12-12-2020, 10:16 AM | #1 |
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ग़ज़ल- मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से
ग़ज़ल- मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ मत बाँधो ग़म को तुम मन के खूँटे से, दिख जाये तो इसे दबा दो जूते से। मौके तुम ख़ुशियों के मत जाने देना, उनको छोड़ो जो हैं रूठे-रूठे से। उसकी चिंता क्यों करते हो अक्सर ही? जो बाहर है भाई तेरे बूते से। किसके ग़म में रोज़ बहाते हो आँसू? ये तो रिश्ते-नाते हैं सब झूठे से। और तुझे 'आकाश' ज़माना तोड़ेगा, अगर दिखोगे यूँ जो टूटे-टूटे से। ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 07/12/2020 ■■■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो. 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 15-12-2020 at 08:38 PM. |
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