My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 30-10-2010, 08:38 PM   #21
Video Master
Senior Member
 
Join Date: Oct 2010
Location: जयपुर
Posts: 301
Rep Power: 15
Video Master will become famous soon enoughVideo Master will become famous soon enough
Send a message via Yahoo to Video Master
Default

अभय भाई बहुत अच्छी जानकारी दे रहे हो इसके लिए बधाई हो मित्र
Video Master is offline   Reply With Quote
Old 30-10-2010, 08:39 PM   #22
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 20

एक बार कार्तिक के महीने में राजा विक्रमादित्य ने भजन-कीर्तन कराया। राजा की खबर पाकर दूर-दूर से राजा लोग आये, योगी आये। जब राजा सबका प्रसाद देने लगा तो उसने देखा कि और सब देवता तो आ गये हैं, पर चंद्रमा नहीं आये। राजा ने अपने वीरों को बुलाया और उनकी मदद से चंद्रलोक पहुंचा। वहां जाकर चंद्रमा से कहा, "हे देव! मेरा क्या अपराध है जो आपने आने की कृपा नहीं की? आपके बिना काम अधूरा रहेगा।"

चंद्रमा ने हंसकर कहा, "तुम अपने जी में उदास न हो। मेरे जाने से संसार में अंधेरा हो जायगा। इसलिये मेरा जाना ठीक नहीं। तुम जाओ और अपना काम पूरा करो।"

इतना कहकर चंद्रमा ने उन्हें अमृत देकर विदा किया। रास्ते में राजा देखते क्या हैं कि यम के दूत एक ब्राह्मण के प्राण लिये जा रहे हैं। राजा ने उन्हें रोका, पूछने पर मालूम हुआ कि उज्जैन नगरी के एक ब्राह्मण को हमें दिखा दो, तब ले जाना।"

राजा ने कहा, "पहले उस ब्राह्मण को हमें दिखा दो, तब ले जाना।"

वे सब उज्जैन आये। राजा ने देखा कि वह तो उसी का पुरोहित है। राजा ने यम के दूतों को बातों में लगाकर मुर्दे के मुंह में अमृत डाल दिया। वह जी उठा। यम के दूत निराश होकर चले गये। पुतली बोली, "हे राजा! तुम इतना पुरुषार्थ कर सको तो सिंहासन पर बैठो।"

राजा ने कीर्तन कराया।

राजा मन मारकर रह गया, पर सिंहासन पर बैठने की उसकी इच्छा ज्यों-की-त्यों बनी रही। अगले दिन जब वह उस पर बैठने को हुआ तो इक्कीसवीं पुतली अनुरोमवती रोककर अपनी बात सुनाने लगी।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 30-10-2010, 08:42 PM   #23
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 21

किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा गुणी था। एक बार वह घूमते-घूमते कामानगरी में पहुंचा। वहां कामसेन नाम का राजा राज करता था। उसके कामकंदला नाम की एक नर्तकी थी। जिस दिन ब्राह्मण वहां पहुंचा, कामकंदला का नाच हो रहा था। मृदंग की आवाज आ रही थी। आवाज सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि राज की सभा के लोग बड़े मूर्ख हैं, जो गुण पर विचार नहीं करते। पूछने पर उसने बताया कि जो मृदंग बजा रहा है, उसके एक हाथ में अंगूठा नहीं है। राजा ने सुना तो मृदंग बजाने वाले को बुलाया और देखा कि उसका एक अंगूठा मोम का है। राजा ने ब्राह्मण को बहुत-सा धन दिया और अपनी सथा में बुला लिया। नाच चल रहा था। इतने में ब्राह्मण ने देखा कि एक भौंरा आया और कामकंदला को काट कर उड़ गया, लेकिन उस नर्तकी ने किसी को मालूम भी न होने दिया। ब्राह्मण ने खुश होकर अपना सबकुछ उसे दे डाला। राजा बड़ा गुस्सा हुआ कि उसी दी हुई चीज उसने क्यों दे दी और ब्राह्मण को देश निकाला दे दिया। कामकंदला चुपचाप उसके पीछे गई और उसे छिपाकर अपने घर में ले आयी। लेकिन दोनों डरकर वहां रहते थे। एक दिन ब्राह्मण ने कहा, "अगर राजा को मालूम हो गया तो हम लोग बड़ी मुसीबत में पड़ जायंगे। इसलिए मैं कहीं और ठिकाना करके तुम्हें ले जाऊंगा।"

इतना कहकर वह उज्जैन में राजा विक्रमादित्य के यहां गया और उससे सब हाल कहा। राजा ब्राह्मण को लेकर अपनी फौज सहित कामानगरी की तरफ बढ़ा। दस कोस इधर ही डेरा डाला। इसे बाद विक्रमादित्य ने किया क्या कि वैद्य का भेस बनाकर कामकंदला के पास पहुंचा। ब्राह्मण की याद में वह बड़ी बेचैन हो रही थी। राजा ने कहा, "ऐसे ही हमारे यहां माधव नाम का एक ब्राह्मण था, जो विरह का दु:ख पाकर मर गया।" इतना सुनकर कामकंदला ने एक आह भरी और उसके प्राण निकल गये।

राजा ने लौटकर यह खबर ब्राह्मण को सुनायी तो उसकी भी जान निकल गई। राजा को बडा दु:ख हुआ और वह चंदन की चिता बनाकर खुद जलने को तैयार हो गया। इसी बीच राजा के दोनों वीर आ गये और उन्होंने कहा, "हे राजा! तुम दु:खी मत हो, हम अभी अमृत लाकर ब्राह्मण और कामकंदला को जिला देंगे।"

इसके बाद विक्रमादित्य ने कामानगरी के राजा से युद्ध किया और उसे हरा किया। कामकंदला उसे मिल गई और उसने बड़ी धूमधाम से उसका विवाह ब्राह्मण से कर दिया।

पुतली बोली, "हे राजन्! तुममें इतना साहस हो तो सिंहासन पर बैठो।"

राजा चुप रहा गया।

अगले दिन उसे बाईसवीं पुतली अनूपरेखा ने रोककर यह कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 30-10-2010, 08:51 PM   #24
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 22

एक दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने दीवान से पूछा कि आदमी बुद्धि अपने कर्म से पाता है या अपने माता-पिता से? दीवान ने कहा, "महाराज! पूर्वजन्म में जो जैसा कर्म करता है, विधाता वैसा ही उसके भागय में लिख देता है।" राजा ने कहा, "यह तुमने क्या कहा? जन्म लेते ही लड़का माता-पिता से सीखता है।" दीवान बोला, "नहीं महाराज! कर्म का लिखा ही होता।"

इस पर राजा ने क्या किया कि दूर बियावान में एक महल बनवाया और उसमें अपने दीवान के, ब्राह्मण के और कोतवाल के बेटे को जन्मते ही गूंगी, बहरी और अंधी दाइयां देकर उस महल में भिजवा दिया। बारह बरस बाद उन्हें बुलाया। सबसे पहले उसने अपने बेटा से पूछा, "तुम्हारे क्या हाल हैं?" राजकुमार ने हंसकर कहा, "आपके पुण्य से सब कुशल है।" राजा ने खुश होकर मंत्री की तरफ देखा। मंत्री ने कहा, "महाराज! यह सब कर्म का लिखा है।" फिर राजा ने दीवान के बेटे को बुलाया और उससे वही सवाल किया। उसने कहा, "महाराज! संसार में जो आता है, वह जाता भी है। सो कुशल कैसी?" सुनकर राजा चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने कोतवाल के बेटे को बुलाया। कुशल पूछने पर उसने कहा, "महाराज! कुशल कैसे हो? चोर चोरी करते हैं, बदनाम हम होते हैं।" इसके बाद ब्राह्मण के बेटे की बारी आयी। उसने कहा, "महाराज! दिन-दिन उमर घटती जाती है। सो कुशल कैसी?"

चारों की बातें सुनकर राजा समझ गया कि दीवान का कहना ठीक था। महल में कोई सिखाने वाला नहीं था। फिर भी वे चारों सीख गये तो इसमें पूर्वजन्म के कर्मों का ही हाथ रहा होगा। राजा ने दीवान को अपने सब सरदारों का सरदार बनाया और चारों लड़कों के विवाह करके उन्हें बहुत-सा धन दिया।

राजा ने चारों लड़को को बुलाया।

पुतली बोली, "राजा होकर भी जो अपनी बात पर हठ न करे और सही बात को माने, वहीं सिंहासन पर पांव रक्खे।"

अगले दिन तेईसवीं पुतली करुणवती ने राजा को रोका और अपनी कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 30-10-2010, 08:53 PM   #25
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 23

जब राजा विक्रमादित्य गद्दी पर बैठा तो उसने अपने दीवान से कहा कि तुमसे काम नहीं होगा। अच्छा हो कि मेरे लिए बीस दूसरे आदमी दे दो। दीवान ने ऐसा ही किया। वे लोग काम करने लगे। दीवान सोचने लगा कि वह अब क्या करे, जिससे राजा उससे खुश हो। संयोग की बात कि एक दिन उसे नदी में एक बहुत ही सुन्दर फूल बहुता हुआ मिला, जिसे उसने राजा को भेंट कर दिया। राजा बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने कहा, "इस फूल का पेड़ लाकर मुझे दो, नहीं तो मैं तुम्हें देश-निकाला दे दूंगा।" दीवान बड़ा दु:खी हुआ और एक नाव पर कुछ सामान रखकर जिधर से फूल बहकर आया था, उधर चल दिया।

चलते-चलते वह एक पहाड़ के पास पहुंचा, जहां से नदी में पानी आ रहा था। वह नाव से उतरकर पहाड़ पर गया। वहां देखता क्या है कि हाथी, घोड़े, शेर आदि दहाड़ रहे हैं। वह आगे बढ़ा। उसे ठीक वेसा ही एक और फूल बहता हुआ दिखाई दिया। उसे आशा बंधी। आगे जाने पर उसे एक महल दिखाई दिया। वहां पेड़ में एक तपस्वी जंजीर से बंधा उलटा लटक रहा था और उसे घाव से लहू की जो बूंदें नीचे पानी में गिरती थीं, वे ही फूल बन जाती थीं। बीस और योगी वहां बैठे थे, जिनका शरीर सूखकर कांटा हो रहा था।

एक तपस्वी उल्टा लटका था।

दीवान ने बहुत-से फूल इकट्ठे किये और अपने देश लौटकर राजा को सब हाल कह सुनाया। सुनकर राजा ने कहा, "तुमने जो तपस्वी लटकता देखा, वह मेरा ही शरीर है। पूर्व जन्म में मैंने ऐसे ही तपसया की थी। बीस योगी जो वहां बैठे हैं, वे तुम्हारे दिये हुए आदमी हैं।" इतना बताकर राजा ने कहा, "तुम चिंता न करो, जबतक मैं राजा हूं, तुम दीवान रहोगे। अपना परिचय देने के लिए मैंने यह सब किया था। अपने बड़े भाई को मैंने मारा तो इसमें दोष मेरा नहीं था। जो करम में लिखा होता है, सो होकर ही रहता।"

पुतली बोली, "राजा भोज!तुम हो ऐसे, जो सिंहासन पर बैठो?"

अगले दिन चौबीसवीं पुतली चित्रकला की बारी थी। उसने राजा को रोककर अपनी कहानी कही।
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 12:28 PM   #26
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 24

एक बार राजा विक्रमादित्य गंगाजी नहाने गया। वहां देखता क्या है कि एक बनिये की सुंदर स्त्री नदी के किनारे खड़ी एक साहूकार के लड़के से इशारों में बात कर रही है। थोड़ी देर में जब वे दोनों जाने लगे तो राजा ने अपना एक आदमी उनके पीछे कर दिया। उसने लौटकर बताया कि उस स्त्री ने घर पर पहुंचने पर अपना सिर खोलकर दिखाया, फिर छाती पर हाथ रक्खा, और अंदर चली गई। राजा ने पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उसने कहा, "स्त्री ने बताया कि जब अंधेरी रात होगी तब मैं आऊंगी। साहूकार के लड़के ने भी वैसा ही इशारा करके कहा कि अच्छा।"

इसके बाद रात को राजा वहां गया। जब रात अंधेरी हो गई तो राजा ने खिड़की पर कंकड़ी मारी। स्त्री समझ गई कि साहूकार का लड़का आ गया। वह माल-मत्ता लेकर आयी। राजा ने कहा, "तुम्हारा आदमी जीता है। वह राजा से शिकायत कर देगा तो मुसीबत हो जायगी। इससे पहले उसे मार आओ।" स्त्री गई और कटारी से अपने आदमी को मारकर लौट आयी। राजा ने सोचा कि जब यह अपने आदमी की सगी नहीं हुई तो और किसकी होगी। सो वह उसे बहकाकर नदी के इस किनारे पर छोड़ उधर चला गया। स्त्री ने राह देखी। राजा न लौटा तो वह घर जाकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी कि मेरे आदमी को चोरों ने मार डाला।

अगले दिन वह अपने आदमी के साथ सती होने को तैयार हो गई। आधी जल चुकी तो सहा न गया। कूदकर बाहर निकल आयी और नदी में कूद पड़ी। राजा ने कहा, "यह क्या?" वह बोली, "इसका भेद तुम अपने घर जाकर देखो। हम सात सखियां इस नगर में हैं। एक मैं हूं, छ: तुम्हारे घर में है।"

इतना कहकर वह पानी में डूब मरी। राजा घर लौटकर गया और सब हाल देखने लगा। आधी रात गये छहों रानियां सोने के थाल मिठाई से भरकर महल के पिछवाड़े गईं। वहां एक योगी ध्यान लगाये बैठा था। उसे उन्होंने भोजन कराया। इसके बाद योग-विद्या से छ: देह करके छहों रानियों को अपने पास रक्खा। थोड़ी देर बाद रानियां लौट गईं।

राजा ने सब बातें अपनी आंखों से देखीं। रानियों के चले जाने पर राजा योगी के पास गया। योगी के कहा, "तुम्हारी जो कामना हो सो बताओं।" राजा बोला, "हे स्वामी! मुझे वह विद्या दे दो, जिससे एक देह की छ: देहें हो जाती हैं।" योगी ने वह विद्या दे दी। इसे बाद राजा ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। फिर वह रानियों को लेकर गुफा में आया और उनके सिर काटकर उसमें बंद करके चला आया। उनका धन उसने शहर के ब्राह्मणों में बांट दिया।

पुतली बोली, "हे राजा! हो तुम ऐसे, जो सिंहासन पर बैठो?"

उस दिन भी मुहूर्त निकल गया। अगले दिन पच्चीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने उसे रोककर कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 12:37 PM   #27
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 25

एक गरीब भाट था। उसकी कन्या ब्याह के योग्य हुई तो उसने सारी दुनिया के राजाओं के यहां चक्कर लगाये, लेकिन किसी ने भी उसे एक कौड़ी न दी। तब वह राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचा और उसे सब हाल कह सुनाया। राजा ने तुरंत उसे दस लाख रुपये और हीरे, लाल, मोती और सोने-चांदी के गहने थाल भर-भरकर दिये। ब्राह्मण ने सब कुछ ब्याह में खर्च कर डाला। खाने को भी अपने पास कुछ न रक्खा।

पुतली बोली, "इतने दानी हो तो सिंहासन पर बैठो।"

राजा की हैरानी बहुत बढ़ गई। रोज कोई-न-कोई बाधा पड़ जाती थी। अगले दिन उसे छबीसवीं पुतली विद्यावती ने रोका और बोली, "पहले विक्रमादित्य की तरह यश कमाओ, तब सिंहासन पर बैठना।" इतना कहकर उसने सुनाया:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 12:43 PM   #28
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 26

एक दिन राजा विक्रमादित्य के मन में विचार आया कि वह राजकाज की माया में ऐसा भूला है कि उससे धर्म-कर्म नहीं बन पाता। यह सोच वह तपस्या करने जंगल में चला। वहां देखता क्या है कि बहुत-से तपस्वी आसने मारे धूनी के सामने बैठे साधना कर रहे हैं और धीरे-धीरे अपने शरीर को काट-काटकर होम कर रहे हैं। राजा ने भी ऐसा ही किया। तब एक दिन शिव का एक गण आया और सब तपस्वियों की राख समेटकर उन पर अमृत छिड़क दिया। सारे तपस्वी जीवित हो गये, लेकिन संयोग से राज की ढेरी पर अमृत छिड़कने से रह गया, तपस्वियों ने यह देखकर शिवजी से उसे जिलाने की प्रार्थना की और उन्होंने मंजूर कर ली। राजा जी गया। शिवजी ने प्रसन्न होकर उससे कहा, "जो तुम्हारे जी में आये, वह मांगो।"

राजा ने कहा, "आपने मुझे जीवन दिया है तो मेरा दुनिया से उद्धार कीजिये।" शिव ने हंसकर कहा, "तुम्हारे समान कलियुग में कोई भी ज्ञानी, योगी और दानी नहीं होगा।"

इतना कहकर उन्होंने उसे एक कमल का फूल दिया और कहा, "जब यह मुरझाने लगे तो समझ लेना कि छ: महीने के भीतर तुम्हारी मृत्यु हो जायगी।"

फूल लेकर राजा अपने नगर में आया और कई वर्ष तक अच्छी तरह से रहा। एक बार उसने देखा कि फूल मुरझा गया। उसने अपनी सारी धन-दौलत दान कर दी।

पुतली बोली, "राजन्! तुम हो ऐसे, जो सिंहासन पर बैठो?"

वह दिन भी निकल गया। अगले दिन उसे सत्ताईसवीं पुतली जगज्योति ने रोककर यह कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 12:51 PM   #29
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 27

एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इंद्र के बराबर कोई राजा नहीं है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इंद्रपुरी पहुंचा। इंद्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा। राजा ने कहा, "मैं आपके दर्शन करने आया हूं।" इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट तथा विमान दिया और कहा, "जो तुम्हारे सिंहासन को बुरी निगाह से देखेगा, वह अंधा हो जायगा।"

राजा विदा होकर अपने नगर में आया। .......

राजा इन्द्रपुरी पहुंचा।

पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया। खड़े होते ही वह अंधा हो गया और उसे पैर वहीं चिपक गये। उसने पैर हटाने चाहे, पर हटे ही नहीं। इस पर सब पुतलियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं। राजा भोज बहुत पछताया। उसने पुतलियों से पूछा, "मुझे बताओ, अब मैं क्या करुं?" उन्होंने कहा, "विक्रमादित्य का नाम लो। तब भला होगा।" राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया कि उसे दीखने लगा और पैर भी उखड़ गये।

पुतली बोली, "हे राजन्! इसी से मैं कहती हूं कि तुम इस सिंहासन पर मत बैठो, नहीं तो मुसीबत में पड़ोगे।"

अगले दिन राजा उसे ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Old 31-10-2010, 12:53 PM   #30
ABHAY
Exclusive Member
 
ABHAY's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: Bihar
Posts: 6,259
Rep Power: 34
ABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud ofABHAY has much to be proud of
Post

सिंहासन बत्तीसी 28

एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि पाताल में बलि नाम का बहुत बड़ा राजा है। इतना सुनकर राजा ने अपने वीरों को बुलाया और पाताल पहुंचा। राजा बलि को खबर भिजवाई तो उसने मिलने से इंकार कर दिया। इस पर राजा विक्रमादित्य ने दुखी होकर अपना सिर काट डाला। बलि को मालूम हुआ तो उसने अमृत छिड़कवाकर राजा को जिंदा कराया और कहलाया कि शिवरात्रि को आना। राजा ने कहा, "नहीं, मैं अभी दर्शन करुंगा।" बलि के आदमियों ने मना किया तो उसने फिर अपना सिर काट डाला। बलि ने फिर जिन्दा कराया और उसके प्रेम को देखकर प्रसन्न हो, उससे मिला। बोला, "हे राजन्! यह लाल-मूंगा लो और अपने देश जाओ। इस मूंगे से जो मांगोगे, वही मिलेगा।"

मूंगा लेकर राज विक्रमादित्य अपने नगर को लौटा। रास्ते में उसे एक स्त्री मिली। उसका आदमी मर गया था और वह बिलख-बिलखकर रो रही थी। राजा ने उसे चुप किया और गुण बताकर मूंगा उसे दे दिया।

पुतली बोली, "है राजन्! जो इतना दानी और प्रजा की भलाई करने वाला हो, वह सिंहासन पर बैठे।"

इस तरह अट्ठाईस दिन निकल गये। अगले दिन वैदेही नाम की उनत्तीसवीं पुतली ने रोककर अपनी गाथा सुनायी:
__________________
Follow on Instagram , Twitter , Facebook .
ABHAY is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Thread Tools
Display Modes

Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 06:07 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.