल तथा ग्रान्थिक के रूप में वहाँ उपस्थित पाण्डवों से द्रौपदी की यह दुर्दशा देखी नहीं जा रही थी, किन्तु अज्ञातवास के कारण वे स्वयं को प्रकट भी नहीं कर सकते थे। इसलिए भीमसेन चुपके से परकोटे को लाँघकर श्मशान की ओर दौड़ पड़े और रास्ते में कीचड़ तथा मिट्टी का सारे अंगों पर लेप कर लिया। फिर एक विशाल वृक्ष को उखाड़कर कीचक के भाइयों पर टूट पड़े और उनमें से कितनों को ही भीमसेन ने मार डाला, जो शेष बचे वे अपना प्राण बचाकर भाग निकले। इसके बाद भीमसेन ने द्रौपदी को सान्त्वना देकर महल में भेज दिया और स्वयं नहा-धोकर दूसरे रास्ते से अपने स्थान में लौट आये। कीचक तथा उसके भाइयों का वध होते देखकर राजा विराट सहित सभी लोग द्रौपदी से भयभीत रहने लगे।
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